गेहूं की पैदावार में 40% और चने की पैदावार 35% बढ़ोत्तरी करने के लिए बुवाई के पहले जरूर करें यह काम…

गेहूं एवं चने की बुवाई के पहले उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए किसानों को क्या करना चाहिए, आइए Seed Treatment Benefits के बारे में जानते हैं..

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Seed Treatment Benefits | किसान साथी वर्तमान में परंपरागत खेती को अधिक तवज्जो देते हैं, लेकिन इसके विपरीत वैज्ञानिक एवं आधुनिक कृषि करने के कई फायदे हैं, इससे फसलों का उत्पादन बढ़ता है। कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि रबी की फसल का आधा मुनाफा बोवनी से पहले ही तय हो जाता है।

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर बीज का समय पर और सही तरीके से उपचार नहीं किया गया, तो फसल की शुरुआत से ही रोग और फफूंद खेत में जगह बना लेते हैं। इसका पैदावार पर विपरीत असर पड़ता है। अच्छी पैदावार के लिए किसानों को किस प्रकार से बीज उपचार करना चाहिए एवं क्या है (Seed Treatment Benefits) पूरी प्रक्रिया, आइए जानते हैं..

चने एवं गेहूं में क्रमशः 35 से 40% तक उत्पादन बढ़ेगा 

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक बुवाई के पहले सही तरीके से भी जो उपचार करने के कई फायदे हैं इससे फसल रोग प्रतिरोधी होगी, वहीं गेहूं में 40%, चने में 35% और सरसों में 50%, तक उत्पादन बढ़ना संभव है। फसलों की बोवनी से पहले बीज उपचार जरूरी है, इससे फसल में रोग नहीं पनपते। गेहूं, चना और मसूर के बीज अगर बिना उपचार के बोए तो पैदावार घट सकती है। वैज्ञानिक बताते हैं कि बेहतर उत्पादन के लिए बीज बोने से 24 से 48 घंटे पहले ट्रीटमेंट करना जरूरी है। (Seed Treatment Benefits)

यदि आप खेतों में बुवाई शुरू कर रहे हैं तो पहले देख लें कि आपका बीज अंकुरित होने लायक है या नहीं। बीज सही नहीं है तो उसका उपचार करना जरूरी है। गेहूं के बीज का उपचार नहीं होने पर रोग बढ़ सकते हैं और उत्पादन में 10 से 40% तक नुकसान हो सकता है। सरसों में फफूंदनाशी रसायन व जैविक तरीके से बीज उपचार करने से रोग काबू में रहते हैं, उत्पादन 30 से 50% तक बढ़ सकता है। चने में बीज का उपचार कर 20-35% तक अधिक उपज ले सकते हैं।

बीमारियों का प्रकोप बढ़ा, जरूरी है बीजोपचार

गौरतलब है कि मध्यप्रदेश के कई जिलों में गेहूं, चना, मसूर और सरसों की फसलों में हाल के वर्षों में ब्लास्ट, स्मट और रूट रॉट जैसे रोग तेजी से फैले हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक बीज उपचार यानी “सीड ट्रीटमेंट” ही इनसे बचाव का सबसे असरदार तरीका है। इससे न सिर्फ पौधे स्वस्थ और मजबूत बनते हैं, बल्कि अंकुरण दर भी बढ़ती है और उत्पादन में 15-20% तक बढ़ोतरी होती है। (Seed Treatment Benefits)

बीज उपचार करने से किसानों को महंगे छिड़काव की जरूरत कम पड़ती है, जिससे खेती की लागत घटती है। यह एक बार की प्रक्रिया है, लेकिन असर पूरी फसल पर रहता है। कृषि विभाग और कृषि विज्ञान केंद्रों का कहना है कि बीज उपचार को आदत बना लेने वाले किसान हर साल बिना अतिरिक्त खर्च के फसल को मिट्टीजन्य रोगों से बचा सकते हैं। (Seed Treatment Benefits)

क्या है बीजोपचार 

कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि बीज उपचार वह प्रक्रिया है जिसमें बीजों को फफूंदनाशक, कीटनाशक या जैविक घोल से इस तरह तैयार किया जाता है कि वे मिट्टी में मौजूद हानिकारक जीवाणुओं और कीटों से सुरक्षित रहें। यह प्रक्रिया बोवनी से 24-48 घंटे पहले की जाती है। (Seed Treatment Benefits)

बीजोपचार के फायदे

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक बीज उपचार से बीजों की अंकुरण क्षमता और फसल की समान वृद्धि बढ़ती है। पौधे शुरुआत से रोगमुक्त रहते हैं। मिट्टी में मौजूद फफूंद और कीटों से सुरक्षा मिलती है। रासायनिक छिड़काव की जरूरत घटती है और पैदावार बढ़ती है। (Seed Treatment Benefits)

