आइए जानते है बंपर पैदावार के लिए कपास की बुवाई (Cotton Sowing) में ध्यान रखने वाली महत्वपूर्ण बातों के बारे में।
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Cotton Sowing | कपास एक महत्वपूर्ण नकदी फसल है, जिसे “सफेद सोना” भी कहा जाता है। यह मुख्य रूप से रेशे (फाइबर) के लिए उगाई जाती है, जिसका उपयोग वस्त्र उद्योग में कपड़े बनाने के लिए किया जाता है।
कपास की खेती भारत सहित विश्व के कई देशों में बड़े पैमाने पर होती है। भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में की जाती है। कपास की खेती सामान्य तौर पर अप्रैल व मई महीने में की जाती है।
कपास की खेती का समय अब आ गया है। देश में कई जगहों पर किसान इस माह से कपास की बुवाई (Cotton Sowing) शुरू कर देंगे। ऐसे में कपास किसानों को इसकी बेहतर पैदावार और इससे लाभ प्राप्त करने के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है।
कपास की फसल में लगने वाला सबसे खतरनाक रोग फसल को नष्ट कर देता है। ऐसे में भी गुलाबी सुंडी के प्रकोप से बचने के लिए किसानों को कपास की बुवाई करते समय कुछ बातों का ध्यान रखें ताकि उन्हें बेहतर पैदावार मिल सके। बता दें कि गुलाबी सुंडी के प्रकोप से हर साल कपास की फसल को नुकसान होता है।
कपास की खेती के लिए चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार की ओर से प्रारंभिक सलाह जारी की गई है। कृषि विश्वविद्यालय की ओर से कपास की बुवाई के समय को देखते हुए किसानों काे ध्यान रखने वाली खास बातें बताई गई हैं। आइए आर्टिकल में जानते है किसानों को कपास की बुवाई (Cotton Sowing) के दौरान किन बातों का ध्यान रखना चाहिए…
कहां कहां होती है कपास की खेती | Cotton Sowing
बता दें की देश के कई राज्यों में कपास की खेती की जाती है जिसमें हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, आंधप्रदेश तेलंगाना जैसे राज्य शामिल हैं। इसके अलावा मध्यप्रदेश के निबाड़ क्षेत्र में प्रदेश की 75 प्रतिशत कपास होती है।
इसके अलावा धार, झाबुआ, देवास व छिदवाड़ा में भी कपास की खेती की जाती है। हालांकि इसका बुवाई समय अलग–अलग क्षेत्रों में कपास की किस्म के आधार पर अलग–अलग होता है। कई किसान रबी सीजन की समाप्ति के बाद कपास की खेती करते हैं।
कपास की खेती (Cotton Sowing) के लिए चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार द्वारा बीज खरीदने से लेकर गुलाबी सुंडी के रोकथाम के लिए भी प्रारंभिक सलाह जारी की है। आइए 5 प्वाइंट से समझते है…
1. कपास का बीज खरीदने के दौरान बरतें सावधानी
किसानों को बीटी कपास का प्रमाणिक बीज ही बुवाई (Cotton Sowing) के लिए इस्तेमाल करना चाहिए। बीटी कपास का बीज प्रमाणित संस्था या अधिकृत विक्रेता से ही खरीदना चाहिए।
बीटी कपास की खरीद के समय विक्रेता से पक्का बिल अवश्य लेना चाहिए ताकि बीज में कोई गड़बड़ हो तो विक्रेता पर कार्रवाई की जा सके।
वर्तमान में कपास (Cotton Sowing) के गुलाबी सुंडी के प्रति बीटी कॉटन का प्रतिरोधक बीज उपलब्ध नहीं है। ऐसे में 3जी, 4जी एवं 5जी के नाम से आने वाले बीजों से सावधान रहे। इनकी खरीद नहीं करें।
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2. समय पर करें कपास की बुवाई
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार किसानों को सही समय पर कपास की बुवाई (Cotton Sowing) करनी चाहिए। बुवाई के दौरान उपयुक्त दूरी रखने और बीज की मात्रा आदि की जानकारी किसान को होनी चाहिए। कृषि अधिकारियों के अनुसार कपास की बुवाई 20 अप्रैल से 20 मई के बीच करना फायदेमंद रहता है।
