धान की फसल में यूरिया, जिंक की मात्रा कितनी एवं कब देना है, जानिए

धान की फसल में उर्वरक की मात्रा कितनी देना है एवं कीट एवं रोग नियंत्रण के लिए क्या करना है, Paddy Crop Advice जानिए..

Paddy Crop Advice | धान की फसल के लिए अगस्त महीने का अंतिम सप्ताह एवं सितंबर का माह अति महत्वपूर्ण होता है। इस समय धान की फसल के पर्याप्त देखरेख के साथ-साथ यह भी सुनिश्चित करना होता है कि सिंचाई सही से हो रही है या नहीं एवं धान की फसल में नाइट्रोजन जिंक सल्फेट की कमी तो नहीं हो रही।

धान की फसल के लिए सिचाई की पयाप्त सुविधा होना बहुत ही जरूरी है, धान की फसल को सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है।

फसल को कुछ विशेष अवस्थाओं में जैसे-रोपाई के बाद एक सप्ताह तक कल्ले फूटते समय, फूल निकलते समय बाली निकलते समय तथा दाना भरते समय खेत में 5-6 सेंमी. पानी खड़ा रहना इन अवस्थाओं में अति लाभकारी होता है। धान की फसल Paddy Crop Advice की अधिक उपज लेने के लिए कौन-कौन सी बातें जरूरी है आईए जानते हैं..

फूल निकलने की अवस्था में क्या करें जानिए

फूल खिलने की अवस्था पानी के लिए अति संवेदनशील है। अनुसंधान के आधार पर यह पाया गया है कि धान की अधिक उपज लेने के लिए लगातार पानी भरा रहना आवश्यक नहीं है। इसके लिए खेत की सतह से पानी अदृश्य होने के एक दिन बाद 5-7 सें.मी. सिंचाई करना उपयुक्त होता है। यदि वर्षा के अभाव के कारण पानी की कमी दिखाई दे तो सिंचाई अवश्य करें।

खेत में पानी रहने से फॉस्फोरस, मैग्नीज तथा आयरन जैसे पोषक तत्वों की उपलब्धता बढ़ जाती है और खरपतवार भी कम निकलते हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि कल्ले निकलते समय 5 सेंमी. से अधिक पानी अधिक समय तक धान के खेत Paddy Crop Advice में भरा रहना भी हानिकारक होता है। अतः जिन क्षेत्रों में पानी भरा रहता हो वहां जल निकासी का उचित प्रबंधन करना बहुत आवश्यक है।

कुछ विशेष परिस्थितियों के कारण कई बार धान की रोपाई देर से की जाती है। कई बार ऐसा देखा गया है कि वर्षा बहुत अधिक हो जाती है या वर्षा का आगमन देर से होता है। ऐसी परिस्थितियों में जलभराव के कारण समय पर रोपाई सम्भव नहीं हो पाती है।

उपरोक्त दशा में कुछ विशेष सस्य क्रियाओं को अपनाया जाये तो पुरानी पौध के प्रयोग से धान की अच्छी पैदावार प्राप्त की जा सकती है रोपाई की दूरी घटा देनी चाहिए, जिससे प्रति इकाई पौधों की संख्या बढ़ जाये। ऐसी दशा में धान की रोपाई के लिए Paddy Crop Advice पंक्ति से पंक्ति एवं पौधे से पौधे की दूरी 20X10 एवं 15X10 सेंमी. पर लगायें और प्रति स्थान पर 3-5 पौधों की रोपाई करें।

धान की फसल में उर्वरक प्रबंधन

Paddy Crop Advice ; धान की देर से पकने वाली प्रजातियों की रोपाई इस माह बंद कर दें। खेतों की मजबूत मेड़बन्दी करें, ताकि वर्षा का पानी खेत से बाहर न निकलने पाए। पछेती प्रजाति के रोपाई वाले खेतों में जिन जगहों पर पौधे मर गये हो, वहां उसी प्रजाति के नये पौधों की दोबारा रोपाई कर और खेत में पानी का स्तर 3-4 सेंमी. बनाएं रखें।

धान में इस समय उर्वरक प्रबंधन महत्वपूर्ण होता है। धान की फसल में रोपाई के 25-30 दिनों बाद, अधिक उपज वाली प्रजातियों में 65 कि.ग्रा. यूरिया या 30 कि.ग्रा.

