HI 1650 wheat variety detail in Hindi , new wheat variety HI 1650 गेहूं की इस पूसा ओजस्वी वैरायटी के बारे में सब कुछ जानिए…
HI 1650 wheat variety detail in Hindi : कृषि वैज्ञानिकों ने अथक परिश्रम एवं लंबे शोध के बाद गेहूं की नई वैरायटी विकसित की है। लंबे शोध के बाद इस किस्म को मध्य भारत क्षेत्र के लिए तैयार किया गया है। क्योंकि यह वैरायटी पूसा ओजस्वी पौष्टिक प्रायद्वीपीय क्षेत्र के लिए भी उपयोगी होगी, जो जल्द ही गेहूं उत्पादक राज्यों के खेतों में लहलहाती दिखेगी।
यह वैरायटी HI 1650 पूसा ओजस्वी के नाम से जानी जाएगी। गेहूं की इस HI 1650 wheat variety detail in Hindi वैरायटी के बारे में पैदावार से लेकर अन्य सभी विशेषताओं को जानें…
एचआई 1650 पूसा ओजस्वी गेहूं की विशेषताएं
गेहूं की इस HI 1650 wheat variety detail in Hindi किस्म की हाइट मीडियम रहेगी। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक तेजस गेहूं की हाइट के समान ही इस गेहूं की हाइट है। हाइट मीडियम सामान्य होने के कारण बारिश एवं हवा के दौरान गिरने की समस्या नहीं रहेगी। मोटे तने और कम लंबाई के कारण फसलें जमीन पर नहीं लेटेंगी और खूब पैदावार होगी। इसके अलावा इसकी प्रमुख खासियत विशेषता यह है ही इसकी बाली में 70 से 80 दाने रहते हैं एक रो में चार दाने रहेंगे।
पूसा ओजस्वी का विज्ञानी नाम एचआइ 1650 है HI 1650 wheat variety detail in Hindi। अधिक सिंचाई वाले क्षेत्र में नवंबर माह में बोई जाएगी। औसत उत्पादन 60 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रहेगा। एक हेक्टेयर में 100 किग्रा बीज की बुआई होगी। 90 से 95 सेमी पौधे की ऊंचाई होगी और 115 से 120 दिन में फसल पक जाएगी। 1000 दानों का वजन 45 से 50 ग्राम रहेगा। लंबे आकार का दाना चमकीला और कठोर रहेगा।
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HI 1650 पूसा ओजस्वी इन क्षेत्रों के लिए उपयुक्त
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के इंदौर स्थित क्षेत्रीय गेहूं अनुसंधान केंद्र द्वारा विकसित की गई गेहूं की इस HI 1650 wheat variety detail in Hindi वैरायटी को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, राजस्थान के कोटा, उदयपुर और उत्तर प्रदेश के झांसी संभाग के लिए कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अनुशंसित की गई है।
आने वाले सीजन में मिलेगा बीज
कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा नोटिफिकेशन की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। वहीं गेहूं की इस HI 1650 wheat variety detail in Hindi किस्म की क्वालिटी और पोषण तत्वों की जांच करनाल स्थित कृषि अनुसंधान केंद्र में पूरी हो चुकी है। आने वाले सीजन में किसानों को इसका बीज उपलब्ध करवाया जाएगा।
बीज के लिए पिछले वर्ष भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र द्वारा किसानों को एचआई 1650 पूसा ओजस्वी के एक दो किलो ब्रीडर बीज उपलब्ध करवाए गए थे। किसानों को आगामी सीजन से यह किस्म उपलब्ध हो सकेंगी। अभी अनुसंधान केंद्र में इसके बीज तैयार किया जा रहे हैं।
एचआई 1650 पूसा ओजस्वी बिज दर
HI 1650 wheat variety detail in Hindi एचआई 1650 पूसा ओजस्वी का बीज दर 25 किलो प्रति बीघा एवं 100 किलो प्रति हेक्टेयर रहेगा।
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एचआई 1650 पूसा ओजस्वी का उत्पादन
HI 1650 wheat variety detail in Hindi गेहूं की यह वैरायटी पौष्टिकता के साथ-साथ खाने के लिए उपयुक्त रहेगी। इसका उत्पादन प्रति हेक्टेयर 60 से 80 क्विंटल है।
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बीज उपचार
बीज जनित रोगों के नियंत्रण के लिए बीज को कार्बोक्सिन 1.25 ग्राम/किग्रा, फिप्रोनिल 6 ग्राम/किग्रा, या क्लोरपाइरीफॉस 8 मिली/किग्रा बीज से उपचारित करना चाहिए।
बीज और उर्वरक की बुआई या तो अलग-अलग करनी चाहिए या उर्वरक को बीज सह उर्वरक ड्रिल का उपयोग करके बीज से 2-3 सेमी अधिक गहराई पर बोना चाहिए। पंक्तियों के बीच अनुशंसित दूरी 20 सेमी है। HI 1650 wheat variety detail in Hindi
