उन्नत खेती से किसान अच्छा प्रॉफिट Profit cultivation कमा रहे हैं आईए जानते हैं ऐसी ही एक फसल एवं उसकी खेती के बारे में..
Profit cultivation | देश में परंपरागत खेती अधिक होती है परंपरागत खेती से अधिक मुनाफा नहीं होने के कारण किसानों की आय में वृद्धि नहीं हो पा रही है। इसके विपरीत कई किसान उन्नत खेती करके अच्छा प्रॉफिट भी कमा रहे हैं। एमपी के ऐसे ही एक किसान ने एक बीघा में उन्नत किस्म की खेती करके एक बीघा की खेती से 7.5 लाख रुपए की कमाई की।
उक्त किसान ने एक बीघा में स्ट्रॉबेरी की खेती की। स्ट्रॉबेरी की सर्वाधिक खेती महाराष्ट्र में होती है, लेकिन एमपी में भी किसान ने इसकी अच्छी पैदावार लेकर कई किसानों को इसकी खेती के प्रति आकर्षित Profit cultivation किया है। आइए स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में सब कुछ जानते हैं..
शाजापुर के किसानों ने की स्ट्रॉबेरी की खेती
देश के कई राज्यों में स्ट्रॉबेरी की खेती Profit cultivation की जाती है। इसकी सबसे ज्यादा खेती महाराष्ट्र में होती है। लेकिन अब मध्य प्रदेश में भी इसकी खेती होने लगी है शाजापुर के कर किसानों ने स्ट्रॉबेरी की खेती करके अच्छा लाभ कमाया। शाजापुर के चार युवा किसान मिलकर इसकी खेती कर रहे हैं। एक सीजन में करीब साढ़े 7 लाख रुपए तक कमाई भी कर रहे हैं। शाजापुर के रहने वाले संदीप गुप्ता, प्रकाश चौहान, विवेक सोनी और हर्षद वर्मा आपस में दोस्त हैं।
बताया जाता है कि एक बार उन्होंने मार्केट से स्ट्रॉबेरी खरीदी। पैकेट खोलने पर वह सड़ी-गली निकली। इस बात पर दुकानदार से विवाद तक हो गया। दुकानदार बोला- बाहर से जैसे आते हैं, हम वैसे ही ग्राहकों को देते हैं। यही बात उन्हें चुभ गई। इन्होंने शाजापुर में ही स्ट्रॉबेरी की खेती करने और ताजा फल लोगों तक पहुंचाने का संकल्प लिया। Profit cultivation
इसके लिए पास के गांव सनकोटा के पास बड़ले पर स्थित बंजर भूमि को तैयार किया। करीब एक बीघा जमीन में महाराष्ट्र के महाबलेश्वर से लाकर नवंबर महीने में 10 हजार पौधे रोपे, जो अब फल देने लगे हैं। चारों दोस्त इन फलों को परिचितों और सोशल मीडिया का सहारा लेकर स्थानीय स्तर पर बेच रहे हैं।
एक बीघा की खेती में यह खर्चा आया, कमाई भी अच्छी
भारत में स्ट्रॉबेरी की खेती Profit cultivation ठंडे इलाकों में की जाती है। शाजापुर में पहली बार ट्रायल के तौर पर स्ट्रॉबेरी की खेती की है। यहां का मौसम साथ देता है, तो मई तक उत्पादन मिलेगा। तापमान बढ़ने पर ये जल्दी खराब होने वाला फल है। इस कारण इसकी समय पर तुड़ाई के बाद मंडी में पहुंचाना जरूरी होता है।
