सरकार जैविक खेती को क्यों बड़ावा दे रही है? जानें इसके फायदे एवं नुकसान

सरकार जैविक खेती को बड़ावा दे रही है। क्या (Advantages of organic farming) किसानों की आय बढ़ेगी? इसके फायदे एवं नुकसान सब कुछ जानिए

Advantages of organic farming | जैविक खेती का नाम तो आपने सुना ही होगा। सरकार जैविक खेती को बड़ावा देने के लिए विभिन्न तरह की योजनाएं चला रही है, ताकि किसान साथी ज्यादा से ज्यादा जैविक खेती की तरफ आकर्षित हो। वही भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां बड़े पैमाने पर खेती की जाती है।

बता दे की, जैविक खेती से किसानों की आय में वृद्धि होगी एवं साथ ही, उन्हें डबल मुनाफा होगा। तो आइए चौपाल समाचार के इस सुंदर लेख में जानें की जैविक खेती क्यों महत्वपूर्ण है? इसके क्या- क्या फायदे एवं नुकसान है? एवं जैविक खेती से जुड़ी अन्य जानकारी….

क्या है जैविक खेती ?(Advantages of organic farming)

जैविक खेती कृषि की वह विधि है। जिसमे आमतौर अधिक उपज प्राप्त करने के लिए प्रयोग किए जा रहे रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल नहीं किया जाता है। जैविक खेती में भूमि की उर्वरा शक्ति को बनाए रखने के लिये फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग किया जाता है। जैविक खेती से मृदा एवं पर्यावरण प्रदूषण नही होता है। सन् 1990 के बाद से विश्व में जैविक उत्पादों का बाजार काफ़ी बढ़ा है।

इसलिए जैविक खेती को बड़ावा दे रही सरकार

(Advantages of organic farming)

किसानों द्वारा अधिक उत्पादन के लिये खेती में अधिक मात्रा में रासायनिक उर्वरको एवं कीटनाशक का उपयोग करना पड़ता है। जिससे सीमांत व छोटे कृषक के पास कम जोत में अत्यधिक लागत लग रही है और जल, भूमि, वायु और वातावरण भी प्रदूषित हो रहा है साथ ही खाद्य पदार्थ भी जहरीले हो रहे हैं।

इसी को देखते हुए सरकार द्वारा जैविक खेती (Advantages of organic farming) की सिफारिश की गई है। इसलिए इस प्रकार की उपरोक्त सभी समस्याओं से निपटने के लिये गत वर्षों से निरन्तर टिकाऊ खेती के सिद्धान्त पर खेती करने की सिफारिश की गई, जिसे प्रदेश के कृषि विभाग ने इस विशेष प्रकार की खेती को अपनाने के लिए, बढ़ावा दिया जिसे हम जैविक खेती प्रचार-प्रसार कर रही है।

जैविक खेती के लाभ (Advantages of organic farming)

1. कृषकों की दृष्टि से –

  • भूमि की उपजाऊ क्षमता में वृद्धि हो जाती है।
  • सिंचाई अंतराल में वृद्धि होती है।
  • रासायनिक खाद पर निर्भरता कम होने से लागत में कमी आती है।
  • फसलों की उत्पादकता में वृद्धि।
  • बाज़ार में जैविक उत्पादों की मांग बढ़ने से किसानों की आय में भी वृद्धि होती है।

2. मिट्टी की दृष्टि से

  • जैविक खाद के उपयोग करने से भूमि की गुणवत्ता में सुधार आता है।
  • भूमि की जल धारण क्षमता बढ़ती हैं।
  • भूमि से पानी का वाष्पीकरण कम होगा।

3. पर्यावरण की दृष्टि से

  • भूमि के जल स्तर में वृद्धि होती है।
  • मिट्टी, खाद्य पदार्थ और जमीन में पानी के माध्यम से होने वाले प्रदूषण में कमी आती है।
  • कचरे का उपयोग, खाद बनाने में, होने से बीमारियों में कमी आती है।
  • फसल उत्पादन की लागत में कमी एवं आय में वृद्धि
  • अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद की गुणवत्ता का खरा उतरना।
  • जैविक विधि द्वारा खेती (Advantages of organic farming) करने से उत्पादन की लागत तो कम होती ही है इसके साथ ही कृषक भाइयों को आय अधिक प्राप्त होती है तथा अंतराष्ट्रीय बाजार की स्पर्धा में जैविक उत्पाद अधिक खरे उतरते हैं। जिसके फलस्वरूप सामान्य उत्पादन की अपेक्षा में कृषक भाई अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।

जैविक खेती के नुकसान

ऊपर हमनें जैविक खेती के फायदों (Advantages of organic farming) के बारे में पढ़ा। जब इसके इतने फायदे हैं, तो सभी लोग ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं? ऐसा इसलिए है क्योंकि जैविक खेती के फायदे के साथ साथ नुकसान भी हैं, जो की इस प्रकार है –

