Garmi mein Mungfali ki Kheti: मूंगफली की खेती का उन्नत तरीका क्या है ? इससे कमाई कितनी होगी, जानें सब कुछ.
Garmi mein Mungfali ki Kheti | तिलहन फसलों में मूंगफली का अपना एक विशिष्ट स्थान है। मूंगफली के दाने एवं इसके तेल की बाजार में डिमांड पूरे साल भर रहती है। मूंगफली के बीज में 45 प्रतिशत तेल तथा 26 प्रतिशत प्रोटीन की मात्रा पायी जाती है। इस फसल को भारतीय काजू भी कहा जाता है। जो हमारे शरीर के लिए काफी लाभदायी होते हैं।
रबी फसल की कटाई का काम अब समाप्त हो गई है। इसके बाद किसान साथी जायद की फसल में मूंगफली बो कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है। वैसे तो मूंगफली की खेती पूरे साल भर (रबी, खरीफ एवं जायद) में बो सकते है। लेकिन आज हम आपको यहां चौपाल समाचार के इस लेख के माध्यम से Garmi mein Mungfali ki Kheti के बारे में उचित जानकारी देने जा रहे है, तो आइए जानें..
भारत में कहां होती है मूंगफली की खेती (Where is groundnut cultivated in India) ?
Garmi mein Mungfali ki Kheti मूंगफली की खेती मुख्यत: गुजरात, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडू और कर्नाटक राज्यों में सबसे अधिक उगाई जाती है। इसके अलावा मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान और पंजाब में भी इसकी खेती की जाती है।
गर्मी में मूंगफली की खेती के लिए भूमि एवं जलवायु (Land and climate for groundnut cultivation in summer)
मूंगफली की फसल के लिए के लिए जलवायु – मूंगफली की फसल के लिए अद्र्ध उष्ण जलवायु उत्तम है। फसल की अच्छी पैदावार के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा 500 से 1000 मिलीमीटर वर्षा को अच्छा माना गया है।
मूंगफली की फसल के लिए भूमि / मिट्टी – वैसे तो Garmi mein Mungfali ki Kheti किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसकी खेती के लिये दोमट, बलुआर दोमट या हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है। जो हल्की अम्लीय रहती है जिसका pH मान 6.0 से 6.5 के बीच होना चाहिए। ऐसी मिट्टी में किसानों को बेहतर उत्पादन मिलेगा।
Garmi mein Mungfali ki Kheti की बुवाई करने से पहले खेत की अच्छी तरह से दो से तीन जुताई कल्टीवेटर से करके मिट्टी को भुरभुरा बना लें। इसके बाद पाटा लगाकर खेत को समतल कर लें। अब बुवाई के लिए कम अवधि में पकने वाली गुच्छेदार प्रजातियों का चयन करें जिसमें डीएच 86, आर-9251, आर 8808 आदि किस्मों का चयन किया जा सकता है। ध्यान रखें बीज का चयन रोग रहित उगाई गई फसल से करें। ग्रीष्मकालीन मूंगफली के लिए 95-100 किग्रा की दर से बीज दर प्रति हेक्टेयर उपयोग करें।
बुवाई का तरीका
Garmi mein Mungfali ki Kheti की बुवाई 5 मार्च से 30 मार्च तक कर लेनी चाहिए। देरी से बुवाई करने पर बारिश शुरू होने की स्थिति में खुदाई के बाद इसकी फलियों के सूखने की समस्या रहती है। बुवाई से पहले बीजों को उपचारित किया जाना बेहद जरूरी है। इससे फसल में कीट व बीमारियां कम लगती है। मूंगफली के बीज को बोने से पूर्व थायरम 2 ग्राम+ कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम प्रति किलो बीज दर से उपचारित कर लें।
फफूंदीनाशक दवा से उपचार के बाद 1 पैकेट राइजोबियम कल्चर को 10 किग्रा बीज में मिलाकर उपचार कर लें। इसके बाद खेत में पर्याप्त नमी के लिये पलेवा देकर जायद में मूंगफली की बुवाई करें। यदि खेत में नमी उचित नहीं होगी तो Garmi mein Mungfali ki Kheti का जमाव अच्छा नहीं होगा। बुवाई 25-30 सेमी की दूरी पर देशी हल से खोले गये कूंडों में 8-10 सेमी की दूरी कर करें। बुवाई के बाद खेत में क्रास लगाकर पाटा लगा दें।