स्ट्रॉबेरी की खेती के लिए इन किसानों ने डेढ़ से 2 लाख रुपए प्लांटेशन और मटेरियल पर खर्च किए। चार दोस्तों में से एक संदीप गुप्ता ने बताया कि शुरुआत में कुछ चुनौतियों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब अच्छा उत्पादन हो रहा है। एक बीघा जमीन में करीब 50 किलो तक स्ट्रॉबेरी प्रतिदिन निकल रही है। जिसे लोकल मार्केट में करीब 200 रुपए प्रति किलो के भाव से बेच रहे हैं, जिसमें सभी खर्चे निकालकर 5 से 6 हजार रुपए तक डेली इनकम हो रही है।
किसान संदीप गुप्ता ने बताया कि केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया। केमिकल रहित खेती की जाए। इसमें कंपोस्ट खाद, गोबर खाद का प्रयोग किया है। प्रायोगिक तौर पर एक बीघा में स्ट्रॉबेरी की खेती Profit cultivation की है। उत्पादन देखकर अब लग रहा है कि रकबा बढ़ाना चाहिए।
ऐसे करें खेती की तैयारी
Profit cultivation स्ट्रॉबेरी की बुवाई सिंतबर से अक्टूबर महीने में करना चाहिए। बुवाई से एक सप्ताह पहले खेत की 3 से 4 बार अच्छी से जुताई कर लें। इसके बाद गोबर की खाद खेत में अच्छे तरीके से मिलाएं। कीट व रोगों से बचाने के लिए खेत में पोटाश और फॉस्फोरस भी मिट्टी परीक्षण के आधार पर मिलाएं। तैयार खेत में 25 से 30 सेंटीमीटर ऊंची क्यारियां बनाएं। सिंचाई के लिए क्यारियों में ड्रिप इरिगेशन की पाइप लाइन भी बिछा लें।
स्ट्रॉबेरी की खेती के बारे में जानिए
स्ट्राबेरी Profit cultivation एक महत्वपूर्ण नरम फल है,जिसको विभिन्न प्रकार की भूमि तथा जलवायु में उगाया जा सकता है। यह पॉलीहाउस के अंदर और खुले खेत दोनों जगह हो जाता है। इसका पौधा कुछ ही महीनों में फल दे सकता है। इस फसल का उत्पादन बहुत लोगों को रोजगार दे सकता है। स्ट्रॉबेरी दुसरे फलों के मुकाबले जल्दी आमदनी देता है। यह कम लागत और अच्छे मूल्य का फल है।
स्ट्रॉबेरी फ्रेगेरिया जाति का एक पौधा होता है, जिसके फल के लिये इसकी विश्वव्यापी खेती की जाती है। स्ट्रॉबेरी की विशेष गन्ध इसकी पहचान है। ये चटक लाल रंग की होती है। इसे ताजा फल के रूप में खाया जाता है।
स्ट्रॉबेरी स्वाद में हल्का खट्टा और हल्का मीठा होता है। साथ ही इसे संरक्षित कर जैम, रस, आइसक्रीम, मिल्क-शेक, कन्फेक्शनरी , चूइंगम, सॉफ्ट ड्रिंक आदि के रूप में भी इसका सेवन किया जाता है। स्ट्रॉबेरी एंटीऑक्सिडेंट, विटामिन सी , विटामिन-बी 1, बी 2, नियासिन, प्रोटीन और खनिजों का एक अच्छा प्राकृतिक स्रोतों है। इसमें मिनरल्स भरपूर मात्रा में होते हैं। Profit cultivation
स्ट्राबेरी की उपयुक्त उन्नत किस्में
कैमारोजा- यह एक कैलीफोर्निया में विकसित की गई किस्म है व थोड़े दिन में फल देने वाली किस्म है। इसका फल बहुत बड़ा व मजबूत होता है। यह किस्म लंबे समय तक फल देती है व वायरस रोधक है। Profit cultivation
