ग्रीष्मकालीन मूंग की बंपर पैदावार (Moong Cultivation) के लिए किसानों को क्या क्या करना चाहिए, जानेंगे आर्टिकल में..
Moong Cultivation | मध्य प्रदेश सहित कई राज्यों में पिछले कुछ वर्षों से तीसरी फसल के रूप में जायद फसलों का रकबा बढ़ता जा रहा है। मुख्य रूप से मूंग, मूंगफली, मक्का, उड़द एवं धान फसल जायद में ली जाती है। इसमें सबसे प्रमुख एवं किसानों को मुनाफा देने वाली फसल मूंग है जिसे जायद में सबसे अधिक क्षेत्र में प्रदेश के किसान अपनाने लगे हैं।
मूंग की फसल को कैश क्रॉप के रूप में जाना जाता है। अप्रैल के पहले सप्ताह में भी इसकी बुआई की जा सकती है। यदि आप भी ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती Moong Cultivation कर रहे है तो, यह आर्टिकल आपके लिए ही है। हम आपको बताएंगे मूंग की खेती से बंपर पैदावार लेने के लिए किसानों को क्या क्या करना होगा। आइए जानते है पूरी डिटेल..
मूंग की उन्नत किस्मों का चयन
Moong Cultivation | मूंग की बुवाई के लिए किसान उत्तम से उत्तम बीज का चयन करें। मूंग की उन्नत किस्मों में जवाहर मूंग -721, टॉम्बे जवाहर मूंग-3, के – 851, पूसा विशाल, पी.डी.एम – 11, एच.यू.एम. 1 (हम -1) इत्यादि का नाम आता है। किसान अपने नजदीकी कृषि विभाग या कृषि विशेषज्ञों से राय लेकर अपने क्षेत्र की मिट्टी एवं जलवायु के हिसाब से उन्नत किस्म का चयन कर सकते है।
मूंग में बीज दर एवं बीजोपचार की जानकारी
मूंग के लिए गहरी, जल निकास युक्त दोमट या हल्की मिट्टी अधिक उपयुक्त रहती है। भूमि क्षारीय नहीं होनी चाहिए। जायद में बीज Moong Cultivation की मात्रा 20-25 किलोग्राम प्रति एकड़ लें। 3 ग्राम थायरम फफूंदनाशक दवा से प्रति किलो बीज के हिसाब से उपचारित करने से बीज और भूमि जन्य बीमारियों से फसल सुरक्षित रहती है। 600 ग्राम राइज़ोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लें और बुवाई कर दें। ऐसा करने से नत्रजन स्थरीकरण अच्छा होता है।
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ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती में खाद एवं उर्वरक
Moong Cultivation | खाद एवं उर्वरकों के प्रयोग से पहले मिट्टी की जांच कर लेनी चाहिए फिर भी कम से कम 5 से 10 टन गोबर की खाद या कम्पोस्ट खाद देनी। इसके अलावा मूंग की फसल में 20 किलो ग्राम नाइट्रोजन तथा 40 किलो ग्राम फास्फोरस 20 किलो ग्राम पोटाश 25 किलो ग्राम गंधक एवम् 5 किलो ग्राम जिंक प्रति हैक्टेयर की आवश्कता होती है।
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ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती में सिंचाई प्रबंधन
बसंत एवं ग्रीष्म ऋतु में मूंग की फसल (Moong Cultivation) में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। फसल पकने के 15 दिन पूर्व सिंचाई बंद कर देना चाहिये। वर्षा के मौसम में अधिक वर्षा होने पर अथवा खेत में पानी का भराव होने पर फालतू पानी को खेत से निकालते रहना चाहिये, जिससे मृदा में वायु संचार बना रहता है।
मूंग में किट उपचार की समस्या
मूंग में फूल तथा फलियां आते समय कीटों का विशेष ध्यान देना चाहिए। फसल में थ्रिप्स तथा जैसिड के आक्रमण से फसल के उत्पादन पर बहुत अधिक बुरा प्रभाव पड़ता है। खेत में घुसते ही यदि छोटे-छोटे भुनंगे या कीट उडऩे लगें तो इसका नियंत्रण इमिडाक्लोप्रिड 250 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 600 लीटर पानी में घोलकर शाम के समय छिड़काव किया जाना चाहिए। आवश्यकता पडऩे पर 15 दिनों के अंतराल पर दूसरा छिड़काव किया जा सकता है।
मूंग की फसल में इल्ली नियंत्रण ; Moong Cultivation
मूंग फसल में सफेद बैंगनी रंग की मारूका इल्ली का प्रकोप पाया जाता है। यह इल्ली फसल के फूलों में रहती है। जब पुष्प से फली का निर्माण होता है, तब इल्ली फली के अन्दर दाने को नुकसान करके बाहर निकलती है। इससे किसानों को भारी मात्रा में आर्थिक नुकसान होगा।
इसके नियंत्रण के लिए टेट्रानिलिप्रोल 50 मिली प्रति एकड़, डेल्टामेथ्रिन 100 मिली प्रति एकड़ या क्लोरोइंट्रानिलीप्रोल, लेम्डासाइक्लोप्रिन 100 मिली प्रति एकड़ या बीटासाइक्लोथ्रिन, इमिडाक्लोप्रिड 140 मिली प्रति एकड़ की दर से 150 ली. पानी में घोल बनाकर सुबह या शाम छिड़काव करें। साथ ही Moong Cultivation फसल पर पाउडी मिल्डयु रोग के निदान के लिए टेबुकुनोजॉल सल्फर 400 ग्राम प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करें।
मूंग की फसल में पीलापन आने पर यह करें
मूंग फसल में पीलेपन से बचने के किसानों को सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की स्थिति में सूक्ष्म पोषक तत्व युक्त प्रोकीसान ञ्च 250 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर फसल पर छिड़काव करना होगा। गौण पोषक तत्वों जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटाश की कमी की पूर्ति के लिए जल में घुलनशील एन.पी.के 19:19:19 ञ्च 1 किग्रा प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अंतराल पर दो बार छिड़काव करें।
बंपर पैदावार के लिए इन बातों का ध्यान रखे
- किसान मूंग (Moong Cultivation) का स्वस्थ एवं प्रमाणित बीज का उपयोग करें।
- सही समय पर बुवाई करें, देर से बुवाई करने पर उपज कम हो जाती है।
- किस्मों का चयन क्षेत्रीय अनुकूलता के अनुसार करें।
- बीजोपचार अवश्य करें जिससे पौधों को बीज एवं मृदा जनित बीमारियों से प्रारंभिक अवस्था में प्रभावित होने से बचाया जा सके।
- मिट्टी परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरक उपयोग करे जिससे भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है जो टिकाऊ उत्पादन के लिए जरूरी है।
- Moong Cultivation समय पर खरपतवारों नियंत्रण एवं पौध संरक्षण करें जिससे रोग एवं बीमारियो का समय पर नियंत्रण किया जा सके।
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