इस समय ग्रीष्मकालीन मुंग की फसल (Moong Cultivation) में इल्ली रोग एवं अन्य चीजों का ध्यान रखना आवश्यक है। जानिए कृषि विशेषज्ञों की एडवाइजरी।
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Moong Cultivation | उत्तर भारत के कई हिस्सों में ग्रीष्मकालीन मूंग (हरित मूंग) की फसल अब एक निर्णायक अवस्था में पहुंच चुकी है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां इसकी बुवाई अप्रैल के मध्य में की गई थी। इस समय सिंचाई, कीट नियंत्रण और खेत प्रबंधन से जुड़ी किसानों की सभी गतिविधियाँ अंतिम उपज पर बड़ा प्रभाव डाल सकती हैं।
वही इधर हल्की बारिश से कही कहीं इल्ली एवं पिला मोजेक सहित अन्य रोगों का खतरा भी बढ़ गया है। जिसको लेकर भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के कृषि विशेषज्ञों ने ग्रीष्मकालीन मुंग को लेकर महत्वपूर्ण सलाह जारी की है। जिसमें कृषि विशेषज्ञों ने इल्ली रोग एवं अन्य जानकारी दी है। आइए आर्टिकल में जानते है सबकुछ…
सिंचाई को लेकर सलाह
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, 10 से 15 अप्रैल के बीच मूंग बोने वाले किसानों की फसलों में अब फलियों का निर्माण शुरू हो गया है। यह एक महत्वपूर्ण प्रजनन अवस्था है जिसमें संतुलित पोषण और जल प्रबंधन आवश्यक है। Moong Cultivation
बोने के 20 से 25 दिन बाद से सिंचाई में कटौती करनी चाहिए। अत्यधिक सिंचाई से पौधों में अनावश्यक हरियाली आती है और फलियों का निर्माण विलंबित हो सकता है। केवल जब खेत में नमी की स्पष्ट कमी दिखे, तभी सिंचाई करनी चाहिए। 50–55 दिन के बाद किसी भी प्रकार की सिंचाई नहीं करनी चाहिए ताकि फसल 60–65 दिनों में प्राकृतिक रूप से पक सके।
पीला मोजेक रोग के लिए 2 कीटनाशक का उपयोग करें
कृषि विज्ञान केन्द्र के वरिष्ठ कृषि वैज्ञानिक डॉ. मुकेश बंकोलिया ने ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल उगाने वाले किसानों को पीला मोजेक रोग से सतर्क रहने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि यह रोग एक विषाणुजनित रोग है, जो मुख्यतः सफेद मक्खी (व्हाइटफ्लाई) के माध्यम से एक पौधे से दूसरे पौधे में फैलता है। Moong Cultivation
डॉ. बंकोलिया ने बताया कि रोग की प्रारंभिक अवस्था में ही पीला मोजेक से ग्रसित पौधों को खेत से उखाड़कर नष्ट कर देना चाहिए, जिससे संक्रमण फैलने से रोका जा सके। साथ ही, उन्होंने खेत में पीले चिपचिपे प्रपंच (येलो स्टिकी ट्रैप) लगाने की सिफारिश की है, जिससे सफेद मक्खी को आकर्षित कर नियंत्रित किया जा सकता है।
उन्होंने किसानों को सुझाव दिया कि आगामी सीजन में मूंग की रोग-प्रतिरोधी किस्मों का चयन करें, ताकि फसल को पीला मोजेक जैसे वायरस रोगों से बचाया जा सके। Moong Cultivation
रोग के वाहक कीट सफेद मक्खी के प्रभावी नियंत्रण के लिए डॉ. बंकोलिया ने दो कीटनाशकों की सिफारिश की है जिसमें थायोमेथोक्जाम 25 डब्ल्यूजी की 40 ग्राम मात्रा प्रति एकड़ या इमिडाक्लोप्रिड 17.8 एसएल की 50 मिली मात्रा प्रति एकड़। इन दवाओं का घोल बनाकर सुबह या शाम के समय छिड़काव करना चाहिए। छिड़काव हेतु प्रति एकड़ 100 से 125 लीटर पानी का उपयोग पावर पंप से करने की सलाह दी गई है।
कृषि वैज्ञानिक ने किसानों से आग्रह किया है कि समय पर रोकथाम संबंधी उपाय अपनाकर वे अपनी मूंग फसल को पीला मोजेक रोग से सुरक्षित रखें और उत्पादन में हानि से बचें। Moong Cultivation