नाइट्रोजन प्रति हेक्टेयर कल्ले निकलते समय तथा नाइट्रोजन की इतनी ही मात्रा की दूसरी व अन्तिम टॉप ड्रेसिंग रोपाई के 50-55 दिनों बाद पुष्पावस्था पर करनी चाहिए। सुगंधित प्रजातियों में 33 कि.ग्रा. यूरिया या 15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से टॉप ड्रेसिंग कर दें। Paddy Crop Advice

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धान की फसल में यूरिया एवं जिंक कितना डालें

यदि खेत में जिंक की कमी के लक्षण हों, तो 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट को 0.25 प्रतिशत बुझे हुए चूने के घोल के साथ 2-3 छिड़काव 15-20 दिनों के अन्तराल पर करें। Paddy Crop Advice

जिन क्षेत्रों में धान की सीधी बुआई की जाती है वहां यदि पौधों में आयरन तत्व की कमी दिखाई दे, तो 0.5 प्रतिशत फैरस सल्फेट का घोल बनाकर 15 दिनों के अन्तराल पर दो से तीन छिड़काव करें।

खरपतवार नियंत्रण पर भी ध्यान दें

खरपतवार फसल से पोषक तत्व, सूर्य का प्रकाश, नमी तथा स्थान के लिये प्रतिस्पर्धा करते हैं। इससे धान की फसल को काफी नुकसान होता है। इससे उत्पादन में गिरावट आती है। सीधे बोये गये धान में रोपाई किये गये धान की तुलना में अधिक नुकसान होता है। Paddy Crop Advice

पैदावार में कमी के साथ-साथ खरपतवार धान में लगने वाले रोगों के जीवाणुओं, कीट एवं रोगों को भी आश्रय देते हैं। कुछ खरपतवार के बीज धान के बीज के साथ मिलकर उसकी गुणवत्ता को खराब कर देते हैं।

फसल से पूरी उपज प्राप्त करने के लिए खरपतवारों का समय से नियंत्रण बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। खरपतवारों को प्रतिरोपण के बाद 20 से 40 दिनों में नियंत्रित कर लेना चाहिए।

खरपतवार प्रबंधन को एकीकृत तरीके से करना चाहिए। धान के खेतों में खरपतवारों को नियंत्रित करने के लिए जल प्रबंधन हमेशा से ही एक प्रभावी और उन्नत विधि रही है। जलभराव के कारण खरपतवारों की जड़ों तक ऑक्सीजन नहीं पहुंचती है। इसके कारण खरपतवारों की संख्या में कमी आती है। रोपित धान की फसल में खरपतवारनाशी में से किसी भी दवा का प्रयोग किया जा सकता है। Paddy Crop Advice

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धान की फसल में प्रमुख रोगों की रोकथाम

धान की फसल Paddy Crop Advice को बहुत से रोग बुरी तरह से प्रभावित करते हैं लेकिन उनमें भी जीवाणु, विषाणु और कवकजनित रोग ज्यादा हानिकारक होते हैं। धान में लगभग 30 रोग तो केवल कवकजनित हैं।

फसलों में पैदावार तथा आर्थिक क्षति के दृष्टिकोण से वर्तमान में देश में मुख्य रूप से ब्लॉस्ट ब्राउन स्पॉट, स्टेम रॉट, शीथ ब्लाइट तथा फुट रॉट काफी महत्वपूर्ण हैं। इनके बारे में प्रमुख जानकारियां इस प्रकार हैं:

बकानी रोग :– इसके लक्षणों में प्राथमिक पत्तियों का दुर्बल तथा असामान्य रूप से लम्बा होना है। फसल की परिपक्वता के समीप होने के समय संक्रमित पौधे, फसल के सामान्य स्तर से काफी ऊपर निकले हुए, हल्के हरे रंग के धवज-पत्रयुक्त लम्बी टिलर्स दर्शाते हैं।

संक्रमित पौधे में टिलर्स की संख्या प्रायः कम होती है। कुछ सप्ताह के भीतर ही नीचे से ऊपर की और एक के बाद दूसरी, सभी पत्तियां सूख जाती हैं संक्रमित पौधे की जड़ें सड़कर काली हो जाती हैं और उसमें दुर्गंध आने लगती है। Paddy Crop Advice