बुवाई के दौरान ध्यान रखने वाली बातें
- किस्मों तथा मौसम के अनुसार खेत में पौधों की संख्या में अंतर रखा जाता है।
- झुमका किस्मों के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें।
- फैलने वाली किस्मों में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 से 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 से 15 सेंटीमीटर रखें।
- रबी या जायद मौसम में प्रति इकाई क्षेत्र में खरीफ मौसम की तुलना में पौधों की अधिक संख्या रखें।
- Garmi mein Mungfali ki Kheti की बुवाई सीड ड्रिल द्वारा करनी उपयोगी रहती है, क्योंकि कतार से कतार और बीज से बीज की दूरी संस्तुति अनुसार आसानी से कायम की जा सकती है और इच्छित पौधों की संख्या प्राप्त होती है।
- यदि संभव हो मूंगफली की बुवाई मेंड़ों पर करें।
- बीज की बुवाई 4 से 6 सेंटीमीटर की गहराई पर करने से अच्छा अंकुरण प्रतिशत मिलता है।
खाद एवं उर्वरक
Garmi mein Mungfali ki Kheti के लिए यूरिया 45 किलो, सिंगल सुपर फास्फेट 150 किलो व म्यूरेट ऑफ पोटाश 60 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। मूंगफली में नत्रजन की अधिक मात्रा का उपयोग न करें अन्यथा यह मूंगफली की पकने की अवधि बढ़ा देगा।
मूंगफली की खेती में सिंचाई कब करें
पलेवा देकर बुवाई करें। इसके बाद पहली सिंचाई 20 दिन बाद करें। दूसरी सिंचाई 30-35 दिन पर तीसरी सिंचाई 50-55 दिन पर करें। रबी या जायद मौसम की फसल में 10 से 15 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार फसल की सिंचाई की जा सकती है।
जहां पानी की कमी हो वहां पर फूल आने, नस्से बैठते समय, फूल बनते समय तथा दाना बनते समय फसल की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। ध्यान रखें जहां पानी की कमी के कारण फसलों Garmi mein Mungfali ki Kheti की पैदावार में भारी कमी आती है। वहीं अधिक पानी अधिक देर तक खेत में जमा रहने से भी फसलों को भारी नुकसान पहुंचता है। इसलिए खेत में जहां पर अधिक पानी एकत्रित होने की संभावना हो, वहां जल निकासी का उचित प्रबंध करें।
मूंगफली की खुदाई कब करें ?
मूंगफली में जब पुरानी पत्तियां पीली पडक़र झडऩे लगें, फली का छिलका कठोर हो जाए, फली के अंदर बीज के ऊपर की परत गहरे गुलाबी या लाल रंग की हो जाए तथा बीज भी कठोर हो जाए तो Garmi mein Mungfali ki Kheti की कटाई कर लेनी चाहिए। कटाई के बाद पौधों को सुखाएं और बाद में फलियां अलग करें।
फलियों को अलग करने के बाद फिर से सुखाएं ताकि उनमें नमी की मात्रा 8 प्रतिशत रह जाए। फसल की कटाई में देरी होने से फसल का पैदावार और गुणवत्ता दोनों पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए समय पर इसकी कटाई कर लेनी चाहिए। खुदाई के बाद फलियों को अच्छी तरह साफ कर लें। अगर हो सके तो फलियों को आकार के हिसाब से वर्गीकरण कर लें, जिससे मंडी में उत्पाद के अच्छे दाम मिल सकें।
मूंगफली की फसल पैदावार एवं इससे होने वाली कमाई – Garmi mein Mungfali ki Kheti
मूंगफली की खेती की उन्नत तकनीकों को अपनाकर मूंगफली की खरीफ की फसल से 18 से 25 क्विंटल और रबी या जायद की फसल से 20 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
अब बात करें इसकी विक्रय से होने वाले लाभ की तो वर्तमान में देश की विभिन्न मंडियों में मूंगफली का न्यूनतम भाव 3550 रुपए तथा अधिकतम भाव 6512 रुपए प्रति क्विंटल Garmi mein Mungfali ki Kheti तक चल रहा है। बता दें कि मंडियों में मूंगफली का भाव उसमें नमी की मात्रा, दाने का आकार और तेल की मात्रा के आधार पर ही उसकी कीमत मिलती है।
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