धान में दिखे कंडुआ रोग तो तत्काल करें उपचार – कृषि विभाग ने जारी की एडवाइजरी

धान की फसल को कीट रोग से बचने के लिए कृषि विभाग में एडवाइजरी Paddy Farming Advice जारी की है, देखें डिटेल..

Paddy Cultivation Advice | धान की बालियों में लगने वाली कंडुआ रोग (हल्दिया रोग), गंधी व फुदका कीट से बचाव के लिए कृषि विभाग ने एडवाइजरी जारी की है। वहीं फसलों को विभिन्न रोगों से बचाने के उपाय भी सुझाए हैं।

जारी एडवाइजरी (Paddy Farming Advice) में बताया कि कंडुआ रोग हवा से फैलता है। जलभराव व नाइट्रोजन की अधिक मात्रा भी इस रोग के फैलने में मदद करती है। इस रोग के लक्षण पुष्पीकरण के दौरान दिखते हैं।

कृषि विभाग द्वारा जारी एडवाइजरी (Paddy Farming Advice) के अनुसार धान की फसल में इस समय देखने करने से अच्छी पैदावार मिलेगी। कृषि विभाग की एडवाइजरी आइए जानते हैं..

कृषि विभाग ने जारी की एडवाइजरी  (Paddy Farming Advice) 

रोग से धान के दाने पीले, हरे या काले हो जाते है। रोग के लक्षण दिखने पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड दो किलोग्राम प्रति हेक्टेयर में छिड़काव करें। वहीं प्रोपिकोनाजोल 25 प्रतिशत 500 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 से 600 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। बताया कि धान की फसल में भूरा फुदका व गंधी बग कीट का प्रकोप भी इसी समय होता है। इसका कीट धान के तने पर बैठकर पौधे का रस चूसता है, जिससे फसल सूख जाती है।

इसके उपचार के लिए धान में यूरिया का प्रयोग न करें। इमिडाक्लोप्रिड 17.8 प्रतिशत एसएल 50 मिलीलीटर प्रति एकड छिड़काव करें। थायामेथोक्साम 25 प्रतिशत डब्लूजी का 40 ग्राम प्रति एकड 500 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। गंधी कीट से बचाव के लिए मैलाथियान पांच प्रतिशत 25 किलोग्राम धूल में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। यह सभी रसायन राजकीय कृषि रक्षा इकाई में अनुदान पर उपलब्ध हैं। (Paddy Farming Advice)

इस समय सिंचाई एवं उर्वरक प्रबंधन कैसे करें

धान की बालियां तथा फूल निकलने के समय खेत में पर्याप्त नमी बनाये रखने के लिए आवश्यकतानुसार सिंचाई करें। शोध के परिणामों ने यह साबित कर दिया है कि एक से दूसरी सिंचाई में यदि अंतराल यानी खेत का पानी सूखने के 2 से 3 दिनों बाद दूसरी सिंचाई करें। इस पद्धति से न सिर्फ पानी की आवश्यकता में कमी आती है, बल्कि उपज में बढ़ोतरी भी पाई जाती है। (Paddy Farming Advice)

धान में नाइट्रोजन की दूसरी व अन्तिम मात्रा टॉप ड्रेसिंग के रूप में 50-55 दिनों के बाद अर्थात बाली बनने की प्रारम्भिक अवस्था में अधिक उपज देने वाली उन्नत किस्मों के लिए 30 कि.ग्रा. तथा सुगन्धित किस्मों के लिए 15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें। ध्यान रहे कि टॉप ड्रेसिंग करते समय खेत में 2-3 सें.मी. से अधिक पानी नहीं होना चाहिए।

धान का झोंका ( ब्लास्ट) रोग

यह रोग फफूंद से फैलता है। पौधों के सभी भाग इस रोग द्वारा प्रभावित होते हैं। असिंचित धान में इस रोग का प्रकोप बहुत अधिक होता है । इस रोग का प्रकोप होने पर पत्तियां झुलसकर सूख जाती हैं। गांठों पर भी भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। इससे समुचित पौधे को नुकसान पहुंचता है । तनों की गांठें पूर्णत: या उसका कुछ भाग काला पड़ जाता है। (Paddy Farming Advice)

कल्लों की गांठों पर कवक के आक्रमण से भूरे धब्बे बनते हैं। इससे गांठ द्वारा चारों ओर से घेर लेने से पौधे टूट जाते हैं। बालियों के निचले डंठल पर धूसर बादामी रंग के क्षतस्थल बनते हैं। इस रोग का प्रकोप जुलाई से सितंबर में अधिक होता है। इस रोग के नियंत्रण के लिए बुआई से पूर्व बीजों को ट्राईसाइक्लेजोल 2.0 ग्राम प्रति कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें।