बकानी रोग नियंत्रण :– बकानी रोग के नियंत्रण के लिए कवकनाशियों के साथ बीजोपचार की संस्तुति की जाती है। कार्बेन्डाजिम के 0.1 प्रतिशत ( 1 ग्राम / लीटर पानी) घोल में बीजों को 24 घंटे भिगोयें तथा अंकुरित करके नर्सरी में बिजाई करें। रोपाई से पहले पौध का 0.1 प्रतिशत कार्वेण्डाजिम के घोल में 12 घन्टों तक उपचार भी प्रभावी पाया गया है।

खैरा रोग :– धान की फसल की निचली पत्तियां पीली पड़नी शुरू हो जाती हैं और बाद में इन पर कत्थई रंग के छिटकवां धब्बे उभरने लगते हैं। पौधों की वृद्धि रुक जाती है। 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर की दर से रोपाई से पहले खेत की तैयारी के समय डालना चाहिये। Paddy Crop Advice

खैरा रोग नियंत्रण रोकथाम के लिये 5 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट तथा 2.5 कि.ग्रा. चूना 600-700 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर छिड़काव करें। 

झुलसा रोग :– झुलसा रोग पौधे की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक यह रोग कभी भी हो सकता है। पत्तियों में किनारा के ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगता है। सूखे पीले पत्ते के साथ-साथ राख के रंग के चकते भी दिखाई देते हैं। बालियां दानारहित रह जाती हैं। Paddy Crop Advice

झुलसा रोग नियंत्रण :– धान की फसल में लगने वाले झुलसा रोग के नियंत्रण के लिये 74 ग्राम एग्रीमाइसीन 100 और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (फाइटोलान) /ब्लाइटॉक्स 50/क्यूप्राविट को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर हैक्टयर की दर से 3-4 बार 10 दिनों के अन्तराल से छिड़काव करें।

स्ट्रेप्टोमाइसीन / एग्रामाइसीन से बीज को उपचारित करके बोयें। इस रोग को लगने पर नाइट्रोजन की मात्रा कम कर देनी चाहिये। Paddy Crop Advice

ब्लॉस्ट या झोंका रोग :– यह रोग फफूंद से फैलता है। पौधे के सभी भाग इस रोग से प्रभावित होते हैं। यह रोग पत्तियों पर भूरे धब्बे, कत्थई रंग एवं बीच वाला भाग राख के रंग का हो जाता है। फलस्वरूप बाली आधार से मुड़कर लटक जाती है। दाने का भराव भी पूरा नहीं हो पाता है। जुलाई के प्रथम पखवाड़े में रोपाई पूरी कर लें। देर से रोपाई करने पर झोंका रोग के लगने की आशंका बढ़ जाती है।

ब्लॉस्ट या झोंका रोग नियंत्रण :– बीजों को कार्वेण्डाजिम एवं थीरम ( 11 ) 3 ग्राम / कि.ग्रा. या फंगोरीन 6 ग्राम/कि.ग्रा. की दर से बीजोपचार करना चाहिए। Paddy Crop Advice

नियंत्रण के लिए कार्वेण्डाजिम (50 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 500 ग्राम या 500 ग्राम ट्राइसायक्लेजोल या एडीफेनफॉस (50 प्रतिशत ई.सी.) 500 मि.ली. या हेक्साकोनाजोल (5.0 प्रतिशत ई.सी.) 1.0 लीटर या मैंकोजेब (75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 2.0 कि.ग्रा. या जिनेब (75 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 2.0 कि.ग्रा. या कार्वेण्डाजिम (12 प्रतिशत) + मैंकोजेब ( 63 प्रतिशत डब्ल्यू.पी.) 750 ग्राम या आइसोप्रोथपलीन (40 प्रतिशत ई.सी.) 750 मि.ली.

कासूगामाइसिन ( 3 प्रतिशत एमएल) 1.15 लीटर दवा 500-750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें। कार्वेण्डाजिम का 0.1 प्रतिशत की दर से दूसरा छिड़काव कल्ले फूटते समय, तीसरा छिड़काव बालियां निकलते समय ग्रीवा संक्रमण को रोकने के लिए करना चाहिए। Paddy Crop Advice

झुलसा या जीवाणु पर्ण अंगमारी रोग :– यह रोग जीवाणु द्वारा होता है। पौधों की छोटी अवस्था से लेकर परिपक्व अवस्था तक यह रोग कभी भी हो सकता है। इस रोग में पत्तियों के किनारे ऊपरी भाग से शुरू होकर मध्य भाग तक सूखने लगते हैं।