ओसो ग्रैन्ड- यह भी एक कैलीफोर्निया में विकसित किस्म है। जो छोटे दिनों में फल देती है। इसका फल बड़ा होता है तथा खाने व उत्पाद बनाने के लिए अच्छा होता है। परंतु इसके फल में फटने की समस्या देखी जा सकती है। यह किस्म काफी मात्रा में रनर पैदा कर सकती है।
ओफरा- यह किस्म इजराईल में विकसित की गई है। यह एक अगेती किस्म है और इसका फल उत्पादन जल्दी आरंभ हो जाता है।
चैंडलर– यह कैलीफोर्निया में विकसित किस्म है। इसका फल आकर्षक होता है। परंतु इसकी त्वचा नाजुक होती है। Profit cultivation
स्वीट चार्ली- इस किस्म के पौधे जल्दी फल देते हैं। इसका फल मीठा होता है। पौधे में कई फफूंद रोगों की रोधक शक्ति होती है।फेयर फॉक्स , ब्लैक मोर, एलिस्ता, नाबीला, आदि।
स्ट्राबेरी उगाने के लिए मिट्टी व खेत की तैयारी
स्ट्राबेरी की खेती Profit cultivation विभिन्न प्रकार की भूमि में की जा सकती है। परंतु रेतीली-दोमट भूमि इसके लिए सर्वोत्तम है। भूमि में जल निकासी अच्छी होनी चाहिए। इसकी खेती के लिए पी.एच. 5.0 से 6.5 तक मान वाली मिट्टी भी उपयुक्त होती है।
सितम्बर के प्रथम सप्ताह में खेत की 3 बार अच्छी जुताई कर ले फिर उसमे एक हेक्टेयर जमीन में 70-80 टन अच्छी सड़ी हुई खाद् अच्छे से बिखेर कर मिटटी में मिला दे। साथ में पोटाश और फास्फोरस भी मिट्टी परीक्षण के आधार पर खेत तैयार करते समय मिला दे। यह फसल शीतोष्ण जलवायु वाली फसल है जिसके लिए 20 से 30 डिग्री तापमान उपयुक्त रहता है। तापमान बढ़ने पर पोधों में नुकसान होता है और उपज प्रभावित हो जाती है। Profit cultivation
स्ट्राबेरी के पौधे लगाने का समय
Profit cultivation स्ट्राबेरी के पौधों की रोपाई 10 सितम्बर से 10 अक्तूबर तक की जानी चाहिए। रोपाई के समय अधिक तापमान होने पर पौधों को कुछ समय बाद अर्थात् 20 सितम्बर तक शुरू किया जा सकता है।
स्ट्राबेरी के पौधे ऊपर उठी क्यारियों में लगाए जाते हैं। इन क्यारियों की चैड़ाई 2 फिट व ऊँचाई लगभग 25 से.मी. रखी जाती है। दो क्यारियों के बीच में डेड फिट का अन्तर रखा जाता है।
क्यारियों में पौधों को चार पंक्तियों में बोऐ तथा पक्ति से पंक्ति के बीच में 25 सै.मी. की दूरी व पौधे से पौधे की आपसी दूरी 25-30 से.मी. रखना आवश्यक है।
स्ट्राबेरी के 35000 से 45000 पौधे प्रति हेक्टयेर यानि की 10,000 वर्ग मीटर में लगने चाहिए। जड़ को पूरी तरह मिटी में सेट कर दें। जड़ बहार रहने से सूखने का खतरा होता है। पौध को ज्यादा तापमान और ठण्ड से इसके ऊपर छाया करनी चाहिए। Profit cultivation
स्ट्राबेरी उगाने के लिए बेड तैयार करना
खेत में आवश्यक खाद् उर्वरक देने के बाद बेड बनाने के लिए बेड की चैड़ाई 2 फिट रखे और बेड से बेड की दूरी डेड फिट रखे। बेड तैयार होने के बाद उस पर टपकसिंचाई की पाइपलाइन बिछा दे। पौधे लगाने के लिए प्लास्टिक मल्चिंग में 20 से 30 सेमी की दूरी पर छेद करे। Profit cultivation
