डबल मुनाफे के लिए सोयाबीन की खेती के तुरंत बाद करें मटर की खेती, उन्नत किस्में एवं खेती का पूरा तरीका जानें

रबी सीजन में अधिक मुनाफे के लिए मटर की उन्नत खेती Matar ki kheti करना चाहते है, सोयाबीन के बाद करें इसकी खेती…

Matar ki kheti : रबी सीजन की प्रमुख दलहनी फसलों में शुमार मटर का वैज्ञानिक नाम पाइसम सटाइवम (Pisum Sativam) है। सोयाबीन की अर्ली वैरायटी के बाद मटर की खेती बहुतायत से होती है, क्योंकि मटर की खेती के बाद रबी सीजन के दौरान किसान एक और फसल ले सकते हैं। यही कारण है कि सोयाबीन की खेती के तुरंत बाद मटर की खेती करना किसान पसंद करते हैं।

मटर का उपयोग सब्जियों तथा मुख्यत दालें के रूप में प्रयोग होती है। प्रतिवर्ष भारत में लगभग 7.9 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से 8.3 लाख टन मटर का उत्पादन निकलता हैं। मटर केवल प्रोटीन का ही अच्छा स्रोत नहीं, बल्कि इसमें विटामिन, फास्फोरस और लोहा भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता हैं। हम आपको इस लेख में मटर की उन्नत खेती Matar ki kheti एवं मटर की उन्नत किस्मों के बारे में बताएंगे..

मटर की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

Matar ki kheti शरद ऋतु में बोई जानी वाली फसल हैं, इसके लिए जलवायु में शुष्क एवं ठंडा मौसम उपयुक्त हैं, बीज के अंकुरण के लिए लगभग 20-22 डिग्री सेल्सियस तथा पौधों के वानस्पतिक बढवार के लिए 10-18 डिग्री सेल्सियस तापमान अवश्य होना चाहिए। फूल व फलियां बनते समय अधिक व कम तापमान से नुकसान होता हैं पाले के प्रति ये बहुत संवेदनशील होता हैं |

खेती के लिए उपयुक्त मिट्टी

Matar ki kheti दोमट मिट्टी में अच्छी तरह से होती है। इसके लिए दोमट व हल्की दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती हैं, साथ ही pH भी 6.5 से 8.5 के बीच रहना चाहिए। अच्छी पैदावार के लिये जल निकास की पर्याप्त सुविधा होनी चाहिए।

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खेत की तैयारी किस प्रकार करें

Matar ki kheti के लिए खेत की तैयारी हल्की मिट्टी में 2-3 तथा भारी मिट्टी में 3-4 मिट्टी पलटने वाले हल या हैरो से जुताई करनी चाहिए इससे खरपतवार नियंत्रण व मिट्टी उपजाऊ रहती हैं। जुताई के समय अगर पर्याप्त नमी नहीं हो तो पलेवा देकर जुताई करके पाटा चलाकर खेत को समतल करना चाहिए।

Matar ki kheti के लिए भूमि उपचार कैसे करें

खेत में रोग की अधिकता होने पर भूमि का उपचार कर लेना चाहिए ताकि रोग व कीटो से बचाव हो सके इसके लिए बुवाई से पूर्व खेत में कम से कम 100 किलोग्राम सड़ी गोबर के सााथ 5 से 10 किलोग्राम ट्राईकोड्रमा प्रति हेक्टेयर अच्छी तरह मिलाकर छिटा देकर सिंचाई कर दे या फिर आप क्यूनाल्फोस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 25 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर मिट्टी में आखिर जुताई के साथ मिला सकते है।

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फसल बढ़वार के लिए उचित उर्वरक डालें

Matar ki kheti मटर की अच्छी पैैदावार के लिए भूमि में सभी तरह के पोषक तत्वों की आवश्यकता होती हैं इनमे स्थुल व सुक्ष्म दोनों की मृदा जाच के अनुसार मात्रा देने चाहिए। गोबर व कचरे की सड़ी हुई खाद खेत की तैयारी के समय लगभग 10-20 टन प्रति हेक्टेयर देनी चाहिए।

नाइट्रोजन के लिये 45 किग्रा. यूरिया ऊचे कद वाली प्रजाति के लिए तथा बोनी किस्म के लिए 90 किग्रा. यूरिया का उपयोग आधी मात्रा बुवाई के समय व आधी मात्रा उसकी वानस्पतिक वृद्धि तथा फूल आने के समय करनी चाहिए।

