ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल को बर्बाद कर सकते है ये किट एवं रोग, जानें इनके लक्षण एवं प्रबंधन

आइए जानते है ग्रीमकालीन मूंग की फसल Disease in Moong Crop में लगने वाले रोग एवं उनके प्रबंधन..

Disease in Moong Crop | हर किसान अपनी आय बढ़ाना चाहता है जिससे वह खरीफ व रबी फसल के अलावा जायद की फसल भी लेता है। अगर आप भी गर्मी में मूंग की खेती कर रहे और अच्छा उत्पादन लेना चाहते है तो आपको मूंग में लगने वाले रोग, कीट एवं उनका प्रबंधन अवश्य जान लेना चाहिए। क्योंकि ये किट एवं रोग आपकी फसल को चौपट कर सकते है। मूंग में लगने वाले रोग कौन से है एवं उनका प्रबंधन Disease in Moong Crop क्या है, यह सब जानने के लिए चौपाल समाचार के इस लेख को अंत तक पढ़ें..

मूंग की फसल में लगने वाले रोग (Disease in Moong Crop)

  • ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग)
  • पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस)
  • चूर्णी फफूंद रोग
  • पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल)

आइए अब इन रोगों के लक्षण एवं प्रबंधन के बारे में जानें…

1. ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग)

Disease in Moong Crop | ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष) रोग के कारण फसल की पैदावार व गुणवत्ता/क्वालिटी पर असर पड़ता है। बता दे की, उत्पादन में लगभग 20 से 60 % की कमी आती है। इस रोग के कारण मूंग के पौधे की पत्तियों, तनों, फलियों तथा फूलों पर भूरे से ले कर धूप से जले हुए से रंग के घाव नजर आते हैं।

ये घाव गोलाकार से ले कर अंडाकार या किसी भी असमान आकृति के हो सकते हैं और इनके किनारे लालिमा लिए हुए या बैंगनी रंग लिए हुए गहरे कत्थई रंग के होते हैं। यह रोग 26 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान व बादल युक्त मौसम इस रोग का प्रमुख कारण होता है और जैसे जैसे तापमान में बड़ोतरी होती है यह रोग फैलता जाता है। यदि इसका प्रबंधन नही किया जाए तो यह फसल को चौपट कर सकता है।

Disease in Moong Crop | ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष) रोग नियंत्रण के प्रबंधन/उपाय :-

  • ऐंथ्राक्नोज (रुक्ष रोग) के नियंत्रण के लिए स्वस्थ, उन्नतशील एवं प्रमाणित मूंग के बीजों का चयन करें। जो रोगप्रतिरोधी रहे।
  • बुवाई से पहले बीजों को थीरम अथवा कैप्टान द्वारा 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज अथवा कार्बेन्डाजिम 0.5 से 1 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज दर से उपचारित कर ले।
  • ऐंथ्राक्नोज रोग के लक्षण दिखने पर 0.2 प्रतिशत जिनेब अथवा थीरम का छिडकाव करें। आवश्यकता अनुसार व 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव Disease in Moong Crop करते रहे।

2. पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस)

पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस) मूंग की फसल में लगने वाला रोग है। पीत चितेरी रोग में पत्तियों का रंग पीला पड़ जाता है और वह झड़ने लगती हैं। पीत चितेरी रोग के कारण मूंग की फलियां पूरी नहीं आ पाती हैं, जिसके कारण मूंग का उत्पादन कम हो जाता है।

संक्रमित पौधों में फूल एवं फलियां देर से व कम लगते हैं। पीत चितेरी रोग के लक्षण पौधे व फलियों Disease in Moong Crop एवं दोनों पर भी दिखाई देते हैं। यह रोग सफेद मक्खी से फैलता है। यह रोग मूंग की फसल के अलावा गेंहू, सोयाबीन एवं अन्य फसलों में भी लगता है।

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Disease in Moong Crop | पीत चितेरी रोग (येलो मोजेक वायरस) नियंत्रण के यह उपाय/प्रबंधन अपनाए :- 

  • रोग अवरोधी मूंग प्रजातियों का प्रयोग करें जैसे- एलजीपी – 407, एमएल – 267 इत्यादि।
  • यदि यह रोग कुछेक क्षेत्र में लगा है तो खेत से एवं मेड़ों से पूर्ण फसल अवशेष, खरपतवार एवं संक्रमित पौधे को निकालकर अलग कर लें व संक्रमित पौधे को नष्ट करें।
  • पीत चितेरी रोग के लक्षण दिखते ही आक्सीडेमेटान मेथाइल 0.1% या डायमेथोएट 0.3% प्रति हेक्टेयर 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर 3 से 4 बार छिडकाव करें। : Disease in Moong Crop

3. चूर्णी फफूंद रोग

इस रोग में पौधे की पत्तियों के निचले हिस्से में छोटे-छोटे सफेद धब्बे पड़ जाते हैं, जो बाद में एक बड़ा सफेद धब्बा बना लेते हैं। रोग के बढ़ने के साथ ही ये सफेद धब्बे पत्तियों के साथ-साथ तना, शाखाओं व फलियों पर फैल जाते हैं। समान्तयः चूर्णी फफूंद रोग गर्म व शुष्क मौसम में ज्यादा होते हैं। इसके नियंत्रण Disease in Moong Crop के उपाय देखें।

