अगर आप अरहर की खेती से बढ़िया मुनाफा लेना चाहते है तो, आइए आपको बताते है अरहर की टॉप 5 किस्मों (Arhar Varieties) के बारे में।
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Arhar Varieties | अरहर, जिसे तुअर दाल भी कहा जाता है, भारत में बहुत ही ज़्यादा खाई और उगाई जाने वाली दाल है। यह दाल न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होती है, बल्कि किसानों के लिए भी अच्छी कमाई का जरिया है। अरहर की खेती ज्यादातर बारिश के मौसम में होती है और यह फसल कम पानी में भी ठीक से उग जाती है।
कृषि वैज्ञानिकों का यह कहना है कि मौजूदा समय बारिश का है और इस दौरान दलहनी फसलों का उत्पादन कर मोटा मुनाफा कमाया जा सकता है। आज के समय में अरहर की कई उन्नत किस्में (Arhar Varieties) आ चुकी हैं, जो जल्दी तैयार होती हैं, अच्छी पैदावार देती हैं और कीड़ों से भी बची रहती हैं। आज हम यहां आर्टिकल में टॉप 5 अरहर की किस्मों के बारे में बताने जा रहे है, जो किसानों की अच्छी कमाई करवा सकती है…
1. अरहर की टीएस-3आर किस्म
अरहर की टीएस-3आर किस्म (Arhar Varieties) एक पछेती किस्म यानी थोड़ी देर से पकने वाली है। इस किस्म की बुवाई मॉनसून आने के बाद की जाती है। पकने में 150 से 170 दिन का समय लगता है। यह किस्म विल्ट और मोज़ेक वायरस जैसी बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी है। औसत उपज भी लगभग 1 टन प्रति हेक्टेयर है। इसे भी IARI द्वारा विकसित किया गया है।
2. अरहर की पूसा 992 किस्म
Arhar Varieties | अरहर की यह पूसा 992 जल्दी तैयार होने वाली किस्म है। दाना भूरे रंग का, मोटा और चमकदार होता है। 120 से 140 दिन में फसल तैयार हो जाती है। प्रति एकड़ 6 क्विंटल तक उपज देती है। विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी यूपी और राजस्थान में लोकप्रिय है।
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3. पूसा अरहर-16 किस्म
यह अरहर की अगेती किस्म यानी जल्दी पकने वाली है। इस किस्म (Arhar Varieties) की बुवाई जुलाई में करनी चाहिए। यह 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। पौधे की लंबाई छोटी और दाने मोटे होती है। औसत उत्पादन 1 टन प्रति हेक्टेयर तक होता है। इसे भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने विकसित किया है।
4. अरहर की आईसीपीएल 87 किस्म
अरहर की इस किस्म (Arhar Varieties) के पौधों की लंबाई कम होती है, जो 130 से 150 दिन में फसल तैयार हो जाती है। फलियां मोटी, लंबी और गुच्छों में आती हैं। औसत उपज 15-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है।
5. अरहर की आईपीए 203 किस्म
यह किस्म (Arhar Varieties) रोगों के प्रति प्रतिरोधी होती है। फसल को कई बीमारियों से बचाने में सक्षम है। इस किस्म से औसत उपज 18-20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त किया जा सकता है। बुवाई जून महीने में कर देनी चाहिए।
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