Earning from Cumin Cultivation: किसान साथी जीरे की उन्नत खेती, किस्म, जीरे की खेती से कमाई के बारे में जानें.
Earning from Cumin Cultivation | भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां अधिकतर आबादी कृषि पर निर्भर है। ऐसे में किसान साथी पारंपरिक खेती के साथ साथ अधिक मुनाफा देने वाली मसाले की खेती भी कर सकते है। वही बात करें मसाले की खेती में तो मसाला फसलों में जीरे का एक अपना महत्पूर्ण स्थान है। जैसा की आप सभी जानते है कोई भी सब्जी या दाल हो जीरे के बिना खाने का स्वाद नहीं बढ़ता है।
आमतौर पर जीरे को भूनकर या पीसकर छाछ, दही आदि में डालकर खाया जाता है। जीरे की उपयोगिता भी दिनोदिन बढ़ती जा रही है। ऐसे में अगर किसान साथी जीरे की खेती उन्नत तरीके से करें तो वह अच्छा मुनाफा कमा सकता है।
तो आज हम आपको यहां जीरे की उन्नत खेती (Earning from Cumin Cultivation), जीरे की खेती से कमाई एवं जीरे की खेती से संबंधित अन्य सभी महत्वपूर्ण जानकारी चौपाल समाचार https://choupalsamachar.in के इस लेख के माध्यम से बताने जा रहे है। तो आइए जानें..
जीरे की खेती के प्रमुख राज्य
जीरा मसाले (Earning from Cumin Cultivation) वाली मुख्य बीजीय फसल है। देश का 80 प्रतिशत से अधिक जीरा उत्पादन गुजरात व राजस्थान में उगाया जाता है। राजस्थान में देश के कुल उत्पादन का लगभग 28 प्रतिशत जीरे का उत्पादन किया जाता है तथा राज्य के पश्चिमी क्षेत्र में कुल राज्य का 80 प्रतिशत जीरा का उत्पादन होता है लेकिन इसकी औसत उपज (380 किलोग्राम प्रति एकड़) व गुजरात में (550 किलोग्राम प्रति एकड़) होता है।
जीरे की उन्नत खेती का तरीका
यदि जीरे की खेती (Earning from Cumin Cultivation) सही तरीके से की जाए तो किसान भाटी अधिक से अधिक मुनाफा कमा सकते है। जीरे की खेती में उत्पादन से लेकर कटाई तक कई सावधानियां रखनी पड़ती है। जीरे की बुवाई से लेकर कटाई तक जिन बातों का ध्यान रखा जाता है वे बातें या क्रियाएं इस प्रकार से हैं।
जीरे की बुआई का सही समय एवं बीज दर
जीरे की बुवाई 15 से 20 नवंबर के बीच करना चाहिए। जीरे की बुवाई (Earning from Cumin Cultivation) के लिए एक हेक्टेयर खेत में 12 से 15 किलोग्राम की दर से बीजों की आवश्यकता होती हैं। बीजों की बुवाई से पहले जीरे के बीज को उपचारित करना बहुत जरूरी है। इसके बीजों के उपचार के लिए 4 ग्राम ट्राइकजोडरमाबेडी भी मिला सकते हैं। जीरे की बुवाई अधिकतर किसान छिडक़ाव विधि से की जाती है।
जीरे की खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी एवं जलवायु
जीरे की खेती के लिए शुष्क एवं साधारण ठंडी जलवायु सबसे उपयुक्त होती है। बीज पकने की अवस्था पर अपेक्षाकृत गर्म एवं शुष्क मौसम जीरे (Earning from Cumin Cultivation) की अच्छी पैदावार के लिए आवश्यक होता है। जीरे की अच्छी पैदावार के लिए बलुई दोमट मिट्टी की आवश्यकता होती है। इसकी खेती में भूमि उचित जल निकासी वाली होनी चाहिए। भूमि का पीएच मान भी सामान्य होना चाहिए।
जीरे की फसल रबी की फसल के साथ की जाती है, इसलिए इसके पौधे सर्द जलवायु में अच्छे से वृद्धि करते हैं। जीरे की फसल (Earning from Cumin Cultivation) के लिए वातावरण का तापमान 25 से 30 डिग्री उपयुक्त माना गया है। वहीं पौधों की वृद्धि के समय 20 डिग्री तापमान उचित होता है। जीरे की फसल के लिए वातावरण का तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक व 10 डिग्री सेल्सियस से कम होने पर जीरे के अंकुरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।
जीरे की यह उत्तम किस्में
जीरे की खेती के लिए आप जीरे की कई उन्नत किस्में जैसे आर जेड-19, आरजेड-209, जीसी-4, आरजेड-223 आदि का चयन कर सकते है। अनुसंधान विभाग द्वारा जीरे की कई उन्नत किस्में (Earning from Cumin Cultivation) तैयार की गई हैं जिन्हें आप अपने क्षेत्र के अनुसार इसका खेती के लिए चयन कर सकते हैं। जलवायु के हिसाब से अधिक पैदावार लेने के लिए उगा सकते हैं। जीरे की इन किस्मों के पकने की अवधि 110 से 120 दिन तक की होती है। इन किस्मों की औसतन उपज 7 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।
जीरे की खेती के लिए खेत तैयार कैसे करें?