चूर्णी फफूंद रोग नियंत्रण के यह उपाय/प्रबंधन अपनाए :-

  • रोग प्रतिरोधी प्रजातियों की मूंग का प्रयोग करें। जैसे-एलवीजी-17,एलबीजी–402, इत्यादि तथा मूंग की टीएआरएम-1, पूसा-9072 इत्यादि का प्रयोग करें।
  • चूर्णी फफूंद रोग का प्रकोप ज्यादा होने पर आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम या केराथेन को पानी में घोलकर मूंग की फसल पर छिड़काव करें।
  • चूर्णी फफूंद रोग के प्रकोप से पौधों को बचाने के लिए घुलनशील गंधक का इस्तेमाल करें। : Disease in Moong Crop

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4. पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल रोग)

Disease in Moong Crop | पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) एक महत्वपूर्ण विषाणु जनित रोग है, पर्ण व्यांकुचन रोग बीज द्वारा फैलता है व कुछ क्षेत्रो में ये रोग सफेद मक्खी द्वारा भी फैलता है। इसके लक्षण सामान्यत: फसल बोने के 3 से 4 सप्ताह में दिखने लगते हैं।

इस रोग में दूसरी पत्ती बड़ी होने लगती है, पत्तियों में झुर्रियां व मरोड़पन आने लगता है। संक्रमित पौधों को खेत में दूर से ही देखकर ही पहचाना जा सकता है। इस रोग के कारण पौधे का विकास रुक जाता है, जिससे पौधे में नाम मात्र की फलियां आती हैं । यह रोग पौधे की किसी भी अवस्था में अपनी चपेट में ले सकता है।

Disease in Moong Crop | पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) नियंत्रण के यह प्रबंधन अपनाए :- 

  • ये रोग पौधे के बीज द्वारा फैलता हैं इसलिए रोगी पौधों को उखाड़ कर जला कर नष्ट कर देना चाहिए।
  • बुवाई के समय रोग प्रतिरोधी बीज का चयन करें।
  • पर्ण व्यांकुचन रोग (लीफ क्रिंकल) से फसल को बचाने के लिए बुवाई के 15 दिन बाद या रोग के लक्षण दिखने पर इमिडाक्रोपिरिड का छिड़काव करे। : Disease in Moong Crop

मूंग की फसल में होने वाले प्रमुख कीट

गर्मी में मूंग की खेती में कीट प्रबंधन के लिए खेत के आसपास की मेड़ों, नालियों इत्यादि में खरपतवारों का उचित प्रबंधन करना चाहिए। साथ ही समय पर सिंचाई का ध्यान रखें। मूंग की कीट अवरोधी प्रजातियां ही उगानी चाहिए।

जैविक खेती में फफूंद जैसे रोगों के नियंत्रण के लिए ट्राइको पावर प्लस 6 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से बीज उपचार करें। कीटों Disease in Moong Crop के नियंत्रण हेतु नीम से युक्त जैव कीटनाशक एज़ा पावर प्लस 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें। यह कीटनाशक जैविक खेती में कीटों और फफूंद जनित रोगों की रोकथाम के लिए उपयोगी है।

1. सफेद मक्खी

सफेद मक्खी पौधे की पत्तियों एवं फूलों से रस चूसते हैं। यह कीट पत्तों पर हनीडिउ उत्सर्जित करते हैं, जिससे पौधो की पत्तियों पर एक काली परत वन जाती हैं जिसके कारण प्रकाश संश्लेषण क्रिया नहीं हो पाती और पौधा मरने लगता है।

सफेद मक्खी पीले मोज़ेक वायरस को भी फैलाती है। साफ मक्खी कीट नियंत्रण के प्रबंधन :– सफेद मक्खी के नियंत्रण के लिए रोगर (डाइमोथोएट 30 ई.सी.) को 1.7 मिली/ लीटर पानी में घोल बनाकर फसल पर छिड़काव करें। : Disease in Moong Crop

2. माहुं कीट

माहुं कीट भी सफेद मक्खी के समान ही रहता है। इसके नियंत्रण के लिए एज़ा पावर प्लस को 5 मिली /लीटर पानी या रोगर (डाइमेथोएट 30 ई.सी.) को 1.7 मि.ली./लीटर पानी या इसोगाशी (इमिडाक्लोप्रीड 17.8 एस.एल.) को 0.2 मिली/ प्रति लीटर पानी मिलाकर फसल पर छिड़काव करें।

3. जैसिड (हरा फुदका)

Disease in Moong Crop | जैसिड कीट व उसके बच्चे पत्तियों से रस चूसते हैं जिसके कारण पत्तियां पीली पड़ने और सूखने लगती हैं।

4. थ्रिप्स कीट

इस कीट के बच्चे एवं बड़े दोनों पत्तियों एवं फूलों से रस चूसते है। भारी प्रकोप होने पर पत्तियों से रस चूसने के कारण वे मुड़ जाती हैं तथा फूल गिर जाते हैं जिससे उत्पादन पर भी इसका असर पड़ता है। : Disease in Moong Crop

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