रासायनिक उर्वरकों से खेती को बहुत नुकसान हो रहा है आईए जानते हैं ऑर्गेनिक खेती Organic Farming के फायदे..
Organic Farming ; अधिक से अधिक लाभ कमाने की चाह में किसान अपने खेतों में अत्यधिक रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का प्रयोग कर रहे हैं। इससे जमीन की उर्वरा शक्ति लगातार कम होती जा रही है। आज जब हम अपनी खेती में हुई प्रगति को देखते है तो वह बहुत ही उत्साहित करती है। इस प्रगति का श्रेय हरित क्रांति को जाता है। हरित क्रांति की प्रगति के साथ अन्य क्रान्तियों का भी देश की प्रगति में बड़ा योगदान है।
लेकिन हरित क्रांति के साथ रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल बढ़ गया। रासायनिक उर्वरकों के अन्धाधुंध एवं असन्तुलित प्रयोग से कृषि जगत का पर्यावरणीय सन्तुलन बिगड़ गया है इसलिये पर्यावरण की सुरक्षा लिये तथा मृदा की उर्वरता बनाये रखने के लिये भविष्य में जैविक खेती Organic Farming एक उत्तम विकल्प है। रासायनिक उर्वरकों के इस्तेमाल से कितना नुकसान है यह बात कई किसान जान चुके हैं, इसलिए उन्होंने ऑर्गेनिक फार्मिंग अर्थात जैविक खेती करना शुरू कर दिया है। रासायनिक से ऑर्गेनिक खेती अधिक फायदेमंद है। जैविक खेती Organic Farming किसानों को किस प्रकार से लाभ देती है एवं क्या है इसके फायदे। आईए जानते हैं पूरी जानकारी..
ऑर्गेनिक एवं रासायनिक फार्मिंग में क्या अंतर है
जैविक खेती Organic Farming खेती की वह प्रक्रिया है जिसमें उत्पादन के लिए प्रयोग किये जाने वाले निवेशों का आधार जीव अंश से उत्पादित हो और पशु मानव और भूमि के स्वास्थ्य को स्थिरिता प्रदान करते हुए पर्यावरण का पोषण करें जैविक खेती कहलाती है। वहीं रासायनिक खेती वह खेती है जिसके अंतर्गत रासायनिक तरीकों से उपज बढ़ाने का प्रयास करना। सीधे तौर पर कहे तो रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाना रासायनिक खेती कहलाता है।
जैविक खाद एवं जैव उर्वरक क्या है
Organic Farming जैविक खाद एवं जैव उर्वरक वही खाद है जिसका प्रयोग प्रारम्भिक समय से करते आ रहे हैं और आज भी कमोवेश इनका प्रयोग किसान कर रहा है। इन जैविक खादों की श्रृंखला में कुछ नवनिर्मित खाद जैसे वर्मी कम्पोस्ट। ये जैविक खाद प्राकृतिक पदार्थ जैसे- घास -फूस, पशुओं के मलमूत्र एवं अन्य अवशेषों द्वारा बनाये जाते है इनमें कम मात्रा में सभी पोषक तत्व पाये जाते हैं।
जबकि जैव उर्वरक सूक्ष्म जीवाणुओं का पीट, लिग्राइट या कोयले के चूर्ण में बने मिश्रण होते हैं जिन्हें बीजापचार एवं अन्य प्रकार से भूमि में मिला देने पर ये वायुमण्डल से नत्रजन तथा भूमि में उपस्थित अनुपलब्ध पोषक तत्वों को उपलबध /प्राप्य अवस्था में बदलकर पौधों को उपलब्ध करवाते हैं। इस प्रकार की जीवित सामग्री को जैव उर्वरक कहते हैं।
जैविक खाद खेत में कब डालें
