चलिए जानते है गेहूं की फसल (Wheat Seed Treatment) से बेहतर उपज के लिए किसानों को क्या क्या उपाय करना चाहिए।
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Wheat Seed Treatment | रबी सीजन में गेहूं की बुवाई तेजी से चल रही है, और इस समय किसानों के लिए यह जानना बेहद अहम है कि गेहूं के बीजों में होने वाले रोगों से कैसे बचाव किया जाए।
गेहूं के कुछ बीज जनित रोग जैसे लूज स्मट (खुला कंडवा), करनाल बंट, हैड स्कैब और परण झुलसा रोग पैदावार को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं।
इन रोगों से बचाव के लिए बीज उपचार एक महत्वपूर्ण कदम है, जो आपकी फसल को बेहतर और रोगमुक्त बना सकता है।
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के ‘पूसा समाचार’ में इस महत्वपूर्ण मुद्दे को उठाया गया, कार्यक्रम में रोगविज्ञान संभाग के वैज्ञानिक डॉ. एम. एस. सहारन द्वारा गेहूं में होने वाले प्रमुख बीज जनित रोग, उनके लक्षण, बीज उपचार के तरीके और बीज उपचार Wheat Seed Treatment की विधि के बारे में बताया गया।
आइए जानते है गेंहू की फसल में बीज जनित रोगों से बचाव के लिए किसानों को क्या क्या उपाय अपनाने चाहिए एवं बीजोपचार की क्या क्या विधि है…
Wheat Seed Treatment | गेहूं में होने वाले प्रमुख बीज जनित रोग और उनके लक्षण
करनाल बंट :- यह भी एक फफूंद जनित रोग है जिसमें दाने काले पड़ जाते हैं। यह समस्या तब पता चलती है जब आप अपनी फसल को घर लाते हैं और उसमें कुछ दाने काले नजर आते हैं।
हेड स्कैब :- इस रोग का प्रकोप नमी वाले क्षेत्रों में अधिक होता है, विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में। इसमें फसल की बालियों में गुलाबी रंग की फफूंद नजर आती है जिसे फ्यूजियम कहते हैं। : Wheat Seed Treatment
लूज स्मट (खुला कंडवा) :- यह एक फफूंद जनित रोग है, जिसे फसल में बालियों के काले दानों के रूप में देखा जा सकता है। जब फसल में बालियां आनी शुरू होती हैं, तब यह रोग अधिक दिखाई देता है। काले रंग के दाने फफूंद के स्पोर होते हैं जो बीज से फैलते हैं।
परण झुलसा (स्पॉट ब्लोच) :- यह एक गंभीर रोग है जो बीज में मौजूद रहता है। यह रोग फसल की पत्तियों और तनों को प्रभावित करता है और इसके प्रकोप से फसल की उपज पर नकारात्मक असर पड़ सकता है। : Wheat Seed Treatment
बीज उपचार के तरीके
इन बीमारियों से बचने के लिए बीज उपचार अत्यंत आवश्यक है। बीज उपचार में निम्नलिखित दवाओं का उपयोग किया जा सकता है :-
कार्बेन्डाजिम (50 WP) : 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से।
कार्बोक्सिन (75 WP) : 2.5 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से।
तेबुकोनाजोल (2 DS) : 1.25 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से।
यदि आप रासायनिक दवाओं का कम उपयोग करना चाहते हैं, तो ट्राइकोडर्मा विरिडे जैसे जैविक उपचार का भी इस्तेमाल कर सकते हैं, जो 4-5 ग्राम प्रति किलो बीज के हिसाब से लगाया जा सकता है। : Wheat Seed Treatment
बीज उपचार की विधि
सबसे पहले, फंगी साइड (कवकनाशी) को बीज के ऊपर समान रूप से छिड़कें। इसके बाद, बीज को हल्का गीला करें ताकि दवा उस पर अच्छी तरह से चिपक जाए, लेकिन ध्यान रखें कि बीज बहुत अधिक गीले न हों।
बीज उपचार हमेशा छाया में ही करें और उपचारित बीज Wheat Seed Treatment को सूखने दें। सूखने के बाद अगले दिन आप इन बीजों का उपयोग बुवाई के लिए कर सकते हैं।
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बीज उपचार के ये है फायदे
Wheat Seed Treatment | बीज उपचार से बीज जनित रोगों की संभावना काफी हद तक कम हो जाती है, जिससे पैदावार में सुधार होता है और फसल में रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ती है।
इसके अलावा, यह बीज को फफूंद और अन्य हानिकारक रोगों से बचाकर स्वस्थ और मजबूत पौधे तैयार करता है, जिससे पैदावार और गुणवत्ता दोनों में वृद्धि होती है।
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अच्छी उपज के लिए गेहूँ की सफल खेती के सूत्र एवं पोषक तत्वों के कमी के लक्षण
