कृषि वैज्ञानिकों ने किया मंथन – ट्रांसजेनिक तकनीक से बढ़ेगी सोयाबीन में रोग प्रतिरोधक क्षमता, यह तकनीक क्या है एवं कैसे मिलेगा फायदा, जानें..

सोयाबीन की फसल में लागत कम करने और उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों के प्रयास जारी हैं, आईए देखते हैं Transgenic Technology का नया अपडेट..

Transgenic Technology | भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (ICAR) इंदौर ने रोगों से सोयाबीन की उपज में कमी की समस्याओं का प्रबंधन करने के लिए सोसाइटी फॉर सोयाबीन रिसर्च एंड डेवलपमेंट के साथ संयुक्त रूप से सोयाबीन में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने की रणनीतियाँ पर अंतर्राष्ट्रीय विचार-मंथन सत्र आयोजित किया।

इसमें देश-विदेश के कृषि वैज्ञानिकों ने भाग लिया सभी ने सोयाबीन की उपज बढ़ाने एवं लागत कम करने पर विचार किया। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है की लागत अधिक होने के कारण किसानों को सोयाबीन की फसल से फायदा नहीं हो रहा है।

कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि सोयाबीन की फसल में रोग प्रतिरोधी क्षमता अधिक विकसित हो जाएगी तो उपज में बढ़ोतरी होगी एवं लागत में भी कमी आएगी। Transgenic Technology

कृषि वैज्ञानिकों ने इसके लिए ट्रांसजेनिक तकनीक अपनाने पर जोर दिया।‌ यह तकनीक क्या है एवं मंथन के दौरान कौन-कौन सी बातें सामने आई, आइए जानते हैं..

कृषि वैज्ञानिकों ने सोयाबीन पर किया मंथन

मुख्य अतिथि शिक्षा एवं फसल विभाग के भूतपूर्व उपमहानिदेशक डॉ. सत्य प्रकाश तिवारी थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता भाकृअप के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ. तिलक राज शर्मा ने की। इस आयोजन में सहायक महानिदेशक ( तिलहन एवं दलहन ) एवं मंथन सत्र के सह अध्यक्ष डॉ. संजीव गुप्ता, संस्थान के निदेशक एवं विकास सोसायटी के अध्यक्ष डॉ. कुंवर हरेन्द्र सिंह, सचिव डॉ. महावीर प्रसाद शर्मा एवं डॉ. मिलिंद रत्नापरखे आदि उपस्थित थे । इस कार्यक्रम में संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिकों ने भाग लेकर जानकारी साझा की। Transgenic Technology

नई ट्रांसजेनिक तकनीक अपनाने पर दिया गया जोर

अमेरिका की इंडियाना स्टेट यूनिवर्सिटी के जीव विज्ञान विभाग के प्रतिष्ठित प्रोफेसर रोजर इन्स ने ‘डिकॉय इंजीनियरिंग’ नामक तंत्र का उपयोग करके भारतीय सोयाबीन की प्रमुख बीमारियों के लिए प्रतिरोध प्रदान करने के बारे में बात की। Transgenic Technology

उनके अनुसार, इस तरह की नई ट्रांसजेनिक तकनीक सोयाबीन में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद कर सकती है। डॉ. ऐनी ई. डोरेंस, प्रोफेसर एमेरिटस, प्लांट पैथोलॉजी विभाग, ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए ने बेहतर सोयाबीन के निर्माण पर व्याख्यान दिया।

डॉ. के. एच. सिंह ने ऑनलाइन माध्यम से सत्र में भाग लेने वालों का स्वागत करते हुए विभिन्न रोगों के संक्रमण द्वारा सोयाबीन की उपज में ठहराव और उससे ( 25-30 प्रतिशत) तक हानि होने पर अपनी चिंता व्यक्त की। Transgenic Technology

डॉ. सिंह ने अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना के अंतर्गत आयोजित बहु- स्थानीय परीक्षणों में प्राप्त 2.5 टन/ हेक्टेयर तक की उपज के स्तर के बारे में जानकारी दी।

ट्रांसजेनिक तकनीक क्या है, जानिए 

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक ट्रांसजेनिक तकनीक (Transgenic Technology) एक जैविक प्रक्रिया है। इस तकनीक के द्वारा सोयाबीन के जीन में बदलाव किया जाता है, ताकि यह अधिक प्रतिरोधक, उच्च उपज और बेहतर गुणवत्ता वाला हो।

इस तकनीक (Transgenic Technology) में, वैज्ञानिक सोयाबीन के जीन में एक नए जीन को डालते हैं जो कि कीटनाशकों और रोगों के प्रति प्रतिरोधकता प्रदान करता है। यह तकनीक सोयाबीन की खेती में कीटनाशकों और रोगों के प्रभाव को कम करने में मदद करती है।

