धान की अच्छी फसल (Paddy Advisory) के लिए किसानों को इस सितंबर महीने में कौन कौन से कृषि कार्य करने चाहिए, आइए जानते है…
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Paddy Advisory | धान की फसल अब 45 से 65 दिन की हो गई है। इस समय अच्छी बारिश खरीफ फसलों के लिए फायदेमंद साबित हो रही है।
धान की अच्छी पैदावार के लिए किसानों को यह अवश्य ध्यान रखना चाहिए की उनकी फसल में किट एवं रोग का प्रकोप तो नही हो रहा है।
45 से 65 दिन की धान की फसल में किसानों को सितंबर माह में कौन कौन सा कृषि कार्य करने चाहिए।
इसको लेकर कृषि विभाग, उत्तर प्रदेश द्वारा जारी एडवाइजरी में सितंबर माह की एडवाइजरी Paddy Advisory जारी की है। आइए जानते है सितंबर माह में किसानों को धान की फसल में क्या कार्य करने चाहिए…
धान की फसल में सितंबर माह में किए जाने वाले कार्य
Paddy Advisory | धान की फसल में इस समय कई प्रकार के किट एवं रोगों का प्रकोप देखा जा रहा है। सितंबर माह में लगने वाले कुछ प्रमुख किट एवं रोगों की जानकारी यहां दी गई है।
1. धान में झोंका रोग से बचाव
इस रोग में धान की पत्तियों पर आंख की आकृति के धब्बे बनते हैं जो मध्य में राख के रंग के तथा किनारे गहरे कत्थई रंग के होते हैं। पत्तियों के अतिरिक्त बालियों, डंठलों, पुष्प, शाखाओं एवं गांठो पर काले भूरे धब्बे बनते हैं।
किसान भाई इसके नियंत्रण हेतु कार्बेडाजिम 50% WP 500 ग्राम अथवा मैंकोजेब / जिनेब 75% WP 2 किलो ग्राम / हेक्टेयर की दर 500-700 ली पानी में घोलकर छिड़काव करें। : Paddy Advisory
2. धान में भूरा फुदका किट
इस कीट के पौढ़ भूरे रंग के पंखयुक्त तथा शिशु पंखहीन भूरे रंग के होते हैं। पौढ तथा शिशु दो ही कीट पत्तियों एवं कल्लो का रस चूसकर धान को हानि पहुंचाते हैं। जिससे प्रकोप के प्रारंभ में गोलाई में पौधे काले होके सूखने लगते हैं। इसे हॉपर बर्न भी कहते हैं।
किसान भाई जब भूरा फुदका की संख्या 15 से 20 कीट प्रति पुंज हो तो, इसके बचाव के लिए कार्बोफ्यूरान 3 CG 25 KG प्रति हेक्टेयर अथवा क्लोरपाइरीफास 20% EC 1.50 ली. /हेक्टेयर को 500 से 600 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। : Paddy Advisory
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3. धान की फसल में खैरा रोग
इस रोग में पत्तियों पर पहले पीले रंग के धब्बे बनते हैं और फिर ये धब्बे कत्थई रंग के हो जाते हैं। इस रोग से पौधा बौना हो जाता है और इसकी व्याप्ति कम हो जाती है।
प्रभावित पौधों की जड़ें भी कत्थई रंग की हो जाती हैं। यह रोग धान रोपने के बीस से पच्चीस दिनों के अंदर दिखने लगता है। इस रोग से पौधे के विकास, पुष्पण, फलन, और परागण तक प्रभावित हो जाता है।
खैरा रोग से बचाव के लिए, फेरोमोन ट्रैप (एसबी ल्योर) का इस्तेमाल किया जा सकता है। : Paddy Advisory
रसायनिक नियंत्रण के लिए, क्यूनालफ़ास 25 प्रतिशत ईसी, क्लोरपाइरीफ़ास 20 प्रतिशत ईसी, या फ़िप्रोनिल पांच प्रतिशत एससी दवा का इस्तेमाल किया जा सकता है।
धान की फसल में खैरा रोग से बचाव के लिए, पांच किलो ज़िंक सल्फ़ेट और 20 किलो यूरिया को 1,000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव किया जा सकता है। : Paddy Advisory
4. धान की फसल में गंधी रोग
धान के डंठल में लगने वाला गंधी कीट टिब्राका लिंबैटिवेंट्रिस है। यह कीट मध्य और दक्षिण अमेरिका का मूल निवासी है। यह कीट धान के अलावा सोयाबीन, टमाटर, और गेहूं पर भी हमला करता है।
आम तौर पर यह कीट फ़सल कटाई के बीच का समय खेत के बाहर बिताता है और नया रोपण होते ही लौट आता है। वयस्क और कीटडिंभ, दोनों ही पौधे को खाते हैं।
गंधी कीट बालियों पर बैठकर दानों का रस चूसता है, जिससे बाली में दाने नहीं बनते और पैदावार प्रभावित होती है। इसके बचाव के लिए नाइट्रोजन का इस्तेमाल बंद कर दें। : Paddy Advisory
मैलाथियान पांच प्रतिशत धूल को 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में बुरकाव करें। मिथाइल पैराथियान दो प्रतिशत धूल 25 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर बुरकाव करें।
एमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत 0.300 लीटर प्रति हेक्टेयर 500-600 लीटर पानी के साथ स्प्रे करें। थायामेथोक्साम 25 प्रतिशत डब्लूजी 40 ग्राम प्रति एकड़ का छिड़काव 500 लीटर पानी में घोल कर स्प्रे करें।
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