राज्य सूचना आयोग के आयुक्त का बड़ा फैसला.. एमपी की सभी सहकारी समितियां (Cooperative Societies) आरटीआई के अधीन होगी..
Cooperative Societies | आए दिन सेवा सहकारी संस्थाओं में घोटाला होने की खबरें आती रहती है। विशेष बात यह है कि इन सहकारी संस्थाओं में घोटाला होने के बाद ही जानकारी मिल पाती है। अब तक मध्य प्रदेश की कई सेवा सहकारी संस्थाओं में करोड़ों रुपए के गबन घोटाले सामने आ चुके हैं।
यह सहकारी समितियां Cooperative Societies आरटीआई अधिनियम के अंतर्गत जानकारी देने से मना कर देती है, इसलिए भी इसकी जानकारी बाहर नहीं आ पाती। अब इस व्यवस्था में परिवर्तन आने वाला है। सहकारी समितियों में हो रहे घोटालों पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सूचना आयोग ने ऐतिहासिक आदेश जारी किया है। आईए जानते हैं पूरी खबर..
राज्य सूचना आयुक्त में यह आदेश जारी किया
Cooperative Societies | सहकारी समितियां में हो रहे घोटालों पर नकेल कसने के लिए राज्य सूचना आयोग द्वारा एक ऐतिहासिक आदेश में प्रदेश में अनाज का उपार्जन और राशन दुकानों का संचालन करने वाली सभी सहकारी समितियां को तत्काल प्रभाव से आरटीआई अधिनियम के अधीन लाया गया है।
वहीं इसी आदेश मे राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने राशन की दुकानों पर कार्य करने वाले सेल्समैन के वेतन संबंधी गड़बड़ी उजागर होने पर प्रदेश के सभी सेल्समैन की वेतन संबंधी जानकारी जिले के पोर्टल पर स्वतः प्रदर्शित करने के निर्देश भी जारी किए हैं। : Cooperative Societies
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राज्य सूचना आयोग ने इसलिए लिया निर्णय
Cooperative Societies | सन 2005 जब से RTI एक्ट लागू हुआ है तब से सहकारी समितियां प्रदेश में सुप्रिम कोर्ट के थलापलम जजमेंट का हवाला देते हुए अपने आप को आरटीआई अधिनियम से बाहर बताते हुए जानकारी देने से मना कर देती हैं। यहा तक ज़िले में उपायुक्त सहकारिता के पास भी RTI
आवेदन दायर होने पर वे यह कहते हुए जानकारी उपलब्ध नहीं कराते हैं कि उक्त सहकारी समिति ने आरटीआई अधिनियम से अपने आप को बाहर बताते हुए जानकारी देने से मना कर दिया है। बताया जा रहा है कि राज्य सूचना आयोग ने यह निर्णय एक साथ कई अपीलों की एक साथ सुनवाई करते हुए लिया।
कुल 8 मामलों मे एक साथ ये फैसला आया है। दरअसल आयोग के समक्ष कई शिकायतें दर्ज हुई थी जिसमें पीडीएस दुकानों Cooperative Societies पर काम करने वाले सेल्समैन ने अपने स्वयं के वेतन की जानकारी RTI में मांगी थी वही एक और शिकायत में आरटीआई आवेदक ने कहा कि राशन की दुकान एवं अनाज उपार्जन करने वाली सहकारी समितियां अक्सर आरटीआई में जानकारी नहीं देते हैं यह कहते हुए हैं कि आरटीआई अधिनियम उन पर लागू नहीं होता है।
सहकारी समितियां के आरटीआई के अधीन होने से यह फायदा होगा
Cooperative Societies | किसानों के द्वारा अक्सर खाद्यान्न उपार्जन और खाद, बीज की व्यवस्था में अनियमितताओं की शिकायत की जाती है पर सहकारी समितियां की व्यवस्था पारदर्शी नहीं होने की वजह से किसानों की समस्याओं का निराकरण नहीं हो पाता है। सहकारी समितियां में अक्सर भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की ख़बरें भी आती है। राज्य सूचना आयोग के आयुक्त श्री सिंह ने कहा कि अब RTI में इन सरकारी समितियां का कच्चा चिट्ठा अब जनता के सामने होगा।
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सहकारी समितियां पर जारी इस अहम आदेश में सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने कहा कि खाद्यान्न उपार्जन एवं पीडीएस का संचालन करने वाली सहकारी समितियों के सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन आने से प्रदेश में खाद्यान्न उपार्जन Cooperative Societies एवं पीडीएस के संचालन में भ्रष्टाचार निरोधी, पारदर्शी व्यवस्था सुनिश्चित होने के साथ इस व्यवस्था के लिए जिम्मेदार सरकारी अधिकारियों की जनता के प्रति जवाबदेही भी सुनिश्चित होगी।