1. जानकारी की कमी – भारत में किसानों को बड़ी मात्रा में जैविक खेती की जानकारी नहीं है। सरकार भी किसानो को इससे अवगत कराने के लिए कुछ नहीं कर रही है। ऐसे में यह जरूरी है कि हम किसानों तक इस जानकारी को पहुंचाएं।

2. रूप-रेखा की कमी – जैविक खेती करनें के लिए बहुत से उपकरणों की जरूरत होती है, जो हमारे देश में अभी उपलब्ध नहीं है। इसके लिए सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि वह जैविक खेती करने वाले किसानों को वित्तीय सहायता करे। इससे ज्यादा से ज्यादा लोग इस ओर बढ़ेंगे।

3. शुरुआत में ज्यादा पैसा लगना – जब आप जैविक खेती की शुरुआत करते हैं, तब इसमें बहुत लागत आती है। खेती के लिए बीज, मशीन, खाद आदि बहुत महंगी आती है, जिसकी वजह से बहुत से किसान ऐसा नहीं करते हैं।

परंपरागत एवं जैविक खेती में अंतर

(Advantages of organic farming)

परंपरागत खेती में किसान के सामने बीज बोने से ही नही बल्कि बीज बोने से पहले खेत तैयार करने से लेकर फसल काटने तक के समय में कई ऐसे मौके आते हैं, जब किसान तरह-तरह के रसायनिक तत्वों तथा कीटनाशकों का प्रयोग करता है। मसलन अगर कोई फसल बोई जानी है तो उसके पहले खेत तैयार करते समय किसान मिट्टी को शोधित करते हैं। यह मृदा शोधन इसलिए किया जाता है ताकि बोए जाने वाले बीजों में कोई समस्या ना हो। वह आसानी से अंकुरित होकर बाहर निकल सके।

मिट्टी के साथ-साथ बीजों को भी शोधित किया जाता है (अगर बीज हाइब्रिड नही है तो)। ऐसे ही जब बीज अंकुरित हो रहे होते हैं तो उसी समय कई प्रकार के खरपतवार भी उग रहे होते है। इन खरपतवारों को नष्ट करने के लिए पारंपरिक किसान कई प्रकार के वीडिसाइड्स यानी खरपतवार नाशी का प्रयोग करते हैं।

जबकि जैविक कृषि (Advantages of organic farming) करने वाला किसान उन खरपतवारों को हाँथ से निकालता है। हालांकि ये काफी मेहनत का काम होता है लेकिन इससे न तो मिट्टी को, न मनुष्य को और न ही पर्यावरण को किसी प्रकार का कोई नुकसान होता है।

जैविक खेती में लागत और आमदनी

शुरूआती दिनों में जैविक खेती (Advantages of organic farming) में लागत अधिक और मुनाफा में कम हो सकता है, लेकिन 2-3 वर्षों के बाद इसमें लागत कम और मुनाफा अधिक होता है। धीरे-धीरे इसमें लागत भी जीरो हो जाती है। यही कारण है कि इसे जीरो बजट फार्मिंग (zero budget farming) भी कहते हैं।

जैविक खेती कैसे करें ?

पिछले कुछ सालों में लोगों का रुझान जैविक खेती (Advantages of organic farming) की ओर तेजी से बढ़ा है। हमारे देश में किसान ऑर्गेनिक खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। किसानों की आय में जैविक खेती की भूमिका तेजी से बढ़ रही है। जैविक खेती करने के लिए सबसे पहले किसान को मिट्टी की जांच करवानी चाहिए। मिट्टी की जांच किसी भी एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी की प्रयोगशाला में या प्राइवेट लैब में हो जाती है। ये जांच किसान को मिट्टी की हेल्थ की सही जानकारी देता है जिससे किसान सही खाद और कीटनाशकों की मदद से उत्तम पैदावार से अधिक से अधिक मुनाफा कमा सकते है।

दूसरा काम जैविक खाद बनाना हैं। जैविक फर्टिलाइजर का मतलब होता है कि वो खाद जो कार्बनिक प्रोडक्ट्स (फसल के अवशेष पशु मल-मूत्र आदि) जो कि डिस्पोज होने पर कार्बनिक पदार्थ बनाना हैं और वेस्ट डिस्पोजर की मदद से 90 से 180 दिन में बन जाती है। जैविक (Advantages of organic farming) खाद अनेक प्रकार की होती है जैसे गोबर की खाद, हरी खाद, गोबर गैस खाद आदि।

गोबर की सबसे अच्छी खाद बनाने के लिए किसान 1 मीटर चौड़ी, 1 मीटर गहरा, 5 से 10 मीटर लम्बाई का गड्ढा खोदकर उसमें प्लास्टिक शीट फैलाकर उस में खेती अवशेष की एक लेयर पर गोबर और पशु मूत्र की एक पतली परत दर परत चढ़ा कर उस में अच्छी तरह पानी से नम कर गड्ढे को कवर कर के मिट्टी और गोबर से बंद करें। 2 महीने में 3 बार पलटी करने पर अच्छी जैविक खाद बन कर तैयार हो जाएगी। वाले अलावा किसान साथी केंचुआ खाद का भी उपयोग कर सकते है। यहां नीचे केंचुआ खाद बनाने की विधि दी गई है…

केंचुआ खाद बनाने की विधि क्या है ?

