सोयाबीन एवं अन्य खरीफ फसलों में जिंक एवं सल्फर की कमी को कैसे पहचानें और पैदावार बढ़ाएं जानिए

kharif Crop : खरीफ फसल (सोयाबीन, बाजरा, धान, मक्का, मूंगफली, कपास, गन्ना, ज्वार, बाजरा, अरहर एवं उड़द) में पोषक तत्वों की कमी को कैसे पहचानें..

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1 kharif Crop : खरीफ फसल (सोयाबीन, बाजरा, धान, मक्का, मूंगफली, कपास, गन्ना, ज्वार, बाजरा, अरहर एवं उड़द) में पोषक तत्वों की कमी को कैसे पहचानें..

kharif Crop | खरीफ फसलों को नाइट्रोजन सहित अन्य पोषक तत्वों की आवश्यकता अधिक रहती है। फसलों में उत्पादन प्राप्त करने के लिये केवल नाईट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश का प्रयोग मृदा में किया जाता है। बाकी तत्वों के बारे में विस्तार कार्यकर्ता एवं कृषकों को बहुत कम जानकारी है, या है ही नहीं। लेकिन उन तत्वों की कमी के होने से पौधों में अनेकों प्रकार की विकृतियां दृष्टिगोचर होती हैं, जिसको लोग बीमारियों की रक्षा देते है पर सही बात तो यह है, कि ये बीमारियां नहीं पोषक तत्वों की कमी है, जो विभिन्न फसलों में अलग-अलग लक्षण पौधों में प्रकट करते है, जो इस प्रकार है:-

जस्ता (जिंक)

kharif Crop यह एक सूक्ष्म पोषक तत्व है, जिसकी पौधों को भले ही कम मात्रा में आवश्यकता होती है, किन्तु वृद्धि एवं उत्पादन के लिये उतना ही आवश्यक है, जितना मुख्य तत्व इसके अभाव में पौधों पर लक्षण दिखाई देते हैं। वे उस प्रकार है।

सोयाबीन में जस्ता (जिंक) की कमी

सोयाबीन kharif Crop मं जस्ते की कमी के लक्षण आरम्भ में नीचे की पहली और दूसरी पत्तियों पर शिराओं के बीच और किनारे पर हरिमाहीनता देखी जा सकती है। पीलापन पत्तियों किनारों से आरंभ होकर मध्य शिरा की ओर बढ़ता है। बाद की अवस्था में कमी होने पर ऊतकों का क्षय होकर पत्तियां प्राय: सूख जाती हैं।

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धान में जस्ता (जिंक) की कमी

kharif Crop धान के पौधे में तीसरी चौथी पत्ती के पटल के मध्य में हल्के पीले या भूरे रंग के रतुआ जैसे धब्बे दिखाई देते हैं, जो बाद में बढ़े और गहरे भूरे रंग के हो जाते हैं। जिसको खेरा रोग के नाम से जाना जाता है। पुरानी पत्तियों के किनारे सूखने लगते हैं, कभी-कभी लगभग पुरानी पत्तियों का रंग पीड़ा पड़ जाता है। या पत्तियां रंगविहीन हो जाती हैं और छोटी रह जाती हैं। पौधे झाड़ीनुमा दिखाई देते हैं। तथा बढ़वार रूक जाता है। फसल में कल्ले कम फूटते हैं। तथा बालों का पूर्ण विकास नही हो पाता है। न ही दाने अच्छी तरह बन पाते हैं। फसल काफी देर से पकती है।

मक्का में जस्ता (जिंक) की कमी

मक्के में इस kharif Crop तत्व की कमी से पत्तियों का रंग पीला पडऩे लगता है। ऊपर की दो तीन पत्तियों को छोड़कर शेष पत्तियों में पीलापन पत्तियों के निचले हिस्से से शुरू से होता है। बीच की नशे लाल पड़ जाती हैं। और बाद में पत्तियों पर सफेद धब्बे भी पड़ जाते हैं। जो समय के साथ सारी पत्तियों पर फैल जाते हैं। अधिक कमी की अवस्था में पौधों की बढ़वार पूरी तरह नहीं हो पाती है, सामान्यत: यदि जस्ते की कमी ज्यादा न हो तो समय के साथ इसकी कमी के लक्षण लुप्त हो जाते हैं।

kharif Crop परन्तु दाने बनने की प्रक्रिया में देर हो जाती है। इस कमी को प्राय: मक्के की सफेद कली के नाम से जाना जाता है। क्योंकि अत्यधिक कमी से पत्तियाँ कागज के समान सफेद हो जाती हैं। यह बुवाई के दो तीन सप्ताह बाद से ही फसल में इसके कमी के लक्षण परिलक्षित होने लगते हैं। क्योंकि जिंक पर्णहरितमा (क्लोरोफिल) के निर्माण में सहायक होता है।

मूंगफली में जस्ता (जिंक) की कमी

मूंगफली में जस्ते kharif Crop की कमी से नई निकले वाली पत्तियां आकार में छोटी तथा मुड़ी रह जाती हैं। धारियों के मध्य भाग में पहले स्वर्णिम पीला (गोल्डन यलो) रंग विकसित होता है, जो कि बाद में चाकलेट या भूरे रंग के धब्बे का रूप का ले लेता है। जिसका आरंभ पत्तियों की नोंक से होता है। जिससे पौधों की वृद्धि रूक जाती है। तथा फलियां छोटी रह जाती है।

