“जहां चाह वहां राह” वाली उक्ति को सिद्ध कर रहा युवा किसान पढिए Hydroponic Farming की पूरी सक्सेस स्टोरी..
Hydroponic Farming | मात्र सातवीं तक पढ़े किसान ने खेती के मामले में ऐसा करिश्मा कर दिखाया, जिसे देखकर सभी मिसाल दे रहे हैं। इस किसान ने यूट्यूब के माध्यम से खेती करना सीखी। किसान की सफलता का आकलन इस बात से लगाया जा सकता है कि यह किसान पानी की कमी एवं बंजर जमीन पर खेती खेती करके रोजाना 5000 रुपए तक की कमाई कर रहा है। मुक्त किस ने कम जमीन होने के कारण वर्टिकल खेती की तकनीक अपनाई। क्या है यह Hydroponic Farming तकनीक एवं इसके बारे में डिटेल जानिए ..
राजस्थान के बंजर क्षेत्र में कमाल किया
Hydroponic Farming | पश्चिमी राजस्थान में थार के रेगिस्तान में आने वाले जिले कई चुनौतियों से गुजरते हैं। इनमें मौसम और भौगोलिक परिस्थितियां किसानों के लिए सबसे बड़ी चुनौती हैं। पानी की कमी और बंजर जमीन के कारण यहां लहलहाते खेतों की कल्पना करना मुश्किल है।
यहीं पर एक 7 वीं पास किसान बिना मिट्टी के हाइड्रोपोनिक तकनीक के जरिए सब्जियां उगा रहा है। इस किसान ने राजस्थान का पहला हाइड्रोपोनिक प्लांट लगाया। किसान राजस्थान के बालोतरा जिले के रहने वाले हैं। बालोतरा के किसान रामेश्वर सिंह ( 42 ) ने रेगिस्तान में हाइड्रोपोनिक खेती (Hydroponic Farming) की शुरुआत की और प्रदेश का पहला प्लांट (स्ट्रक्चर) लगाया।
क्या है हाइड्रोपोनिक खेती
हाइड्रोपोनिक (Hydroponic Farming) एक ग्रीक शब्द है, जिसका अर्थ है बिना मिट्टी के केवल पानी का उपयोग करके खेती करना. यह एक आधुनिक खेती है, जिसमें पानी का उपयोग करके जलवायु को नियंत्रित करके खेती की जाती है। पानी के साथ कुछ रेत या कंकड़ की भी आवश्यकता हो सकती है. इसमें तापमान 15-30 डिग्री के बीच और आर्द्रता 80-85 प्रतिशत रखी जाती है। जल के माध्यम से भी पौधों को पोषक तत्व मिलते हैं।
इस तकनीक में बिना मिट्टी के सब्जियों को उगाया जाता है। इसमें मिट्टी के स्थान पर पानी के साथ परलाइट, कोको कॉयर (नारियल के छिलके का चूरा), रॉक वूल, क्ले प्लेट्स, वरमीक्यूलाइट जैसे कार्बनिक पदार्थों का उपयोग किया जाता है। हाइड्रोपोनिक तकनीक (Hydroponic Farming) से कम बजट में भी खेती शुरू की जा सकती है। राजस्थान में पानी की कमी है। ऐसे में आम फसलों में जितने पानी में सिंचाई की जाती है, उसका सिर्फ 10 प्रतिशत ही इस तकनीक में पानी की जरूरत पड़ती है।
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हाइड्रोपोनिक खेती कैसे होती है
Hydroponic Farming | किसान रामेश्वर सिंह रेगिस्तान में हाइड्रोपोनिक खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं। हाइड्रोपोनिक खेती इजराइली तकनीक है। यह खेती बिना मिट्टी और कम पानी में की जाती है। मिट्टी के स्थान पर कोकोपिट यानी नारियल के छिलके का बुरादा इस्तेमाल किया जाता है।
