तेज ठंड में गेहूं की निचली पत्तियां पीली पड़ रही है? जानें इसका कारण और कैसे करें प्रबंधन…

अत्यधिक सर्द मौसम में गेहूं की निचली पत्तियों (Wheat Crop) के पीले होने की समस्या एक गंभीर चुनौती हो सकती है। जानें इसका लक्षण और प्रबंधन…

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Wheat Crop | भारत में गेहूं की फसल मुख्य रूप से सर्दी के मौसम में उगाई जाती है, लेकिन अत्यधिक ठंड (5 डिग्री सेल्सियस के नीचे तापमान) की वजह से गेहूं की निचली पत्तियों का पीला होना एक सामान्य समस्या है।

यह स्थिति प्रकाश संश्लेषण में कमी और पौधों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। उत्तर भारत में यह समस्या 25 दिसंबर के आस पास ज़्यादा देखने को मिलती है।

यह उन खेतों में ज्यादा देखने को मिलती है जिसमें पराली जलाई गई होती है। क्योंकि पराली जलाने की वजह से उन खेतों की मिट्टी के अंदर मौजूद सूक्ष्मजीवों की संख्या में भारी कमी हो जाती है।

अगर आपकी गेंहू की फसल (Wheat Crop) में तेज ठंड से पत्तियां पीली पड़ रही है, तो आइए आपको बताते है इसका प्रबंधन कैसे कर पायेंगे…

गेहूं की निचली पत्तियों के पीले होने की समस्या

Wheat Crop | गेहूं की निचली पत्तियों के पीले होने की मुख्य वजह खेत के मिट्टी में पाए जानेवाले सूक्ष्मजीवों का अत्यधिक ठंड की वजह से छुट्टी पर चले जाने की वजह से होता है।

जब तापमान 5 डिग्री सेल्सियस से कम हो जाता है तो सूक्ष्मजीवों की क्रियाशीलता में भारी कमी आ जाती है। इन सूक्ष्मजीवों का मुख्य कार्य यह होता है कि मिट्टी के अंदर के घुलनशील पोषक तत्वों को घुलनशील रूप में परिवर्तित करके पौधों को उपलब्ध कराना है।

पौधों के अंदर के सूक्ष्मजीव (एंडोफाइट्स) उन पोषक तत्वों को पौधों के विभिन्न हिस्सों में पहुंचने का कार्य करते है। उपरोक्त वर्णित कार्य अत्यधिक ठंड की वजह से रुक जाता है। : Wheat Crop

इस समस्या को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए इसकी पहचान, कारण और उपायों को समझना अत्यंत आवश्यक है। अंत से लेकर 15 नवंबर के पहले) करें ताकि फसल ठंड के प्रतिकूल प्रभाव से बच सके।

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Wheat Crop | गेंहू की पत्तियां पीली पड़ने पर यह करें उपाय

सिंचाई प्रबंधन : खेत में जल-जमाव न होने दें। पहली सिंचाई 20 से 25 दिनों के बाद करें और इसके बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई करें।

पोषक तत्वों का समुचित प्रबंधन : बुवाई के समय नाइट्रोजन (यूरिया) की 1/3 मात्रा, फास्फोरस, और पोटाश का पूर्ण मात्रा में प्रयोग करें। दूसरी और तीसरी मात्रा क्रमशः पहली सिंचाई और दूसरी सिंचाई के समय दें।

जिंक और सल्फर का उपयोग : जिंक सल्फेट (25 किग्रा/हेक्टेयर) और सल्फर (20-25 किग्रा/हेक्टेयर) का उपयोग करें। नत्रजन एवं अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व का पत्तियों पर छिड़काव करें।

यदि समस्या गंभीर हो, तो 1 या 2% यूरिया (10 या 20 ग्राम यूरिया प्रति लीटर पानी में घोलकर) का छिड़काव करें। 5% मैग्नीशियम सल्फेट का छिड़काव पौधों को हरा-भरा रखने में मदद करता है। : Wheat Crop

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ठंड और पाले से बचाव : खेत में धुएं का प्रयोग करें ताकि तापमान को बढ़ाया जा सके। सिंचाई ठंड की रातों में करें ताकि पाले का प्रभाव कम हो।

रोग एवं कीट प्रबंधन : रोग प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें जैसे HD-2967, PBW-343 और WH-1105, जो पीली रस्ट और अन्य रोगों के प्रति सहनशील हैं।

फफूंदनाशकों का उपयोग : पीली रस्ट के लिए प्रोपिकोनेज़ोल (0.1%) का छिड़काव करें। जड़ गलन के लिए कार्बेन्डाजिम (0.2%) का उपयोग करें। बुवाई से पहले बीजों को ट्राइकोडर्मा या कार्बेन्डाजिम से उपचारित करें। : Wheat Crop

जैविक उपाय : जैविक खाद जैसे गोबर की खाद, वर्मीकंपोस्ट, और नीम की खली का उपयोग करें। रोग प्रबंधन के लिए ट्राइकोडर्मा और पीएसबी का उपयोग करें।

फसल अवशेष प्रबंधन : गेहूं की खेती से पहले खेत में पुराने फसल अवशेषों को कत्तई न जलाए क्योंकि खेत बंजर हो जाते हैं। पराली जलाने के बजाय उन्हें डीकंपोजर से सड़ाकर मिट्टी में मिला दें। यह मिट्टी की उर्वरता और रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है। : Wheat Crop

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