सहकारी समितियां जानकारी देने से मना नहीं कर सकेगी
Cooperative Societies | रीवा के RTI एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी जिनकी अपील पर यह कार्रवाई हुई है ने इस फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि राहुल सिंह ने सहकारी समितियां को आरटीआई के दायरे में लाकर प्रदेश के किसानों और आम नागरिकों और सामान्य तौर पर समितियों के हितग्राहियों के साथ बहुत बड़ा न्याय किया है। अब तक सहकारी समितियां किसानों को उनके केसीसी कर्ज ब्याज अनुदान उपार्जन राशन एवं अन्य खाद बीज आदि की जानकारी उपलब्ध नहीं कराती थी और स्वयं आरटीआई कानून के दायरे के बाहर होना बताया करती थी।
इस आदेश से न केवल मध्य प्रदेश में बल्कि पूरे भारतवर्ष में सहकारी समितियां Cooperative Societies को आरटीआई के दायरे में लाने में काफी हद तक मदद मिलेगी। अब इसी आदेश के आधार पर देश के अन्य राज्यों में भी सहकारी समितियां को आरटीआई के दायरे में लाने के आदेश दिए जा सकते हैं। किसानों ने इस निर्णय पर कहा कि सहकारी समितियां की व्यवस्था पारदर्शी होना बहुत जरूरी है। इससे सहकारी समितियां की मनमानियां पर रोक लगेगी। समिति की कार्यप्रणाली में कसावट आएगी जिससे किसानो का भला होगा।
आयुक्त का फैसला – सहकारी समिति, पब्लिक अथॉरिटी
Cooperative Societies | आरटीआई अधिनियम के अधीन किसी भी संस्था को लाने के लिए यह जरूरी है कि कानूनी रूप से वह संस्था की भूमिका पब्लिक अथॉरिटी के रूप में स्थापित हो। या फिर किसी कानून या नियम के तहत अगर शासन उस संस्था से जानकारी प्राप्त कर सकता है तो वो भी जानकारी RTI के अधीन होगी।
संस्था को पब्लिक अथॉरिटी तभी कहा जा सकता है जब कोई संस्था शासन Cooperative Societies के नियंत्रण में हो या फिर शासन द्वारा अत्यंत रूप से वित्त पोषित हो। मध्य प्रदेश राज्य के नियम में पर्याप्त रूप से वित्तपोषित (sunstainally fiannced) को परिभाषित करते हुए कहा गया है कि अगर किसी संस्था में शासन का ₹50000 का न्यूनतम परोक्ष या अपरोक्ष रूप से निवेश हो तो वो संस्था लोक प्राधिकारी होगी।
जानकारी देने से मन नहीं कर सकते, समितियों पर सरकार का नियंत्रण
Cooperative Societies | सहकारी समितियां की भूमिका की जानकारी के लिए सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने सिविल प्रक्रिया संहिता 1908 के तहत जांच शुरू की। उस जाँच में आयोग के पास वह तमाम शासन के द्वारा द्वारा जारी दिशा निर्देश की दस्तावेज मिले जिससे यह स्थापित होता है की सहकारी खाद्यान्न उपार्जन करने वाली सहकारी समितियां पूरी तरह से शासन की नियंत्रण में कार्रवाई करती हैं।
यहा तक के इन सहकारी समितियां Cooperative Societies में मिलने वाले वेतन भक्तों के निर्धारण की कार्रवाई भी शासन के स्तर पर होती है वहीं खाद्यान्न उपार्जन की पूरी प्रक्रिया शासन की नियंत्रण और दिशा निर्देश पर ही होती है।
सूचना आयुक्त ने यह भी कहा कि सहकारिता विभाग के पास सहकारिता अधिनियम के तहत पर्याप्त अधिकार है किसी भी सहकारी संस्था से कोई भी दस्तावेज प्राप्त करने के। इसीलिए सहकारिता विभाग के अधिकारी अपनी जवाबदेही से इंकार नहीं कर सकते हैं कि दस्तावेज उन्हें उपलब्ध नहीं कराई जा रहे हैं।
जांच में यह भी खुलासा हुआ
Cooperative Societies | सूचना आयोग ने खाद्यान्न उपार्जन को लेकर की गई जांच में यह भी उजागर हुआ कि सभी सहकारी संस्थाओं को अनाज उपार्जन पर कमीशन के तौर पर राशि शासन से प्राप्त होती है शासन की अंश पूंजी के अलावा सहकारी समितियां को प्रत्येक राशन की दुकान में सेल्समैन की सैलरी के लिए संचालन के लिए सभी सेल्समैन की सैलरी के लिए ₹6000 खाद्य नागरिक आपूर्ति विभाग द्वारा दिया जाता है।
