आइए जानते हैं खरपतवार के नियंत्रण Kharpatwar nashak dawai ki jankari के लिए कौन सी दवाइयों का इस्तेमाल करना उचित रहेगा..
Kharpatwar nashak dawai ki jankari : खरीफ सीजन शुरू हो चुका है। खरीफ सीजन में सोयाबीन की खेती सबसे ज्यादा होती है। किसान बुवाई के कार्य से निपट चुके हैं। किसान सोयाबीन की बुवाई करने के बाद अब खरपतवार नियंत्रण में लग गए हैं।
कई किसानों ने सोयाबीन की बुवाई के पहले खरपतवार नियंत्रण के लिए दवाइयों का इस्तेमाल किया वही कब कई किसान स्वयं की फसल 10 से 15 दिन की अवधि होने के पश्चात अब खरपतवार नियंत्रण के लिए दवाइयों का इस्तेमाल करने वाले हैं। चौपाल समाचार के इस लेख के माध्यम से हम जानेंगे की खरपतवार नाशक Kharpatwar nashak dawai ki jankari के लिए कौन-कौन सी दवाइयां इस्तेमाल की जाना उचित रहेगा। सर्वप्रथम यह जानते हैं कि खरपतवार क्या है एवं कितने प्रकार का होते है।
खरपतवार क्या है एवं कितने प्रकार के होते हैं, जानिए
फसलों के साथ उगने वाले अवांछित पौधों को Kharpatwar nashak dawai ki jankari कहा जाता है, खरपतवार अपने आप खेत में उगते हैं एवं तेजी से बढ़ते हैं। जिसके कारण फसल को काफी नुकसान करते हैं। समय रहते यदि उनका नियंत्रण नहीं किया जाता है तो यह खेत के तमाम पोषक नष्ट कर देते हैं। रबी एवं खरीफ की फसल में अलग-अलग प्रकार के खरपतवार उगते हैं। प्रमुखत: खरपतवार तीन प्रकार के होते हैं:–
1- सकरी पत्ती वाले खरपतवार – घास कुल के खरपतवारों की पत्तियाँ पतली एवं लम्बी होती हैं तथा इन पत्तियों के अंदर समांतर धारियां पाई जाती हैं। यह एक बीज पत्री पौधे होते हैं जैसे सांवक (इकाईनोक्लोआ कोलोना) तथा कोदों (इल्यूसिन इंडिका) इत्यादि।
2- चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार – इस प्रकार के खरपतवार की पत्तियाँ प्राय: चौड़ी होती हैं तथा यह मुख्यत: दो बीजपत्रीय पौधे होते हैं जैसे महकुंआ (अजेरेटम कोनीजाइडस), जंगली चौलाई (अमरेन्थस बिरिडिस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अजरेन्सिया), जंगली जूट (कोरकोरस एकुटैंन्गुलस), बन मकोय (फाइ जेलिस मिनिगा), ह्जारदाना (फाइलेन्थस निरुरी) तथा कालादाना (आइपोमिया स्पीसीज) इत्यादि।
3- मोथा खरपतवार – इस परिवार के खरपतवारों की पत्तियाँ लंबी तथा तना तीन किनारे वाला ठोस होता है। जड़ों में गांठे (ट्यूबर) पाए जाते हैं जो भोजन इकट्ठा करके नए पौधों को जन्म देने में सहायक होते हैं जैसे मोथा (साइपेरस रोटन्ड्स, साइपेरस) इत्यादि।
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👉सोयाबीन की बोवनी के बाद अब किसान साथी खरपतवार नियंत्रण के लिए यह उपाय अपनाए
सोयाबीन को खरपतवारों से यह होता है नुकसान
सोयाबीन की फसल Kharpatwar nashak dawai ki jankari वर्षा ऋतु में बोई जाती है। वर्षा ऋतु में उच्च तापमान एवं अधिक नमी खरपतवार की बढ़ोतरी में सहायक है। अत: यह आवश्यक हो जाता है कि उनकी बढ़ोतरी रोकी जाए जिससे फसल को बढ़ने के लिए अधिक से अधिक जगह, नमी, प्रकाश एवं उपलब्ध पोषक तत्व मिल सके।