लगभग 100-120 किलोग्राम डीएपी फास्फोरस के लिए तथा पोटाश के लिए म्यूरेट ऑफ पोटाश की 40-50 किलोग्राम Matar ki kheti बुवाई के समय देनी चाहिए। सूक्ष्म तत्व जैसे जिंक के लिये जिंक सल्फेट की 20-25 किग्रा. प्रति हेक्टेयर मात्रा बुवाई के समय देनी चाहिए।

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मटर की उन्नत किस्में

Matar ki kheti मटर की उन्नत किस्मों में विवेक मटर 6, विवेक मटर 8, आर्केल, पंत सब्जी मटर 3, जवाहर मटर 1, जवाहर मटर 2, मिटीओर, अर्ली बैजर, असौजी, बोनविले, आजाद मटर 1, पंत उपहार, आदि उन्नत किस्में आती हैं.

1. विवेक मटर 6 :- विवेक मटर 6 को पंत उपहार और वी एल मटर 3 के संकरण से तैयार किया गया है। इसे मैदानी भाग में बोने पर 75 से 80 दिन में फलियां मिलने लगती हैं. तो वहीं दूसरी तरफ यदि आप आप इस प्रजाति को पहाड़ी इलाकों में बोते हैं तो इससे फलियां मिलने में करीब 135 से 140 दिनों का समय लगता है। इस किस्म की फलियां करीब 6 से 7 सेमी लंबाई होती हैं जिनमें आमतौर पर 6 दाने पाए जाते हैं। इस प्रजाति को हम मध्य अक्टूबर से मध्य नवंबर तक बो सकते हैं। Matar ki kheti

2. आर्केल :- आर्केल एक मटर की यूरोपियन किस्म है. इसके दाने मीठे होते हैं यह मटर की जल्दी तैयार होने वाली किस्मों में से एक है। इसकी फलियों को बुवाई के करीब 60 से 65 दिन बाद तोड़ना शुरू कर सकते हैं। इसकी फलियां 8 से 10 सेमी लंबी तलवार के आकार की होती हैं। जिसकी हर एक फली में लगभग 5 से 6 दाने होते हैं और हरी फलियों की उपज लगभग 70 से 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

3. मिटीओर :- यह भी मटर की एक अगेती किस्म है, इसकी फलियों को हम बुवाई के करीब 65 से 70 दिनों बाद तोड़ना शुरू कर सकते हैं। इसके दाने मीठे और गोलाकार होते हैं। इसकी फलियां करीब 5 से 6 सेमी लंबाई की होती हैं हर एक फली में लगभग 5 से 6 दाने होते हैं। हरी फलियों की औसत उपज करीब 50 से 60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिल जाती है। Matar ki kheti

4. अर्ली बैजर :- यह किस्म एक विदेशी किस्म है, क्योंकि इस किस्म का विकास यूएसए में हुआ था। यह भी मटर की अगेती उन्नत किस्मों में जोड़ी जाती है। बुवाई के लगभग 65 से 70 दिनों बाद इसकी फलियां तोड़ने लायक हो जाती हैं। इस किस्म की फलियां कसी हुई होती हैं, क्योंकि इनकी फलियों में दाने कसकर भरे हुए होते हैं. फलियां हल्के हरे रंग की होती हैं, जिनकी लंबाई करीब 7 सेमी होती है। दाने आकार में बड़े और स्वाद में मीठे होते हैं। हरी फलियों की औसत उपज लगभग 40 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।

5. लिंकन :- मटर की इस किस्म को पहाड़ी क्षेत्रों में उगाने के लिए तैयार किया गया है। मटर की इस किस्म के पौधे देरी से पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं। इसके पौधों की पहली तुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 80 से 90 दिन बाद की जाती है। इस किस्म के पौधों पर लगने वाली फलियों का रंग गहरा हरा और लम्बाई अधिक पाई जाती है। इसकी फलियाँ सिरे पर से हल्की मुड़ी हुई होती है। जिनमें 8 से 10 दानो की संख्या पाई जाती है। इसके दाने स्वाद में काफी मीठे होते हैं। Matar ki kheti

5. आजाद मटर 3 :- मटर की इस किस्म को कानपुर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा तैयार किया गया है। इस किस्म के पौधे सामान्य लम्बाई के पाए जाते हैं। जबकि इसकी पत्तियों का आकार बड़ा होता है। इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 65 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार (Top 10 Improved Pea Varieties) हो जाते हैं। इस किस्म के पौधे की फलियों की लम्बाई ज्यादा पाई जाती है। इसकी एक फली में 8 से 11 तक की संख्या में मटर के दाने पाए जाते हैं। Matar ki kheti