ट्रांसजेनिक सोयाबीन को विकसित करने के लिए, वैज्ञानिक सोयाबीन के जीन में एक नए जीन को डालते हैं जो कि कीटनाशकों और रोगों के प्रति प्रतिरोधकता प्रदान करता है। यह जीन एक बैक्टीरिया से लिया जाता है जो कि कीटनाशकों और रोगों के प्रति प्रतिरोधक होता है।

ट्रांसजेनिक सोयाबीन के प्रकार

बीटी सोयाबीन : यह सोयाबीन का एक प्रकार है जो कि बीटी नामक जीन के कारण कीटनाशकों और रोगों के प्रति प्रतिरोधक होता है।

राउंडअप रेडी सोयाबीन : यह सोयाबीन का एक प्रकार है जो कि राउंडअप नामक कीटनाशक के प्रति प्रतिरोधक होता है।

ट्रांसजेनिक सोयाबीन के फायदे 

ट्रांसजेनिक तकनीक (Transgenic Technology) से सोयाबीन में कीटनाशकों और रोगों के प्रति प्रतिरोधकता उच्च होती है।

इस (Transgenic Technology) तकनीक के पश्चात सोयाबीन में उच्च उपज क्षमता विकसित होती है। इस तकनीक से सोयाबीन की गुणवत्ता में सुधार होता है। 

प्रोटीन के लिए सोयाबीन सबसे बेहतर विकल्प

इस अवसर पर डॉ. गुप्ता ने कहा कि देश को प्रोटीन निर्माण का केंद्र बनाने की दिशा में प्रगति होगी, जिसके लिए सोयाबीन सबसे अच्छा विकल्प है तथा इसकी उत्पादकता में वृद्धि नीति निर्माताओं के सपनों को साकार करेगी।

डॉ. तिवारी ने सोयाबीन वैज्ञानिकों से आग्रह किया कि वे सोयाबीन कृषक समुदाय के समग्र लाभ के लिए बुनियादी तथा मौलिक अनुसंधान कार्यक्रमों के अतिरिक्त मैदानी समस्याओं को सुलझाने वाले अनुसंधान पर भी ध्यान केन्द्रित करें।

डॉ. शर्मा ने वैज्ञानिकों से सोयाबीन में जैविक तनाव के प्रबंधन पर एक बड़ी परियोजना शुरू करने पर जोर दिया। उन्होंने सोयाबीन वैज्ञानिकों से जीडब्ल्यूएएस, क्यूटीएल मैपिंग, हैप्लोटाइप आधारित प्रजनन और मेजबान रोगजनक अंतः क्रिया अध्ययन जैसे नवीन अनुसंधान दृष्टिकोणों का उपयोग करने का आह्वान किया। Transgenic Technology

इस मौके पर डॉ. शर्मा ने नवनिर्मित मंडप परिसर का उद्घाटन किया तथा एग्री बिजनेस इन्क्यूबेशन केंद्र को देश की जनता के लिए समर्पित किया।

अनुसंधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर चर्चा की

प्राकृतिक संसाधन मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए ने भारत के साथ कृषि एवं प्राकृतिक संसाधन अनुसंधान में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर चर्चा की। डॉ. सारा थॉमस शर्मा, सहायक प्रोफेसर, प्लांट पैथोलॉजी एवं क्रॉप फिजियोलॉजी विभाग, लुइसियाना स्टेट यूनिवर्सिटी, यूएसए ने सोयाबीन रोगों के एकीकृत प्रबंधन में सुधार के लिए महामारी विज्ञान संबंधी ज्ञान अंतराल को संबोधित किया। Transgenic Technology

जापान की जिरकास संस्था के विशेषज्ञ तथा जैविक संसाधन और कटाई उपरांत प्रभाग के डॉ. प्रोफेसर के. मरेडिया, निदेशक (अंतर्राष्ट्रीय नाओकी यामानाका के अनुसार, एशियाई सोयाबीन रस्ट की समस्या को हल करने के लिए रस्ट प्रतिरोध के लिए प्रजाति – विशिष्ट प्रजनन प्रभावी और किफायती हो सकता है।

डॉ. वी. के. बरनवाल, राष्ट्रीय प्रोफेसर, प्लांट पैथोलॉजी प्रभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली ने भारत के विभिन्न सोयाबीन वायरल रोगों का पता लगाने और उनके निदान तथा उनके रोग प्रबंधन रणनीतियों के बारे में बात की। Transgenic Technology

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