चना और मटर की खेती से बंपर उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने दी यह जरूरी सलाह

अगर आप रबी सीजन में चना या फिर मटर की खेती (Gram Pea Cultivation) कर रहे है तो, यह आर्टिकल आपके लिए ही है। यहां जानें कृषि से बंपर उत्पादन लेने की सलाह।

👉व्हाट्सऐप चैनल से जुड़े।

Gram Pea Cultivation | सोयाबीन सहित अन्य खरीफ फसलों की कटाई का काम अपने पीक पर है। इसके बाद ही कई किसान भाई रबी फसलों की तैयारियों में जुट जायेंगे।

रबी सीजन में सबसे ज्यादा गेंहू की खेती की जाती है। लेकिन कुछ किसान मटर और चना की खेती भी करते है।

ऐसे में अगर आप रबी सीजन में मटर या चना की खेती कर रहे है तो, इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए महत्वपूर्ण सलाह दी है।

कृषि वैज्ञानिकों ने बताया की, किसान भाई अगर सभी कृषि कार्य उचित समय पर करे तो, वह चने और मटर की खेती से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते है।

आइए जानते है चना और मटर की खेती Gram Pea Cultivation से किस प्रकार अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है…

चने की खेती के जरूरी सलाह

चने की खेती के लिए मिट्टी और खेत तैयार : चने की खेती Gram Pea Cultivation के लिए उचित जल निकास वाले खेत, जिनमें घुलनशील लवणों की मात्रा अधिक न हो, पी एच मान 6.5-7.5 के मध्य हो तथा बलुई दोमट से चिकनी दोमट मृदा दलहनी फसलों के लिए आदर्श होती है।

एक गहरी जुताई के बाद हैरो तथा पाटा लगाने से बुआई हेतु खेत तैयार हो जाता है।

चने की बुवाई का समय : चने की बुआई का उचित समय उत्तर-पश्चिमी तथा उत्तर-पूर्वी भारत के मैदानी क्षेत्रों में बारानी दशाओं में अक्टूबर का दूसरा पखवाड़ा तथा सिंचित दशाओं में नवंबर का प्रथम पखवाड़ा उपयुक्त है।

चने की बुवाई के लिए बीज दर : छोटे दाने वाली प्रजातियों के लिए बीज दर 50-60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर तथा मध्यम व बड़े दाने वाली प्रजातियों के लिए 80-85 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर उचित है। Gram Pea Cultivation

ध्यान दें की, बुवाई के समय बीज मृदा में लगभग 10 सें.मी. की गहराई में डाला जाए। बीज की गहराई कम करने से उकठा रोग अधिक लगता है।

पछेती बुआई में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 सें.मी. रखनी चाहिए। दलहनी फसल होने के नाते चने के बीज को उचित राइजोबियम टीके से उपचार करने से लगभग 10-15 प्रतिशत अधिक उपज मिल सकती है।

चने की उन्नत किस्म का चयन : भारत के विभिन्न क्षेत्रों व परिस्थितियों के लिए अनुमोदित चने की उन्नत प्रजातियां जैसे- पूसा विजय ( बीजीएम 10- 217 ), पूसा जे.जी. 16, बीजीडी 111 – 1, पूसा 10216, पूसा चना 20211 ( पूसा चना मानव ), पूसा 3043

तथा ऊसर क्षेत्र के लिए करनाल चना – 1 एवं काबुली चने की जे.जी. के. 6, आर. एल. बी. जी. के. 963, पूसा 2085, पूसा 5023, पूसा चमत्कार, पूसा 2024 अच्छी प्रजातियां हैं। ये प्रजातियां 145-150 दिनों में पककर तैयार हो जाती हैं। Gram Pea Cultivation

चने की फसल में खाद एवं उर्वरक : उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए। चने की अच्छी फसल के लिए प्रति हैक्टर 20 कि.ग्रा. नाइट्रोजन और 50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस का उपयोग बुआई के समय करना चाहिए।