खेती की इस तकनीक में 10×10 फीट की जगह में भी पाइपों से स्ट्रक्चर तैयार कर खेती की जा सकती है। पाइप और गमलों में कोकोपिट डाली जाती है और फिर पौधों के लिए जरूरी न्यूट्रिशियन। इस तरह कम जगह और कम लागत में ऑर्गेनिक फसलें हासिल की जा सकती हैं।
इस Hydroponic Farming खेती में पाइपों का इस्तेमाल किया जाता है। पाइपों में छेद किए जाते हैं। इनमें पौधे लगाए जाते हैं। पाइप में पानी भरा होता है। इसी पानी में पौधों की जड़ें डूबी होती हैं। पाइप के जरिए पोषक तत्व सीधे पौधे की जड़ों को मिलते हैं। पानी के साथ कोकोपिट, बालू, कंकड़ मिलाए जाते हैं। प्लांट में तापमान 15 से 30 डिग्री के बीच और आर्द्रता यानि नमी को 80 से 85 प्रतिशत रखी जाती है।
सफलता की कहानी किसान की जुबानी
रामेश्वर सिंह 7वीं क्लास तक पढ़े हैं। इसके बावजूद उन्होंने बालोतरा में सबसे उन्नत किस्म की खेती कर दिखाई और अब देशभर में अन्य किसानों को हाइड्रोपोनिक खेती की ट्रेनिंग भी देते हैं। साथ ही सेटअप तैयार करने में मदद करते हैं।
रामेश्वर सिंह कहते हैं- किसान कम जमीन में वर्टिकल खेती Hydroponic Farming कर इस तकनीक से ज्यादा पैदावार ले सकते हैं। बहुत कम सिंचाई की जरूरत पड़ती है। सेटअप में लगभग 6 हजार पौधे लगा रखे हैं। जहां खेती करना भी मुमकिन नहीं था, वहां ऑर्गेनिक सब्जियों से अच्छी आमद हो रही है।
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किसान ने बताया कि उन्होंने इस Hydroponic Farming तकनीक को सीखने के लिए भारत में तीन-चार जाकर ट्रेनिंग ली। कोरोना के बाद 2019 में मैंने यह काम शुरू कर दिया। उन्होंने बताया- प्लांट लगाने के लिए दस बाई दस फीट की जगह भी पर्याप्त है। इसे छत पर या ऊबड़ खाबड़ जगह भी डवलप किया जा सकता है। उन्होंने बताया- सबसे पहले स्ट्रक्चर तैयार किया जाता है।
इसके बाद स्ट्रक्चर को खेती के लिए तैयार किया जाता है। पाइप, गमलों और बैग को कोकोपिट से तैयार किया जाता है। बीज या पौध लगाने के बाद समय-समय पर पाइपों में न्यूट्रिशियन डाले जाते हैं।इससे पौधे को अच्छी ग्रोथ मिलती है। रसायनों का इस्तेमाल नहीं किया जाता, इसलिए ऑर्गेनिक पौध हासिल होती है। वर्तमान में 6 हजार पौधे लगा रखे हैं। इनमें धनिया, पालक, पुदीना, मेथी, टमाटर, फूलगोभी और ब्रोकली है। सीजन में भिंडी, तोरई भी लगाते हैं।
लॉकडाउन के बाद खेती की शुरुआत की
मूल रूप से रामेश्वर सिंह बालोतरा जिले के सराणा गांव के रहने वाले हैं। बालोतरा में समदड़ी रोड पर रामेश्वर सिंह का हाइड्रोपोनिक Hydroponic Farming खेत है। सराणा गांव में पिता परंपरागत खेती करते थे। खेती में भविष्य नहीं था इसलिए रोजगार के लिए आन्ध्र प्रदेश का रुख किया। एक कपड़े की दुकान पर नौकरी करने लगा।
5-6 साल नौकरी करने के बाद पहले आन्ध्र प्रदेश और फिर गुजरात में कपड़े का कारोबार शुरू किया। कोरोना संक्रमण के दौरान लॉकडाउन लगा तो सालभर तक दुकानें बंद रहीं और कारोबार थम गया। तब गांव लौटकर दोबारा खेती से जुड़ने का विचार किया। आन्ध्र प्रदेश और गुजरात में कपड़े की दुकानें बंद कर, कपड़े का कारोबार छोड़ रामेश्वर बालोतरा लौट आए।