मूंग की फसल निर्णायक अवस्था में – विशेषज्ञों की किसानों को सलाह
उत्तर भारत के कई हिस्सों में ग्रीष्मकालीन मूंग (हरित मूंग) की फसल अब एक निर्णायक अवस्था में पहुंच चुकी है, विशेषकर उन क्षेत्रों में जहां इसकी बुवाई अप्रैल के मध्य में की गई थी। इस समय सिंचाई, कीट नियंत्रण और खेत प्रबंधन से जुड़ी किसानों की सभी गतिविधियाँ अंतिम उपज पर बड़ा प्रभाव डाल सकती हैं। Moong Cultivation
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) के कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, 10 से 15 अप्रैल के बीच मूंग बोने वाले किसानों की फसलों में अब फलियों का निर्माण शुरू हो गया है। यह एक महत्वपूर्ण प्रजनन अवस्था है जिसमें संतुलित पोषण और जल प्रबंधन आवश्यक है।
मूंग की फसल जैसे ही फलियों की अवस्था में प्रवेश करती है, यह सफेद मक्खी, थ्रिप्स और फली छेदक कीटों के हमले के प्रति संवेदनशील हो जाती है। सप्ताह में एक बार नियमित निगरानी आवश्यक है। इन कीटों के कारण फूल और फलियाँ झड़ सकती हैं, जिससे उपज में भारी नुकसान हो सकता है। प्रणालीगत कीटनाशकों का संयमित उपयोग करना चाहिए और स्थानीय कृषि अधिकारी की सलाह का पालन करना चाहिए। Moong Cultivation
बुवाई के 25–30 दिन बाद एक बार हाथ से निराई या अनुशंसित खरपतवारनाशक का छिड़काव आवश्यक है। खरपतवार पोषक तत्वों के साथ-साथ कीट और रोगों का भी वाहक बनते हैं।
यदि मूंग की बुवाई गेहूं के बाद की गई है, तो नाइट्रोजन की आवश्यकता कम हो सकती है। लेकिन फास्फोरस और जिंक की पूर्ति मिट्टी की जांच के आधार पर करनी चाहिए। जिंक की कमी सामान्य है, जिसे ज़िन्क सल्फेट (ZnSO4) के प्रयोग से सुधारा जा सकता है। यदि सिंचाई और कीट प्रबंधन में इस समय लापरवाही बरती गई तो 30–40% तक उपज घट सकती है। Moong Cultivation
बारिश से इल्ली एवं रोग का खतरा बढ़ा
प्रदेश में पिछले 2-3 दिनों से हो रही हल्की वर्षा और मौसम में लगातार हो रहे उतार-चढ़ाव के चलते मूंग की फसल में कीट और रोग का प्रकोप बढ़ने की संभावना जताई गई है। कृषि विज्ञान केन्द्र के कृषि वैज्ञानिकों एवं कृषि विभाग के अधिकारियों ने किसानों को सतर्क रहने की सलाह दी है। Moong Cultivation
विशेष रूप से मूंग की फसल में इल्ली के प्रकोप की आशंका व्यक्त की गई है। वैज्ञानिकों ने किसानों से अपील की है कि वे प्रतिदिन अपनी फसल का निरीक्षण करें। यदि इल्ली का प्रकोप दिखाई दे तो निम्नलिखित कीटनाशकों में से किसी एक का छिड़काव करें:
इमामेक्टिन बेंजोएट 5% एस.जी. – 200 ग्राम प्रति हेक्टेयर, प्रोफेनोफॉस 50% ई.सी. – 1.25 लीटर प्रति हेक्टेयर, इन्डोक्साकार्ब 14.5% एस.सी. – 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर। इसके साथ ही, ग्रीष्मकालीन मूंग फसल में पीला मोजेक रोग भी फैलने की आशंका है। Moong Cultivation इसके नियंत्रण हेतु कृषि वैज्ञानिकों ने निम्नलिखित कीटनाशकों के प्रयोग की सलाह दी है:
थायोमेथोक्जाम 25 डब्ल्यूजी – 40 ग्राम प्रति एकड़, इमीडाक्लोप्रिड 17.8 एस.एल. – 50 मिलीलीटर प्रति एकड़, इन कीटनाशकों को 100 से 125 लीटर पानी में घोलकर, सुबह या शाम के समय छिड़काव करना अधिक प्रभावी रहेगा।
कृषि विभाग ने किसानों से आग्रह किया है कि वे मौसम की स्थिति को ध्यान में रखते हुए समय पर आवश्यक कार्रवाई करें ताकि फसल को नुकसान से बचाया जा सके। Moong Cultivation
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