रबी फसलों में बीजोपचार का तरीका

गेहूं : बोवनी से पहले बीज को फफूंदनाशक दवा थायरम 2 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें। इससे टील्ट स्मट और लूज स्मट जैसे रोगों से बचाव होता है।

चना : रूट रॉट और कॉलर रॉट से बचाने के लिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज से ट्रीट करें, फिर राइजोबियम कल्चर (20 ग्राम प्रति किलो बीज ) से उपचार करें। (Seed Treatment Benefits)

मटर : बीज को थायरम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज से उपचार करें और बाद में राइजोबियम कल्चर 10 ग्राम प्रति किलो बीज मिलाएं।

मसूर : बीज को थायरम या कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम प्रति किलो बीज से ट्रीट करें, इसके बाद पीएसबी कल्चर 10 ग्राम प्रति किलो बीज मिलाएं ताकि पौधों को फॉस्फोरस बेहतर मिले।

सरसों : मिट्टीजन्य रोगों से बचाने के लिए थायरम 3 ग्राम या मैनकोजेब 3 ग्राम प्रति किलो बीज से ट्रीट करें। (Seed Treatment Benefits)

बीजोपचार करने का सही तरीका

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक बीज उपचार हमेशा तीन चरणों में करें। सबसे पहले बीज को फफूंदनाशक दवा जैसे थायरम या कार्बेन्डाजिम से ट्रीट करें ताकि फफूंद और मिट्टीजन्य रोगों से सुरक्षा मिले। इसके बाद यदि जरूरत हो तो कीटनाशक (जैसे इमिडाक्लोप्रिड या क्लोरोपायरीफॉस) का उपयोग करें ताकि दीमक और शुरुआती कीटों से बचाव हो सके। अंत में जब बीज सूख जाए, तभी उस पर जैविक ट्रीटमेंट यानी राइजोबियम या पीएसबी कल्चर लगाएं। (Seed Treatment Benefits)

कैसे करें बीज उपचार

गेहूं, चना, मसूर और सरसों जैसी फसलों के लिए सबसे पहले बीजों को साफ पानी से धोकर सुखाएं। इसके बाद फफूंदनाशक दवाओं जैसे थायरम (2 ग्राम / किलो बीज ) या कार्बेन्डाजिम (2.5 ग्राम / किलो बीज ) से उपचार करें।

दलहनी फसलों में राइजोबियम कल्चर या पीएसबी (Phosphate Solubilizing Bacteria) मिलाने से पौधों की जड़ों में लाभकारी जीवाणु बढ़ते हैं, जो पोषक तत्वों का बेहतर अवशोषण करते हैं। (Seed Treatment Benefits)

किसान साथी इन बातों का ध्यान रखें

कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि बीज उपचार के दौरान इस बात का विशेष ध्यान रखें की रासायनिक जैविक उपचार एक साथ न करें। पहले रासायनिक, फिर जैविक ट्रीटमेंट करें। यही क्रम बीज की सुरक्षा और अंकुरण दोनों के लिए सबसे प्रभावी है। बीज उपचार हमेशा छायादार जगह पर करें और इसके तुरंत बाद बीजों को धूप में न सुखाएं। रासायनिक दवाओं को हाथ से सीधे न छुएं, दस्ताने या कपड़ा जरूर पहनें। उपचारित बीज बोवनी के 24 घंटे के भीतर बोएं। (Seed Treatment Benefits)

इन विधियों से भी कर सकते हैं बीजोपचार

जैविक उपचार : एक किलो बीज में ट्राइकोडर्मा या सूडोमोनास फ्लोरेसेंस 10 ग्राम (पाउडर) लेकर बीज को पहले हल्का गीला करें, फिर इन जैविक फफूंदनाशकों से अच्छी तरह मिलाएं। इसके बाद बीज छाया में सुखाएं। उपचार के बाद कम से कम 24 घंटे बाद बुवाई करनी चाहिए।

रासायनिक उपचारः फसलों के गलन, सूखा जड़ गलन, अनुसार अलग-अलग फफूंदनाशी लेना हैं। जैसे गेहूं व जौ में अनावृत्त कंडवा व पत्ती कंडवा रोग के लिए एक किलो बीज में 2 ग्राम कार्बोक्सिन अथवा कार्बेन्डाजिम 50% WP उपयोग करें। चने में जड़ उखटा रोग के लिए एक किलो बीज में 3 ग्राम थाइरम व कार्बेन्डाजिम (2:1) लें। सब्जियों की बुवाई से पहले डंपिंग ऑफ जैसे रोगों के लिए एक किलो बीज में 6 ग्राम मेटालेक्सिल का इस्तेमाल करें। (Seed Treatment Benefits)

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