गेहूं की नई किस्म – बायोफोर्टिफाइड गेहूं से मिलेगी उच्च उपज, जानिए डिटेल..

भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल द्वारा विकसित गेहूं की नवीन वैरायटी DBW 316 Wheat Variety के उत्पादन क्षमता अवधि एवं अन्य विशेषताएं जानें..

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DBW 316 Wheat Variety | विश्व स्तर पर भारत गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। देश के गंगा मैदानी क्षेत्र में चावल – गेहूं प्रणाली दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण कृषि प्रणालियों में से एक है। भारत के प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और बिहार हैं।

गेहूं की फसल मौसम के प्रति एक संवेदनशील फसल है। यह गुण इसे क्षेत्रीय रूप से जलवायु परिवर्तन और उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील बनाता है। 15 नवंबर तक गेहूं की बुआई के लाभ के बावजूद, उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र में बहुत से किसान अनुशंसित समय की बजाय देर से गेहूं फसल की बुआई करते हैं।

सभी प्रकार की गेहूं प्रजातियां देर से बुआई की स्थिति में दाने भरने के दौरान उच्च ताप सहनशीलता (टर्मिनल हीट टॉलरेंस) से प्रभावित होती है जिसके कारण उपज पर विपरीत असर पड़ता है। उपज को प्रभावित करने वाला एक बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। इस विषय को जलवायु अनुकूल गेहूं किस्मों के विकास के माध्यम से हल किया गया है। ऐसी ही एक किस्म DBW 316 Wheat Variety करनाल से विकसित हुई है आईए जानते हैं इसके बारे में डिटेल..

करनाल संस्थान में विकसित की डीबीडब्ल्यू 316

भारतीय गेहूं और जौ अनुसंधान संस्थान, करनाल (हरियाणा) से डीबीडब्ल्यू 316 (करण प्रेमा) DBW 316 Wheat Variety को विकसित किया गया है। गेहूं की यह की नवीन किस्म एक नई उच्च उपज वाली किस्म है। इसे हाल ही में ‘फसल मानक अधिसूचना पर केंद्रीय उप-समिति और कृषि फसलों के लिए किस्मों के विमोचन’ द्वारा अधिसूचित किया गया है। भारत सरकार द्वारा इस वैरायटी DBW 316 Wheat Variety को मार्च 2023 को जारी की गई बजट अधिसूचना संख्या एसओ 1056 (ई) में इसे रखा गया है।

DBW 316 (करण प्रेमा) इन क्षेत्रों के लिए अनुशंसित

गेहूं की इस वैरायटी DBW 316 Wheat Variety को भारत के उत्तर-पूर्वी उत्तर मैदानी क्षेत्रों (एनईपीजेड) जिनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, असम और उत्तर-पूर्व के मैदानी क्षेत्र के लिए अनुशंसित किया गया है। इन क्षेत्रों के अलावा देश के मध्य भाग में इस किस्म को खेती के लिए जारी किया गया है।

डीबीडब्ल्यू 316 (करण प्रेमा) की विशेषताएं

एनईपीजेड, भारत में दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक क्षेत्र है। यहां धान की फसल की कटाई के बाद देर से बुआई के कारण गेहूं की फसल को दाने बनने के दौरान उच्च तापमान सहना पड़ता है। नई किस्म डीबीडब्ल्यू क्षेत्र टर्मिनल हीट और विभिन्न रोगों जैसे-गेहूं का रतुआ, व्हीट ब्लास्ट और फोलियर ब्लाइट के प्रति सहिष्णु है।

इस किस्म DBW 316 Wheat Variety ने एनईपीजेड में देर से बुआई की स्थिति में 68 क्विंटल / हैक्टर उपज क्षमता प्रदर्शित की है, जबकि औसत उपज 41 क्विंटल / हैक्टर प्राप्त होती है। डीबीडब्ल्यू 316 अधिक अनाज प्रोटीन (13.2 प्रतिशत) और जिंक (38.2 पीपीएम) से भरपूर दानों वाली किस्म है।

