किसानों को सोयाबीन के स्थान पर इस फसल की खेती करेगी मालामाल, IIMR की मुह‍िम बदल देगी तस्वीर, देखें डिटेल..

अब खरीफ सीजन में किसानों को इस फसल की खेती (Maize Farming) से भरपूर फायदा मिलेगा, आईए जानते हैं पूरी डिटेल..

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Maize Farming | खरीफ सीजन में धान के बाद दूसरे नंबर पर सबसे अधिक सोयाबीन की खेती होती है। सोयाबीन की खेती मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना, तमिलनाडु, राजस्थान और यूपी में होती है। पिछले कुछ वर्षों से सोयाबीन उत्पादक किसान सोयाबीन के भाव को लेकर खासे परेशान हो रहे हैं।

सोयाबीन के भाव पिछले लंबे समय से लगातार काम होते जा रहे हैं। पैसे में खरीफ सीजन के दौरान सोयाबीन की खेती करने वाले किसानों के लिए अब मक्के की खेती बनेगी। किसानों के लिए अब मक्का की खेती (Maize Farming) नए अवसर लेकर आने वाली है।

एथेनॉल की पेट्रोल में ब्लेंड‍िंग करके पेट्रोल‍ियम का आयात कम करने का सरकार का प्लान है। इसल‍िए मक्के की खेती करना क‍िसानों के ल‍िए फायदे का सौदा साब‍ित होगा। मक्के की खेती (Maize Farming) किस प्रकार से किसानों को अधिक फायदा देगी एवं सरकार की पूरी प्लानिंग क्या है, आईए जानते हैं..

मांग के ह‍िसाब से नहीं हो रही आपूर्त‍ि

प‍िछले एक दशक में मक्के का उत्पादन 25 म‍िल‍ियन से बढ़कर लगभग 38 म‍िल‍ियन टन तक पहुंच चुका है, लेक‍िन अब भी मांग के ह‍िसाब से आपूर्त‍ि नहीं हो पा रही है, इसकी वजह यह है क‍ि मक्का एक एनर्जी क्रॉप के तौर पर उभरा है। ज‍िससे इसका इस्तेमाल एथेनॉल बनाने के ल‍िए इस्तेमाल हो रहा है।

एथेनॉल की पेट्रोल में ब्लेंड‍िंग करके पेट्रोल‍ियम का आयात कम करने का सरकार का प्लान है. इसल‍िए मक्के की खेती (Maize Farming) करना क‍िसानों के ल‍िए फायदे का सौदा साब‍ित होगा। ज्यादातर राज्यों की मंड‍ियों में मक्का अपनी एमएसपी 2225 रुपये प्रत‍ि क्व‍िंटल से अध‍िक कीमत पर ब‍िक रहा है।

सरकार मक्का से एथेनॉल बनाने पर दे रही जोर

सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले वर्ष एथेनॉल बनाने के लिए लगभग 6 मिलियन टन मकई का उपयोग किया गया है। ऑयल मार्केटिंग कंपनियों ने इथेनॉल आपूर्ति के लिए लगभग 837 करोड़ लीटर आवंटित किया। जिसमें मक्का की हिस्सेदारी लगभग 51.5% है। इसका मतलब यह है क‍ि सरकार मक्का से एथेनॉल बनाने पर जोर दे रही है। ऐसा करने से इसकी कीमतें बढ़ेंगी और उच्च कीमतों के कारण मक्का की खेती (Maize Farming) क‍िसानों को अच्छा रिटर्न देगी।

सरकार मक्का की खेती को दे रही बढ़ावा

एथेनॉल के इस्तेमाल से ही भारत मक्का आयातक भी बन गया है। जिससे व‍िश्व बाजार में हलचल मची हुई है। कुल म‍िलाकर पर‍िस्थ‍ित‍ियां क‍िसानों के पक्ष में हैं। मक्का की खेती (Maize Farming) में अन्य फसलों के मुकाबले लागत कम है और कम पानी की खपत के कारण यह फसल पर्यावरण के ज्यादा अनुकूल है।

मक्का अनुसंधान संस्थान की मुहिम से बदलेगी तस्वीर

मक्के से एथेनाल बनाने को बढ़ावा देने के ल‍िए केंद्र सरकार कोश‍िश कर रही है। इसके तहत ऐसे क्षेत्रों में मक्का की खेती (Maize Farming) को बढ़ावा द‍िया जा रहा है जहां इसके ल‍िए अच्छी पर‍िस्थ‍ितियां मौजूद हैं फ‍िर भी क‍िसान इसकी खेती नहीं करते थे। इसके ल‍िए केंद्र सरकार ने ‘एथेनॉल उद्योगों के जलग्रहण क्षेत्र में मक्का उत्पादन में वृद्धि’ नाम से प्रोजेक्ट शुरू क‍िया है। ज‍िसकी ज‍िम्मेदारी आईसीएआर के अधीन आने वाले भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR) को दी गई है। इसके तहत मक्का उत्पादन बढ़ाया जा रहा है।

क‍िसानों को मिलेंगे ज्यादा पैदावार देने वाली क‍िस्मों के बीज

मक्का अनुसंधान संस्थान (IIMR) के निदेशक डॉ. एसएस जाट का कहना है क‍ि इथेनॉल के ल‍िए मक्का उत्पादन बढ़ाने की इस मुह‍िम में एफपीओ, किसान, डिस्टिलरी और बीज उद्योग को साथ लेकर काम क‍िया जा रहा है। इसके तहत क‍िसानों को ज्यादा पैदावार देने वाली क‍िस्मों के बीजों का व‍ितरण क‍िया जा रहा है।