गन्ना, ज्वार, एवं बाजरा में जस्ता (जिंक) की कमी

फसल बुवाई के एक डेढ़ माह बाद पत्तियों की मध्य शिरा के पास सफेद पीली धारियों kharif Crop का दिखाई देना जस्ते की कमी के विशिष्ट लक्षण है। सामान्यतौर पर कमी के लक्षण पत्तियों के आधार से प्रारम्भ होकर पत्तियों की नोंक की तरफ बढ़ते हैं। ऊपर की दोनों पत्तियों को छोड़कर प्राय: सभी पत्तियों पर कमी के लक्षण दृष्टिगोचर होता है।

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उड़द में जस्ता (जिंक) की कमी

kharif Crop फसल बुवाई के तीन-चार सप्ताह बाद पत्तियों पर हल्के पीले रंग के छोटे-छोटे धब्बे दिखाई देते हैं। परन्तु नसों का रंग हरा ही रहता है। पत्तियां छोटी रह जाती हैं। तथा कपनुमा हो जाती हैं। पीले रंग की पत्तियों धीरे-धीरे भूरे रंग की बदल जाती हैं। तथा सूख कर गिर जाती हैं।

अरहर में जस्ता (जिंक) की कमी

इस फसल kharif Crop में जस्ते की कमी के लक्षण लगभग बुवाई के तीन-चार सप्ताह के अंदर प्रकट हो जाते हैं। आरम्भ में पत्तियों के शिराओं के मध्य भाग में नारंगी पीला रंग विकसित होता है। बाद में हरितमाहीन धब्बे पत्तियों के किनारों पर और विशेषकर नोंक पर दिखाई देते हैं। जब पत्ती का लगभग 60 प्रतिशत भाग प्रभावित हो जाता है। तो पत्ती झड़ जाती है। नई पत्तियां आकार में छोटी में रह जाती हैं।

कपास में जस्ता (जिंक) की कमी

kharif Crop पत्तियों के बाहरी शिरों पर गहरे भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं। पत्तियां गुच्छों में निकलती हैं। तथा नवजात पत्तियां क्लोरोटिक होती हैं। और उसकी नसें हरी होती हैं। कलियों की बढ़वार रूक जाती है। तथा गांठों के बीच की लम्बाई घट जाती है। तथा नई पत्तियों पर छोटे-छोटे बदनुमा धब्बे दिखाई पड़ते हैं। फूल एवं फल बनने की प्रक्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

उपरोक्त सूक्ष्म तत्वों की पूर्ति के लिये बताई गयी मात्रा को भूमि में अथवा घोल बनाकर पौधों पर छिड़काव कर कमी से बचा जा सकता है, kharif Crop जो इस प्रकार से है:-

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सल्फर (गन्धक) की कमी के लक्षण

भूमि में गंधक की कमी होने के साथ ही पौधों पर लक्षण दृष्टिगोचर होने लगते हैं। ये लक्षण सभी फसलों kharif Crop में अलग-अलग होते हैं। गंधक की सर्वप्रथम नवीन पत्तियों पर दिखाई देते हैं, ये पत्तियां पीली पड़ जाती हैं। और पौधों की बढ़वार कम हो जाती है। तना कड़ा खुश्क, पतला और बोना दिखाई देता है। गंधक की कमी के लक्षण नाइट्रोजन की कमी के लक्षणों से काफी मिलते-जुलते हैं, अंतर यह कि नाइट्रोजन के अभाव में पुरानी पत्तियां पहले पड़ती हैं, और नई पत्तियां हरी बनी रहती हैं।

जबकि गन्धक की कमी से नई पत्तियां पीली पड़ती हैं। पुरानी पत्तियां हरी बनी रहती हैं। अधिक कमी के अभाव में पूरा पौधा पीला पड़ जाता है। खाद्यान्न फसलों में इसकी कमी से परिपक्वता की अवधि बढ़ जाती है। kharif Crop पौधों की पत्तियों का रंग हरा रहते हुये भी बीच का भाग पीला हो जाता है। तिलहनी और दलहनी फसलों में गन्धक की कमी के लक्षण अधिक उभरते हैं, सरसों वर्गीय फसलों में गन्धक की कमी के कारण फसल की प्रारंभिक अवस्था में पत्ती का निचला भाग बैगनी रंग का हो जाता है।

kharif Crop दलहनी फसलों में नाईट्रोजन स्थिर करने वाली ग्रंथियां कम बनती हैं। आलू में पत्तियों का रंग पीला, तने कठोर तथा जड़ों का विकास रूक जाता है। तम्बाखू की प्रारंभिक अवस्था में सम्पूर्ण पौधे का रंग हल्का हरा हो जाता है। पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती हैं। और पौधों की बढ़वार रूक जाती है। गन्धक की कमी होने पर फल ठीक से नही पकते हैं, और हल्के हरापन लिये रहते हैं। फल पकने के पूर्व ही गिर जाते हैं।

फसलों में सल्फर (गन्धक) की आवश्यकता

kharif Crop आवश्यकता की दृष्टि से गंधक और फास्फोरस की मात्रा दलहनी और तिलहनी फसलों में धान्य फसलों की अपेक्षा अधिक आंकी गई है। धान्य फसलों में गन्धक और फास्फोरस का अनुपात 1: 3 का होता है। जब कि यही अनुपात दलहनी फसलों में: 0.8 और तिलहनी फसलों में 1:0.6 का पाया गया है। इससे स्पष्ट हो जाता है, कि तिलहनी फसलें गंधक का अवशोषण फास्फोरस की तुलना में लगभग दो गुनी मात्रा में करती है।

जिंक, सल्फर की कमी के लिए यह करें किसान

कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, खेतों में जिंक सल्फेट प्रति बीघा 5 किलो का छिड़काव करने से दोनों तत्वों की कमी की पूर्ति होगी। इसी प्रकार क्षार को कम करने के लिए जिप्सम प्रति बीघा 40 किलो खेतों में डालने से फायदा होगा।

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