कम लागत में उच्च उत्पादन देने वाली रायड़ा (सरसों) की बेस्ट वैरायटीयों की जानकारी देखें..

इस वर्ष रायड़ा (सरसों) का रकबा बढ़ेगा, रायड़ा की अधिक पैदावार High yielding Raida variety देने वाली बेस्ट वैरायटीयों की जानकारी..

High yielding Raida variety | मध्य प्रदेश में गेहूं के बाद रायड़ा का रकबा लगातार बढ़ रहा है। इसकी प्रमुख वजह यह है कि रायड़ा यानी कि सरसों की खेती कम लागत एवं कम सिंचाई में हो जाती है नहीं उत्पादन की दृष्टि से देखें तो रायड़ा की औसतन पैदावार 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर यानी की 4 क्विंटल प्रति बीघा के लगभग आसानी से हो जाती है। कृषि विशेषज्ञ इस वर्ष भी रायड़ा का रकबा बढ़ने की संभावना जता रहे हैं। सरसों (रायड़ा) की उन्नत खेती से किस प्रकार किसानों को फायदा मिल रहा है।

इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस फसल का रकबा बढ़ता जा रहा है। कम पानी और कम लागत में पैदा होने वाली यह फसल लोगों को अच्छा खासा मुनाफा दे रही है। चौपाल समाचार के इस लेख में लिए जानते हैं रायड़ा की उन्नत खेती High yielding Raida variety के साथ-साथ उन्नत वैरायटीयों के बारे में जो कम लागत में अच्छी पैदावार देती है..

सरसों (रायड़ा) की उन्नत खेती के बारे में जानें

सरसों यानी रायड़ा रबी की प्रमुख तिलहनी फसल High yielding Raida variety है। सरसों की खेती से किसानों को कम सिंचाई व लागत में दूसरी फसलों की अपेक्षा अधिक लाभ प्राप्त हो रहा है। वैज्ञानिक अनुसंधानों के आधार पर उन्नतशील प्रजातियाँ एवं उन्नत तकनीक अपनाकर किसान भाई 25 से 30 क्विंटल प्रति हे. रायड़ा (सरसों) की पैदावार ले सकते है। मार्केट में सरसों का भाव अच्छा बने रहने से किसानों को प्रति हेक्टेयर 1.5 लाख रुपए का मुनाफा हो सकता है।

सरसों की खेती की तैयारी/मिट्टी – जलवायु

सरसों की अच्छी पैदावार High yielding Raida variety के लिए जमीन का पी.एच.मान. 7.0 होना चाहिए। अत्यधिक अम्लीय एवं क्षारीय मिट्टी इसकी खेती हेतु उपयुक्त नहीं होती है। यद्यपि क्षारीय भूमि में उपयुक्त किस्म लेकर इसकी खेती की जा सकती है। जहां जमीन क्षारीय है वहाँ प्रति तीसरे वर्ष जिप्सम/पायराइट 5 टन प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। जिप्सम की आवश्यकता मृदा पी.एच. मान के अनुसार भिन्न हो सकती है। जिप्सम/पायराइट को मई-जून में जमीन में मिला देना चाहिए।

खरीफ फसलों के बाद करें खेत की जुताई

सिंचित क्षेत्रों में खरीफ फसल High yielding Raida variety के बाद पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से और उसके बाद तीन-चार जुताईयाँ तवेदार हल से करनी चाहिए। सिंचित क्षेत्र में जुताई करने के बाद खेत में पाटा लगाना चाहिए जिससे खेत में ढेले न बने। गर्मी में गहरी जुताई करने से कीड़े मकौड़े व खरपतवार नष्ट हो जाते हैं।

अगर वोनी से पूर्व भूमि में नमी की कमी है तो खेत में पलेवा करना चाहिए। बोने से पूर्व खेत खरपतवार रहित होना चाहिए। अंतिम जुताई के समय 1.5 प्रतिशत क्यूनॉलफॉस 25 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलादें, ताकि भूमिगत कीड़ों की रोकथाम High yielding Raida variety की जा सके।

सरसों (रायडा) की उन्नत किस्में

High yielding Raida variety

  • वरुणा 120 से 125 दिन में पकने वाली किस्म।
  • पूसा बोल्ड 125 से 135 दिन में पकती है।
  • क्रांति 130 से 135 दिन में पकती है
  • जवाहर सरसों-2 135-138
  • जवाहर सरसों-3 130-132
  • राज विजय सरसों-2 120-140
  • नवगोल्ड (पीली सरसों) 122-134
  • आर.जी.एन.-73 127-136
  • आशीर्वाद 125-130
  • माया 125-136

नई सरसों की किस्में

High yielding Raida variety

  • पूसा बिजनेस आरएच 32
  • गुजराती 8
  • आरजीएन 73
  • पूसा जय किसान (बायो-902)
  • पूसा व्यापार 21
  • एचबीबी-506
  • रोग नियंत्रण

सफेद रतुआ रोग

प्रायः सभी जगह पाया जाता है, जब तापमान 10-18° सेल्सियस के आसपास रहता है तब पौधों की पत्तियों की निचली सतह पर सफेद रंग के फफोले बनते है। रोग की उग्रता बढ़ने के साथ-साथ ये आपस में मिलकर अनियमित आकार के दिखाई देते है। पत्ती को उपर से देखने पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है। रोग की अधिकता में कभी-कभी रोग फूल एवं फली High yielding Raida variety पर केकडे़ के समान फूला हुआ भी दिखाई देता है।