स्ट्राबेरी के खेती के लिए खाद और उर्वरक
Profit cultivation स्ट्रॉबेरी का पौधा काफी नाजुक होता है। इसलिए उसे समय समय खाद और उर्वरक देना जरुरी होता है जो कि आपके खेत के मिट्टी परीक्षण रिपोर्ट को देखकर देवें।
साधारण रेतीली भूमि में 10 से 15 टन सड़ी गोबर की खाद प्रति एकड़ की दर से भूमि तैयारी के समय बिखेर कर मिट्टी में मिला देनी चाहिए।
भूमि तैयारी के समय 100 कि.ग्रा. फास्फोरस (पी2ओ5) व 60 कि.ग्रा. पोटाश (के2ओ) प्रति एकड़ डालना चाहिए। रोपाई के उपरांत मल्चिंग होने के बाद तरल खाद् टपक सिंचाई के जरिये दिया जाना चाहिए।
स्ट्राबेरी की खेती में सिंचाई
Profit cultivation स्ट्राबेरी पौधे के लिए उत्तम गुणवत्ता (नमक रहित) का पानी होना चाहिए। पौधों को लगाने के तुरंत पश्चात् सिंचाई करना आवश्यक है। सिंचाई सूक्ष्म फव्वारों द्वारा की जानी चाहिए। यह सावधानी रखें कि सूक्ष्म फव्वारों से सिंचाई करते समय पौधा स्वस्थ एवं रोग-फफूंद रहित होना आवश्यक है। फूल आने पर सूक्ष्म फव्वारा सिंचाई को बदल कर टपका विधि द्वारा सिंचाई करें।
पाली हाउस के बगैर भी स्ट्रॉबेरी की खेती करें
पाली हाउस नही होने की अवस्था में किसान भाई स्ट्रॉबेरी को पाले से बचाने के लिए प्लास्टिक लो टनल का उपयोग करे। पौधों को पाले से बचाने के लिए ऊपर उठी क्यारियों पर पॉलीथीन की पारदर्शी चद्दर जिसकी मोटाई 100-200 माइक्रोन हो, ढकना आवश्यक है।
चद्दर को क्यारियों से ऊपर रखने के लिए बांस की डंडियां या लोहे की तार से बने हुप्स का उपयोग करना चाहिए। ढकने का कार्य सूर्यास्त से पहले कर दें व सूर्योदय उपरांत इस पॉलीथीन की चद्दर को हटा दें। Profit cultivation
स्ट्रॉबेरी की तुड़ाई और पैकिंग
जब फल का रंग 70 प्रतिशत असली हो जाये तो तोड़ लेना चाहिए। अगर बाजार दूरी पर है तब थोड़ा सख्त ही तोडना चाहिए। तोडाई अलग अलग दिनों में करनी चाहिए।
तोड़ाई के समय स्ट्रॉबेरी के फल को नहीं पकड़ना चाहिए, ऊपर से डण्डी पकड़ना चाहिए। औसत फल सात से दस टन प्रति हेक्टयेर निकलता है। स्ट्रॉबेरी की पैकिंग प्लास्टिक की प्लेटों में करनी चाहिए। इसको हवादार जगह पर रखना चाहिए,जहां तापमान पांच डिग्री हो। एक दिन के बाद तापमान जीरो डिग्री होना चाहिए। Profit cultivation
स्ट्रॉबेरी की खेती में लगने वाले कीट
Profit cultivation स्ट्रॉबेरी केे कीटों में पतंगे, चाफर, मक्खियां, स्ट्रॉबेरी जड़ वीविल्स, झरबेरी एक प्रकार का कीड़ा, स्ट्रॉबेरी रस भृंग, स्ट्रॉबेरी मुकुट कीट, इत्यादि शामिल हैं।
स्ट्रॉबेरी के रोग
स्ट्राबेरी के पौधे विभिन्न रोगों के शिकार हो सकते हैं। इसकी पत्तियां खस्ता फफूंदी, पत्ता स्पॉट (कवक स्पैर्रेला फ्रैगरिया द्वारा कारण), पत्ता ब्लाइट (कवक फोमोप्सिस के कारण) से संक्रमित हो सकती हैं।
