चना की फसल से बेहतर उत्पादन लेने के लिए क्या करें किसान, जानें कृषि विशेषज्ञ की जरूरी सलाह

चना की फसल (Gram Cultivation) से बेहतर उत्पादन प्राप्त करने के लिए उसमें लगने वाले किट व रोग का प्रबंधन और टिप्स जानें…

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Gram Cultivation | चना रबी सीजन की मुख्य दलहन फसलों में से एक है, ऐसे में किसान इसका उत्पादन बढ़ाकर अपनी आमदनी बढ़ा सकें इसके लिए कृषि विभाग द्वारा सलाह जारी की जाती है।

इस समय चना की फसल पर किट एवं रोगों का हमला किसानों के लिए गंभीर समस्या बन सकता है। अगर इनका उचित प्रबंधन ना किया जाए तो उपज पर असर पड़ता है।

ये कीट न केवल फसल को कमजोर करते हैं, बल्कि पैदावार और गुणवत्ता को भी नुकसान पहुंचाते हैं। सफेद मक्खी पीला मोजेक वायरस फैलाने में अहम भूमिका निभाती है, जबकि फली छेदक फसल की फलियों को सीधे नुकसान पहुंचाता है।

इन कीटों का समय पर प्रबंधन और रोकथाम किसानों को अधिक उपज और बेहतर आय सुनिश्चित कर सकता है। : Gram Cultivation

इस लेख में, हम चना की फसल को इन कीटों से बचाने के प्रभावी और वैज्ञानिक उपायों के साथ साथ चना के उत्पादन (Gram Cultivation) बढ़ाने के टिप्स के बारे में चर्चा करने वाले है।

चना की फसल में सफेद मक्खी की रोकथाम

सफेद मक्खी नरमे की फसल का बहुत नुकसान करती है। इसके कारण पत्ते मुड़ जाते हैं। यह हमेशा वर्षा और ज्यादा नमी वाले दिनों में फसल पर हमला करती है।

इसकी रोकथाम के लिए मुश्क कपूर 100 ग्राम को हल्के गर्म पानी में घोलकर और फिर 100 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड में स्प्रे करें। : Gram Cultivation

इसके इलावा इसकी रोकथाम के लिए आप हींग 100 ग्राम जो कि गोंद के रूप में हो, उसे गर्म पानी में घोलकर, फिर 100-130 लीटर पानी में मिलाकर भी प्रति एकड़ में स्प्रे कर सकते हैं। इन विधियों के द्वारा सफेद मक्खी की रोकथाम की जा सकती है।

Gram Cultivation | चना की फसल में फली छेदक किट की रोकथाम

कृषि विभाग ने फली छेदक कीट के नियंत्रण के लिए उपाय सुझाए गए है। फली छेदक कीट का प्रकोप बढ़ने पर उनके अण्डे एवं सुण्डियों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें।

खेत में 4-5 फेरोमोन ट्रैप प्रति हेक्टेयर का उपयोग करें। कीट के नियंत्रण के लिए तम्बाकू की सुखी पत्तियों का 3 प्रतिशत का घोल बनाकर फूल लगने व फली बनते समय छिड़काव करें। कीट नियंत्रण के लिए फसल में एजाडिरेक्टिन 1500 पीपीएम (0.15 प्रतिशत ईसी), 5 मिली लीटर पानी का छिड़काव करें। : Gram Cultivation

50 प्रतिशत फूल आने पर पहला छिड़काव एन.पी.वी. 250 एल.ई. प्रति हेक्टेयर की दर से तथा दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद बेसिलस थुरिंजिनेसिस के 1200 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से करना चाहिए।

उर्वरकों के सही उपयोग से चने की पैदावार 15 क्विंटल तक बढ़ाएं

Gram Cultivation | चना की फसल की अच्छी पैदावार के लिए मिट्टी की उर्वरता और उर्वरकों का सही संतुलन बेहद जरूरी है। कई किसान फसल में उर्वरकों का उपयोग तो करते हैं, लेकिन उनकी सही मात्रा और समय की जानकारी न होने के कारण अपेक्षित उपज नहीं मिल पाती।

वैज्ञानिक अनुसंधान बताते हैं कि उर्वरकों का सही उपयोग करने से चने की पैदावार को 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक बढ़ाया जा सकता है।

चना की फसल में उर्वरक की खुराक

Gram Cultivation | 20:40:20 एनपीके किलोग्राम/हेक्टेयर के साथ 20 किलोग्राम एस/हेक्टेयर दालों की उपज को बहुत बढ़ाता है और अगली फसल को भी लाभ पहुंचाता है। सूक्ष्म पोषक तत्वों में जिंक सबसे अधिक कमी वाला पोषक तत्व है।

इसलिए 25 किलोग्राम/हेक्टेयर की दर से जिंक का बेसल रूप में प्रयोग बहुत आशाजनक परिणाम देता है। बोरान और मोलिब्डेनम अम्लीय मिट्टी में बेहतर परिणाम देते हैं। फूल आने से पूर्व 2% डीएपी और 2% केसीएल का पत्तियों पर छिड़काव करने से उपज में वृद्धि होती है।