यह गुण इस नई किस्म DBW 316 Wheat Variety को बायोफोर्टिफाइड गेहूं के लिए सुपात्र बनाता है। इस किस्म में अन्य गुणवत्ता विशेषताएं भी हैं जैसे- उच्च ब्रेड लोफ वॉल्यूम और ब्रेड गुणवत्ता स्कोर, उच्च चपाती गुणवत्ता स्कोर, उच्च अवसादन मूल्य और अच्छा चमकदार दाना इत्यादि।

नई किस्म DBW 316 Wheat Variety में गर्मी सहनशीलता (एचएसआई 0.19) और सूखा सहिष्णुता (डीएसआई (0.88) का अच्छा स्तर है। बायोफोर्टिफाइड मूल्य और उच्च उपज क्षमता के साथ अच्छी गुणवत्ता के कारण यह किस्म देश की कृषि अर्थव्यवस्था और खाद्य तथा पोषण सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए उपयुक्त माध्यम बन सकती है।

उच्च तापमान सहन करने की क्षमता

भारत के उत्तर-पूर्वी मैदानी इलाकों के लिए इच्छित किस्में उच्च अनाज उपज क्षमता के अलावा रोग प्रतिरोधी और टर्मिनल हीट स्ट्रेस के प्रति सहनशील होनी चाहिए। टर्मिनल हीट स्ट्रेस, गेहूं की विशेष रूप से देर से बोई जाने वाली फसल की पैदावार और दानों के वजन को प्रभावित करता है। इसमें बाली में दाने भरने के दौरान औसत तापमान 31 डिग्री सेल्सियस से ऊपर चला जाता है। नयी किस्म को किसान के खेत में सस्य श्रेष्ठता और गुणवत्ता में बेहतर प्रदर्शन करना चाहिए।

विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि गर्मी की सहनशीलता के लिए गेहूं जर्मप्लाज्म में यथेष्ट आनुवंशिक विविधता उपलब्ध है। 1960 के दशक में स्वदेशी जर्मप्लाज्म का उपयोग करके गेहूं की एक लंबी किस्म सी – 306 को गर्म क्षेत्रों के लिए उत्कृष्ट अनुकूलन के लिए विकसित किया गया। पिछले पांच दशकों में उत्तर – पूर्वी मैदानी क्षेत्र में खेती के लिए गेहूं की कई किस्में जारी की गई हैं। डीबीडब्ल्यू 316 (करण प्रेमा) DBW 316 Wheat Variety इस क्षेत्र की देर से बोई जाने वाली सिंचित स्थितियों के लिए विकसित गेहूं की एक नवीनतम किस्म है।

डीबीडब्ल्यू 316 अधिक उपज देने में सक्षम

पहले से उपलब्ध स्थानीय किस्मों की तुलना में डीबीडब्ल्यू 316 DBW 316 Wheat Variety ने अखिल भारतीय समन्वित बहुस्थानीय गेहूं सुधार के देर से बोए गए सिंचित परीक्षणों के तीन वर्षीय मूल्यांकन में बेहतर उपज क्षमता दिखाई है। इस किस्म DBW 316 Wheat Variety ने एचडी 3118 किस्म से 7.0 प्रतिशत अधिक, एचआई 1621 किस्म 3.2 प्रतिशत अधिक, एचआई 1563 किस्म से 1.8 प्रतिशत अधिक उपज और डीबीडब्ल्यू 107 के बराबर औसत उपज प्रदर्शित की है।

उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र में देर से बोई गई परिस्थितियों में नई किस्म DBW 316 Wheat Variety की औसत उपज 41.0 क्विंटल / हैक्टर के साथ 68.0 क्विंटल / हैक्टर की उच्च उपज क्षमता है। कृषि संबंधी परीक्षणों में देरी से बोई गई (एलएस) तथा बहुत देर से बोई गई (वीएलएस) स्थितियों के तहत डीबीडब्ल्यू 316 ने वीएलएस स्थिति में उपज में सबसे कम क्षति (27.5) प्रतिशत दिखाई, जबकि अन्य किस्मों में उपज में क्षति अधिक थी।