इस मुह‍िम का मकसद वर्तमान दौर में क‍िसानों को मक्के की खेती (Maize Farming) के फायदे को बताना और इथेनॉल के ल‍िए उत्पादन बढ़ाना है। अभी जो हालात बन रहे हैं इसमें यकीन से कहा जा सकता है क‍ि मक्का की खेती (Maize Farming) क‍िसानों को अच्छा प्रॉफ‍िट देगी।

क‍िसानों के ल‍िए अच्छा अवसर

एथेनॉल डिस्टिलरी ने एथेनॉल बनाने के ल‍िए मक्का का उपयोग बढ़ाना शुरू कर दिया है। जिससे पोल्ट्री उत्पादकों पर दबाव बढ़ रहा है. उन्हें पोल्ट्री फीड अध‍िक कीमत पर खरीदनी पड़ रही है। दूसरी इस साल सूखे के बाद सरकार द्वारा इथेनॉल के लिए गन्ने के उपयोग पर अचानक रोक लगाने के बाद यह मांग और बढ़ गई है। इसल‍िए व‍िशेषज्ञों का मानना है क‍ि मक्का की खेती (Maize Farming) करने वाले क‍िसान फायदे में रहेंगे, क्योंक‍ि इसकी कीमतें बढ़ने के हालात बने हुए हैं।

इधर भी मक्का की खपत बढ़ने की संभावना

पिछले चार-पांच साल पूर्व तक मक्का को कोई पूछने वाला नहीं मिल रहा था।  प्रमुख उत्पादक राज्यों के किसानों को औने-पौने दाम पर मक्का बेचने के लिए विवश होना पड़ रहा था, लेकिन अब हालात बदल गए हैं। पॉल्ट्री फीड एवं स्टार्च निर्माण उद्योग में इसकी खपत तेजी के साथ बढ़ रही है।

वहीं, एथनॉल उत्पादन में मक्का का भारी उपयोग होने लगा है और इसलिए इस मोटे अनाज का महत्व दिनों दिन तेजी से बढ़ता जा रहा है जिससे मक्का के दाम भी बढ़ते जा रहे है। चार-पांच साल पहले मक्का का भाव न्यूनतम समर्थन मूल्य से 50-60 प्रतिशत नीचे चल रहा था जो अब 20-25 प्रतिशत ऊपर चल रहा है। (Maize Farming)

पॉल्ट्री उद्योग और एथनॉल निर्माताओं के बीच प्रतिस्पर्धा

मक्का की अधिक से अधिक मात्रा प्राप्त करने के लिए पॉल्ट्री उद्योग और एथनॉल निर्माताओं के बीच प्रतिस्पर्धा तेज हो गई है। बढ़ती कीमतों को देखते हुए उत्पादक और स्टॉकिस्ट अपने माल की बिक्री धीमी गति से कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें उम्मीद है कि आगामी समय में मक्का के दाम और भी बढ़ेंगे।

बढ़ती मांग और खपत को देखते हुए मक्का के घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी की सख्त आवश्यकता है। कृषि विशेषज्ञ किसानों को हाइब्रिड बीज का अधिक से अधिक उपयोग करने का सुझाव दे रहे हैं ताकि फसल की उपज दर बढ़ सके।

हाइब्रिड तकनीक मक्का के उत्पादन में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती है। पिछले साल लगभग 60 लाख टन मक्का का उपयोग एथनॉल उत्पादन में किया गया था। मक्का की ऊंची कीमतों के कारण देश से मक्का का निर्यात लगभग ठप्प हो गया है, और कम आय वर्ग के लोगों को खाद्य उद्देश्य के लिए इसकी खरीद में कठिनाई हो रही है। (Maize Farming)

मक्का यह 3 हाइब्रिड किस्में देंगी 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज

मक्का की खेती (Maize Farming) अब किसानों के लिए सिर्फ विकल्प नहीं, बल्कि आय बढ़ाने का एक मजबूत साधन बन चुकी है। किसानों की आमदनी बढ़ाने के लिए मक्का की खेती एक बेहतरीन विकल्प बनकर उभरी है। आईए जानते हैं अधिक ऊपर देने वाली मक्का की प्रमुख तीन किस्मों के बारे में..

मक्का की “शक्तिमान” किस्म :– कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार यह किस्म सिर्फ 80 से 90 दिनों में पककर तैयार हो जाती है. इससे 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन मिल सकता है।

हाइब्रिड किस्म “पार्वती” :– मक्का की इस किस्म को अगेती और पछेती दोनों ही मौसम में बोया जा सकता है। यह फसल 90 से 100 दिनों में तैयार होती है और 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन देती है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात के किसानों में यह किस्म पहले से ही लोकप्रिय है। अब उत्तर भारत के किसान भी इस किस्म को अपनाने लगे हैं।

पूसा हाइब्रिड-1 :– तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में मक्का की “पूसा हाइब्रिड-1” किस्म को काफी पसंद किया जाता है। यह किस्म 80 से 90 दिनों में तैयार हो जाती है और इसका उत्पादन भी 55 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है। (Maize Farming)

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