गंधक की कमी वाली मृदाओं में 20 कि.ग्रा. गंधक प्रति हैक्टर तथा जस्ते की कमी वाली मृदाओं में 25 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर का प्रयोग लाभकारी होता है। चने की बुआई पंक्तियों में करनी चाहिए तथा पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-45 सें. मी. होनी चाहिए। Gram Pea Cultivation

खरपतवार नियंत्रण के लिए सलाह : चने की फसल में खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण हेतु 2.5-3.0 लीटर पेन्डीमीथिलिन को 650 लीटर पानी प्रति हैक्टर की दर से घोलकर बुआई के 2-3 दिनों के अन्दर अंकुरण से पूर्व छिड़काव करने से 4 से 6 सप्ताह तक खरपतवार नहीं निकलते हैं।

चौड़ी पत्ती तथा घास वाले खरपतवार को रासायनिक विधि से नष्ट करने के लिये एलाक्लोर की 4 लीटर या फ्लूक्लोरोलिन (45 ई.सी.) नामक रसायन की 2.22 लीटर मात्रा को 700 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के तुरन्त बाद या अंकुरण से पहले छिड़काव कर देना चाहिए। Gram Pea Cultivation

अब जानते है.. मटर की खेती के लिए जरूरी सलाह

मटर की खेती के लिए मिट्टी और खेत तैयार : मटर की खेती Gram Pea Cultivation सभी प्रकार की मृदा में की जा सकती है। इसकी फसल के लिए भुरभुरी दोमट, चिकनी और रेतीली दोमट मृदा खेती के लिए उत्तम मानी जाती है।

इसकी खेती के लिए मृदा का पी-एच मान 6 – 7.5 के बीच होना चाहिए। फसल से अच्छा उत्पादन लेने के लिए खेत में जल निकासी की अच्छी व्यवस्था होनी चाहिए।

मृदाजनित एवं बीजजनित रोगों के नियंत्रण हेतु जैव कवकनाशी (बायोपेस्टीसाइड) ट्राइकोडमा विरिडी 1 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. अथवा ट्राइकोडर्मा हारजिएनम 2 प्रतिशत डब्ल्यू. पी. की 2.5 कि. ग्रा. प्रति हैक्टर 60-75 कि.ग्रा. सड़ी हुए गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी का छींटा देकर 8-10 दिनों तक छाया में रखने के उपरान्त बुआई के पूर्व आखिरी जुताई पर मृदा में मिला देने से मटर के बीज पर होने वाले मृदाजनित रोगों का नियंत्रण हो जाता है।

मटर की बुवाई का समय : मटर की बुआई Gram Pea Cultivation का उपयुक्त समय अक्टूबर के अन्त से लेकर 15 नवंबर तथा मध्य भारत के लिए अक्टूबर का प्रथम पखवाड़ा उपयुक्त है।

मटर की उन्नत किस्में : भारत के विभिन्न क्षेत्रों व परिस्थितियों के लिए अनुमोदित मटर की उन्नत प्रजातियों जैसे – एचएफपी 1428, एचएफपी 715, पंजाब – 89, कोटा मटर 1, आईपीएफडी 12-8, आईपीएफडी 13-2, पंत मटर 250, ( नई प्रजाति) की बुआई माह के दूसरे पखवाड़े में करें।

मटर की बुवाई के लिए बीज दर : मटर के छोटे दाने वाली प्रजातियों के लिए बीज दर 50-60 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर तथा बड़े दाने वाली प्रजातियों के लिए 80-90 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर पर्याप्त है।

मटर का बीजोपचार : मटर की बुआई से पूर्व मृदा एवं बीजजनित कई कवक एवं जीवाणुजनित रोग होते हैं, जो अंकुरण होते समय तथा इसके बाद बीजों को काफी क्षति पहुंचाते हैं। Gram Pea Cultivation