वीएलएस की स्थिति में उपज में क्षति पीबीडब्ल्यू 833 में 31.9 प्रतिशत पीबीडब्ल्यू 835 में 38.3 प्रतिशत, एचआई 1563 में 33.2 प्रतिशत, एचआई 1621 में 34.3 प्रतिशत, एचडी 3118 में 35.5 प्रतिशत, और डीबीडब्ल्यू 107 में 37.3 प्रतिशत पायी गई। यह डीबीडब्ल्यू 316 में दाने भरने के दौरान उच्च ताप सहनशीलता (टर्मिनल हीट टॉलरेंस) को सिद्ध करता है। इसके 1000 दानों का भार देर से बोई गई सभी ट्रायल किस्मों में सर्वाधिक ( 40.0 ग्राम) देखा गया है।

डीबीडब्ल्यू 316 की अवधि (उम्र)

एनईपीजेड देर से बोई गई स्थितियों के लिए इस किस्म DBW 316 Wheat Variety में मजबूत मध्यम कद के साथ पौधे की औसत ऊंचाई 90 सें.मी. और 114 दिनों की औसत परिपक्वता वांछनीय है। डीबीडब्ल्यू 316 के साथ स्थानीय किस्मों के महत्वपूर्ण फेनोलॉजिकल और गुणवत्ता लक्षणों के प्रदर्शन आंकड़े सारणी-1 में दिए गए हैं।

बेहतर रोग प्रतिरोधिता वैरायटी

इस किस्म DBW 316 Wheat Variety में गेहूं के तीनों रतुआ रोगों ( पीला, भूरा व काला रतुआ) तथा अन्य पर्णीय रोगों जैसे पर्ण झुलसा (लीफ ब्लाइट) और पाउडरी मिल्ड्यू के लिए प्राकृतिक सहित कृत्रिम एफिाइटोटिक स्थितियों (पीपीएसएन) के तहत भी मूल्यांकन किया गया।

इस किस्म DBW 316 Wheat Variety गेहूं के तीनों रतुआ रोगों के प्रति अच्छे स्तर का प्रतिरोध दिखाया है। यह व्हीट ब्लास्ट रोग, पाउडरी मिल्ड्यू और पर्ण झुलसा रोग के लिए भी प्रतिरोधी है। इस किस्म में एक अज्ञात एलआर जीन की उपस्थिति भी पायी गयी है, जो भारत में भूरे रतुआ सहित पैथोटाइप प्रजातियों के विरूद्ध प्रतिरोध प्रदान करने में सक्षम पाया गया है।

डीबीडब्ल्यू 316 की गुणवत्ता

डीबीडब्ल्यू 316 DBW 316 Wheat Variety में अन्य किस्मों की तुलना में काफी अधिक प्रोटीन मात्रा ( औसत 13.2 प्रतिशत) होती है। इसके दाने स्वर्णिम (एम्बर) रंग के होते हैं। जिंक (औसत 38.2 पीपीएम) और लौह तत्व ( औसत 38.2 पीपीएम) के अच्छे स्तर के कारण, इसे बेहतर पोषण गुणवत्ता का सुपात्र किस्म बनाती है।

इसके अलावा यह किस्म DBW 316 Wheat Variety कई उत्पादों को तैयार करने के लिए उपयुक्त है जैसे उच्च ब्रेड लोफ वॉल्यूम (593 मि.ली.), उच्च ब्रेड – गुणवत्ता ( स्कोर 7.7), चपाती गुणवत्ता ( स्कोर 7.4), बिस्किट स्प्रेड फैक्टर (स्कोर 7.7), वेट ग्लूटेन ( 26.6 प्रतिशत), ड्राई ग्लूटेन (8.8 प्रतिशत) और सेडिमेंटेशन वैल्यू 51 मि.ली. इत्यादि । डीबीडब्ल्यू का अनाज कठोरता स्कोर 77.2 है, जबकि हैक्टोलीटर वजन 74.0 है।

डीबीडब्ल्यू 316 से होगा आर्थिक और स्वास्थ्य लाभ

रोग नियंत्रण के लिए कवकनाशी का उपयोग नहीं करने से किसान प्रति हैक्टर लगभग 2400 रुपये बचा सकते हैं। यह गेहूं की नई किस्म उन सभी प्रमुख रोगों के लिए प्रतिरोधी है, जो गेहूं की उपज को कम कर सकते हैं। डीबीडब्ल्यू 316 DBW 316 Wheat Variety में उच्चतम प्रोटीन मात्रा (13.2 प्रतिशत) है। अतः यह किस्म अंतर्निहित बायोफोर्टिफाइड मूल्य के कारण अच्छा बाजार मूल्य प्राप्त कर सकती है। अधिक प्रोटीन और जिंक की मात्रा तथा बढ़े हुआ पोषण मूल्य के लिए बिना किसी अतिरिक्त लागत के समाज के गरीब वर्ग को स्वास्थ्य लाभ प्रदान करने में सक्षम है।