यूट्यूब से सीखी खेती
रामेश्वर सिंह ने बताया- लॉकडाउन के दौरान घर में बैठे-बैठे यू-ट्यूब के जरिए हाइड्रोपोनिक खेती Hydroponic Farming के बारे में जानकारी जुटाई। फिर हाइड्रोपोनिक खेती के लिए कॉन्टैक्ट भी किया। लॉकडॉउन खत्म होने के बाद जनवरी 2021 में इस तकनीक की ट्रेनिंग ली। ट्रेनिंग के लिए वे बेंगलुरु, दिल्ली और मध्य प्रदेश गए। हर जगह 15 से 20 दिन की ट्रेनिंग ली। हर जगह 5 से 6 हजार फीस लगी। करीब 35 हजार रुपए खर्च कर उन्होंने पूरी तरह ट्रेनिंग ली और हाइड्रोपोनिक खेती के गुर सीखे।
ट्रेनिंग लेने के बाद उन्होंने बालोतरा में सिणधरी रोड पर 7000 स्क्वायर फीट में स्ट्रक्चर लगाया। यह प्रदेश का पहला हाइड्रोपोनिक प्लांट था। उन्होंने बालोतरा शहर से ही प्लास्टिक के पाइप, लोहे के एंगल और अन्य वस्तुएं खरीदीं। यह स्ट्रक्चर 30 हजार रुपए में तैयार हुआ। उन्होंने 300 कप का प्लांट तैयार किया। 5 से 6 महीने में ही उन्हें रोजाना 4 हजार रुपए की सब्जियां मिलने लगीं।
किसान रामेश्वर सिंह अब हाइड्रोपोनिक खेती Hydroponic Farming करने, स्ट्रक्चर लगाने में मदद करने के साथ-साथ इस तकनीक के बारे में यू-ट्यूब वीडियो के जरिए महत्वपूर्ण जानकारी साझा करते हैं। देशभर के किसान यू-ट्यूब के जरिए उनसे जुड़े हैं और इस तकनीक के बारे में जानकारी लेते हैं। वॉट्सऐप के जरिए भी वे लोगों को फ्री जानकारी देते हैं।
रामेश्वर सिंह ने कई लोगों को ट्रेनिंग दी
किसान रामेश्वर सिंह ने बताया- हाइड्रोपोनिक प्लांट Hydroponic Farming लगाने के बाद पहचान मिली। 5 साल से यह काम अच्छा चल रहा है। शुरुआत में कई शहरों में घूमकर जानकारी जुटाई, यू-ट्यूब देखा। सेटअप लगाने के बाद दूर-दूर से लोग आते हैं और इस खेती की जानकारी लेते हैं। देश में कई जगह प्लांट लगवा चुका हूं। हाइड्रोपोनिक खेती को लेकर 400 से अधिक लोगों को गाइड भी कर चुका हूं।
उन्होंने कहा- प्लांट में तैयार उपज लोकल मंडी में जाती है। ऑर्गेनिक होने के कारण अच्छा दाम मिलता है। मुख्य काम अब किसानों को हाइड्रोपोनिक खेती सिखाने का हो गया है। सिर्फ 25 हजार रुपए में स्ट्रक्चर लगाया जा सकता है। दस बाई दस के छोटे से सेटअप से रोजाना 12 से 15 किलो तक पैदावार ली जा सकती है। रेगिस्तानी इलाकों के किसानों को हाइड्रोपोनिक खेती करनी चाहिए।
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इन फसलों की खेती होती है हाइड्रोपोनिक तकनीक के द्वारा
Hydroponic Farming | धनिया, पुदीना, मिर्च, टमाटर, ब्रोकली, फूलगोभी, तोरई, घीया, मटर, गाजर, मूली, शलजम, शिमला मिर्च, अनानास, टमाटर, भिंडी, अजवाइन, तुलसी, तरबूज, खरबूजा, ब्लूबेरी, ब्लैकबेरी, स्ट्रॉबेरी की खेती हो जाती है।
किसान रामेश्वर सिंह ने बताया- हाइड्रोपोनिक तकनीक के जरिए उन्होंने ऑर्गेनिक धनिया, पालक, मेथी, ब्रोकली, मटर, हरी मिर्च, फूल गोभी, पत्तागोभी और अन्य हरी सब्जियों का प्रोडक्शन किया। एक स्टैंड में एक सब्जी 20 किलो तक पैदा हो गई। लोकल रेस्टोरेंट, होटल आदि में उनके प्रोडक्ट की डिमांड है।