बीजों के अच्छे अंकुरण तथा स्वस्थ पौधों की पर्याप्त संख्या हेतु बीजों को कवकनाशी से बीज उपचार करने की सलाह दी जाती है।

बीजजनित रोगों के नियंत्रण हेतु थीरम 75 प्रतिशत + कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत (2:1) 3.0 ग्राम, अथवा ट्राइकोडर्मा 4.0 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से शोधित कर बुआई करनी चाहिए।

मटर की फसल में खाद एवं उर्वरक : उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर किया जाए। सामान्य दशाओं में मटर की फसल हेतु नाइट्रोजन 15-20 कि.ग्रा., फॉस्फोरस 40 कि.ग्रा., पोटाश 20 कि.ग्रा. तथा गंधक 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। Gram Pea Cultivation

मृदा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी होने पर 15-20 कि.ग्रा. जिंक सल्फेट प्रति हैक्टर तथा 1.0-1.5 कि.ग्रा. अमोनियम मौलिब्डेट के प्रयोग की संस्तुति की जाती है।

मटर की फसल में खरपतवार नियंत्रण : पौधों की पंक्तियों में उचित दूरी खरपतवार की समस्या के नियंत्रण में काफी सहायक होती है। एक या दो निराई-गुड़ाई पर्याप्त होती है। पहली निराई प्रथम सिंचाई के पहले तथा दूसरी निराई सिंचाई के उपरांत ओट आने पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए। Gram Pea Cultivation

बुआई के 25-30 दिनों बाद एक निराई-गुड़ाई अवश्य कर दें। खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण हेतु फ्लुक्लोरलीन 45 प्रतिशत ई. सी. की 2.2 लीटर मात्रा प्रति हैक्टर लगभग 800-1000 लीटर पानी में घोलकर बुआई के तुरन्त पहले मृदा में मिलानी चाहिए।

पेण्डीमेथलीन 30 प्रतिशत ई.सी. की 3.30 लीटर अथवा एलाक्लोर 50 प्रतिशत ई. सी. की 4.0 लीटर अथवा बासालिन 0.75-1.0 कि.ग्रा. मात्रा प्रति हैक्टर उपरोक्तानुसार पानी में घोलकर फ्लैट फैन नोजल से बुआई के 2-3 दिनों के अन्दर समान रूप से छिड़काव खरपतवार नियंत्रण के लिए लाभप्रद है। Gram Pea Cultivation

खेती किसानी की नई नई जानकारी से अपडेट रहने के लिए आप हमारे व्हाट्सएप चैनल को फॉलो कर सकते है।

👉व्हाट्सऐप चैनल से जुड़े।

यह भी पढ़िए….👉 60 से 65 दिनों में बंपर पैदावार देने वाली मटर की टॉप 10 उन्नत किस्में

👉 GW 513 गेंहू के बाद रोगप्रतिरोधी GW 547 देगी बंपर उत्पादन, चपाती के लिए उपर्युक्त, जानें खासियत

👉बंपर पैदावार देने वाली चना की टॉप 5 नवीन किस्मों के बारे में जानिए, 8 क्विंटल प्रति बीघा तक पैदावार मिलेगी

प्रिय पाठकों…! 🙏 Choupalsamachar.in में आपका स्वागत हैं, हम कृषि विशेषज्ञों कृषि वैज्ञानिकों एवं शासन द्वारा संचालित कृषि योजनाओं के विशेषज्ञ द्वारा गहन शोध कर Article प्रकाशित किये जाते हैं आपसे निवेदन हैं इसी प्रकार हमारा सहयोग करते रहिये और हम आपके लिए नईं-नईं जानकारी उपलब्ध करवाते रहेंगे। आप हमारे टेलीग्राम एवं व्हाट्सएप ग्रुप से नीचे दी गई लिंक के माध्यम से जुड़कर अनवरत समाचार एवं जानकारी प्राप्त करें.

1 thought on “चना और मटर की खेती से बंपर उत्पादन के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने दी यह जरूरी सलाह”

Leave a Comment