किसान ने धान छोड़कर शुरू की मक्का की खेती, कम लागत में लिया अच्छा मुनाफा, जानें उनकी सफलता का राज

आंध्र प्रदेश के रहने वाले किसान (Success Farmer) ने किस तरह मक्का की खेती से अच्छा मुनाफा किया, जानें उनकी सफलता की कहानी..

Success Farmer | देश का हर किसान खेती से अधिक से अधिक मुनाफा कमाना चाहता है। लेकिन सही दिशा निर्देश ना मिलने के चलते उन्हें खेती में मुनाफा कम और लागत ज्यादा आती है। नमस्कार किसान भाइयों! आज हम यहां बात करने वाले हैं ऐसे सफल किसान के बारे में, जिन्होंने धान की खेती छोड़कर की खेती को अपनी आमदनी का जरिया बना। दरअसल हम यहां जिस किसान की बात करने वाले हैं वह आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के वट्टीचेरुकुरु गांव के रहने वाले हैं। आईए जानते हैं कि सामने किस तरह मक्का की खेती से अधिक मुनाफा कमाया…

मक्का की खेती से प्रति एकड़ 70000 प्रॉफिट हुआ

आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के वट्टीचेरुकुरु गांव के रहने वाले किसान ने धान की खेती छोड़कर मक्के की खेती शुरू की और इसमें होने वाले प्रॉफिट से वो क्षेत्र में अन्य किसानों के लिए रोल मॉडल बन गया। Success Farmer

इस किसान का नाम बंडारू श्रीनिवास राव है, जो आंध्र प्रदेश के गुंटूर जिले के वट्टीचेरुकुरु गांव के रहने वाले हैं। यह किसान 30000 रुपये की लागत लगाकर एक सीजन में एक लाख रुपये कमा रहा है। मतलब प्रति एकड़ 70,000 रुपये का लाभ। रबी मक्का की फसल चार से पांच महीने के अंदर-अंदर तैयार हो जाता है। Success Farmer 

कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार जीते चुके हैं किसान बंडारू श्रीनिवास राव

किसान ने बताया कि वो 2000 से पहले धान और मूंग की खेती करता था, लेकिन उसके बाद उसने मक्के की खेती शुरू की, जिसमें अच्छा खासा लाभ होने लगा इसलिए अब तक इसी की खेती कर रहा है। आज ऐसे ही किसानों की बदौलत आंध्र प्रदेश का देश के कुल मक्का उत्पादन में अहम योगदान है। यहां मक्का की उत्पादकता भी अन्य राज्यों से अधिक है। राव तकनीकी और अन्य सहायता के लिए भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के संपर्क में रहते हैं। राव ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद और अन्य संगठनों से कई राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कार भी जीते हैं। Success Farmer

किसान की सफलता की कहानी..

राव ने मक्का की बुवाई के लिए मशीनें भी विकसित की हैं, जिनसे बहुत जल्दी किसान बुवाई का काम निपटा सकते हैं। यह किसान सीड ड्रिल मशीन का उपयोग करके बुवाई का काम करता है। मक्के की खेती में फायदा को देखते राव ने 22 एकड़ में इसकी खेती की हुई है, जिसमें से 10 एकड़ उनकी खुद की है और बाकी लीज पर ली है। लीज पर ली गई जमीन का वो 20,000 रुपये एकड़ प्रति फसल का किराया देते हैं। Success Farmer

खास बात है कि काफी खेत में उन्होंने जीरो टिलेज तकनीक से खेती की है, जो न सिर्फ पर्यावरण के अनुकूल है बल्कि इसमें किसानों को अच्छी बचत भी होती है। पिछली फसल की कटाई के बाद बिना जुताई किए ही मशीन द्वारा मक्का की बुवाई करने की प्रणाली को जीरो टिलेज कहते हैं। इस विधि से बुवाई करने पर खेत की जुताई करने की आवश्यकता नहीं पड़ती है तथा खाद और बीज की एक साथ बुवाई की जा सकती है। Success Farmer 

जीरो टिलेज मशीन साधारण ड्रिल की तरह ही है, परन्तु इसमें टाइन चाकू की तरह होता है। यह टाइन मिट्टी में नाली के आकार की दरार बनाता है, जिसमें खाद और बीज उचित मात्रा में सही गहराई पर पहुंच जाता है। राव ने इनोवेटिव तरीके से मक्का की खेती करके इसे धान के मुकाबले ज्यादा लाभकारी बना लिया है। किसानों ने इस तकनीक को अपनाने के लिए शुरुआती दौर में साइकिल रिंग, पहिया आधारित होल मेकर आदि का उपयोग करके मक्का की बुवाई के लिए विभिन्न कृषि उपकरण विकसित किए। Success Farmer

आईसीएआर-भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शंकर लाल जाट भी शून्य जुताई आधारित यानी जीरो टिलेज फसल उत्पादन तकनीक पर काम कर रहे हैं। उन्होंने शून्य जुताई खेती के लाभों को गिनाया है। जलवायु परिवर्तन की समस्या के समाधान के साथ ऐसी खेती से लागत में कमी, मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर होना, मल्चिंग से पानी का वाष्पीकरण कम होना, समय पर फसल लगाना, मिट्टी में बची हुई नमी और पोषक तत्वों का प्रभावी उपयोग होता है। Success Farmer 

उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि उच्च उपज देने वाली सिंगल क्रॉस हाइब्रिड मक्का के विकास के साथ, जीरो टिलेज तकनीक को अपनाने की भी जरूरत है। वर्तमान में आंध्र प्रदेश में मक्का की औसत उत्पादकता 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से अधिक है। पिछले कुछ वर्षों में मूल्य प्राप्ति न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम थी, लेकिन हाल ही में बायोएथेनॉल के लिए मक्का के उपयोग से इसमें सुधार होने की संभावना है और जीरो टिलेज की तकनीक के लाभ और बढ़ेगा। अब ज्यादातर मंडियों में मक्का का दाम एमएसपी से ज्यादा मिलने लगा है। Success Farmer 

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