रामेश्वर सिंह ने बताया- पूरे प्लांट में सिर्फ 15 लीटर पानी में खेती हो सकती है। 300 कप के छोटे स्ट्रक्चर से आसानी से रोजाना 5 हजार रुपए कमाए जा सकते हैं। ज्यादा देखभाल की भी जरूरत नहीं है। Hydroponic Farming मशीनों से ऑटोमैटिक जरूरत का पानी पौधों तक पहुंच जाता है। सिर्फ एक आदमी पूरा प्लांट संभाल सकता है। पूरे प्लांट को एक आदमी संभाल सकता है। ऑटोमैटिक मशीनों के जरिए जरूरत के हिसाब से पानी की सप्लाई होती रहती है।
हाइड्रोपोनिक खेती के लाभ
हाइड्रोपोनिक खेती को एक्वाकल्चर, न्यूट्रीकल्चर, मिट्टी रहित कल्चर या टैंक फार्मिंग भी कहा जाता है। यह एक प्रकार की बागवानी खेती Hydroponic Farming है। किसान को एक बार निवेश के बाद और कम बीज डालने के बाद फसल को लेकर ज्यादा मेहनत करने की जरूरत नहीं है। बीज बुवाई के 45 दिन बाद फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। इस तकनीक से 10 महीने तक पैदावार ली जा सकती है।
हाइड्रोपोनिक तकनीक से खेती करने में पानी की 90 प्रतिशत तक बचत हो जाती है। इसके लिए लंबे-चौड़े खेत की जरूरत नहीं, एक कमरे से भी शुरुआत संभव है। छत पर भी लग प्लांट लगा सकते हैं। कम जगह पर अधिक पौधे उगाए जा सकते हैं। पौधों की वृद्धि अच्छी होती है। फसल की क्वालिटी बेहतर मिलती है। मौसम या जानवरों से फसल खराबे का डर नहीं।
हाइड्रोपोनिक खेती के लिए मिलती है सब्सिडी
भारत की केंद्र और राज्य सरकारों ने हाइड्रोपोनिक्स Hydroponic Farming में निवेश करने के इच्छुक किसानों के लिए निवेश लागत पर सब्सिडी दी है। लागू सब्सिडी अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती है। महाराष्ट्र सरकार ने पशु आहार के लिए हाइड्रोपोनिक्स अपनाने वाले किसानों को 50% सब्सिडी प्रदान की है। राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड ने हर राज्य के लिए अलग-अलग सब्सिडी तैयार की है। इसी प्रकार, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड के माध्यम से प्रत्येक राज्य के लिए अलग-अलग सब्सिडी उपलब्ध है।
हाइड्रोपोनिक्स खेती के लिए सब्सिडी की प्रक्रिया
भारत में केंद्र और राज्य सरकारों ने उन किसानों के लिए खेती की लागत में छूट दी है जो हाइड्रोपोनिक्स से खेती Hydroponic Farming करना चाहते हैं। इसके लिए अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नियम के तहत सब्सिडी दी जाती है। महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में उन किसानों के लिए 50% सब्सिडी की घोषणा की है जो पशु चारा (hydroponic farming) बढ़ाने के लिए हाइड्रोपोनिक्स का उपयोग करते हैं।
इसी प्रकार, राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड ने प्रत्येक राज्य के लिए सब्सिडी का नियम बनाया है। इन नियमों और शर्तों का पालन कर किसान हाइड्रोपोनिक्स के लिए सब्सिडी ले सकते हैं। इससे खेती की लागत कम होगी और आमदनी बढ़ाने में मदद मिलेगी।
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