गेहूं की अधिक पैदावार के लिए किसानों को किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए आइए जानते Advice For Farmers हैं..
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Advice For Farmers | रबी सीजन के दौरान देश के बड़े रकबे में गेहूं की बोवनी हो चुकी है। किसान साथी गेहूं में पहली सिंचाई के साथ-साथ फसल की देखरेख में जुटे हुए हैं। फसल की पर्याप्त देखरेख, समय-समय पर उर्वरक एवं पोषक तत्वों की पूर्ति करने और समय पर खरपतवार नियंत्रण करने से पैदावार में बढ़ोतरी होती है। गेहूं की खेती में अच्छी पैदावार लेने के लिए किसानों को इस समय क्या-क्या करना चाहिए आइए जानते हैं..
इस अनुपात में दे नत्रजन, स्फुर व पोटाश
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि गेहूं के लिए सामान्यतः नत्रजन, स्फुर व पोटाश – 4:2:1 के अनुपात में दें। असिंचित खेती में 40:20:10 सीमित सिंचाई में 60:30:15 या 80:40:20 सिंचित खेती में 120:60:30 तथा देर से बुवाई में 100:50:25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के अनुपात में उर्वरक दें। Advice For Farmers
सिंचित खेती की मालवी किस्मों को नत्रजन, स्फुर व पोटाश 140:70:35 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर दें। देरी से बुवाई में नत्रजन की आधी मात्रा तथा स्फुर व पोटाश की पूर्ण मात्रा बुवाई से पहले मिट्टी में 3-4 इंच ओरना चाहिये। शेष नत्रजन पहली सिंचाई के साथ दें।
खेत के उतने ही हिस्से में यूरिया का भुरकाव करें, जितने में उसी दिन सिंचाई दे सकें। जहाँ तक संभव हो यूरिया बराबर से फैलायें। यदि खेत पूर्ण समतल नहीं है तो यूरिया का भुरकाव सिंचाई के बाद, जब खेत में पैर धंसने बंद हो जायें तब करें। सिंचाई समय पर निर्धारित मात्रा में तथा अनुशंसित अंतराल पर ही करें। Advice For Farmers
किसान साथी इन बातों का ध्यान रखें
गेहूं की अगेती खेती में मध्य क्षेत्र की काली मिट्टी तथा 3 सिंचाई की खेती में पहली सिंचाई बुवाई के तुरंत बाद, दूसरी 35-45 दिन तथा तीसरी सिंचाई 70-80 दिन की अवस्था में करना पर्याप्त है। पूर्ण सिंचित समय से बुवाई में 20-20 दिन के अन्तराल पर 4 सिंचाई करें। देरी से बुवाई में 17-18 दिन के अन्तराल पर 4 सिंचाई करें। Advice For Farmers
बालियाँ निकलते समय फव्वारा विधि से सिंचाई न करें अन्यथा फूल खिर जाते हैं, झुलसा रोग हो सकता है। दानों का मुंह काला पड़ जाता है व करनाल बंट तथा कंडुवा व्याधि के प्रकोप का डर रहता है।
पाले की संभावना हो तो इससे बचाव के लिए फसलों में स्प्रिंकलर के माध्यम से हल्की सिंचाई करें, थायो यूरिया की 500 ग्राम मात्रा का 1000 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें अथवा 8 से 10 किलोग्राम सल्फर पाउडर प्रति एकड़ का भुरकाव करें अथवा घुलनशील सल्फर 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें अथवा 0.1 प्रतिशत व्यापारिक सल्फ्यूरिक अम्ल गंधक का अम्ल का छिड़काव करें। Advice For Farmers
खरपतवार नियंत्रण पर ध्यान दें
किसान भाई अगर खरपतवार नाशक का उपयोग नहीं करना चाहते हैं तो डोरा, कुल्पा व हाथ से निंदाई-गुड़ाई 40 दिन से पहले दो बार करके खरपतवार खेत से निकाल सकते हैं। Advice For Farmers
श्रमिक उपलब्ध ना होने पर चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार के लिए 2,4-डी की 0.65 किलोग्राम या मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल की 4 ग्राम / हे. की दर से बुवाई के 30-35 दिन बाद छिड़काव करें।
गेहूं की फसल को प्रथम 35-40 दिन तक आवश्यक रूप से खरपतवार विहीन रखें। गेहूं फसल में मुख्यतः दो तरह के खरपतवार होते हैं- चौड़ी पत्ती वाले- बथुआ, सेंजी, दूधी, कासनी, जंगली पालक, जगंली मटर. कृष्ण नील, हिरनखुरी तथा संकरी पत्ती वाले जंगली जई, गेहुँसा या गेहूं का मामा आदि। Advice For Farmers
संकरी पत्ती वाले खरपतवार के लिए क्लॉडिनेफॉप प्रौपरजिल 60 ग्राम / हेक्टेयर की दर से 25-35 दिन की फसल में जब खरपतवार 2-4 पत्ती वाले हो छिड़काव करें।
दोनों तरह चौड़ी पत्तियाँ व संकरी पत्तियाँ के खरपतवार के लिए खरपतवार नाशक मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल की 4 ग्राम तथा क्लौडिनेफॉप प्रौपरजिल 60 ग्राम / हेक्टेयर की दर से मिलाकर टेंक मिक्स 25-35 दिन की फसल में छिड़काव करने से दोनों तरह के खरपतवार पर नियंत्रण किया जा सकता है। Advice For Farmers
गेहूं की फसल में रोग नियंत्रण के लिए यह करें
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि इन दिनों जड़ माहू कीटों रूट एफिड का प्रकोप देखा जा सकता है। यह कीट गेहूँ के पौध को जड़ से रस चूसकर पौधों को सुखा देते हैं। Advice For Farmers
जड़ माहू के नियंत्रण के लिए बीज उपचार गाऊचे रसायन से 3 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित करें अथवा इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 250 मिली या थाइमौक्सेम की 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 300-400 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़कें।
माहू का प्रकोप गेहूं फसल में ऊपरी भाग तना व पत्तों पर होने की दशा में इमिडाक्लोप्रिड 250 मिली ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से पानी मे घोल बनाकर छिड़काव करें। Advice For Farmers
खेत में गेहूं के पौधे के सूखने अथवा पीले पड़ने पर जो कि किसी कीट, बीमारी अथवा पोषक तत्व की कमी से हो सकता है, तुरन्त विशेषज्ञ की सलाह लेकर शीघ्र उपचार करें।
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