नाइट्रोजन की अधिक मात्रा से बढ़ता है रोगों का प्रकोप, उत्पादन में होगी गिरावट, कृषि वैज्ञानिकों से जानें सही खाद मात्रा

ध्यान दें किसान…. सर्द मौसम में फसलों पर सबसे ज्यादा फफूंद और कीट जनित रोगों का खतरा। ज्यादा उर्वरक (Fertilizer) से उत्पादन में आ सकती है 20 फीसदी तक गिरावट।

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Fertilizer | रबी का मौसम उत्पादन के लिए तो अनुकूल होता है, लेकिन यही समय फसलों में रोग फैलने का भी होता है। गेहूं, चना, मसूर, सरसों, मटर और अलसी में इस दौरान रतुआ, उकठा भभूतिया, तना सड़न और धब्बा रोग जैसी समस्याएं आम हैं। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि ये ज्यादातर मामले गलत खाद प्रबंधन से जुड़े होते हैं।

नाइट्रोजन (Fertilizer) की अधिक मात्रा पौधों को कोमल बनाती है, जिससे वे रोगजनक फफूंद और बैक्टीरिया के संपर्क में जल्दी आ जाते हैं। ऐसे खेतों में न केवल रोगों का प्रकोप तेजी से फैलता है, बल्कि पैदावार में 15 से 20% तक की कमी भी आ जाती है। वहीं, यदि किसान खादों का संतुलित उपयोग करें, बीज उपचार और फसल चक्र अपनाएं तो उपज में 10 से 15% तक की बढ़ोतरी संभव है।

रोग से बचाव के लिए किसानों को पहले से सतर्क रहना चाहिए। बीज उपचार, फसल चक्र और संतुलित उर्वरक प्रबंधन (Fertilizer management) ही रोग नियंत्रण की पहली दीवार हैं। एक बार रोग लग गया तो फसल को बचाना मुश्किल और खर्चीला दोनों हो जाता है, इसलिए रोकथाम ही सबसे कारगर रास्ता है।

रोग लगने से पहले किसान अपनाएं यह सावधानियां

Fertilizer | खेती में रोकथाम हमेशा इलाज से आसान और सस्ती होती है। बोवनी से पहले प्रमाणित, रोगमुक्त बीज ही चुनें। गेहूं के बीज को कार्बोक्सिन 2.5 ग्राम, चना और मसूर को थाइरम 2 ग्राम + कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम या ट्राइकोडर्मा 5 ग्राम प्रति किलो की दर से उपचारित करें।

एक ही फसल को बार-बार लगाने की बजाय फसल चक्र अपनाएं। चना के साथ 4.2 लाइन में अलसी लगाना उकठा रोग से सुरक्षा देता है। रोग प्रतिरोधक किस्मों का चयन करें- जैसे गेहूं में एचडी 2967, पीबीडब्ल्यू 771, और चने में जेजी 63, जेजी 130, जेजी 74 किस्में है।

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रोग लगने के बाद यह करें उपाय | Fertilizer

फसल में रोग दिखने पर तुरंत उसकी पहचान कर अनुशंसित दवाओं का छिड़काव करें। गेहूं में रतुआ के लिए प्रोपिकोनाजोल 1 एमएल प्रति लीटर, चने में उकठा के लिए कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम, सरसों और मटर की भभूतिया के लिए सल्फर 2 ग्राम, और पत्ती धब्बा रोग के लिए कॉपर ऑक्सी क्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाएं।

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लगातार नाइट्रोजन (Fertilizer) देने से बचें और खेत में संतुलित पोषक तत्वों का उपयोग करें। एकीकृत रोग प्रबंधन (IPM) से न केवल रोगों का प्रभाव घटता है बल्कि मिट्टी की उर्वरता भी बनी रहती है।

पहले फसलवार मुख्य रोगों को पहचानें

गेहूं : रतुआ, कंडवा, फ्लैग स्मट, करनाल बंट, ईयर कोकल।

चना : उकठा, तना सड़न, सूखी जड़ सड़न, ग्रे।

मोल्ड मसूर : रतुआ, भभूतिया, एस्कोकाइटा ब्लाइट।

सरसों : सफेद रोली, मृदु आसिता, तनागलन।

रोगों के शुरुआती संकेत ऐसे पहचानें

पत्तियों में : गोल या कत्थई धब्बे, किनारों से झुलसना, पीलापन।

तनों में : काला पड़ना, गांठ बनना, नरमी या तना सड़न।

जड़ों में : सड़न या गांठें बनना, जड़ों का सूखना।

फूल-फल में: फूल झड़ना, फलों पर धब्बे या सड़न के लक्षण।

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