जीरे की खेती के लिए सबसे पहले खेत की तैयारी करना आवश्यक होता हैं। जीरे की खेती (Earning from Cumin Cultivation) करने के लिए खेत की मिट्टी पलटने वाले हल या कल्टीवेटर की मदद से एक गहरी जुताई करें तथा उसके बाद हैरों की मदद से दो या तीन उथली जुताई करके खेत में पाटा लगाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। इसके बाद 5 से 8 फीट लंबी क्यारी खेत में बनाएं।
ध्यान रहे खेत में समान आकार की क्यारियां बनानी चाहिए जिससे जीरे की बुवाई एवं इसकी फसल की सिंचाई करने में आसानी रहती है। इसके बाद 2 किलो बीज प्रति एकड़ की दर से प्रर्याप्त होता हैं।
बुवाई से पहले बीज को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम नामक दवा से प्रति किलो के हिसाब से बीज को उपचारित करके ही बुवाई करनी चाहिए। जीरे की बुवाई (Earning from Cumin Cultivation) हमेशा 30 सेटीमीटर दूरी से कतारों में ही करें। कतारों में बुवाई करने के लिए आप सीड ड्रिल की सहायता से आसानी से कर सकते है।
जीरे की खेती में खाद एवं उर्वरक प्रबंधन
जीरे की बुवाई (Earning from Cumin Cultivation) के 2 से 3 सप्ताह पहले गोबर खाद को खेत में मिलाना लाभदायक रहता है। यदि खेत में कीटों की समस्या है, तो फसल की बुवाई के पहले इनके रोकथाम हेतु व खेत की अंतिम जुताई के समय क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत, 20 से 25 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से खेत में डालकर अच्छी तरह से मिला लेना लाभदायक रहता है।
ध्यान रहे यदि खरीफ सीजन की फसल में 10 से 15 टन गोबर की खाद प्रति एकड़ के हिसाब से डाली गयी हो तो जीरे की फसल (Earning from Cumin Cultivation) के लिए अतिरिक्त खाद की आवश्यकता नहीं होती है। अन्यथा 10 से 15 टन प्रति एकड़ के हिसाब से जुताई से पहले सड़ी हुई गोबर की खाद खेत में डालकर मिला देनी चाहिए।
इसके अलावा जीरे की फसल (Earning from Cumin Cultivation) को 30 किलो नाईट्रोजन 20 किलो फॉस्फोरस एवं 15 किलो पोटाश खाद प्रति एकड़ की दर से दें। फॉस्फोरस पोटाश की पूरी मात्रा एवं आधी नाईट्रोजन की मात्रा बुवाई के पूर्व आखिरी जुताई के समय खेत में मिला देनी चाहिए। बची हुई नाईट्रोजन की आधी मात्रा बुवाई के 30 से 35 दिन बाद सिंचाई करने के बाद देनी।
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जीरे की खेती में सिंचाई प्रबंधन
जीरे की बुवाई करने के तुरन्त बाद इसकी फसल (Earning from Cumin Cultivation) की एक हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। जीरे की बुवाई के 8 से 10 दिन बाद दूसरी हल्की सिंचाई अवश्य कर दे जिससे जीरे की बीज का पूर्ण रूप से अंकुरण हो पाए। इसके बाद आवश्यकता हो तो 8 से 10 दिन बाद फसल की फिर हल्की सिंचाई की जा सकती है।
इसके बाद 20 दिन के अंतराल पर जीरे की फसल में दाना बनने की अवस्था तक तीन से चार और सिंचाई करनी चाहिए। ध्यान रहे जीरे की फसल में दाना पकने के समय सिंचाई नहीं करनी चाहिए ऐसा करने से इसका बीज हल्का बनता है। जीरे की फसल पकने की अवस्था में इसकी फसल की सिंचाई बंद कर देनी चाहिए।