एक नजर में – डीबीडब्ल्यू 316 से से जुड़ी सभी जानकारी

किस्म उपयुक्तता क्षेत्र :– भारत के उत्तर-पूर्वी मैदानी क्षेत्र तथा देर से बुआई वाली सिंचित परिस्थिति के तहत।

DBW 316 Wheat Variety के लिए खेत का चयन/ भूमि की तैयारी :– समतल उपजाऊ मृदा । खेत की इष्टतम स्थिति के लिए बुआई से पहले सिंचाई के बाद डिस्क हैरो, लेवलर ( सुहागा ) एवं टिलर के साथ जुताई।

बीज उपचार :– प्रणालीगत और संपर्क कवकनाशी (कार्बोक्सिन 37.5 प्रतिशत 37.5 प्रतिशत + थीरम ) / 2-3 ग्राम /कि.ग्रा. बीज।

बुआई समय :– 5-25 दिसंबर।

बीज दर / बुआई विधि :– 125 कि.ग्रा./हैक्टर (देर से बुआई अवस्था में ) । पंक्तियों के बीच 18 सें.मी. की दूरी, बीज ड्रिल के साथ पंक्ति में बुआई करें।

उर्वरक मात्रा :– देर से बुआई अवस्था के अंतर्गत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 120: 60: 40 कि.ग्रा. एनपीके / हैक्टर प्रयोग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है। नाइट्रोजन की 1/2 मात्रा बिजाई के समय तथा शेष प्रथम नोड (45-50 दिनों बाद) अवस्था में देनी चाहिए।

खरपतवार नियंत्रण :– चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 2,4-डी / 500 ग्राम/ हैक्टर या मेटसल्फॉन / 4 ग्राम / हैक्टर या कारफैंट्राजोन / 20 ग्राम /हैक्टर लगभग 300 लीटर पानी / हैक्टर का उपयोग करके छिड़काव किया जा सकता है। संकरी पत्ती के घास के नियंत्रण के लिए आइसोप्रोट्यूरॉन 1000 ग्राम / हैक्टर या क्लॉडिनाफॉप 60 ग्राम/ हैक्टर, पिनेक्सोडेन 50 ग्राम / हैक्टर या फिनोक्साप्रोप 100 ग्राम/हैक्टर, सल्फोसल्फ्यूरॉन 25 ग्राम/हैक्टर या पाइरोक्ससल्फॉन 127.5 ग्राम/हैक्टर का उपयोग किया जाना चाहिए।

जटिल खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 2,4-डी/मेटसल्फ्यूरॉन या सल्फोसल्फ्यूरॉन के साथ मेटसल्फ्यूरॉन शाकनाशी के साथ आइसोप्रोट्यूरॉन के संयोजन के बाद चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों की शाकनाशी की बुआई के 30-40 दिनों बाद पर्याप्त मृदा की नमी में प्रयोग करना चाहिए।

कीट और रोग नियंत्रण :– यह किस्म पीला, भूरा और तना रतुआ तथा कई अन्य रोगों के लिए प्रतिरोधी है। यद्यपि फफूंदी रोग जैसे पाउडरी मिल्ड्यू / रतुआ की प्रारंभिक अवस्था दिखने पर रोगों के नियंत्रण के लिए प्रोपीकोनाजोल/टेबुकानाजोल/ ट्रायडेमेफोन 0.1 प्रतिशत (1 मि.ली. /लीटर) की दर से छिड़काव करें।

सिंचाई कटाई :– 4-6 सिंचाइयां, 20-25 दिनों के अंतराल पर करें।

DBW 316 Wheat Variety की औसत उपज :– 41.0 क्विंटल/हैक्टर, देर से बुआई स्थिति में

उपज क्षमता :– 68.0 क्विंटल / हैक्टर।

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