सूखे पीले पत्तों के साथ-साथ राख के रंग के चकते भी दिखाई देते हैं। पत्तों पर जीवाणु के रिसाव से छोटी-छोटी बूंदें नजर आती हैं तथा पौधों में शिथिलता आ जाती है। अतः बालियां दानों से रहित रह जाती हैं।

जीवाणु पर्ण अंगमारी रोग नियंत्रण :– इस रोग के लगने की अवस्था में नाइट्रोजन का प्रयोग कम कर दें। जिस खेत में रोग हो उसका पानी दूसरे खेत में न जाने दें। इससे रोग के फैलने की आशंका होती है। खेत में रोग को फैलने से रोकने के लिए खेत से समुचित जल निकास की व्यवस्था की जाए तो रोग को काफी हद तक नियंत्रित किया जा सकता है। Paddy Crop Advice

रोग के नियंत्रण के लिए 74 ग्राम एग्रीमाइसीन 100 और 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड (फाइटोलान / ब्लाइटॉक्स- 50/क्यूप्राविट) को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हैक्टर की दर से तीन-चार बार छिड़काव करें। पहला छिड़काव रोग प्रकट होने पर तथा आवश्यकतानुसार 10 दिनों के अन्तराल पर करें।

झुलसा या जीवाणु पर्ण अंगमारी रोग फसलों में इस रोग से बचाव में रोग प्रतिरोधी प्रजातियों जैसे अजय आईआर- 42, आईआर 64 तथा स्वर्णा इत्यादि की खेती सर्वोत्तम तरीका है। Paddy Crop Advice

धान की फसल में लगने वाले‌ प्रमुख कीट एवं उनकी रोकथाम

धान की फसल Paddy Crop Advice में सबसे अधिक कीट नुकसान पहुंचाते हैं। धान में कीटों के प्रकोप से उपज के साथ-साथ गुणवत्ता में भी ह्रास होता है। इसमें चावल की मांग स्थानीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों में काफी घट जाती है। इसके परिणामस्वरूप किसानों को भी भारी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है।

पत्ती लपेटक (लीफ फोल्ड ) :– इस कीट की सूंडी पौधों की कोमल पत्तियों को किनारों की तरफ से लपेटकर सुरंग सी बना लेती है और उसके अन्दर खाती रहती है। फलस्वरूप पौधों की पत्तियों का रंग उड़ जाता है। और पत्तियां सूख जाती हैं। उत्तरी भारत में अगस्त से अक्टूबर तक इस कीट से अधिक नुकसान होता है।

पत्ती लपेटक कीट नियंत्रण :– पत्ती लपेटक कीट के नियंत्रण के लिये लाइट ट्रैप का प्रयोग करें। ट्राइकोग्रामा काइलोनिस ( ट्राइकोकार्ड) 1-1.5 लाख हैक्टर प्रति सप्ताह की दर से रोपाई के 30 दिनों उपरांत 3-4 सप्ताह तक छोड़ें। Paddy Crop Advice

मोनोक्रोटोफॉस (36 डब्ल्यू.एस. सी.) दवा की 1.4 लीटर मात्रा 500-600 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें।

क्विनालफॉस 25 ई.सी. 2.5 मिली./लीटर या क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 मिली./लीटर या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50 एसपी | मिली. / लीटर या फ्लूबैंडमाइड 39.35 एससी। मिली./5 लीटर पानी का छिड़काव करें अन्यथा दानेदार कीटनाशी कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 25 कि.ग्रा./हैक्टर का प्रयोग भी कर सकते हैं। Paddy Crop Advice

तनाछेदक (स्टेम बोरर ) :– इस कीट की सूंडिया ही नुकसान पहुंचाती हैं। वयस्क पतंगें फूलों के शहद आदि पर निर्वाह करते हैं। फसल की प्रारंभिक अवस्था में इसके प्रकोप से पौधों का मुख्य तना सूख जाता है। इसे डैड हॉर्ट या हाईट डैड कहते हैं। पकने की अवस्था पर बालियां सूखकर सफेद दिखाई देने लगती हैं। यह धारीदार गुलाबी पीले या सफेद रंग का कीट होता है। प्रकाश प्रपंच के उपयोग से तनाछेदक की संख्या पर निगरानी रखें।

