9 राज्यों के लिए सरसों की पांच नई हाइब्रिड़ किस्में हुई विकसित, देखें नई किस्मों की जानकारी..

खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने सरसों की 5 नई उन्नत किस्मों (Mustard New Varieties) को विकसित किया है, जानिए डिटेल..

Mustard New Varieties | देश के लिए खाद्य तेलों में आत्मनिर्भरता अब भी सपना बना हुआ है। देश में खाद्य तेल आयात का आंकड़ा कम नहीं हो पा रहा है। करीब दो दशक से तेल की धार बढ़ाने को लेकर सरकार, किसान और कृषि वैज्ञानिक संघर्षरत है। पिछले कुछ सालों में तिलहन की बुवाई के साथ-साथ उत्पादन में भी बढ़ौत्तरी देखने को मिली है, लेकिन मंजिल अब भी दूर बनी हुई है। इस स्थिति से निपटने के लिए सरसों बुवाई सीजन शुरू होने से पूर्व ही राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान संस्थान, भरतपुर के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों का खुशखबर दी है।

संस्थान ने करीब 9 राज्यों के लिए हाइब्रिड़ सहित 5 नई सरसों किस्मों (Mustard New Varieties) की पहचान की है। इन किस्मों की पहचान पिछले दिनों ग्वालियर में आयोजित अखिल भारतीय समन्वित राई सरसों अनुसंधान परियोजना 32वीं वार्षिक समूह बैठक के दौरान हुई। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि नई सरसों किस्मों के विकास से विपरीत परिस्थितियों में भी सरसों के साथ-साथ तेल का उत्पादन बढाने में मदद मिलेगी। आइए जानते हैं सरसों की इन पांच नई हाइब्रिड किस्मों (Mustard New Varieties) की जानकारी..

सरसों का उत्पादन बढाना क्यों जरूरी

सरसों एवं अन्य पिलानी फसलों का घरेलू उत्पादन नहीं बढ़ाया गया तो वर्ष 2030 तक हमें 220 लाख टन खाद्य तेल आयात करना पड़ सकता है। अगर अमेरिका की तरह 40.3 किलोग्राम की खाद्य तेल की प्रति व्यक्ति खपत भारत की हो जाती है तो वर्ष 2030 तक 295 लाख टन खाद्य तेल का आयात करना पड़ेगा। ऐसे में मांग और आपूर्ति के इस अंतर को कम करने के लिए देश के उन हिस्सों में भी तिलहन की खेती शुरू करने की जरूरत है। (Mustard New Varieties)

इन राज्यों में होती है सरसों की खेती

राजस्थान सरसों उत्पादन के मामले में देश में अग्रणी है। देश के कुल उत्पादन में लगभग 45-49 प्रतिशत का योगदान देता है। राज्य की जलवायु और मिट्टी सरसों की खेती के लिए आदर्श है, खासकर टोंक, अलवर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर और भरतपुर जैसे क्षेत्रों में सरसों की खेती सबसे अधिक की जाती है। (Mustard New Varieties)

कृषि वैज्ञानिक डॉ. अशोक कुमार शर्मा ने बताया कि सरसों उत्पादन में राजस्थान के बाद 12.44 प्रतिशत उत्पादन के साथ हरियाणा दूसरे, 11.32 प्रतिशत के साथ मध्यप्रदेश तीसरे, 10.60 प्रतिशत के साथ उत्तरप्रदेश चौथे और 7.53 प्रतिशत उत्पादन योगदान के साथ पं. बंगाल पांचवे स्थान पर है। उन्होने बताया कि यह फसल लाखों किसानों को आजीविका प्रदान करती है और तेल मिलों जैसे उद्योगों को सहारा देती है।

उन्होने बताया कि इन किस्मों का व्यापक प्रसार न केवल किसानों की आय को सुद्ध होगी। बल्कि, भारत को तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम साबित होगा। (Mustard New Varieties)

यह है सरसों की पांच हाइब्रिड नवीन अनुशंसित किस्में 

18 जे 408 सी :- यह एक संकर किस्म है जो पश्चिमी राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र समय पर बोई जाने वाली सिंचित परिस्थितियों के लिए उपयुक्त है। 112 दिन में पककर तैयार होने वाली इस किस्म में तेल की मात्रा 39.6 प्रतिशत और प्रति हैक्टयर उपज 23.84 क्विंटल है। (Mustard New Varieties)

डीआरएमआर 2018-25 (बीपीएम 1825)– सफेद रतुआ प्रतिरोधी इस किस्म की पहचान जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली. राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के राज्य के लिए हुई है। 114 दिन में पककर तैयार होने वाली इस किस्म में तेल की मात्रा 40.6 प्रतिशत है। इस किस्म से प्रति हैक्टयर 25.96 क्विंटल तक औसत उपज मिलती है। (Mustard New Varieties)

डीआरएमआरसीआई (क्यू) 172 (बीपीएमक्यू 172) : यह किस्म अधिक तेल उपज, कम एससिक अम्ल और सफेद रतुआ प्रतिरोधकता वाली है। इस किस्म को उत्तरप्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान और बिहार में सिंचित परिस्थितियों के लिए अनुशंसित किया गया है। यह किस्म 131 दिन मे पककर तैयार हो जाती है। वहीं, इस किस्म में तेल की मात्रा 41.8 प्रतिशत आंकी गई है। इस किस्म से प्रति हेक्टयर 23.04 क्विंटल उत्पादन मिलता है। (Mustard New Varieties)

