गर्मी में मूंग की खेती: मूंग में लगने वाले रोग, कीट एवं उनका प्रबंधन, यह तरीके अपनाए

Disease control in mung bean cultivation: गर्मी में मूंग की खेती कर रहे है! तो मूंग की खेती में लगने वाले रोग, कीट एवं उनका प्रबंधन जान ले, यह तरीके अपनाए.

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Disease control in mung bean cultivation | हर किसान अपनी आय बढ़ाना चाहता है जिससे वह खरीफ व रबी फसल के अलावा जायद की फसल भी लेता है। अगर आप भी गर्मी में मूंग की खेती कर रहे और अच्छा उत्पादन लेना चाहते है तो आपको मूंग में लगने वाले रोग, कीट एवं उनका प्रबंधन अवश्य जान लेना चाहिए। मूंग की फसल में कौन सा खाद? मूंग की खेती में कितने पानी लगते है? मूंग में लगने वाले रोग कौन से है एवं उनका प्रबंधन क्या- क्या है, यह सब जानने के लिए चौपाल समाचार के इस लेख को अंत तक पढ़ें..

मूंग की फसल में लगने वाले रोग: Disease control in mung bean cultivation 

  1. ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग)
  2. पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस)
  3. चूर्णी फफूंद रोग
  4. पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल)

आइए अब इन रोगों के लक्षण एवं प्रबंधन के बारे में जानें.

1. ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग) 

ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष) रोग के कारण फसल की पैदावार व गुणवत्ता/क्वालिटी पर असर पड़ता है। बता दे की, उत्पादन में लगभग 20 से 60 % की कमी आती है। इस रोग के कारण मूंग के पौधे की पत्तियों, तनों, फलियों तथा फूलों पर भूरे से ले कर धूप से जले हुए से रंग के घाव नजर आते हैं।

ये घाव गोलाकार से ले कर अंडाकार Disease control in mung bean cultivation या किसी भी असमान आकृति के हो सकते हैं और इनके किनारे लालिमा लिए हुए या बैंगनी रंग लिए हुए गहरे कत्थई रंग के होते हैं। यह रोग 26 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान व बादल युक्त मौसम इस रोग का प्रमुख कारण होता है और जैसे जैसे तापमान में बड़ोतरी होती है यह रोग फैलता जाता है। यदि इसका प्रबंधन नही किया जाए तो यह फसल को चौपट कर सकता है।

ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष) रोग नियंत्रण के तरीके/उपाय

  • ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग) के नियंत्रण के लिए स्वस्थ, उन्नतशील एवं प्रमाणित मूंग के बीजों का चयन करें। जो रोगप्रतिरोधी रहे।
  • बुवाई से पहले बीजों को थीरम अथवा कैप्टान द्वारा 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज अथवा कार्बेन्डाजिम 0.5 से 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित कर ले।
  • ऐंथ्राक्नोज रोग Disease control in mung bean cultivation के लक्षण दिखने पर 0.2 प्रतिशत जिनेब अथवा थीरम का छिडकाव करें। आवश्यकता अनुसार व 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करते रहे।

2. पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस)

पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस) Disease control in mung bean cultivation मूंग की फसल में लगने वाला रोग है। पीत चितेरी रोग में पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है और वह झड़ने लगती हैं। पीत चितेरी रोग के कारण मूंग की फलियां पूरी नहीं आ पाती हैं, जिसके कारण मूंग का उत्पादन कम हो जाता है।

संक्रमित पौधों में फूल एवं फलियां देर से व कम लगते हैं। पीत चितेरी रोग के लक्षण पौधे व फलियों एवं दोनों पर भी दिखाई देते हैं। यह रोग सफेद मक्खी से फैलता है। यह रोग मूंग की फसल के अलावा गेंहू, सोयाबीन एवं अन्य फसलों में भी लगता है।

पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस) नियंत्रण के यह उपाय/तरीके अपनाए

  • रोग अवरोधी मूंग प्रजातियों Disease control in mung bean cultivation का प्रयोग करें जैसे- एलजीपी – 407, एमएल – 267 इत्यादि।
  • यदि यह रोग कुछेक क्षेत्र में लगा है तो खेत से एवं मेड़ों से पूर्ण फसल अवशेष, खरपतवार एवं संक्रमित पौधे को निकालकर अलग कर लें व संक्रमित पौधे को नष्ट करें।
  • पीत चितेरी रोग के लक्षण दिखते ही आक्सीडेमेटान मेथाइल 0.1% या डायमेथोएट 0.3% प्रति हेक्टेयर 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर 3 से 4 बार छिडकाव करें।

3. चूर्णी फफूंद रोग

इस रोग में पौधे की पत्तियों Disease control in mung bean cultivation के निचले हिस्से में छोटे-छोटे सफेद धब्बे पड़ जाते हैं, जो बाद में एक बड़ा सफेद धब्बा बना लेते हैं। रोग के बढ़ने के साथ ही ये सफेद धब्बे पत्तियों के साथ-साथ तना, शाखाओं व फलियों पर फैल जाते हैं। समान्तयः चूर्णी फफूंद रोग गर्म व शुष्क मौसम में ज्यादा होते हैं। इसके नियंत्रण के उपाय देखें।