जीरे की खेती में खरपतवार नियंत्रण के उपाय
जीरे की फसल (Earning from Cumin Cultivation) में खरपतवार नियंत्रण रासायनिक तरीके से करने के लिए जीरे की बुवाई के बाद सिंचाई करने के दूसरे दिन पेडिंमिथेलीन खरतपतवार नाशक दवा 1.0 किलो प्रति एकड़ की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल में समान रूप से छिड़काव करना चाहिए। इसके बाद समय-समय पर जब फसल 25 -30 दिन की हो जाये तो एक बार निराई-गुड़ाई अवश्य करना चाहिए।
जीरे की फसल में रोग नियंत्रण के उपाय
जीरे की फसल (Earning from Cumin Cultivation) में लगने वाले रोग जैसे एफिड, उकटा, झुलसा व छाछया रोग के लक्षण दिखते ही किसानों को इन रोगों का उपचार करना चाहिए। एफिड रोग के नियंत्रण हेतु इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल. की मात्रा 200 मिलीलीटर या एसीफेट की 750 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 500 लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।
जीरे की फसल में फूल आने के बाद बादल होने पर झुलसा रोग लगने की संभावना बढ़ जाती है जिसके कारण जीरे के पौधों का ऊपरी भाग झुक जाता है तथा पत्तियों व तनों पर भूरे धब्बे बन जाते हैं। इस रोग के प्रबंधन हेतु मेन्कोजेब की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर की दर से घोल बनाकर जीरे की फसल पर छिड़काव करें।
जीरे से बेहतर उत्पादन के लिए अपनाए फसल चक्र
जीरे की फसल (Earning from Cumin Cultivation) से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए फसल चक्र अपनाना बेहद जरूरी है। इसके लिए यदि एक ही खेत में बार-बार जीरे की खेती नहीं करनी चाहिए। एक ही खेत में बार-बार जीरे की बुवाई करने से उखटा रोग लगने की संभावना अधिक होती है। इसीलिए उचित फसल चक्र को जरूर अपनाना चाहिए। इसके लिए बाजरा-जीरा-मूंग-गेहूं -बाजरा- जीरा आदि जैसी तीन वर्षीय फसल चक्र को अपनाया जा सकता है।
जीरे की फसल की कटाई कब करें
जीरे की फसल (Earning from Cumin Cultivation) में जब बीज एवं पौधा भूरे रंग का हो जाएं तथा फसल पूरी पक जाए तो तुरंत इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। पौधों को अच्छी तरह से सुखाकर थ्रेसर से मंढाई करके दाना अलग कर लेना चाहिए। दाने को अच्छे से सुखाकर ही साफ बोरों में इसकी उपज का भंडारण करना चाहिए।
जीरे की फसल से उत्पादन एवं कमाई
इसकी कमाई का बात करें तो, जीरे की खेती (Earning from Cumin Cultivation) से लगभग औसत उपज 7 से 8 क्विंटल बीज प्रति एकड़ आसानी से प्राप्त हो जाती है। जीरे की खेती करने में लगभग 30 से 35 हजार रुपए प्रति एकड़ का खर्च आता है। जीरे के दाने का बाजार में भाव 180 रुपए से 300 रुपए प्रति किलो तक भाव बना रहता है। जिससे किसान एक एकड़ खेत में इसकी खेती से 2 लाख 40 हजार रुपए प्रति एकड़ तक मुनाफा कमा सकते हैं।
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