हरियाणा के झज्जर जिले के रहने वाले किसान गेंहू की खेती से कम लागत में कमा रहे बंपर मुनाफा। आइए इनकी सफलता की कहानी (Farmer Success Story) के बारे में विस्तार से जानते हैं…
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Farmer Success Story | आमतौर पर किसान पारंपरिक रूप से खेती करते आ रहे है। अधिकतर किसान अपनी फसल की पैदावार बढ़ाने के लिए उसमें रसायनिक उर्वरक सहित अन्य कीटनाशकों का इस्तेमाल करते है।
लेकिन वही कुछ किसान ऐसे भी है जो बिना रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल कर अच्छी उपज निकाल रहे है। आज हम ऐसे ही एक किसान के बारे में बात करने वाले है, जो प्राकृतिक खेती से अच्छा मुनाफा कमा रहे है।
चौपाल समाचार के इस आर्टिकल में आपको मिलवाते है हरियाणा के झज्जर जिले के ढाणा गांव के रहने वाले प्रगतिशील किसान अनिल कुमार के बारे में। : Farmer Success Story
प्रगतिशील किसान अनिल कुमार को प्राकृतिक खेती से प्रति एकड़ 10 से 17 क्विंटल गेहूं की उपज मिलती है और इस गेहूं की कीमत 5000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलती है। वह आज दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। आइए विस्तारपूर्वक जानते है इनकी सफलता का राज…
प्रति एकड़ 10 से 17 क्विंटल गेहूं की उपज मिलती है : किसान अनिल कुमार
Farmer Success Story | हरियाणा के झज्जर जिले के ढाणा गांव के रहने वाले प्रगतिशील किसान अनिल कुमार ने अपनी मेहनत, समर्पण और प्राकृतिक खेती की पद्धतियों से न केवल अपनी खेती को सफल बनाया है, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा स्रोत बने हैं।
उनके अनुसार, प्राकृतिक खेती से उन्हें प्रति एकड़ 10 से 17 क्विंटल गेहूं की उपज मिलती है और इस गेहूं की कीमत 5000 रुपये प्रति क्विंटल तक मिलती है।
खास बात यह है कि अनिल कुमार के गेहूं में किसी भी प्रकार के केमिकल का उपयोग नहीं होता, जिसके कारण उनकी फसल की गुणवत्ता बहुत ही उच्च होती है। : Farmer Success Story
अगर वह इसे प्रोसेसिंग करके दलिया, आटा या सूजी बनाते हैं, तो यह 7000 रुपये प्रति क्विंटल तक या उससे अधिक कीमत पर बिक जाती है। अनिल कुमार की सफलता की कहानी प्राकृतिक खेती के प्रति उनके दृष्टिकोण और उनकी कठिन मेहनत का परिणाम है।
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2015 में शुरू की थी प्राकृतिक खेती
Farmer Success Story | बता दें की, प्रगतिशील किसान अनिल कुमार ने 2015 में प्राकृतिक खेती की शुरुआत की थी। उनके अनुसार, कृषि रसायनों का उपयोग न केवल मिट्टी की उर्वरता को कम करता है, बल्कि फसलों की गुणवत्ता और किसानों की सेहत पर भी नकारात्मक असर डालता है।
इसीलिए उन्होंने प्राकृतिक तरीके से खेती करने का विचार किया। प्राकृतिक खेती के सबसे महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है देसी बीज। अनिल कुमार के अनुसार, “देसी बीज के बिना प्राकृतिक खेती संभव नहीं है। : Farmer Success Story
“उन्होंने प्राकृतिक खेती में देसी किस्म के बीजों का इस्तेमाल शुरू किया और उनके परिणाम बहुत अच्छे रहे। इन बीजों ने न केवल उच्च गुणवत्ता वाली फसल दी, बल्कि कीमत भी अच्छी मिली।
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प्राकृतिक खेती में जैविक खाद का उपयोग
Farmer Success Story | प्राकृतिक खेती में अनिल कुमार विभिन्न जैविक पदार्थों का उपयोग करते हैं। जीवामृत, घन जीवामृत, सरसों का खल, खट्टी लस्सी, उपले का पानी और गोबर खाद जैसे जैविक उर्वरकों का वह नियमित रूप से प्रयोग करते हैं।