6. जवाहर मटर :- मटर की इस क़िस्म को जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर ने तैयार किया है। इस किस्म के पौधे झाड़ीदार दिखाई देते हैं। जिनकी ऊंचाई दो से ढाई फिट तक पाई जाती है। इस किस्म के पौधे बीज रोपाई के लगभग 65 से 70 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म के पौधों की फलियों की लम्बाई 8 सेंटीमीटर के आसपास पाई जाती है। इसके दाने फलियों में ठोस रूप में भरे होते हैं। इस किस्म के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 12 टन के आसपास पाया जाता है।

7. टी 9 :- टी 9 मटर की मध्यम समय में पैदावार देने वाली किस्म है। इस किस्म के पौधे की पहली तुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 60 दिन बाद की जाती है। जबकि इसकी फसल 120 दिन में पककर तैयार हो जाती है। इस किस्म के पौधों पर सफ़ेद फूल खिलते है और इसकी फलियों का रंग हरा चमकीला पाया जाता है। इसके पौधों से हरी फलियों की प्रति हेक्टेयर औसतन पैदावार 10 टन के आसपास पाई जाती है। Matar ki kheti

8. एन पी 29 :- मटर की इस किस्म को अगेती पैदावार लेने के लिए तैयार किया गया है। इस किस्म के पौधे 115 दिन के आसपास पककर तैयार हो जाते हैं। इस किस्म के पौधों पर कई तरह के जीवाणु जनित रोग देखने को कम मिलते है। इस किस्म के पौधे से हरी फली के रूप में पहली पैदावार बीज रोपाई के लगभग 70 दिन बाद मिलती है। जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 से 12 टन के आसपास पाया जाता है। इस किस्म के दाने पकने के बाद झुर्रीदार दिखाई देते हैं।

9. अर्ली दिसंबर :- मटर की ये एक संकर किस्म है, जिसको टा. 21 और अर्ली बैजर के संकरण से तैयार किया गया है। मटर की इस किस्म को अगेती पैदावार लेने के लिए उगाया जाता है। इस किस्म के पौधे रोपाई के लगभग 55 से 60 दिन बाद पहली तुड़ाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस किस्म के पौधे की फलियों का रंग गहरा हरा और लम्बाई 7 सेंटीमीटर के आसपास पाई जाती है। जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 7 से 10 टन के बीच पाया जाता है। इस किस्म के पौधों पर मृदा जनित रोगों का प्रभाव कम देखने को मिलता है। Matar ki kheti

10. काशी अगेती :- इस किस्म के पौधे मध्यम समय में पैदावार देने के लिए जाने जाते हैं। इसके पौधों की लम्बाई दो फिट के आसपास पाई जाती है। इस किस्म के पौधे पर लगने वाली फलियाँ सीधी और गहरी पाई जाती हैं। जिनकी पौधों से पहली तुड़ाई बीज रोपाई के लगभग 50 दिन बाद की जाती है। जिनका प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 टन के आसपास पाया जाता है। इस किस्म के पौधों पर जीवाणु जनित रोगों का प्रभाव कम पाया जाता है। Matar ki kheti

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बुवाई की विधि

Matar ki kheti मटर की फसल को अगर बेड प्लांटिंग विधि से उगाने से पानी व उर्वरको की बचत के साथ ही खरपतवार भी कम होते हैं। इस विधि में बेड बनाने के लिये रेज्ड बेड प्लान्टर का उपयोग किया जा सकता हैं। इसमें लगभग 25-30 प्रतिशत बीज की बचत होती हैं अंकुरण भी 90 से 95 % तक होता हैं पौधों की वर्धि व फलिया अधिक लगती हैं जिससे उत्पादन बड़ता हैं।

मटर के बीज बोने का समयMatar ki kheti असिंचित व अगेती बुवाई का समय 15 अक्टूबर तथा समय व सिंचित में 15 अक्टूबर से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक कर देनी चाहिए।

Matar ki kheti बीज दर – समय व सिंचित के लिए ऊंचे कद की किस्म के लिये 75-80 किलोग्राम, बोनी के लिए 100-125 किलोग्राम बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त हैं।

लाइन से लाइन की दूरी – बोते समय पौधे से पौधे की दुरी 10 सेमी तथा लाइन से लाइन की दूरी ऊचे के लिए 40 से 45 सेमी व बोनी के लिए 25 से 30 सेमी रखनी चाहिए साथ ही बीज की गहराई 5-6 सेमी रखनी चाहिए।