सोयाबीन के खरपतवारों Kharpatwar nashak dawai ki jankari को नष्ट न करने से उत्पादन में लगभग 25 से 70 प्रतिशत तक की कमी हो सकती है। इसके अलावा खरपतवार फसल के लिए भूमि में निहित खाद एवं उर्वरक द्वारा दिए गए पोषक तत्वों में से 30-60 किग्रा. नाइट्रोजन, 8-10 किग्रा. फास्फोरस एवं 40-100 किग्रा. पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से शोषित कर लेते हैं। इसके अतिरिक्त खरपतवार फसल को नुकसान पहुँचाने वाले अनेक प्रकार के कीड़े मकोड़े एवं बीमारियों के रोगाणुओं को भी आश्रय देते हैं।
सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण का उचित समय
कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि सोयाबीन की फसल जहां 15-20 दिन Kharpatwar nashak dawai ki jankari की हो गई है और अभी तक किसी भी प्रकार के खरपतवारनाशक का प्रयोग नहीं किया है, उन किसानों को सलाह दी जाती है कि के लिये अनुशंसित खड़ी फसल में उपयोगी खरपतवार नाशक का उपयोग करें।
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार फसलों में खरपतवार Kharpatwar nashak dawai ki jankari जैसे ही उगते हैं तभी उनका निदान/नियंत्रण करना आवश्यक होता है, क्योंकि जैसे जैसे हरकत में बढ़ते जाते हैं वैसे वैसे फसलों को नुकसान पहुंचाने लगते हैं। सोयाबीन के पौधे प्रारंभिक अवस्था में खरपतवारों से मुकाबला नहीं कर सकते। अत: खेत को उस वक्त खरपतवार रहित रखना आवश्यक होता है।
यहां पर यह भी बात ध्यान देने योग्य है कि फसल को हमेशा न तो खरपतवार मुक्त रखा जा सकता है और न ही ऐसा करना आर्थिक दृष्टि से लाभकारी है। अत: क्रांन्तिक (नाजुक) अवस्था विशेष पर निदाई करके खरपतवार Kharpatwar nashak dawai ki jankari मुक्त रखा जाए तो फसल का उत्पादन अधिक प्रभावित नहीं होता है। सोयाबीन में यह नाजुक अवस्था प्रारंभिक बढ़वार के 20-45 दिनों तक रहती है।
खरपतवार नियंत्रण के लिए कौन सी दवाई इस्तेमाल करें
खरपतवार नियंत्रण Kharpatwar nashak dawai ki jankari के लिए जिन रसायनों का प्रयोग किया जाता है उन्हें खरपतवारनाशी (हरबीसाइड) कहते हैं। रासायनिक विधि अपनाने से प्रति हेक्टेयर लागत कम आती है तथा समय की भारी बचत होती है लेकिन इन रसायनों का प्रयोग करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि इनका प्रयोग उचित मात्रा में उचित ढंग से तथा उपयुक्त समय पर हो अन्यथा लाभ की बजाय हानि की संभावना रहती है।
जिन्होंने बोवनी पूर्व या बोवनी के तुरंत बाद उपयोगी खरपतवार नाशकों का अभी तक प्रयोग नहीं किया है, सलाह है कि अनुशंसित कीटनाशकों Kharpatwar nashak dawai ki jankari के साथ संगतता पाए जाने वाले वाले निम्न खरपतवार नाशक एवं कीटनाशकों में से किसी एक को मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है। सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण के लिए यह दवाई डालें :–
- कीटनाशक : क्लोरइंट्रानिलिप्रोल 18.5 एस.सी. (150 मिली /हे) या क्विनाल्फोस 25 ई.सी (1 ली/हे) या इन्डोक्साकर्ब 15.8 एस.सी (333 दम.ली./हे)।
- खरपतवारनाशक: इमाज़ेथापायर 10 एस.एल (1 ली/हे) या क्विजालोफोप इथाइल 5 ई.सी (1 ली/हे)।
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खरपतवार नियंत्रण के लिए उचित रासायनिक दवाई क्या है जानिए