यह सभी राशि कुल मिलाकर लाखों में होती है ऐसी स्थिति में ये सभी सहकारी समितियां प्रयाप्त रूप से वित्त पोषित होने की ₹50000 की सीमा को पार करती है। सिंह ने कहा कि शासन द्वारा वित्तपोषित होने से इन सभी सहकारी संस्थाओं Cooperative Societies की भूमिका लोक प्राधिकारी के रूप में स्थापित होती है।
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महाराष्ट्र हाईकोर्ट के आदेश को आधार बनाया
Cooperative Societies | मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने औरंगाबाद हाई कोर्ट के एक फैसले को आधार बनाते हुए सभी सहकारी समितियां को आरटीआई के अधीन बताया है। सिंह ने कहा कि औरंगाबाद हाईकोर्ट ने RTI में सभी कोऑपरेटिव सोसाइटी की जानकारी को देने के लिए रजिस्टार कोऑपरेटिव सोसाइटी को जवाबदेह माना है।
सहकारी समितियों की जानकारी के लिए यहां करें आवेदन
सूचना आयुक्त राहुल सिंह नें सभी जिले में पदस्थ उपायुक्त सहकारिता को सरकारी समितियां की जानकारी देने के लिए लोक सूचना अधिकारी नियुक्त किया है साथी सिंह ने संयुक्त आयुक्त सहकारिता Cooperative Societies को प्रथम अपीलीय अधिकारी बनाया है।
सिंह ने प्रमुख सचिव, मध्य प्रदेश शासन सहकारिता विभाग भोपाल को आदेशित किया कि खाद्यान्न उर्पाजन एवं पीडीएस के संचालन में शामिल सहकारी समितियों को तत्काल प्रभाव से सूचना का अधिकार अधिनियम के अधीन लाते हुये समितियों से संबंधित आरटीआई आवेदनों में वांछित जानकारी को प्रत्येक जिले में उपलब्ध Cooperative Societies कराने के लिये जिले में पदस्थ विभाग के उपायुक्त, सहकारिता को लोक सूचना अधिकारी एवं प्रथम अपीलीय अधिकारी के रूप में संयुक्त आयुक्त, सहकारिता की जवाबदेही आयोग के आदेश प्राप्ति के एक माह के भीतर सुनिश्चित करें।
सिंह ने कहा कि RTI एक्ट की धारा 19 के तहत जानकारी प्राप्त ना होने पर प्रथम अपीलीय अधिकारी संयुक्त आयुक्त, सहकारिता के समक्ष प्रथम अपील दायर की जाएगी।
सेल्समैन के वेतन की जानकारी अब पोर्टल पर मिलेगी
पीडीएस के सैल्समेन द्वारा स्वयं के वेतन की जानकारी के लिए अपील एवं शिकायत दायर की गयी है। खाद्ध नागरिक एवं आपूर्ति विभाग द्वारा छः हजार रूपये कमीशन के रूप में मासिक वेतन के रूप में सुनिश्चित किया गया है, पर सिंह ने आदेश मे कहा कि सूचना आयोग के लिए इस जानकारी को प्राप्त करना आसान नहीं था। इसके लिए आयोग को जांच संस्थित करते हुए तीन विभागों के समन्वय के पश्चात् ही जानकारी तैयार हो पायी।
स्पष्ट तौर से सेल्समैन को दिये जाने वाले वेतन/पारितोष की जानकारी की व्यवस्था राज्य में पारदर्शी नहीं है। आयोग के समक्ष यह स्पष्ट है कि विभागों में अधिकारी, कर्मचारियों को दिए जाने वाले वेतन में पारदर्शिता को बनाये रखने के लिए सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 की धारा 4 (1) (B) (x) के तहत वेतन की जानकारी स्वतः ही सार्वजनिक किए जाने का प्रावधान हैं।
आयोग सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 19(8) (2) के तहत प्रमुख सचिव, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग, भोपाल को आदेशित करता है कि मध्यप्रदेश के समस्त जिला कलेक्टरों को आयोग के उक्त आदेश की प्रति उपलब्ध करायें तथा 3 माह के भीतर जिलों में राशन की दुकानों में कार्यरत सेल्समैनों के वेतन की जानकारी को वेबसाइट, पोर्टल पर अपलोड करवाना सुनिश्चित करें।
आयोग की जाँच में विक्रेताओं के वेतन संबंधी जानकारी में चौकाने वाले तथ्य सामने आये हैं। रीवा जिले में कुल 459 विक्रेता कार्यरत हैं किसी भी विक्रेता को प्रत्येक माह वेतन प्रदान नहीं किया जा रहा है। 5 विक्रेता जिन्हें लगभग 7-10 वर्ष से वेतन प्रदान नहीं किया जा रहा है। लगभग 70 से अधिक विक्रेता ऐसे हैं इन्हें 2 साल से अधिक समय से वेतन प्रदान नहीं किया जा रहा है।
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