किसानों को 15 से 20 दिन की सोयाबीन की फसल (Soybean Crop) में खरपतवार नियंत्रण के लिए कौन से खरपतवारनाशक का उपयोग करना चाहिए। आइए जानते है।
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Soybean Crop | मध्यप्रदेश के सभी जिलों में सोयाबीन की फसल 12 से 15 दिनों की हो गई है। कहीं कहीं 20 दिनों की भी हो गई है। ऐसे में इस अवधि में खरपतवारों का नियंत्रण होना आवश्यक है।
खरपतवार नियंत्रण के लिए कृषक समन्वित खरपतवार नियंत्रण पद्धति, फसल पद्धति, यांत्रिक विधि (कुल्पा व डोरा) व रसायनिक विधि का उपयोग करें।
सोयाबीन फसल (Soybean Crop) के प्रमुख खरपतवार सकरी पत्ती के खरपतवार दूब, मोथा, सांवा व चौड़ी पत्ती के खरपतवार बोखना, दिवालिया, कनकौआ आदि हैं। खरपतवारनाशकों का छिड़काव करते समय पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है। खरपतवार की 2-3 पत्ती अवस्था पर ही खरपतवारनाशकों का छिड़काव करें।
सोयाबीन की फसल के लिए प्रमुख खरपतवारनाशक
Soybean Crop | सोयाबीन बुवाई के तुरंत बाद (0-3 दिन) :-
| खरपतवारनाशक | मात्रा प्रति हैक्टे. | प्रभाव |
| डाइक्लोसुलम 84 WDG | 26-30 ग्राम | चौड़ी पत्ती |
| सेल्फेन्ट्राजोन 39.6 SC | 750 मिली | दोनों प्रकार |
| फ्लूमि ऑक्साजिन 50 SC | 250 मिली | चौड़ी पत्ती |
| क्लोमाजोन 50 EC | 1.5-2.00 लीटर | दोनों प्रकार |
Soybean Crop
सोयाबीन (Soybean Crop) बुवाई के 15-20 दिन बाद :-
| खरपतवारनाशक | मात्रा प्रति हैक्टे. | प्रभाव |
| हेलाक्सिफॉफ आर मिथाईल 10.5 EC | 1-1.25 लीटर | घास कुल |
| इमिजाथाइपर 10 SL | 1 लीटर | घास कुल |
| प्रोपाक्विजाफॉफ 10 EC | 500-750 मिली | घास कुल |
| फ्लुथियासेट मिथाईल 10.3 EC | 125 मिली | चौड़ी पत्ती |
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Soybean Crop पूर्व मिश्रित खरपतवारनाशक बुवाई के 15-20 दिन बाद :-
| खरपतवारनाशक | मात्रा प्रति हैक्टे. | प्रभाव |
| फोमेक्साफेन 12% क्विजालोफॉप इथाईल 3% SC | 1.5 लीटर | दोनों प्रकार |
| फोमेक्साफेन 12.5% + क्विजालोफॉप इथाईल 4.68% EC | 1 लीटर | दोनों प्रकार |
| हेलाक्सिफॉफ आर मिथाईल 12.8% + इमेजाथापायर 10% ME | 825 मिली | दोनों प्रकार |
| फ्लूथियासेट मिथाईल 2.5% + क्विजालोफॉप इथाईल 10% | 500 मिली | दोनों प्रकार |
Soybean Crop
खरपतवारनाशकों के उपयोग में सावधानियाँ
1. एक हैक्टेयर क्षेत्र में 500 से 600 लीटर पानी के साथ छिड़काव करें। : Soybean Crop
2. खरपतवारनाशक की अनुशंसित मात्रा का ही उपयोग करें।
3. खरपतवारनाशक छिड़कते समय पलेट फैन नोजल का उपयोग करें।
4. किसी भी दो खरपतवारनाशकों को एक साथ मिलाकर छिड़काव न करें।
5. खरपतवारनाशकों का छिड़काव करते समय मुंह पर मास्क व हाथों में दस्ताने का उपयोग करें।
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4 साल में सोयाबीन का रकबा घटा, मक्का व मूंगफली का दोगुना हुआ
Soybean Crop | बता दें कि, दो साल से सोयाबीन के भाव कम मिलने और बारिश में फसल खराब होने की स्थिति में किसानों का सोयाबीन से मोह भंग हो रहा है। 4 साल में 27.45 फीसदी रकबा घटकर इस वर्ष 113220 हेक्टेयर रह गया है। 2022 में 156050 हेक्टेयर में बोया था। दूसरी तरफ मक्का व मूंगफली की तरफ रुझान बढ़ा है। इससे रकबा दोगुना हो गया है। 2022 में मक्का 13800 हेक्टेयर में था। 4 साल में बढ़कर इस बार 29350 हेक्टेयर हो चुका है।
जबकि मूंगफली का रकबा 5890 हेक्टेयर से बढ़कर 23800 हेक्टेयर पर पहुंचा गया है। खरीफ सीजन की बुवाई लगभग पूर्ण हो चुकी है। अधिकतर जगह फसल 20 दिन से 1 महीने की हो चुकी है। ऐसे में निंदाई-गुड़ाई लगभग पूर्ण हो चुकी है। किसान अब खरपतवार निकालने में लगे हैं। जहां देरी से बुवाई हुई है, वहां भी निंदाई-गुड़ाई अंतिम चरण में है। खरीफ सीजन के लिए दो बार प्रस्तावित क्योंकि रकबा बदलना पड़ा सोयाबीन (Soybean Crop) की बुवाई उम्मीद से बहुत कम की है।
कृषि विभाग ने शुरू में सोयाबीन का रकबा 1 लाख 28 हजार हेक्टेयर प्रस्तावित किया था। उसे कम कर 1 लाख 17 हजार हेक्टेयर किया है। किसानों ने इससे भी कम 1 लाख 13 हजार 220 हेक्टेयर में ही बुवाई की है। इससे पता चलता है कि किसानों की रुचि अब सोयाबीन (Soybean Crop) की तरफ कम हो लगातार कम हो रही है। मंडी में भाव कम मिलने और बारिश की गड़बड़ी, जलभराव व कीट प्रकोप से नुकसान होना प्रमुख कारण है।
इस साल संशोधन के बाद अंतिम अनुमानित कुल रकबा 170800 हेक्टेयर प्रस्तावित था। कृषि विभाग के अनुसार अब तक 98.63 प्रतिशत अर्थात 168465 हेक्टेयर में बुवाई पूर्ण हो चुकी है। पिछले साल 2024 खरीफ सीजन की फसलों की कुल 1 लाख 69 हजार 769 हेक्टेयर में ही बुवाई हुई थी।
किसान अब नफा- नुकसान समझने लगा किसान
Soybean Crop | अब फसल चयन को लेकर काफी सजग है। वह नफा-नुकसान को समझने लगा है। यही कारण है कि उसने प्रस्तावित रकबे से भी सोयाबीन कम बुवाई की है। दूसरी तरफ जिले में दो एथेनॉल की फैक्ट्री खुली है, ऐसे में किसान का रुझान मक्का की तरफ बढ़ा है। भाव व मांग की बात करें तो मक्का व मूंगफली के भाव में ज्यादा उतार-चढ़ाव नहीं है, लागत से अच्छे भाव मिल रहे हैं और मांग भी बरकरार है। खरीफ सीजन में 3-4 साल के दौरान बदलाव देखने को मिला है।
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