खेत की तैयारी (जुताई तथा पठार) खरीफ फसल कटते ही करें। : Wheat Seed Treatment
पलेवा नहीं करे, बल्कि सूखे में बुवाई करके तुरन्त सिंचाई करे।
क्षेत्र के लिए अनुषंसित प्रजातियों का ही इस्तेमाल करें। प्रजाति का चुनाव अपने संसाधनों यानि उपलब्ध सिंचाई की मात्रा तथा आवष्यकताओं के अनुरूप करें।
सूखा रोधी एवं कम सिंचाई चाहने वाली उन्नत किस्मों का अधिकाधिक उपयोग करें।
पोषक तत्वों का उपयोग मृदा स्वास्थ्य जाँच रिपोर्ट के आधार पर करें।
नत्रजन: स्फुर: पोटाष संतुलित मात्रा अर्थात 4ः2ः1 के अनुपात में डालें।
ऊँचे कद की (कम सिंचाई वाली) जातियेॉं में नत्रजनःस्फुरःपोटाष की मात्रा 80ः40ः20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर बुआई से पूर्व ही देना चाहिये। : Wheat Seed Treatment
बौनी शरबती किस्मेंा को नत्रजनःस्फुरःपोटाष की मात्रा 120ः60ः30 तथा मालवी किस्मों को 140ः70ः35 किलो ग्राम प्रति हैक्टेयर देना चाहिये।
नत्रजन की आधी मात्रा और स्फुर एवं पोटाष की पूरी मात्रा बुआई पूर्व देना चाहिये तथा नत्रजन की ष्ेाष आधी मात्रा प्रथम सिंचाई (बुआई के 20 दिन बाद) देनी चाहिये।
बुवाई से पहले मिश्रित खाद जैसे 12ः32ः16 तथा यूरिया का उपयोग करें।
मृदा में जीवांष पदार्थ यानि कार्बनिक या हरी खादों का प्रति तीसरे वर्ष प्रयोग अवष्य करें ताकि भूमि को सूक्ष्म तत्वों की कमी से बचा जा सके।
बीज दर के लिए हमेषा याद रखें कि बडे दाने वाले बीज की दर अधिक रखी जाती है तथा छोटे दाने के लिए कम। इसलिये 1000 दाने गिनें इसका बजन करें, जितने ग्राम बजन होगा उतने ही किलोग्राम बीज एक एकड़ क्षेत्र के लिये प्रर्याप्त होगा। : Wheat Seed Treatment
खाद तथा बीज अलग-अलग बोयें, खाद गहरा (ढाई से तीन इंच) तथा बीज उथला (एक से डेढ़ इंच गहरा) बोयें, बुवाई पष्चात पठार/ पाटा न करें।
बुवाई के बाद खेत में दोनों ओर से (आड़ी तथा खड़ी) नालियाँ प्रत्येक 15-20 मीटर (खेत के ढाल के अनुसार) पर बनायें तथा बुवाई के तुरन्त बाद इन्हीं नालियों द्वारा बारी- बारी से क्यारियों में सिंचाई करें।
अर्द्धसिंचित/कम सिंचाई (1-2 सिंचाई) वाली प्रजातियों में एक से दो बार सिंचाई 35-40 दिन के अंतराल पर करें।
पूर्ण सिंचित प्रजातियों में 20-20 दिन के अन्तराल पर 4 सिंचाई करें। : Wheat Seed Treatment
सिंचाई समय पर, निर्धारित मात्रा में, तथा अनुषंसित अंतराल पर ही करें।
खड़ी फसल में डोरे (व्हील हो) या मजदूरों द्वारा खरपतवारों की सफाई करायें।
खेती में जहरीले रसायनों का उपयोग सीमित करे। रोग व नीदा नियत्रंण के लिये जीवनाशक रसायनों का उपयोग वैज्ञानिक संस्तुति के आधार पर ही करें।
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये 2-4 डी 650 ग्राम सक्रिय तत्व/है, अथवा मैटसल्फ्युरॉन मिथाइल 4 ग्राम सक्रिय तत्व/है, 600 लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिन की फसल होने पर छिङकें। : Wheat Seed Treatment
संकरी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये क्लॉडीनेफॉप प्रोपरजिल – 60 ग्राम सक्रिय तत्व/है, 600 लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिन की फसल होने पर छिङकें।
दोनों प्रकार के खरपतवारों के लियेेः एटलान्टिस 400 मिलीलीटर अथवा वैस्टा 400 ग्राम अथवा सल्फोसल्फ्युरॉन 25 ग्राम सक्रिय तत्व/है अथवा सल्फोसल्फ्युरॉन 25 ग्राम सक्रिय तत्व/है, $ मैटसल्फ्ूरॉन मिथाइल 4 ग्राम सक्रिय तत्व/है, 600 लीटर पानी में मिलाकर 30-35 दिन की फसल होने पर छिङकें।
गेरूआ रोग से बचाव तथा कुपोषण निवारण के लिए कम से कम आधे क्षेत्रफल में मालवी गेहूँ की नई किस्मों की खेती अवष्य करें।
सतत अच्छी उपज के लिए फसल विविधता एवं किस्म विविधता अपनायें । : Wheat Seed Treatment
फसल अवशेषों को जलायें नहीं, उनकी खाद बनायें।
परस्पर सहभागिता व सहकारी समूहों के माध्यम से गेहूँ की सामुदायिक खेती, वैज्ञानिक भडारण व यथोचित समय पर बिक्री द्वारा खेती का लाभांष बढ़ायें।
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