धान की फसल में उर्वरकों का संतुलित तरीके से प्रयोग करने से उत्पादन में बढ़ोतरी होगी, Advice for paddy crop देखें..
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Advice for paddy crop | देशभर में खरीफ सीजन के दौरान धान की खेती सबसे अधिक की जाती है।
धान की खेती के दौरान सबसे महत्वपूर्ण बात यह रहती है कि उर्वरकों का सही तरीके से संतुलित प्रयोग होना जरूरी है। उर्वरकों के संतुलित प्रयोग से उत्पादन में वृद्धि होती है।
वैसे तो उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर ही करना उपयुक्त है. यदि किसी कारणवश मृदा का परीक्षण ना हुआ तो उर्वरकों का प्रयोग कृषि विशेषज्ञों की सलाह पर किया जाना आवश्यक है।
धान की अलग-अलग वैरायटियों मैं उर्वरकों Advice for paddy crop का प्रयोग किस तरह से किया जाए आइए कृषि विशेषज्ञों से जानते हैं..
अधिक उपज देने वाली प्रजाति में इस प्रकार करें उर्वरकों का इस्तेमाल
अधिक उपज देने वाली प्रजाति शीघ्र पकने वाली प्रजातियों में NPK क्रमशः 120 ; 60 : 60 प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए।
प्रयोग विधि:- फास्फोरस व पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व तथा नाइट्रोजन कि एक तिहाई मात्रा कल्ले फूटते समय बनने की अवस्था पर टापड्रेसिंग द्वारा प्रयोग करें। – Advice for paddy crop
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मध्यम देर से पकने वाली धान में इस प्रकार करें इस्तेमाल
मध्य देर से पकाने वाली धान की फसल में NPK का इस्तेमाल क्रमशः 120 : 60 : 60 प्रति हेक्टेयर की मात्रा में करना चाहिए।
प्रयोग विधि:- फास्फोरस एवं पोटाश की मात्रा पूरी तथा नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा रोपाई के 7 दिनों के बाद एक तिहाई मात्रा कल्ले फूटते समय तथा एक तिहाई मात्रा वाली बनने की अवस्था पर टापड्रेसिंग द्वारा प्रयोग करें। Advice for paddy crop
सुगन्धित धान (बौनी) मैं ऐसे करें उर्वरक का इस्तेमाल
सुगन्धित धान (बौनी) वैरायटी Advice for paddy crop में कृषक साथी NPK क्रमशः 120 ; 60 : 60 प्रति हेक्टेयर का इस्तेमाल फास्फोरस एवं पोटाश की पूरी मात्रा रोपाई से पूर्व तथा नाइट्रोजन की एक तिहाई मात्रा रोपाई के 7 दिनों के बाद तथा एक तिहाई मात्रा कल्ले फूटते समय तथा एक तिहाई मात्रा बाली बनने की अवस्था पर टापड्रेसिंग द्वारा प्रयोग करें।
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धान की फसल को खैरा रोग से बचाए
Advice for paddy crop उर्वरकों उचित प्रबंधन के साथ-साथ धान की फसल को रोगों से बचना जरूरी है धान की फसल को खैरा रोग सबसे अधिक नुकसान करता है।
खैरा रोग धान मे लगने वाला एक रोग है। इसमें पत्तियों पर हल्के पीले रंग के धब्बे बनते है जो बाद मे कत्थई रंग के हो जाते है। पौधा बोना रह जाता है। वयात कम हो जाती है प्रभावित पौधों की जड़े भी कत्थई रंग की हो जाती है।
यह रोग मिट्टी मे जस्ते की कमी के कारण होता है। यह रोग उत्तर प्रदेश कि तराई धान की खेती के लिए सन 1955 से ही एक समस्या बना हुआ है।
उत्तर भारत के अन्य तराई क्षेत्रों मे भी यह बीमारी पाई जाती है। अब यह रोग भारत के प्रदेशों जैसे- आंध्र प्रदेश, पंजाब एवं बंगाल आदि मे पाया जाता है।
इसकी रोकथाम के लिए फसल पर 5kg जिंक सल्फेट 2.5kg बुझे हुए चूने के साथ 1000 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति हेक्टेयर (क्रमशः 100 gm एवं 40gm प्रति नाली) छिड़काव करना चाहिए। पौधशाला मे उपरोक्त के दो छिड़काव बुवाई के 10 तथा 20 दिन बाद करने चाहिए। Advice for paddy crop
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