अब पराली और नाड़ जलाने की जरूरत नहीं, जीरो बजट पर पराली से बना पेस्टीसाइड मारेगा कीट

Agriculture news : फसल के अवशेष के “ब्राउन गोल्ड’ और नीम के मिश्रण से बना पेस्टीसाइड मारेगा कीट, मार्केट से मिलेगा सस्ता, जानें पूरी प्रक्रिया..

Agriculture news | हमारे देश में हरियाणा, पंजाब सहित कई इलाकों में हर साल पराली जाती है। यही कारण है की, हरियाणा – पंजाब में एक्यूआई (air quality index) लगातार घटते जाता है। धान की पराली और गेहूं की नाड़! किसानों से लेकर सरकार तक के लिए सिरदर्द है। मजबूरन के कारण अधिकतर किसान खेत की पराली जलाते है। सरकार इन्हें जागरूक करने से लेकर जुर्माना तक लगाती है, पर कोई स्थायी हल नहीं निकलता।

लेकिन हमारे देश के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सॉल्यूशन निकाला है। जिससे अब किसानों को पराली जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। साथ ही पराली से पेस्टिसाइड भी बना सकते है। जिसका उपयोग किसान अपने खेतों में कीट मारने के लिए एवं बाजार में बेचकर तगड़ा मुनाफा भी कमा सकता है। पराली एवं नाड़ Agriculture news से बना पेस्टिसाइड बहुत ही कम कीमत में बनकर तैयार हो जाएगा। तो आइए जानें, कैसे बनता है पराली से पेस्टिसाइड एवं किसानों को क्या-क्या लाभ होगा।

पराली न जलाने से पर्यावरण साफ होगा

Agriculture news पराली से कीटनाशक बनाने की इस तकनीक को मोहाली के सेंटर ऑफ इनोवेटिव एंड अप्लाइड बायोप्रोसेसिंग (सीआईएबी) की डॉ जयीता भौमिक और उनकी टीम ने दो साल में तैयार किया है। इस नैनो बायो पेस्टीसाइड की टेक्नोलॉजी का पेटेंट फाइल हो चुका है और टेक्नोलॉजी को ट्रांसफर किया जा चुका है।

बता दे की, पराली और नाड़ के “ब्राउन गोल्ड’ और नीम के मिश्रण से बना पेस्टीसाइड फसलों पर लगने वाले कीटों से निजात दिलाएगा, वह भी मार्केट में मिलने वाले कीटनाशकों से सस्ते दाम पर। इस बायो पेस्टिसाइड से स्वच्छ पर्यावरण होगा। जानकारी के लिए बता दे की, पिछले 2 सालो में पंजाब में 51 मिलियन टन और हरियाणा में 22 मिलियन टन पराली और नाड़ निकली है, यदि यह नहीं जलेगी तो पर्यावरण साफ रहेगा।

पराली किसे कहते है? – गेंहू एवं धान की कटाई के बाद Agriculture news बचे हुए अवशेषों को आग लगाने की प्रक्रिया को पराली जलाना कहा जाता है। यह मार्च और अप्रैल में मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में एक आम बात है।

किसानों को मजबूरन जलानी पड़ती है पराली

Agriculture news किसानों को मजबूरन पराली जलानी पड़ती है। धान-गेहूं अवशेष को किसान इसलिए आग लगाते हैं क्योंकि उन्हें अगली फसल के लिए जल्दबाजी होती है। इससे पर्यावरण के नुकसान तो होता ही है, मिट्टी कमजोर होने से पैदावार में कमी आती है। लेकिन अब किसान उसी पराली से पेस्टिसाइड बना सकेगा।

साथ ही साथ आपको बताते चले की, भारतीय गेंहू एवं जौ अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक ने एक नई मशीन तैयार की है। जिसका नाम है रोटरी डिस्क ड्रिल मशीन। इस मशीन का इस्तेमाल करने पर भी किसानों को पराली नही जलानी पड़ेगी। पूरी खबर पढ़ने या रोटरी डिस्क ड्रिल मशीन के बारे में जानने के लिए क्लिक करें..

