मसूर की फसल में सबसे ज्यादा खतरा रतुआ रोग, उकठा और पावडरी मिल्ड्यू रोग का रहता है। जानें इन रोगों (Lentil Crop Disease) के लक्षण और प्रबंधन।
👉 व्हाट्सऐप चैनल से जुड़े।
Lentil Crop Disease | मसूर एक ऐसी दलहनी फसल है, जिसकी खेती भारत के लगभग सभी राज्यों में की जाती है, लेकिन पिछले कुछ सालों में मसूर की खेती की उत्पादकता में ठहराव आ गया था, इसके अलावा यह फसल तैयार होने में भी 130 से लेकर 140 दिन लेती है।
रबी मौसम में बोई जाने वाली फसलों में मसूर एक महत्वपूर्ण फसल है। दलहन फसल होने के कारण इसमें राईजोबियम बैक्टीरिया पाया जाता है। इसमें कीट लगने का खतरा भी बढ़ा रहता है।
मसूर की फसल में लगने वाले लगभग सभी कीट वही होते हैं, जो रबी दलहन फसलों में लगते हैं। इसमें से मुख्य रूप से रतुआ रोग, उकठा रोग और मटर का पावडरी मिल्ड्यू अधिक हानि पहुंचाते हैं।
आइए जानते है मसूर की फसल Lentil Crop Disease में लगने वाले रतुआ रोग, उकठा रोग और मटर का पावडरी मिल्ड्यू रोग के लक्षण और प्रबंधन के बारे में…
1. रतुआ रोग
Lentil Crop Disease | यह रोग यूरीमाइसिस फेवी नामक कवक द्वारा होता है। लक्षण : सर्वप्रथम पत्तियों की निचली सतह व पर्णवृत्त पर हल्के पीले रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो कि बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं। पत्तियां सूख जाती है। रोग का आक्रमण निचले सतह से शुरू होकर ऊपरी क्षेत्र तक फैल जाता है।
रतुआ रोग का प्रबंधन :–
रोगी फसल के अवशेष जलाकर नष्ट कर दें।
बुवाई जल्दी करें।
बीजोपचार बोने से पूर्व कार्बोक्सीन 37.5 प्रतिशत + थिरम 37.5 प्रतिशत का 3 ग्राम प्रति किलो बीज से बीजोपचार करें। : Lentil Crop Disease
रतुआ निरोधक जातियां जैसे पंत, एल. 407, पंत एल. 639 पंत एल 236, पंत एल. 406 व नरेन्द्र मसूर- 1 आदि की बुवाई करें।
👉 व्हाट्सऐप चैनल से जुड़े।
2. उकठा रोग
Lentil Crop Disease | यह रोग फ्यूजेरियम ऑक्सीपोरम नामक फफूंद से होता है। यह भूमि जनक रोग है। लक्षण: इसमें उगते हुए पौधे भूमि से निकलने के पूर्व ही या तुरंत बाद मर जाते हैं।
उगने के कुछ दिन बाद फफूँद का आक्रमण होने पर उनकी जड़ें भूरी हो जाती हैं। पौधा का ऊपरी भाग लटक जाता है और अंत में मर जाता है।
ये भी पढ़ें 👉 सरसों की फसल में आ रही फुटाव की समस्या, फटाफट करें यह आसान उपाय, नहीं होगा नुकसान
Lentil Crop Disease | उकठा रोग का प्रबंधन :–
गर्मी में गहरी जुताई करें।
खेत में फसल के अवशेष न रहने दें।
फसल चक्र अपनायें।
2.5 ग्राम कार्बोक्सीन 37.5 प्रतिशत + थिरम 37.5 प्रतिशत का से प्रति किलो बीज की दर से बीजोपचार करके ही बुवाई करें अथवा ट्राईकोडर्मा बिरड़ी 5 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज उपचार करें।
बुवाई के पूर्व 4 किलोग्राम ट्राईकोडर्मा बिरड़ी को गोबर की खाद में मिलाकर प्रति हेक्टेयर खेत में मिलावें। : Lentil Crop Disease
उक्ठा निरोधक जातियां जैसे जे.एल. 1, पी. एल. 406, लेंस 4076 की बुवाई करें।
3. पावडरी मिल्ड्यू
Lentil Crop Disease | यह रोग एरीसाइफी पोलीगोनाई नामक फफूंद से होता है। लक्षण : पत्तियों की निचली सतह पर चूर्णी कवक के सफेद धब्बे बन जाते हैं जो बाद में बड़े आकार के होकर पूरी पत्तियों पर फैल जाते हैं, संक्रमित पत्तियां पीली पड़कर मुरझा जाती है और अंत में गिर जाती है। रोग के अधिक प्रकोप होने पर पौधा मर जाता है।
पावडरी मिल्ड्यू का प्रबंधन :–
फसल अवशेष को नष्ट कर दें।
20 किग्रा गंधक चूर्ण प्रति हैक्टेयर की दर से संक्रमित खेत में भुरकाव करें।
रोग के शुरू होने पर सल्फेक्स 0.3 प्रतिशत या केराथेन 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें।
आवश्यकता पड़ने पर 15 दिन में दुबारा छिड़काव करें।
रोग निरोधक जातियों की बुवाई करें।
फसल चक्र अपनाना चाहिये।
खेती किसानी की नई नई जानकारी से अपडेट रहने के लिए आप हमारे व्हाट्सएप चैनल को फॉलो कर सकते है।
👉 व्हाट्सऐप चैनल से जुड़े।
यह भी पढ़िए….👉पूसा तेजस का स्थान लेगी गेहूं की यह नई वैरायटी, देखें गेहूं की उच्च उत्पादन देने वाले दो वैरायटियों की जानकारी..
👉 करनाल संस्थान द्वारा तैयार की गई गेहूं की 3 उन्नत किस्मों की विशेषताएं व खेती के बारे में जानें…
👉इस वर्ष किसानों को गेहूं के यह नई किस्म मालामाल करेगी, उपज क्षमता एवं विशेषताएं जानिए..
👉 गेंहू की इस खास किस्म से किसान ने एक हेक्टेयर से निकाला था 102 क्विंटल उत्पादन, जानें पूरी डिटेल
प्रिय पाठकों…! 🙏 Choupalsamachar.in में आपका स्वागत हैं, हम कृषि विशेषज्ञों कृषि वैज्ञानिकों एवं शासन द्वारा संचालित कृषि योजनाओं के विशेषज्ञ द्वारा गहन शोध कर Article प्रकाशित किये जाते हैं आपसे निवेदन हैं इसी प्रकार हमारा सहयोग करते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध करवाते रहेंगे। आप हमारे टेलीग्राम एवं व्हाट्सएप ग्रुप से नीचे दी गई लिंक के माध्यम से जुड़कर अनवरत समाचार एवं जानकारी प्राप्त करें.