अधिकांशतः देखने में आता है कि किसान साथी दुकानदार खरपतवार नाशक Kharpatwar nashak dawai ki jankari दवाई देता है उसे ही ले लेते हैं। वहीं आजकल बाजार में बहुत से खरपतवार नाशक उपलब्ध है। उगने के बाद डालने वाले जाने वाले खरपतवार नाशक बहुत सी कंपनियां नये खरपतवार नाशक लाई है उनमें से कुछ पुराने सक्रिय तत्वों को ही नए फार्मूले में लाया गया है। कृषक बंधु कृपया खरपतवार नाशकों के कंटेंट अवश्य पढ़ें।
अभी एक कंपनी के प्रोडक्ट का बहुत प्रचार चल रहा है उसमें सक्रिय तत्व Quizalofop ethyl 7.5% + Imazethapyr 15% है। यह दोनों ही टेक्निकल बहुत पुराने हो चुके हैं और इनका अधिकांश खरपतवारो Kharpatwar nashak dawai ki jankari मैं रेजिस्टेंस डिवेलप हो चुका है। Quizalofop ethyl बहुत ही पुराना टेक्निकल है और बहुत कम संकरी पत्ती वाले खरपतवारओं को नियंत्रित करता है। इससे अगली पीढ़ी का सक्रिय पत्ती के खरपतवार नियंत्रित करने वाला टेक्निकल Propaquizafop है। और इससे अगली पीढ़ी का Haloxyfop-R methyl ester है।
अब बात करते हैं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार नाशकों की। अधिकतर चौड़ी पत्ती नियंत्रित करने वाले खरपतवार नाशको Kharpatwar nashak dawai ki jankari के साथ Chlorimuron Ethyl 25% WP एक डिब्बी डालने का बोलते हैं वह इसलिए सही मायने में सबसे अच्छा चौड़ी पत्ती नियंत्रित करने वाला खरपतवार नाशक यही है।
इसके साथ ही किसान Chlorimuron Ethyl 25% WP + Haloxyfop-R methyl ester या Chlorimuron Ethyl 25% WP + Propaquizafop 10% EC का उपयोग करके खरपतवार नियंत्रण कर सकते हैं।
नोट : – खेती किसानी में रासायनिक दवाइयों का इस्तेमाल करने के पहले उन पर दिए गए निर्देशों को जरूर पढ़ें। कृषि विशेषज्ञ की राय लें। किसी भी अप्रिय स्थिति के लिए चौपाल समाचार जिम्मेदार नहीं रहेगा।
सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण के परंपरागत उपाय
सोयाबीन की फसल में खरपतवारों की रोकथाम निम्नलिखित तरीकों से की जा सकती है :-
सोयाबीन में खरपतवार नियंत्रण Kharpatwar nashak dawai ki jankari के लिए बुवाई से पहले यह कार्य करें :– इस विधि में वे क्रियाएं शामिल हैं जिनके द्वारा सोयाबीन के खेत में खरपतवारों को फैलने से रोका जा सकता है जैसे प्रमाणित बीजों का प्रयोग, अच्छी सड़ी कम्पोस्ट एवं गोबर की खाद का प्रयोग, खेत की तैयारी में प्रयोग किए जाने वाले यंत्रों की प्रयोग से पूर्व अच्छी तरह से सफाई इत्यादि।
कृषि यंत्रों द्वारा सोयाबीन की फसल मेंं खरपतवारों का नियंत्रण – यह खरपतवारों पर काबू पाने की सरल एवं प्रभावी विधि है। सोयाबीन की फसल में बुवाई के 20-45 दिन के मध्य का समय खरपतवारों से प्रतियोगिता की दृष्टि से खरपतवार Kharpatwar nashak dawai ki jankari ओक्रांन्तिक समय है। दो निराई गुदाईयों से खरपतवारों की बढ़वार पर नियंत्रण पाया जा सकता है। पहली निराई बुवाई के 20-25 दिन बाद तथा दूसरी 40-45दिन बाद करनी चाहिए। निराई-गुराई कार्य हेतु व्हील हो या ट्रिवन व्हील हो का प्रयोग कारगर एवं आर्थिक दृष्टि से सस्ता पड़ता है।
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