दौजियां निकलने और पुष्पण अवस्था में जरूरत पड़ने पर कार्बेण्डाजिम (0.1 प्रतिशत) का छिड़काव करें। खड़ी फसल में 250 ग्राम कार्बेन्डाजिम व 1.25 कि.ग्रा. इंडोफिल एम-45 को 1000 लीटर पानी में घोलकर / हैक्टर की दर से छिड़काव करना चाहिए। (Paddy Farming Advice)

झोंका अवरोधी प्रजातियां जैसे वी.एल. धान – 206, मझेरा – 7 (चेतकी धान), वी. एल. धान – 163, वी. एल. धान – 221 (जेठी धान) इसके अतिरिक्त वी. एल. धान – 61 ( सिंचित क्षेत्रों के लिए मध्यकालीन बुआई हेतु ) आदि की बुआई करें।

रोग के लक्षण दिखायी देने पर 10-12 दिनों के अन्तराल पर या बाली निकलते समय दो बार आवश्यकतानुसार कार्बेन्डाजिम 50 प्रतिशत घुलनशील घोल की 15-20 ग्राम मात्रा को लगभग 15 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति नाली की दर से छिड़काव करें। (Paddy Farming Advice)

धान का गर्दन तोड़ सबसे हानिकारक रोग है। बीज उपचार के लिए बाविस्टीन 2 ग्राम / कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करें। इस रोग के दिखाई देते ही काण्डाजिम 1 ग्राम / लीटर या हीमोसान 1 मि.ली. दवा 1 लीटर पानी की दर से छिड़काव करें एवं दूसरा छिड़काव 7- 10 दिनों के बाद करें। (Paddy Farming Advice)

भूरी चित्ती रोग

इस रोग के लक्षण मुख्यतः पत्तियों पर तथा पर्णच्छदों पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे के रूप में दिखायी देते हैं। ज्यादा संक्रमण होने पर ये धब्बे आपस में मिलकर पत्तियों को सूखा देते हैं। बालियां पूर्ण रूप से बाहर नहीं निकलती हैं। इस रोग का प्रकोप उपराऊ धान में कम उर्वरता वाले क्षेत्रों में अधिक दिखायी देती है। (Paddy Farming Advice)

इस रोग की रोकथाम हेतु संतुलित मात्रा में नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश का प्रयोग करें। बीज को थीरम 2.5 ग्राम / कि.ग्रा. बीज की दर से उपचारित करके बुआई करें। जिंक मैग्नीज कार्बोनेट 75 प्रतिशत का 2 कि.ग्रा. को 800 लीटर पानी में घोलकर / हैक्टर में छिड़काव करें। (Paddy Farming Advice)

धान की फसल के पकते समय नसवार जैसे दाने धान के दानों के साथ लग जाते हैं। इससे फसल की उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इस रोग को ‘फॉल्स स्मट’ के नाम से भी जाना जाता है।

रोगग्रस्त दाने आकार में सामान्य दानों से दोगुने या 5-6 गुना होते हैं। रोग को कम करने के लिए 500 ग्राम मैंकोजेब या कॉपर ऑक्सीक्लोराइड को 200 लीटर पानी में प्रति एकड़ की दर से छिड़काव करना चाहिए। (Paddy Farming Advice)

धान का पत्ती लपेटक कीट

इस कीट की सूंडी पौधों की कोमल पत्तियों को सिरे की तरफ से लपेटकर सुरंग-सी बना लेती हैं और उसके अंदर से खाती रहती हैं। फलस्वरूप पौधों की पत्तियों का रंग उड़ जाता है और पत्तियां सिरे की तरफ से सूख जाती हैं। अगस्त से लेकर अक्टूबर तक इसके द्वारा नुकसान होता है।

नियंत्रण के लिए कीटों को प्रकाश प्रपंच (लाइट ट्रैप) पर इकट्ठा करके मार सकते हैं। अंड परभक्षी टाइकोग्रामा काइलोनिस 1,00,000-1,50,000 प्रति हैक्टर की दर से प्रयोग करें। (Paddy Farming Advice)

कारटैप हाइड्राक्लोराइड 4 जी 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर या क्विनालफॉस 25 ई. सी., 2 मि.ली. प्रति लीटर या कारटैप हाइड्रोक्लोराइड 50 एस. पी. 1 मि.ली. प्रति लीटर या क्लोरपायरीफॉस 20 ई. सी., 2 मि.ली. प्रति लीटर या फ्यू बेडियामाइड 39.35 एस. पी. 1 ग्राम प्रति 5 लीटर पानी या एसीफेट 75 एस. पी., 2 ग्राम प्रति लीटर या मोनोक्रोटोफॉस 2 मि.ली. प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें। (Paddy Farming Advice)