ब्राउन गोल्ड एवं नीम के मिश्रण से बना पेस्टिसाइड कई कीटों पर कामयाब

Agriculture news सीआईएबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक बताते है कि इस तकनीक के जरिए पराली और नाड़ के हल के साथ किसानाें की आय बढ़ेगी और पर्यावरण भी लाभ मिलेगा। इसका उपयोग नैनो बायो फर्टिलाइजर में भी कामयाब है। कंपनी के साथ फील्ड ट्रायल शुरू हो चुके हैं।

धान व गेहूं के अवशेष से मिलने वाले “लिगनिन’ यानी “ब्राउन गोल्ड’ और नीम के उपयोग से इसे बनाया है। लिगनिन की प्रवृत्ति पॉलिफेनोलिक है जिसको कई जगह उपयोग किया जा रहा है। इसका उपयोग बायोमेडिकल सहित कई एरिया में हो सकता है। वातावरण के लिए भी अनुकूल है।

इसकी कामयाबी देखने के बाद इसका पेटेंट भी फाइल कर दिया गया। नीम का उपयोग पहले भी कई कीटों Agriculture news पर कामयाब है। लेकिन नीम के सॉल्युशन में दिक्कत ये है कि ज्यादा समय तक नहीं टिकता और ज्यादा धूप या बारिश में प्रभाव खत्म हो जाता है। लेकिन लिगनिन और नीम के कांबिनेशन में इस तरह की दिक्कतें नहीं है। फील्ड ट्रायल के बाद कंपनी इसकाे बाजार में उतारेगी।

देश में 550 लाख टन निकलता है फसल का अवशेष

नेशनल पॉलिसी फॉर मैनेजमेंट ऑफ क्रॉप रेसिड्यू के के मुताबिक, देश में लगभग 550 लाख टन Agriculture news फसल का अवशेष निकलता है। इसमें धान, गेहूं, मक्का, बाजरा का योगदान 70 फीसदी माना जाता है जबकि अकेले धान की पराली का योगदान 34 फीसदी है। पंजाब में 51 मिलियन टन और हरियाणा में 22 मिलियन टन अवशेष निकलते हैं। यूपी में ये समस्या और भी ज्यादा है। वहां पर 60 मिलियन टन फसल का अवशेष निकलता है।

रिसर्च के मुताबिक, धान की 1 टन पराली जलाने से 5.5 किलो नाइट्रोजन, 2.3 किलोग्राम फासफोरस, 25 किलो पोटाशियम, 1.2 किलो सल्फर और ऑर्गेनिक कार्बन का नुकसान होता है। आग लगाने के कारण भूमि की गर्मी से फायदेमंद सॉयल ऑर्गनिज्म भी मर जाते हैं। इससे बचाव के लिए सरकारें कई तरह के प्रयास कर रही हैं, Agriculture news लेकिन इसका समाधान नहीं निकाल पा रही थीं।

धान नहीं करने किसानों को मिलेंगे 7 हजार रुपये

Agriculture news हरियाणा के कृषि मंत्री ने अपने बयान में कहा गया कि हरियाणा सरकार अधिक पानी की लागत वाली धान की खेती नहीं करने पर किसानों को 7,000 रुपये प्रति एकड़ की दर से प्रोत्साहन राशि प्रदान कर रही है।

पराली जलाए जानें को लेकर केंद्र सरकार ने उठाया यह कदम

कृषि मंत्री तोमर ने कहा, मौजूदा सत्र में पराली जलाने को पूरी तरह बंद करने की दिशा में काम करने का लक्ष्य है। Agriculture news उन्होंने बयान में कहा कि केंद्र चार राज्यों को फसल अवशेष प्रबंधन योजना (crop residue management yojana) के तहत पर्याप्त धनराशि प्रदान कर रहा है। राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसानों को समय पर मशीन मिल सके। उन्होंने कहा कि मशीनों के समुचित उपयोग और बायो-डीकंपोजर (Bio-Decomposer) के उपयोग को सुनिश्चित करने की जरूरत है।

पराली के व्यावसायिक उपयोग पर फोकस

तोमर ने आगे कहा कि धान की पराली के व्यावसायिक उपयोग पर भी ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। उन्होंने इस बारे में किसानों को जागरूक करने पर भी जोर दिया। उन्होंने बैठक में कहा कि धान की पराली जलाने की घटनाओं में लगातार कमी आ रही है। Agriculture news पराली जलाने से सिर्फ वायु प्रदूषण ही नहीं फैसला है, बल्कि मिट्टी के स्वास्थ्य और उसकी उर्वरता पर भी हानिकारक प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि धान के भूसे के स्थानीय प्रबंधन को प्रोत्साहित करने की जरूरत है, जिससे बिजली, जैव द्रव्यमान जैसे उद्योगों को कच्चा माल मिल सकता है।

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