इनका उद्देश्य मिट्टी की गुणवत्ता को बनाए रखना और फसलों की वृद्धि को बढ़ावा देना है। इसके अलावा, उनका कहना है कि प्राकृतिक खेती में पानी का भी एक महत्वपूर्ण स्थान है। : Farmer Success Story
वह अपनी फसल को सिंचाई करते वक्त क्यारी बनाकर संतुलित मात्रा में पानी देते हैं, जिससे पानी की बर्बादी नहीं होती और फसल को सही मात्रा में पोषण मिलता है।
इस तरह करते है गेंहू की बुवाई; गेहूं की बुवाई का तरीका
Farmer Success Story | प्रगतिशील किसान अनिल कुमार की गेहूं की खेती में एक विशेष तरीका है। वह रबी सीजन में अपनी अधिकांश जमीन पर गेहूं की खेती करते हैं। गेहूं की बुवाई के लिए वह पहले खेत में सिंचाई करते हैं।
इसके बाद, जब मिट्टी की उपरी परत में नमी थोड़ी कम हो जाती है, तो वह बुवाई करते हैं। उनके अनुसार, यह तरीका इस लिए फायदेमंद है क्योंकि अनावश्यक खरपतवार इस तरीके से उगते नहीं हैं और गेहूं की जमवार भी अच्छी होती है। : Farmer Success Story
गेहूं की बुवाई के बाद, वह अपनी फसल की देखभाल में भी कोई कसर नहीं छोड़ते। वह समय-समय पर फसल का निरीक्षण करते हैं और किसी भी प्रकार के रोग या कीटों के प्रभाव को रोकने के लिए जैविक तरीकों का प्रयोग करते हैं। उनका यह तरीका न केवल खेती के खर्चे को कम करता है, बल्कि यह पर्यावरण के लिए भी बहुत फायदेमंद है।
खाद और उर्वरक जैविक तरीके से तैयार करते हैं
Farmer Success Story | प्राकृतिक खेती में अनिल कुमार का कहना है कि मेहनत थोड़ी अधिक लगती है, लेकिन लागत बहुत कम होती है। वह अपने खेतों में केमिकल्स का इस्तेमाल नहीं करते और सभी खाद और उर्वरक जैविक तरीके से तैयार करते हैं, जिससे उनकी खेती की लागत बहुत कम रहती है।
प्राकृतिक खेती के इस तरीके से न केवल मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है, बल्कि पर्यावरण पर भी इसका सकारात्मक असर पड़ता है। उनके अनुसार, “प्राकृतिक खेती में मेहनत अधिक होती है, लेकिन यह ज्यादा लाभकारी है, क्योंकि इसमें लागत कम आती है और फसल की गुणवत्ता बेहतर होती है।” : Farmer Success Story
अनिल कुमार ने यह भी बताया कि प्राकृतिक खेती करने के बावजूद उनके पास अधिक लाभ आता है क्योंकि रासायनिक खेती में होने वाली लागत से बचत होती है।
उनके पास 5 एकड़ जमीन है, और इस जमीन पर वह प्राकृतिक खेती के साथ-साथ अपनी फसलों की प्रोसेसिंग भी करते हैं। जब वह गेहूं को आटा, दलिया या सूजी में परिवर्तित करते हैं, तो उन्हें इनकी बिक्री से अधिक लाभ मिलता है। : Farmer Success Story
सफलता की ओर कदम
अनिल कुमार की सफलता का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि उन्होंने अपने क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की अवधारणा को फैलाने का काम भी किया है। वह समय-समय पर किसानों को अपनी खेती के तरीकों के बारे में बताते हैं और उन्हें प्राकृतिक खेती की ओर प्रोत्साहित करते हैं।
वह अपने अनुभवों को साझा करते हुए कहते हैं, “प्राकृतिक खेती से हम न केवल अपनी सेहत को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि पर्यावरण को भी बचा सकते हैं। यह खेती का सबसे स्थायी तरीका है। : Farmer Success Story
“अनिल कुमार की सफलता में उनके प्रयोगों का बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने हर नई तकनीक को अपनाया और उसे अपने खेतों में आजमाया। हर एक प्रयोग के साथ उन्हें नई जानकारी मिली, जो उनकी खेती को और अधिक लाभकारी बनाती गई।
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