अगेती और पिछेती बुवाई हर बार कारगर नहीं होती है। ऐसे में किसानों को उपयुक्त समय पर ही कपास की बुवाई कर देनी चाहिए। सिंचाई के लिए पानी की व्यवस्था नहीं होने की स्थिति में कपास की पिछेती बुवाई की जगह किसान मूंग मोठ जैसी कम पानी में उगने वाली फसलों की खेती का सकते हैं।
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3. किस प्रकार करें कपास की बुवाई
कृषि विभाग के मुताबिक कपास की बुवाई (Cotton Sowing) का उचित समय अप्रैल मई माना गया है। बुवाई के लिए अच्छे बीजों का चयन करना भी जरूरी है। एक बीघा में बीटी कॉटन का एक पैकेट (475 ग्राम) बीज ही उपयोग में लेने की सलाह दी गई है।
वहीं प्रति बीघा 2 से 3 पैकेट डालना फायदेमंद नहीं होता है। बुवाई के लिए बीटी कॉटन की ढाई फीट वाली बुवाई मशीन को 108 सेमी. (3 फीट) पर सेट करना चाहिए। किसी भी हालत में 3 फीट से कम दूरी पर बीजों की बुवाई नहीं करनी चाहिए। प्रथम सिंचाई के बाद पौधों से पौधों की दूरी 2 फीट रखने के लिए विरलीकरण जरूरी करना चाहिए।
4. रेतीले इलाकों में इस तरह करें कपास की बिजाई
कृषि विश्वविद्यालय के अनुसार रेतीले इलाकों में देसी कपास की बुवाई (Cotton Sowing) अप्रैल महीने के पहले पखवाड़े में करने की सलाह दी गई है। यदि किसान बीटी कपास की बिजाई अप्रैल के पहले पखवाड़े में करते हैं तो वे मूंग की 2 कतार और कपास की 2 कतार लगा सकते हैं।
रेतीले इलाकों में बीटी कपास की बिजाई टपका (ड्रिप) विधि द्वारा भी की जा सकती है। जहां पानी खराब है व कपास के जमाव में परेशानी हो वहां कपास की बिजाई बेड बनाकर करें। वहीं किसान बीटी कपास की बिजाई में विश्वविद्यालय द्वारा सिफारिश किया हुआ बीज ही काम में लें।
इसकी जानकारी के लिए किसान जिले के कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं। इसके अलावा किसान विश्वविद्यालय की वेबसाइट पर भी बीटी कपास के बीजों (Cotton Sowing) की जानकारी ले सकते हैं।
5. कपास की बुवाई से पहले खेत की मिट़्टी की जांच कराएं
किसानों को कपास की बुवाई (Cotton Sowing) से पहले अपने खेत की मिट्टी की जांच अवश्य करवानी चाहिए ताकि मिट्टी में कमी का पता लगा सके और मिट्टी की जांच के आधार पर अनुसंशित पोषक तत्वाें जैसे– खाद-उर्वरक की निर्धारित मात्रा दी जा सके।
बता दें कि कपास की अच्छी पैदावार के लिए अच्छी जल धारण क्षमता वाली मिट्टी अच्छी रहती है। कपास की खेती के लिए सबसे अच्छी मिट्टी का मान 6 से 7.5 एचपी के बीच अच्छा माना जाता है।
कपास की गुलाबी सुंडी का करें नियंत्रण
Cotton Sowing | किसान अपने खेत में या उसके आसपास रखी गई पिछले साल की नरमा की लकडियों के टिंडे एवं पत्तों को झड़क कर अलग कर दें और इकट्ठा हुए कचरे को नष्ट कर दें। इन लकड़ियों के टिंडों में गुलाबी सुंडी निवास करती है। किसानों को यह काम मार्च माह के अंत तक जरूर कर लेना चाहिए।
वहीं गुलाबी सुंडी बीटी नरमें के दो बीजों (बिनौले) को जोड़कर भंडारित लकड़ियों में निवास करती है, इसलिए लकड़ी व बिनौले का भंडारण सावधानीपूर्वक करें। जिन किसानों ने अपने खेतों में बीटी नरमा की लकड़ियों को भंडारित करके रखा है या उनके खेतों के आसपास कपास की जिनिंग व बिनौले से तेल निकालने वाली मिल लगती है। : Cotton Sowing
उन किसानों को अपने खेतों पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि इन किसानों के खेतों में गुलाबी सुंडी का प्रकोप अधिक होता है। विश्वविद्यालय की ओर से कपास की खेती के लिए हर 15 दिन में वैज्ञानिक सलाह जारी की जाती है। क्षेत्र के किसान इसके अनुसार ही सस्य क्रियाएं और कीटनाशकों का प्रयोग करें।
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