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Gram Cultivation | पोषक मान

प्रोटीन – 24%

वसा – 1.4%

खनिज – 3.2%

फाइबर – 0.9%

कार्बोहाइड्रेट – 59.6%

कैल्शियम – 154 मिलीग्राम/100 ग्राम

फॉस्फोरस – 385 मिलीग्राम/100 ग्राम

आयरन – 9.1 मिलीग्राम/100 ग्राम

कैलोरी मान – 347 किलोकैलोरी/100 ग्राम

नमी – 10.9%

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Gram Cultivation उच्च उत्पादन प्राप्त करने की अनुशंसा

तीन वर्ष में एक बार गहरी ग्रीष्मकालीन जुताई करें।

बुवाई से पहले बीजोपचार करना चाहिए।

उर्वरक का प्रयोग मृदा परीक्षण के आधार पर किया जाना चाहिए।

खरीफ मौसम में बुवाई रिज और फरो विधि से की जानी चाहिए।

पीला मोजेक प्रतिरोधी/ सहनशील किस्में आईपीयू 94 – 1 (उत्तरा), शेखर 3 (केयू 309), उजाला (ओबीजे 17), वीबीएन (बीजी) 7, प्रताप उर्द 1 आदि को क्षेत्र की उपयुक्तता के अनुसार चुना गया है। : Gram Cultivation

खरपतवार नियंत्रण सही समय पर किया जाना चाहिए।

पौध संरक्षण के लिए एकीकृत दृष्टिकोण अपनाएं।

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Gram Cultivation | कृषि वैज्ञानिकों की किसानों को सलाह:

1. खड़ी फसलें और सिंचाई: आने वाले दिनों में वर्षा की संभावना को देखते हुए किसानों को सलाह दी जाती है कि वे खड़ी फसलों में सिंचाई और किसी भी प्रकार का छिड़काव फिलहाल न करें। इससे फसल में पानी की अधिकता और रोगों के फैलाव की संभावना कम होगी।

2. सरसों की फसल: देर से बोई गई सरसों की फसल में विरलीकरण और खरपतवार नियंत्रण का कार्य करें। औसत तापमान में गिरावट को ध्यान में रखते हुए सफेद रतुआ रोग की नियमित निगरानी करें और लक्षण दिखने पर तुरंत उपचार करें।

3. प्याज की खेती: तैयार खेतों में प्याज की रोपाई से पहले अच्छी तरह सड़ी हुई गोबर की खाद और पोटाश उर्वरक का प्रयोग करें। यह पौधों की बेहतर बढ़वार में सहायक होगा।

4. आलू और टमाटर की फसल: आलू की फसल में उर्वरक डालें और मिट्टी चढ़ाने का कार्य करें। हवा में अधिक नमी के कारण आलू और टमाटर में झुलसा रोग की संभावना रहती है। यदि लक्षण दिखें तो डाईथेन-एम-45 (2 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें। ध्यान दें कि छिड़काव आसमान साफ होने पर ही करें। : Gram Cultivation

5. सब्जियों की पौधशाला: जिन किसानों ने टमाटर, फूलगोभी, बंदगोभी और ब्रोकली की पौधशाला तैयार की है, वे मौसम को ध्यान में रखते हुए पौधों की रोपाई करें। पौधों की रोपाई करते समय पर्याप्त नमी और पौध संरक्षण उपायों का ध्यान रखें।

6. गोभी वर्गीय सब्जियां: गोभी वर्गीय सब्जियों में पत्तियां खाने वाले कीटों की निगरानी करें। यदि इनकी संख्या अधिक हो तो बीटी (1.0 ग्राम प्रति लीटर पानी) या स्पेनोसेड दवा (1.0 एमएल/3 लीटर पानी) का छिड़काव करें। छिड़काव भी साफ आसमान में ही करें। : Gram Cultivation

7. आम के बाग: मिलीबग की रोकथाम के लिए आम के तनों पर जमीन से 0.5 मीटर की ऊंचाई तक 25-30 सेमी चौड़ी अल्काथीन की पट्टी लपेटें और तनों के आसपास की मिट्टी की खुदाई करें। मिलीबग के बच्चे इस मौसम में जमीन से निकलकर तनों पर चढ़ने लगते हैं। तने के आस-पास की मिट्टी की खुदाई से उनके अंडे नष्ट हो जाएंगे।

8. गेंदे की फसल: सापेक्षिक आर्द्रता अधिक होने के कारण गेंदे की फसल में पुष्प सड़न रोग की संभावना रहती है। किसानों को नियमित रूप से फसल की निगरानी करनी चाहिए और लक्षण दिखने पर तुरंत उपाय अपनाने चाहिए। : Gram Cultivation

चना की फसल को सही समय पर काटे

चना की फसल से अधिक लाभ पाने के लिए इसे सही समय पर काटना बेहद जरूरी है। अगर फसल को समय से पहले काटा जाए, तो दाने पूरी तरह पक नहीं पाते, और देरी होने पर फलियाँ टूटकर गिर सकती हैं, जिससे पैदावार में नुकसान होता है।

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