(Advantages of organic farming)

कचरे से खाद तैयार किया जाना है उसमें से कांच-पत्थर, धातु के टुकड़े अच्छी तरह अलग कर इसके पश्चात वर्मी कम्पोस्ट तैयार करने के लिये 10×4 फीट का प्लेटफार्म जमीन से 6 से 12 इंच तक ऊंचा तैयार किया जाता है। इस प्लेटफार्म के ऊपर 2 रद्दे ईट के जोडे जाते हैं तथा प्लेटफार्म के ऊपर छाया हेतु झोपड़ी बनाई जाती हैं प्लेटफार्म के ऊपर सूखा चारा, 3-4 क्विंटल गोबर की खाद तथा 7-8 क्विंटल कूड़ाकरकट (गार्वेज) बिछाकर झोपड़ीनुमा आकार देकर अधपका खाद तैयार हो जाता है।

जिसकी 10-15 दिन तक झारे से सिंचाई करते हैं जिससे कि अधपके खाद का तापमान कम हो जाए। इसके पश्चात 100 वर्ग फीट में 10 हजार केंचुए के हिसाब से छोड़े जाते हैं। केचुए छोड़ने के पश्चात् टांके को जूट के बोरे से ढंक दिया जाता हैं, और 4 दिन तक झारे से सिंचाई करते रहते हैं ताकि 45-50 प्रतिशत नमी बनी रहें। ध्यान रखे अधिक गीलापन रहने से हवा अवरूध्द हो जावेगी ओर सूक्ष्म जीवाणु तथा केंचुऐ मर जावेगें या कार्य नही कर पायेंगे। (Advantages of organic farming)

केंचुए खाद के लक्षण

इसमें नत्रजन, स्फुर, पोटाश के साथ अति आवश्यक सूक्ष्म कैल्श्यिम, मैग्नीशियम, तांबा, लोहा, जस्ता और मोलिवड्नम तथा बहुत अधिक मात्रा में जैविक कार्बन पाया जाता है।

केंचुएँ के खाद का उपयोग भूमि, पर्यावरण एवं अधिक उत्पादन की दृष्टि से लाभदायी है।

किट व्याधि के नियंत्रण के लिए अपनाए यह 5 जैविक विधि

1. गौ-मूत्र – गौमूत्र, कांच की शीशी में भरकर धूप में रख सकते हैं। जितना पुराना गौमूत्र होगा उतना अधिक (Advantages of organic farming) असरकारी होगा । 12-15 मि.मी. गौमूत्र प्रति लीटर पानी में मिलाकर स्प्रेयर पंप से फसलों में बुआई के 15 दिन बाद, प्रत्येक 10 दिवस में छिड़काव करने से फसलों में रोग एवं कीड़ों में प्रतिरोधी क्षमता विकसित होती है जिससे प्रकोप की संभावना कम रहती है।

2. नीम के उत्पाद – नीम भारतीय मूल का पौघा है, जिसे समूल ही वैद्य के रूप में मान्यता प्राप्त है। इससे मनुष्य के लिए उपयोगी औषधियां तैयार की जाती हैं तथा इसके उत्पाद फसल संरक्षण (Advantages of organic farming) के लिये अत्यन्त उपयोगी हैं।

3. नीम की निबोली – नीम की निबोली 2 किलो लेकर महीन पीस लें इसमें 2 लीटर ताजा गौ मूत्र मिला लें। इसमें 10 किलो छांछ मिलाकर 4 दिन रखें और 200 लीटर पानी मिलाकर खेतों में फसल पर छिड़काव करें। (Advantages of organic farming)

4. नीम की खली – जमीन में दीमक (Advantages of organic farming) तथा व्हाइट ग्रब एवं अन्य कीटों की इल्लियॉ तथा प्यूपा को नष्ट करने तथा भूमि जनित रोग विल्ट आदि के रोकथाम के लिये किया जा सकता है। 6-8 क्विंटल प्रति एकड़ की दर से अंतिम बखरनी करते समय कूटकर बारीक खेम में मिलावें।

5. आइपोमिया (बेशरम) पत्ती घोल – आइपोमिया की 10-12 किलो पत्तियॉ, 200 लीटर पानी में 4 दिन तक भिगोंये। पत्तियों का अर्क उतरने पर इसे छानकर एक एकड़ की फसल पर छिड़काव करें इससे कीटों का नियंत्रण होता है। (Advantages of organic farming)

दीमक नियंत्रण के लिए यह उपाय करें – सुपारी के आकार की हींग एक कपड़े में लपेटकर तथा पत्थर में बांधकर खेत की ओर बहने वाली पानी की नाली में रख दें। उससे दीमक तथा उगरा रोग नष्ट हो जाएगा।

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