सीएस 2020-10 (सीएस 68)- यह किस्म खारी और क्षारीय भूमि में समय पर बुवाई के लिए हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के लिए अनुशंसित हुई है। इस किस्म में तेल की मात्रा 39.3 प्रतिशत और प्रति हेक्टयर उपज 21.77 क्विंटल प्रति हैक्टयर है। यह किस्म 131 दिन में पककर तैयार हो जाती है। (Mustard New Varieties)

एनपीजे 261 (पीएम 38)- यह किस्म बीज और तेल उपज में श्रेष्ठ है, जो जम्मू, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और उत्तरी राजस्थान में समय पर बुवाई के लिए अनुशंसित की गई है। यह किस्म 145 दिन में पककर तैयार हो जाती है। वहीं, प्रति हैक्टयर 28.05 क्विंटल तक उपज देती है। इस किस्म में तेल की मात्रा 40.4 प्रतिशत आंकी गई है। (Mustard New Varieties)

किसानों को कब मिलेगी नवीन किस्में

सरसों की नवीन हाइब्रिड किस्में अब देशभर में अच्छा उत्पादन दे रही है। इस कारण पिछले कुछ सालों से पूर्वोत्तर राज्यों में सरसों का बुवाई क्षेत्र बढ़ रहा है। वहीं, उड़ीसा में भी धान उत्पादक किसान सरसों उत्पादन के लिए प्रोत्साहित हो रहे है। उन्होंने बताया कि कृषि वैज्ञानिकों द्वारा विकसित की जा रही सरसों किस्में मौजूदा चुनौतियों से निपटने में कारगर है। क्योंकि, यह बेहत्तर पैदावार देने के साथ-साथ कीट रोग प्रतिरोधकता भी रखती है। (Mustard New Varieties)

आईआईआरएमआर, भरतपुर के निदेशक डॉ. वीवी सिंह के अनुसार नव अनुशंसित प्रजातियां से देश के 9 राज्यों के किसान लाभान्वित होंगे। यह किस्में विविध जलवायु परिस्थितियों के लिए उपयुक्त हैं। यह उपलब्धि न केवल तिलहन उत्पादन मैं आत्मनिर्भरता की दिशा में एक सशक्त कदम है। बल्कि, किसानों की आय दोगुनी करने के राष्ट्रीय प्रयासों को भी गति प्रदान करेगी। संस्थान का कहना है कि आगामी वर्ष से सभी चिन्हित सरसों किस्मों का बीज किसानों को उपलब्ध होने लगेगा।

सरसों की खेती के लिए तैयारी, बुवाई, बीज दर और उपचार

खेत की तैयारी: सरसों की खेती के लिए सबसे उपयुक्त भूमि दोमट मिट्टी वाली होती है। हालांकि, इसकी भरपूर उपज, हल्की दोमट से चिकनी दोमट मिट्टियों तक ली जा सकती है।सरसों की अच्छी पैदावार के लिए जमीन का पी. एच. मान करीब 7 होना चाहिए। अत्याधिक अम्लीय और क्षारीय मिट्टी इसकी खेती के लिए अच्छी नहीं है। हालांकि, यह फसल दूसरी फसलों की तुलना में हल्की लवणीय भूमि में भी अच्छी पैदावार देती है। (Mustard New Varieties)

खेत तैयार करनाः सरसों की अच्छी पैदावार के लिए ठीक से खेत तैयार करना जरूरी है। ताकि, मिट्टी भुरभुरी हो जाए।एकल फसल पद्धति के अंतर्गत खरपतवार नष्ट करने और नमी संरक्षण के लिए मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई करें। इसके बाद हर प्रभावी बारिश के बाद खेत की जुताई करें और जुताई के तुरन्त बाद पाटा लगायें।

अन्तिम बारिश के बाद गहरी जुताई कर पाटा लगाकर नमी संरक्षण करें। इससे ज्यादा से ज्यादा वर्षा का पानी बुवाई से पहले कल्टीवेटर से दो आड़ी जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना दें।खेत में ढेलों का होना अवांछनीय है। क्योंकि, इससे नमी का तेजी से ह्रास होता हैं। सिंचित क्षेत्रों में द्वि फसलीय पद्धति के अंतर्गत सरसों बुवाई के लिए भूमि की तैयारी, खरीफ फसलों के कटाई के बाद पलेवा देकर प्रारम्भ करें। पलेवा के बाद 2 अथवा 3 जुताई करें, पाटा लगायें। हर दशा में खेत की मिट्टी को भुरभुरा और समतल बनायें। (Mustard New Varieties)

बुवाई समयः बुवाई में देरी होने से उपज और तेल की मात्रा दोनों में कमी आती है। बुवाई का उचित समय किस्म के अनुसार सितम्बर अन्तिम सप्ताह से लेकर अक्टूबर अन्त का है। अच्छे अंकुरण के लिए बुवाई के समय दिन का अधिकतम तापमान सामान्यतया औसतन 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक नहीं होना चाहिए।

बीज दर: बीज की मात्रा प्रति हैक्टयर 3 ये 4 किलोग्रा मपर्याप्त होती है। (Mustard New Varieties)

बीज उपचारः बुवाई के लिए साफ, स्वस्थ्य और रोगमुक्त प्रमाणित बीज ही उपयोग करें। कार्बेण्डाजिम (बाविस्टिन) 2 ग्राम अथवा सफेद रोली प्रभावित क्षेत्रों में एप्रोन ( एस डी 35 ) 6 ग्राम कवकनाशक प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करने से फसल पर लगने वाले रोगों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।

मृदाजनित रोगों की रोकथाम के लिए बीज को ट्राइकोडर्मा नामक फफूँद से 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें। प्रारम्भिक अवस्था में चितकबरा कीट अथवा पेंटेड बग से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूपी 7 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बुवाई करें। (Mustard New Varieties)

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