कृषि वैज्ञानिकों के द्वारा तैयार कम अवधि में पकने वाली सरसों की उन्नत किस्मों की विशेषताओं एवं पैदावार के बारे में जानें

सरसों की अगेती खेती Mustard cultivation करने वाले किसानों के लिए अच्छी खबर.. नवीनतम किस्म के बारे में जानिए..

Mustard cultivation | खरीफ सीजन अपने अंतिम दौर में है इसके बाद रबी सीजन के लिए तैयारियां शुरू होने वाली है कई किसानों के द्वारा रबी सीजन के दौरान सरसों की अगेती खेती की जाती है। इसके लिए उन्नत बीज की तलाश किसानों को सदैव से ही किसानों की इसी मांग को देखते हुए कृषि वैज्ञानिकों ने सरसों की आगे की खेती के लिए उन्नतशील बीज विकसित किए हैं।

यह उन्नतशील बीज पूषा संस्थान ने तैयार किए हैं। पूसा संस्थान द्वारा तैयार किए गए कम अवधि में पकने वाली सरसों की किस्म Mustard cultivation की विशेषतायें एवं पैदावार के बारे में आईए जानते हैं –

नवीन किस्म सिंचित और बराली दोनों क्षेत्रो में उपयुक्त

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ डॉ. नवीन सिंह ने कृषकों को सरसों की अगेती फसल Mustard cultivation लेने के लिए उन्नत किस्मों सहित अन्य सम सामायिक क्रियाओं की विस्तृत जानकारी दी हैं। उन्होंने बताया कि तिलहनी फसलों में सरसों एक प्रमुख फसल हैं जो संपूर्ण भारत में सिंचित और बराली दोनों क्षेत्रो में उगाई जाती हैं।

सरसों के पौधो का उपयोग विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थों को बनाने में तो होता ही हैं, साथ ही इसकी खली मवेशियों के खिलाने में भी काम आती है। कृषि विशेषज्ञ डॉ नवीन ने कहा कि ऐसा देखने में आया हैं कि कई बार कुछ कारणों की वजह से किसान खरीफ फसल Mustard cultivation की बुआई नहीं कर पाते हैं, तो इस कारण उनके खेत खाली रह जाते हैं। ऐसी दशा में कई किसान सितंबर माह में सरसों की अगेती फसल लेते हैं।

इन किसानों के लिए फायदेमंद अगेती खेती

Mustard cultivation कुछ ऐसे किसान जो फरवरी माह में गन्ना लगाना चाहते हैं, फरवरी में अगेती सब्जियों लगाने चाहते हैं, या जनवरी के माह में प्याज या लहसुन की खेती करना चाहते हैं, तो ऐसे किसान भी खरीफ फसल के समय अपने खेतों को खाली रखते हैं।

जिसके कारण ये खेत सितंबर माह से लेकर जनवरी माह तक खाली रहते हैं। तो इस समय किसान कम समय में पकने वाली भारतीय सरसों की प्रजाति लगाये तो इससे किसान एक अतिरिक्त फसल भी लें सकते हैं और इससे उनको अच्छा लाभ मिलेगा।

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अगेती खेती के लिए कारगर रहेगी सरसों की यह किस्में

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान नई दिल्ली ने Mustard cultivation ऐसी प्रजातियों को विकसित किया है, जो कम समय में पक कर तैयार हो जाती हैं। यह किस्में कुछ इस प्रकार हैं :-

पूसा तारक एंव पूसा महक : इसके बाद दो और प्रजातियों का विकास किया गया जो कि पूसा तारक और पूसा महक हैं। ये दोनो प्रजाति करीब-करीब 110-115 दिन के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं। इसकी औसत पैदावार 15-20 क्वि. प्रति हेक्टेयर के बीच में रहती है।

पूसा अग्रणी : सरसों की कम अवधि में पकने वाली पहली प्रजाति हैं पूसा अग्रणी जो 110 दिन की अवधि के अंदर पक कर तैयार हो जाती हैं। इसकी औसत पैदावार 13.5 क्वि. प्रति हेक्टेयर Mustard cultivation होती हैं।

पूसा सरसों -25 : इसके अलावा संस्थान की एक और सरसों की प्रजाति हैं , जो सबसे कम समय में पक कर तैयार हो जाती हैं, जोकि 100 दिन में ही पक जाती हैं। इसका नाम पूसा सरसों -25 हैं। इसकी औसत पैदावार 14.5 क्वि. प्रति हेक्टेयर के बीच रहती हैं।

पूसा सरसों -27 : पूसा सरसों-27 को पकने में 110-115 दिन की अवधि का समय लगता हैं। इसकी औसत पैदावार करीब 15.5 क्वि. प्रति हेक्टेयर के बीच रहती हैं।

पूसा सरसों -28 : इन सभी प्रजातियों में जो नवीनतम प्रजाति हैं वह हैं पूसा सरसों-28. यह प्रजाति 105-110 दिन के अंदर पक जाती हैं। इसकी औसत पैदावार 18-20 क्वि. प्रति हेक्टेयर Mustard cultivation होती हैं।

(इन सभी प्रजातियों को हम 15 सितंबर के आस-पास बुआई कर सकते हैं और यह करीब-करीब जनवरी के पहले हफ्ते में पक जाती है।)

अगेती किस्मों के लाभ

इन प्रजाति की फसलों Mustard cultivation में माहू या चेपा कीट का प्रकोप नहीं होता हैं। इसके अलावा यह फसल आमतौर पर बीमारी रहित रहती हैं।

किसान ध्यान दे की इस समय एक मुख्य कीट आता हैं जो पेंटेड बग हैं। यह कीट फसल को पूरी तरह से नष्ट कर देता हैं। इस कीट के प्रकोप से कई बार तो ऐसा लगता हैं कि जैसे फसल की कभी बुआई ही नहीं की गई हो । यह कीट हमेशा अकुंरण के समय आता हैं और फसल को नष्ट कर देता हैं।

इस अवस्था में 5 प्रतिशत मेलाथिऑन 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से भुरकाव करें। यह भुरकाव हमेशा सुबह के समय करना चाहिए। क्योकि सुबह के समय पत्तों Mustard cultivation पर थोड़ी नमी होती हैं, जिससे पाउडर अच्छी तरह पत्तों पर चिपक जाता हैं और एक लंबे समय तक फसल को पेंटेड बग के प्रकोप से बचाता हैं।

अगेती किस्में जोकि कम समय में पक जाती हैं। इन किस्मों को लगाकर किसान तीन फसलें एक साल में ले सकता हैं और अधिक लाभ कमा सकता हैं।

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