नियंत्रण :– समय पर बुवाई (1-20 अक्टूबर) करें। बीज उपचार मेटालेक्जिल (एप्रॉन 35 एस.डी.) 6 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से करें। फसल को खरपतवार रहित रखें एवं फसल अवषेषों को नष्ट करें। अधिक सिंचाई न करें।

High yielding Raida variety रिडोमिल एम जेड़ 72 डब्लू.पी. अथवा मेनकोजेब 1250 ग्राम प्रति 500 लीटर पानी में घोल बनाकर 2 छिड़काव 10 दिन के अन्तराल से 45 एवं 55 दिन की फसल पर करें।

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झुलसा या काला धब्बा रोग

High yielding Raida variety पत्तियों पर गोल भूरे धब्बे दिखाई पड़ते है। फिर ये धब्बे आपस में मिलकर पत्ती को झुलसा देते है एवं धब्बों में केन्द्रीय छल्ले दिखाई देते है। रोग के बढ़ने पर गहरे भूरे धब्बे तने, शाखाओं एवं फलियों पर फैल जाते है। फलियों पर ये धब्बे गोल तथा तने पर लम्बे होते है। रोगग्रसित फलियों के दाने सिकुड़े तथा बदरंग हो जाते है एवं तेल की मात्रा घट जाती है।

नियंत्रण : –बीजोपचार मेन्कोजेव या थायरम 3 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से करें।

High yielding Raida variety रोग के प्रारम्भ होने पर मेनकोजेब 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोल बनाकर 2 से 3 छिड़काव 10 दिन के अंतर से 45, 55 एवं 65 दिन की फसल पर करें।

तना सड़न या पोलियो रोग

तने के निचले भाग में मटमेले या भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते है रोग फसल पर फूल High yielding Raida variety आने के बाद ही पनपता है। प्रायः यह धब्बे रूई जैसे सफेद जाल से ढ़के होते है। रोग की अधिकता में पौधा मुरझाकर या टूटकर नीचे की ओर लटक जाता है। रोगग्रस्त पौधे को चीरकर देखने पर काले रंग के स्केलेरोशिया दिखाई देते है।

नियंत्रण :– स्वस्थ व प्रमाणित बीज का ही उपयोग करें।

  • High yielding Raida variety बीजोपचार 3 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलो बीज की दर से करें।
  • गर्मियों में गहरी जुताई करें व फसल के अवशेष नष्ट कर दें।
  • बीमारी का प्रकोप देखकर 0.1 प्रतिशत की दर से कार्बेन्डाजिम दवा फूल की अवस्था पर 10 दिन के अन्तराल में दो बार पत्तियों व तने पर छिड़काव करें।

कीट नियंत्रण

सरसों की फसल High yielding Raida variety को चितकबरा कीट प्रांरभिक अवस्था की फसल के छोटे-छोटे पौधों को ज्यादा नुकसान पहुँचाते है, प्रौढ़ व शिषु दोनों ही पौधों से रस चूसते है जिससे पौधे मर जाते है। यह कीट बुवाई के समय अक्टूबर माह एवं कटाई के समय मार्च माह में ज्यादा हानि पहुँचाते है।

नियंत्रण :–खेत की गर्मियों में गहरी जुताई करनी चाहिए।कीट प्रकोप होने पर बुवाई के 3-4 सप्ताह बाद यदि सम्भव हो तो पहली सिंचाई कर देना चाहिए जिससे कि मिट्टी के अन्दर दरारों में रहने वाले कीट मर जायें।

छोटी फसल High yielding Raida variety में यदि प्रकोप हो तो क्यूनालफाॅस 1.5 प्रतिशत धूल 15-20 कि.ग्रा. प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव सुबह के समय करें। अत्यधिक प्रकोप के समय मेलाथियान 50 ई.सी. की 500 मि.ली. मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।

चेंपा लसा या माहू कीट

High yielding Raida variety यह सरसों का प्रमुख कीट है। यह कीट प्रायः दिसम्बर के अन्त में प्रकट होता है और जनवरी फरवरी में इसका प्रकोप अधिक होता है। इस कीट के शिशु व प्रौढ़ पौधों का रस चूसते है व फसल को अत्याधिक हानि पहुँचाते हैं।यह कीट मधुस्त्राव निकालते है जिससे काले कवक का आक्रमण होता है और उपज कम हो जाती है। यह कीट कम तापमान व 60-80 प्रतिशत आर्द्रता में अत्यधिक वृद्धि करते है।

नियंत्रण :– सरसों (रायडा) की उन्नत खेती High yielding Raida variety के लिए बुवाई अगेती (1 से 15 अक्टूबर के मध्य) करना चाहिए। चेंपा युक्त फसल की टहनियों को 2-3 बार तोड़कर नष्ट कर देने से चेंपा के गुणन को रोका जा सकता है। नीम की खली का 5 प्रतिशत घोल का छिड़काव नियत्रंण के लिए प्रभावशाली है। अधिक प्रकोप की अवस्था में ऑक्सीडेमेटान मिथाइल 25 ई.सी. या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 500 मिली लीटर दवा 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।

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