गंधी बग

भारत के कुछ हिस्सों में यह धान का प्रमुख कीट है। यह कीट खेत में दुर्गंध पैदा करता है। इसलिए इसे गंधी बग कहते हैं। वयस्क बग पतले तथा पीले हरे रंग के होते हैं। शुरुआत में शिशु हरे रंग के होते हैं, पर बाद में भूरे रंग के हो जाते हैं। धूप के समय कीट पौधे की छाया वाले हिस्से पर रहते हैं। मादा, पत्ती पर एक रेखा में अंडे देती है। अंडे गोल तथा भूरे रंग के होते हैं। (Paddy Farming Advice)

शिशु 6-7 दिनों में अंडों से बाहर निकल आते हैं। वयस्क तथा शिशु दोनों ही दूधिया अवस्था में दानों से रस चूसकर उनको खाली कर देते हैं । ग्रसित दानों पर काली फफूंद / काले या भूरे धब्बे दिखाई देते हैं। जल्दी पकने वाली किस्मों की तुलना में देर से पकने वाली प्रजातियां इसकी ज्यादा शिकार होती है। इस कीट के भयंकर आक्रमण से लगभग 50 प्रतिशत तक नुकसान हो सकता है।

गंधी बग के नियंत्रण हेतु नाइट्रोजन खाद के अधिक उपयोग से बचें और केवल संतुलित खाद ही प्रयोग करें। एक क्षेत्र के खेतों में बुआई तथा रोपाई एक ही समय पर करें। प्रकाश प्रपंच के प्रयोग से कीटों को पकड़कर नष्ट कर दें।

आवश्यकतानुसार मैलाथियान 50 ई.सी. 2 मि.ली. या एसीफेट 75 एस. पी. 2 ग्राम प्रति लीटर या क्विनॉलफॉस 25 ई. सी. 2 मि.ली. / लीटर या डी.डी. वी. पी. 76 ई.सी. 1.5 मि.ली. / लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें या मैलाथियांन धूल 25 कि.ग्रा./ हैक्टर की दर से छिड़काव करें। (Paddy Farming Advice)

धान का भूरा पौध फुदका कीट

यह कीट भूरे रंग के होते हैं और पौधों की निचली सतह पर कल्लों के बीच रहकर भूरा पौध फुदका कीट तने व पत्तियों का रस चूसते हैं। इनके नियंत्रण के लिए नाइट्रोजन का सीमित उपयोग करें तथा खेत में लगातार पानी भरकर न रखें।

आवश्यकतानुसारनीम ऑयल 1.5 लीटर/ हैक्टर की दर से छिड़काव करें या इमिडाक्लोरोप्रिड 17.8 एस. एल. 1 मि.ली. 3 लीटर पानी या बुप्रोफेजिन 25 एस. एल. 1 मि.ली. पानी या क्लोरपायरीफॉस 20 ई.सी. 2 मि.ली. पानी या दानेदार कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से छिड़काव करें। (Paddy Farming Advice)

धान का तनाछेदक कीट

धान में तनाछेदकों की दो-तीन प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें पीला व गुलाबी तनाछेदक मुख्य हैं। पीला तनाछेदक धान का महत्वपूर्ण और विशिष्ट कीट है। गुलाबी तनाछेदक बहु फसल भोगी है तथा धान-गेहूं फसलचक्र में कीट का प्रकोप ज्यादा होता है। इस कीट की गिडार ही नुकसान पहुंचाती है। फसल की प्रारम्भिक अवस्था में इसके प्रकोप से पौधों का मुख्य तना सूख जाता है। (Paddy Farming Advice)

इसके नियंत्रण के लिए अगर डेड हार्ट की संख्या 5 प्रतिशत या ज्यादा हो जाये, तो तनाछेदक कीट के नियंत्रण के लिए कार्बोफ्यूरॉन 3 जी 20 कि.ग्रा. या डाईमेक्रान 590 मि.ली. या मोनोक्रोटोफॉस (36 ई.सी.) 1.4 लीटर या कोरबा 2.5 लीटर या कार्टेप हाइड्रोक्लोराइड 4 जी 25 कि.ग्रा. या क्यूरालफॉस (5 जी) 20 कि.ग्रा. या फोरेट (10 जी) 10 कि.ग्रा. या एसीफेट 75 एस.पी., 2 ग्राम प्रति लीटर या फ्यूराडॉन (3 जी ) 25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर या क्विनालफॉस 20 ई.सी. प्रति 2 मि.ली. प्रति लीटर की दर से 500-700 लीटर पानी में घोलकर 3-4 सें.मी. खड़े पानी में छिड़काव करें।

इसे लाइट ट्रैप द्वारा पकड़कर भी रोकथाम की जा सकती है। रोपाई के 30 दिनों बाद से ट्राइकोकार्ड 1-1.5 लाख अंडे प्रति हैक्टर प्रति सप्ताह की दर से 2-6 सप्ताह तक प्रयोग करें। (Paddy Farming Advice)

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