खेत की तैयारी
सिंचाई के पानी को बचाने के लिए सूखी बुआई की सिफारिश की जाती है जिसमें बची हुई नमी का उपयोग करके भूमि की जुताई की जाती है। मिट्टी को भुरभुरा बनाने और खेत तैयार करने के लिए गहरी जुताई के बाद डिस्क हैरो से 2-3 बार जुताई और एक या दो बार जुताई करनी चाहिए। यदि पानी की उपलब्धता सीमित हो तो पानी बचाने के लिए गहरी जुताई से बचा जा सकता है। यह सूखी बुआई विधि समय पर बुआई के साथ-साथ बुआई के तुरंत बाद सिंचाई प्रदान करने पर एक समान अंकुरण सुनिश्चित करती है। HI 1650 wheat variety detail in Hindi
खाद एवं उर्वरक
मृदा परीक्षण से गेहूं के खेतों की मिट्टी की उर्वरता की स्थिति ज्ञात होनी चाहिए। एनपीके उर्वरक 4:2:1 के अनुपात में दिया जाना है। अकार्बनिक उर्वरकों के साथ 10 टन/हेक्टेयर की दर से गोबर की खाद दी जानी है।
हरी खाद वाली फसलों (सनहेम्प या ढैंचा ) की खेती और उन्हें मिट्टी में शामिल करने से मिट्टी के स्वास्थ्य, उर्वरता और जल-धारण क्षमता में सुधार होता है। HI 1650 wheat variety detail in Hindi
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सिंचाई
काली मिट्टी (काली कपास मिट्टी) मध्य क्षेत्र की प्रमुख मिट्टी है। मिट्टी कैल्शियम कार्बोनेट, पोटाश, चूना और मैग्नीशियम कार्बोनेट से भरपूर है लेकिन फास्फोरस की मात्रा कम है। इसकी जल धारण क्षमता अधिक होती है।
किसानों के पास उपलब्ध सिंचाई जल की मात्रा के आधार पर किस्म का चयन किया जाना चाहिए। मध्य प्रदेश में सिंचाई के लिए गेहूं की लंबी क्यारियां तैयार की जाती हैं। हालाँकि, ये पानी बचाने के लिए अच्छे नहीं हैं और अधिक पानी की आवश्यकता होती है। अतः हल/रिजर का प्रयोग कर खेत के चारों ओर क्षैतिज एवं ऊर्ध्वाधर नालियों द्वारा 20 x 20 मीटर वर्गाकार क्यारियाँ तैयार करनी चाहिए।
इस विधि से जल की हानि कम होगी तथा जल का उचित नियंत्रण होगा। यदि पर्याप्त सिंचाई जल उपलब्ध हो तो 20-25 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए। यदि एक सिंचाई जल उपलब्ध है तो उसे 35-45 दिन पर देना चाहिए, यदि दो उपलब्ध है तो एक को 35-40 दिन पर तथा दूसरा 70-80 दिन पर देना चाहिए। HI 1650 wheat variety detail in Hindi
गेहूं में रोग एवं कीट एवं उनका प्रबंधन
मध्य क्षेत्र में गेहूं की खेती को प्रभावित करने वाली प्रमुख बीमारियाँ हैं स्टेम रस्ट, लीफ रस्ट, लीफ ब्लाइट, करनाल बंट, लूज स्मट, ब्लैक पॉइंट और फ्लैग स्मट। विभिन्न रोगों के लक्षणों में शामिल हैं :-
- तने पर जंग : पत्तियों, तनों, बालियों, गुच्छों पर गहरे भूरे रंग की फुंसियाँ दिखाई देती हैं
- पत्ती का जंग – पत्तियों पर नारंगी-भूरे रंग के दाने
- पत्ती झुलसा – पत्तियों पर भूरे रंग के परिगलित क्षेत्र जिसके कारण पत्तियाँ सूख जाती हैं
- करनाल बंट– बाली के कुछ दाने काले रंग के पाउडर से भरे होते हैं जिनमें मछली जैसी गंध होती है
- ढीला मैल – पूरा कान का सिर एक काले पाउडर द्रव्यमान में परिवर्तित हो जाता है
- फ़्लैग स्मट – पत्तियों, पत्तों के आवरणों, शाखाओं और कभी-कभी तनों पर लंबी, काली उभरी हुई धारियाँ टूटकर ख़स्ता भूरे-काले बीजाणुओं और रुके हुए पौधों के समूह को प्रकट करती हैं।
- काली नोक –दाने की फीकी नोक जो काली हो जाती है। HI 1650 wheat variety detail in Hindi
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Hi 1650 gehun बीज कैसे प्राप्त होगा।
इस वैरायटी का बीज सीड्स कंपनियों व कृषि विज्ञान केंद्र पर मिलेगा।
Konsi jagah raisen mp me to nhi mil raha
Hi 1650
1 kuntal chahiye
पूसा ओजस्वी 1650 किस्म का बीज अभी मार्केट में आया नही है। अगले वर्ष इसका बीज उपलब्ध होगा।🙏
1650 gehun milega kya
वसुंधरा सिड्स
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HI 1650 गेहूं की बीज दर किया होती हैं एक बीघा जमीन में और कितना पानी देना पड़ता है
बीज दर 100 किलो प्रति हेक्टेयर, सिंचाई चार से पांच