चूर्णी फफूंद रोग नियंत्रण के यह उपाय/तरीके अपनाए

  • रोग प्रतिरोधी प्रजातियों Disease control in mung bean cultivation की मूंग का प्रयोग करें। जैसे-एलवीजी-17,एलबीजी–402, इत्यादि तथा मूंग की टीएआरएम-1, पूसा-9072 इत्यादि का प्रयोग करें।
  • चूर्णी फफूंद रोग का प्रकोप ज्यादा होने पर आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम या केराथेन को पानी में घोलकर मूंग की फसल पर छिड़काव करें।
  • चूर्णी फफूंद रोग के प्रकोप से पौधों को बचाने के लिए घुलनशील गंधक का इस्तेमाल करें।

4. पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल रोग)

पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) एक महत्वपूर्ण विषाणु जनित रोग है, पर्ण व्यांकुचन रोग बीज द्वारा फैलता है व कुछ क्षेत्रो में ये रोग सफेद मक्खी द्वारा भी फैलता है। इसके लक्षण सामान्यत: फसल बोने के 3 से 4 सप्ताह में दिखने लगते हैं।

इस रोग में दूसरी पत्ती Disease control in mung bean cultivation बड़ी होने लगती है, पत्तियों में झुर्रियां व मरोड़पन आने लगता है। संक्रमित पौधों को खेत में दूर से ही देखकर ही पहचाना जा सकता है। इस रोग के कारण पौधे का विकास रुक जाता है, जिससे पौधे में नाम मात्र की फलियां आती हैं । यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में अपनी चपेट में ले सकता है।

पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) नियंत्रण के यह उपाय अपनाए

  • ये रोग पौधे के बीज Disease control in mung bean cultivation द्वारा फैलता हैं इसलिए रोगी पौधों को उखाड़ कर जला कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • बुवाई के समय रोग प्रतिरोधी बीज का चयन करें।
  • पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) से फसल को बचाने के लिए बुवाई के 15 दिन बाद या रोग के लक्षण दिखने पर इमिडाक्रोपिरिड का छिड़काव करे।

मूंग की फसल में होने वाले प्रमुख कीट रोग

गर्मी में मूंग की खेती (Garmi me Moong ki kheti) में कीट प्रबंधन Disease control in mung bean cultivation के लिए खेत के आसपास की मेड़ों, नालियों इत्यादि में खरपतवारों का उचित प्रबंधन करना चाहिए। साथ ही समय पर सिंचाई का ध्यान रखें। मूंग की कीट अवरोधी प्रजातियां ही उगानी चाहिए।

जैविक खेती में फफूंद जैसे रोगों के नियंत्रण के लिए ट्राइको पावर प्लस 6 से10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करें। कीटों के नियंत्रण हेतु नीम से युक्त जैव कीटनाशक एज़ा पावर प्लस 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। यह कीटनाशक जैविक खेती में कीटों और फफूंद जनित रोगों की रोकथाम के लिए उपयोगी है।

1. सफेद मक्खी

सफेद मक्खी Disease control in mung bean cultivation पौधे की पत्तियों एवं फूलों से रस चूसते हैं। यह कीट पत्तों पर हनीडिउ उत्सर्जित करते हैं, जिससे पौधो की पत्तियों पर एक काली परत वन जाती हैं जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया नहीं हो पाती और पौधा मरने लगता है। सफेद मक्खी पीले मोज़ेक वायरस को भी फैलाती है।

साफ मक्खी कीट नियंत्रण के उपाय – सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए रोगर (डाइमोथोएट 30 ई.सी.) को 1.7 मिली/ लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें।

2. माहुं कीट

माहुं कीट भी सफेद मक्खी Disease control in mung bean cultivation के समान ही रहता है। इसके नियंत्रण के लिए एज़ा पावर प्लस को 5 मिली /लीटर पानी या रोगर (डाइमेथोएट 30 ई.सी.) को 1.7 मि.ली./लीटर पानी या इसोगाशी (इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस.एल.) को 0.2 मिली/ प्रति लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करें।

3. जैसिड (हरा फुदका)

जैसिड कीट व उसके बच्चे पत्तियों से रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियां पीली पड़ने और सूखने लगती हैं।

4. थ्रिप्स कीट

इस कीट के बच्चे एवं बड़े दोनों पत्तियों Disease control in mung bean cultivation एवं फूलों से रस चूसते है। भारी प्रकोप होने पर पत्तियों से रस चूसने के कारण वे मुड़ जाती हैं तथा फूल गिर जाते हैं जिससे उत्पादन पर भी इसका असर पड़ता है।

Disease control in mung bean cultivation: मूंग की खेती में कितने पानी लगते है? 

गर्मी में मूंग की खेती करने के समय हर 15 से 20 दिनों में सिंचाई करते रहे। पहली सिंचाई फसल बुवाई के लगभग 30 से 35 दिन बाद कर देना चाहिए। यानी मूंग की खेती में 3 से 4 सिंचाई की जरूरत होती है। पानी की उपलब्धता होने पर किसान साथी ज्यादा सिंचाई भी कर सकता है। जिससे अच्छी पैदावार मिल सकती है।

मूंग की फसल में कौन सा खाद डाले ? 

मूंग की खेती से अच्छी पैदावार लेने के लिए खेत में 2 से 3 वर्षों में खेत के हिसाब से कम से कम एक बार 5 से 10 टन गोबर या कम्पोस्ट खाद देनी चाहिये। इसके अलावा 600 ग्राम रोइजोबियम कल्चर को एक लीटर पानी में 250 ग्राम गुड़ के साथ गर्म कर ठंडा होने पर बीज को उपचारित कर छाया में सुखा लेना चाहिये तथा बुवाई कर देनी चाहिये।

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