जैविक खेती Organic Farming के लिये हमेशा गर्मी की जुताई करना तथा उसमें उसके बाद हरी खाद की बुआई करना जरूरी रहता है। खेत की तैयारी पशुओं के द्वारा पशु चालित यंत्रों से करना चाहिये। विभिन्न प्रकार की जैविक खाद (हरी खाद) अथवा निर्मित जैविक खाद (गोबर की खाद, एफ. वाई.एम. कम्पोस्ट) जैविक खादों की श्रेणी में आते हैं। इन जैविक खादों को बोआई से एक डेढ़ माह पूर्व खेतों में जुताई करके मिला देने से प्रभाव अच्छा दिखाई पड़ता है और पोषक तत्व उपलब्ध अवस्था में परिवर्तित होकर पौधों को प्राप्त हो जाते हैं।
पोषक तत्वों की पूर्ति के लिये जीवाशों से निर्मित खाद का प्रयोग करना चाहिए जैसे – मल मूत्र, खून, हड्डी, चमड़ा, सींग, फसल अवशेष, खरपतवार से निर्मित होने वाली खादें या वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप कम्पोस्ट, काउपैट पिट कम्पोस्ट आदि का प्रयोग करना चाहिए तथा जैव उर्वरकों से भूमि शोधन अवश्य करना चाहिए।
जैविक खेती से लाभ
Organic Farming से भूमि का स्वास्थ्य सुधरता है। पशु, मानव एवं लाभदायक सूक्ष्म जीवों का स्वास्थ्य सुधरता है। पर्यावरण प्रदूषण कम होता है। पशु-पालन को बढ़ावा मिलता है। टिकाऊ खेती का आधार बनता है। गॉव, कृषि एवं किसान की पराधीनता कम होती है, जिससे वे स्वालम्बी बनते हैं। उत्पादों का स्वाद एवं गुणवत्ता बढ़ती है। Organic Farming से पानी की खपत कम होती है। रोजगार में वृद्वि होती है तथा पशु एवं मानव श्रम का उपयोग, भूमि, जल, हवा आदि पर कम होता है।
जैविक खेती क्यों जरूरी है, इस प्रकार समझे..
किसान साथियों जितने भी फोस्फेट होते हैं वो हमारी मिट्टी की पीएच बढ़ाने का काम करते है। जितनी पीएच ज्यादा बढ़ेगी उतने पोषक तत्व पौधे को कम मिलेंगे, उसके लिए हम और ज्यादा खाद डालेंगे जिस से पीएच और ज्यादा बढ़ेगी, वो दिन दूर नहीं जब पीएच इतनी बढ़ जाएंगी कि चाहे हम कुछ डालें लेकिन पौधे को पोषक तत्व उपलब्ध नहीं होगें। फोस्फेट का मतलब हैं कि पौधा फोस्फोरस को फोस्फेट फार्म में लेता हैं जैसे सल्फर को सल्फेट, नाइट्रोजन को नाइट्रेट फार्म में लेता हैं। Organic Farming
फोस्फेट यानि कि डीएपी (डाई अमोनियम फोस्फेट), SSP ( सिंगल सुपर फोस्फेट) आदि खाद मिट्टी में मौजूद अन्य पोषक तत्वों के साथ मिलकर कंपाउंड बना लेती हैं जिसकी वजह से पौधे को पोषक तत्व उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। यहीं कारण हैं कि डीएपी सिर्फ 20 प्रतिशत ही पौधे को उपलब्ध हो पाती हैं बाकि फिक्स हो जाती हैं और धीरे धीरे पीएच बढ़ाने का काम करती हैं। जितनी पीएच बढ़ेगी उतनी जमींन बंजर होने की तरफ जाती जाएंगी।
यही कारण है की जमीन की गुणवत्ता बनाए रखने के लिए प्राकृतिक एवं जैविक खेती Organic Farming अत्यधिक आवश्यक है। जहां हल्की मिट्टी हैं और पीएच 8 से ज्यादा हैं वहां SSP बिल्कुल भी ना डालें, क्योंकि SSP की मात्रा ज्यादा डालनी पड़ती हैं। आपको उतनी ही पैदावार के लिएं हर साल 10 प्रतिशत SSP की मात्रा बढ़ानी पड़ेगी।
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