अपने स्ट्रॉबेरी के पौधों में पानी देते समय यह ध्याम रखें कि पानी पत्तों को नहीं जड़ों को ही दें अन्यथा पत्तियों पर नमी कवक का विकास हो सकता है। सुनिश्चित करें कि स्ट्रॉबेरी एक खुले क्षेत्र में हो जिससे कि कवक रोगों का खतरा कम किया जा सके।
कीट और रोगों से ऐसे करें बचाव
Profit cultivation स्ट्रॉबेरी के पौधों को कई तरह के कीट नुकसान पहुंचा सकते हैं। इनमें तेला, माइट, कटवर्म और टेपवर्म शामिल हैं। पौधों को इनसे बचाने के लिए डाइमथोएट, डिमैटोन, फॉरेट का प्रयोग किया जाना चाहिए।
स्ट्रॉबेरी के फल पर भूरा फफूंद रोग और पत्तों पर धब्बों वाला रोग और काला जड़ सड़न रोग लगते हैं। भूरे फफूंद रोग को डायाथायोकॉर्बेट पर आधारित फफूंदनाशक रसायन जैसे डाइथेन एम-45 का स्प्रे करके नियंत्रित किया जा सकता है।
स्ट्रॉबेरी की खेती से कमाई
स्ट्रॉबेरी की खेती Profit cultivation कम लागत और न्यूनतम रख रखाव में बहुत ज्यादा मुनाफे देना वाली फसल है। स्थानीय या लोकल बाजार में स्ट्रॉबेरी का मूल्य 400-600 रुपए प्रति किलो तक मिल जाता हैं।
स्ट्रॉबेरी की पैदावार प्रति हेक्टेयर 7 से 10 टन हो सकती है (1 – 1.5 किलो प्रति पौधा )। यदि 4,00,000 रू. प्रति टन भी कीमत आंकी जावें तो फल बेचकर किसानों को प्रति हेक्टर 28,00,000 रू. का कूल अर्जन तथा लागत काट कर 5,00,000 रू. का शुद्ध लाभ प्राप्त होगा।
मौसम के मुताबिक सिंचाई और देखभाल जरूरी
Profit cultivation स्ट्रॉबेरी के पौधों की जड़ें गहरी होती हैं, इसलिए नमी की कमी से पौधों को नुकसान पहुंच सकता है। पौधे मर भी सकते हैं। सिंचाई की थोड़ी सी कमी से भी फलों के आकार और गुणवत्ता पर भी प्रभाव पड़ता है। स्ट्रॉबेरी की फसल को बार-बार हल्की सिंचाई चाहिए। ठंड में 10-15 दिन और गर्मी में चार-पांच दिन के अंतराल पर ड्रिप विधि से सिंचाई करनी चाहिए।
स्ट्रॉबेरी में विटामिन सी भरपूर मात्रा में पाया जाता है, जिससे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मदद मिलती है। साथ ही, यह हाई बीपी (उच्च रक्तचाप) से पीड़ित लोगों के शरीर में रक्त संचरण में भी मदद करती है। स्ट्रॉबेरी में प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए, विटामिन सी, पोटेशियम, कैल्शियम, फॉस्फोरस सहित थायोमिन बी, राइबोफ्लेबिन, नियासिन, लोहा, सोडियम आदि तत्व पाए जाते हैं।
कृषि वैज्ञानिक डॉ. जीआर अंबाबतिया ने बताया कि शाजापुर के आसपास स्ट्रॉबेरी की खेती करने की अनूकुल स्थितियां हैं। हालांकि थोड़ी चुनौतियों का सामना जरूर करना पड़ता है, लेकिन यह अच्छा मुनाफा देने वाली खेती है। मैं मानता हूं कि क्षेत्र के किसानों को इस ओर रुचि लेना चाहिए। जिससे वह खेती से अधिक मुनाफा कमा सकें। Profit cultivation
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