तनाछेदक कीट नियंत्रण :– तनाछेदक कीट के नियंत्रण के लिये लाइट ट्रैप का प्रयोग करें। रोपाई के 30 दिनों बाद ट्राइकोग्रामा जैपोनिकम ( ट्राइकोकार्ड) 1-1.5 लाख / हैक्टर प्रति सप्ताह की दर से 2-6 सप्ताह तक छिड़कें। Paddy Crop Advice

डाईमेक्रॉन फॉस्फामिडान ( 85 ई.सी.) 590 मिली./ हैक्टर या मोनोक्रोटोफॉस (36 ई.सी.) 1.5 लीटर / हैक्टर या क्लोरोपाइरीफॉस (20 ई.सी.) 2.5 लीटर / हैक्टर 500-700 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें।

कार्बोफ्यूरॉन 3 जी या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी या फिप्रोनिल 0.3 जी 25 कि.ग्रा./हैक्टर प्रयोग करें या क्विनालफॉस 25 ई.सी. 2 मि.ली. /लीटर या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50 एसपी 1 मिली./लीटर का छिड़काव करें। Paddy Crop Advice

ग्रास हॉपर :– इस कीट के शिशु व वयस्क पत्तों को इस तरह खाते हैं जैसे कि पशु चर गए हों। गर्मी में धान के खेतों की मेड़ों की खुरचाई करें ताकि इस कीट के अंडे नष्ट हो जाएं। इस कीट की वर्ष में एक ही पीढ़ी होती है तथा अंडे नष्ट कर देने से इसका प्रकोप काफी कम हो जाता है।

ग्रास हॉपर कीट नियंत्रण :– क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 मिली./लीटर या क्विनलफॉस 25 ई.सी. 3 मिली./लीटर का छिड़काव करें अन्यथा कार्बेरिल या मिथाइल पैराथियान धूल 25-30 कि.ग्रा./हैक्टर का बुरकाव करें। Paddy Crop Advice

फुदका या मधुआ कीट (हॉपर) :– ये भूरे काले एवं सफेद रंग के छोटे-छोटे कीट होते हैं। इनके शिशु व वयस्क दोनों ही पौधों के तने व पर्णाच्छद से रस चूसकर फसल को हानि पहुंचाते हैं। फसल पर इस कीट की निगरानी बहुत जरूरी है। फुदके, तने पर होते हैं तथा पत्तों पर नहीं दिखते। इनके प्रकोप से हरी भरी दिखने वाली फसल अचानक झुलस जाती है। झुलसे हुये हिस्से को हॉपर कहते हैं।

फुदका या मधुआ कीट नियंत्रण :– इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल 1 मिली./ 3 लीटर पानी या थायोमेथोक्जम 25 डब्ल्यू. पी. 1 ग्राम / 5 लीटर या बीपीएमसी 50 ई.सी. 1 मिली./लीटर या कार्बेरिल 50 डब्ल्यू. पी. 2 ग्राम / लीटर या बुप्रोफेजिन 25 एससी 1 मिली./लीटर पानी का छिड़काव करें। छिड़काव करते समय नोजल पौधों के तनों पर रखें। दानेदार कीटनाशी जैसे कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 25 कि.ग्रा./हैक्टर या फिप्रोनिल 0.3 जी 25 कि.ग्रा./हैक्टर भी इस्तेमाल कर सकते हैं। Paddy Crop Advice

सैनिक कीट :– इस कीट की केवल सूंडियां ही फसल को नुकसान पहुंचाती हैं, जबकि पतंगे फूलों से रस चूसते हैं। सूंडियां नर्सरी में पौध को इस तरह कुतरकर खा जाती हैं जैसे इन्हें पशुओं ने चर लिया हो। खेत में यह कीट पत्तों की मध्य शिराओं को छोड़ते हुए पूरे पत्तों को चट कर जाता है।

सैनिक कीट नियंत्रण :– प्रकाश-प्रपंच का प्रयोग कर कीटों को एकत्र कर नष्ट कर दें। क्लोरोपायरीफॉस 20 ई.सी. 2.5 मिली./लीटर या क्विनलफॉस 25 ई.सी. 3 मिली./लीटर पानी का छिड़काव करें अन्यथा कार्बेरिल या मैलाथियान धूल 25-30 कि.ग्रा./ हैक्टर छिड़काव करें। Paddy Crop Advice 

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