रोग के लिए बीज उपचार जरूरी

Matar ki kheti बीज को बोने से पूर्व फआईआर क्रम में करना चाहिए सर्वप्रथम फफूंदनाशी जिसमे 3 ग्राम थायरम या 6-10 ग्राम ट्राईकोडर्मा से उसके बाद कीटनाशी क्लोरोपायरीफोस 20 इ.सी. 4-5 मि.ली. प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से तथा अंत में राइजोबियम व पी.एस.बी. कल्चर प्रत्येक के 3 पैकेट प्रति हेक्टेयर बीज को उपचारित करे।

सिंचाईMatar ki kheti में पहली सिंचाई बुवाई के 40 दिन बाद, दूसरी फूल आने से पहले एवं तीसरी सिंचाई फलिया बनते समय करनी चाहिए। जाड़े में बरसात होने से फसल को फायदा मिलता हैं, लेकिन वातावरण में अधिक आद्रता होने से चूर्णिल आसिता रोग लगने की सम्भवना बढ़ जाती हैं।

 Matar ki kheti निराई-गुड़ाई – खरपतवार व कमजोर पौधों को निकालने से पौधों को सही इस्थान व पोषण मिल जाता हैं साथ ही अच्छी बढ़वार भी होती हैं।

पहली निराई-गुड़ाई बुवाई के 25-30 दिन बाद तथा दूसरी 40-45 दिन बाद करनी चाहिए।

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फसल में लगने वाले रोग व कीट

चूर्णिल आसिता रोग – इस रोग में पत्तियों की दोनों सतह पर सफेद चूर्ण के धब्बे हो जाते हैं, जों बाद में रंगहीन चितियो का रूप धारण कर लेते हैं इनके चारो और चूर्णी फेल जाती हैं जिसके कारण पौधे की बढवार रुक जाती हैं।

Matar ki kheti समय पर बुवाई करने से रोग की सम्भावना कम हो जाती हैं लक्षण दिखाई देने पर गंधक चूर्ण का 25-30 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।

उकठा रोग – इस रोग के लक्षण पौधे की प्रारम्भिक अवस्था पर ही दिखाई देने लगती हैं इसमें पौधे मुरझा जाते हैं पानी की उपलब्धता होने पर भी और फिर वो सूखने लगते हैं पौधों की जड़ो व तनों पर धारिया बन जाती हैं। नियंत्रण – इसकी रोकथाम के लिये गर्मियों में गहरी जुताई करनी चाहिए साथ ही बीज को उपचारित करके बोना चाहिए। ट्राईकोडर्मा 4 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से देना चाहिए। Matar ki kheti

किट्ट रोग (रस्ट) – इसके कारण तनों व फलियों के हरे भागों पर हल्का पीलापन दिखाई देता हैं जों बाद में धीरे-धीरे गहरे भूरे या काले रंग के जल बनाता हैं। नियंत्रण – इसके नियन्त्रण के लिए 2 कि.ग्रा. डाईथेन एम-45 को 700-1000 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से पहला छिडकाव रोग दिखाई देने पर और दूसरा व तीसरा 15 दिन के अन्तराल पर करे, या फिर 0.2 प्रतिशत केलिक्सिन का प्रयोग करें। Matar ki kheti

लीफ माइनर : इसकी सुंडी पत्तियों में सुरंग बनाकर हरे भाग को खाती हैं जिससे भूरे चकते पड़ जाते हैं। इसके लिए परजीवी ब्रेकोन ब्रेविकोर्निस खेत में छोड़े या फिर 625-750 ग्रा.एसिफेट-75 एस.पी. का छिडकाव करना चाहिए।

दीमक : पौधों को निचे से काटकर सुखा देती हैं और पौधे को उखाड़ने पर आसानी से उखड़ जाते हैं। बीज को 3-4 मि.ली. क्लोरोपायरीफॉस 20-ई.सी. पर कि.ग्रा. से उपचारित करे। खड़ी फसल में इमिड़ाक्लोप्रिड 200-300 मि.ली. को पानी में मिलाकर छिड़काव करें। Matar ki kheti

फसल कटाई एवं गहाई

Matar ki kheti इसका उतम समय फरवरी से मार्च हैं जब फलियों का रंग लगे गहरे हरे से हल्के भूरे, और अच्छी तरह से पक गई हो तभी कटाई करे इसके लिये पौधों को फलियों सहित काटकर एक सप्ताह तक सुखाकर फिर गहाई करनी चाहिए। गहाई के बाद जब बीज में 8-9 प्रतिशत नमी हो तब ही भण्डारण करना चाहिए |

उपज – इसकी औसत उपज 20-30 क्विंटल होती हैं अगर उपरोक्त सभी उन्नत तकनीक के अनुसार खेती करे।

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