जायद की मूंग फसल में कीट एवं रोग प्रबंधन (Mung Farming advise) कैसे करना है आईए जानते हैं..
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Mung Farming advise | मध्य प्रदेश सहित देश के कई राज्यों में ग्रीष्मकालीन फसलों में सबसे अधिक मूंग की खेती होती है।
कम अवधि एवं कम सिंचाई में पकने वाली इस फसल का रकबा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसी के साथ इस फसल में कीट एवं रोग प्रबंधन की जरूरत भी अधिक होने लगी है।
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश में अब तक मूंग की बुवाई का रकबा तीन लाख हैक्टेयर तक पहुंच गया है।
अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए मूंग की फसल Mung Farming adviseमें कीट एवं रोगों की पहचान करके इनका प्रबंधन कैसे करें आइए कृषि वैज्ञानिकों से जानते हैं..
पर्णभक्षी एवं फलीभेदक कीट
चने की इल्ली : यह बहु भक्षी कीट मूंग की फसल में शुरूआत पत्तियों को खाता है। कीट की सूंड़ी फली में गोलाकार छेद बनाकर सिर अंदर डाल देती है एवं बाकी शरीर का हिस्सा बाहर लटकता दिखाई पड़ता है। इसके प्रबंधन के लिए कृषि वैज्ञानिक बताते हैं कि किसान साठी अपने खेतों में T आकार की 20-25 खूटियां प्रति एकड़ लगायें। फेरोमोन ट्रेप 4 ट्रेप प्रति एकड़ खेत में स्थापित करें।
Mung Farming advise रासायनिक तरीके से इस पर नियंत्रण करने के लिए पर्णीय छिड़काव इमामेक्टिन बेंजोएट 5 प्रतिशत एसजी 200-250 ग्राम अथवा प्रोफेनोफॉस 50 प्रतिशत ई.सी. 1.25 ली. अथवा इन्डोक्साकार्ब 14.5 एस. सी. 500 मि.ली. प्रति हेक्टर की दर से पावर पंप से 200-250 ली. अथवा हाथ पंप से 500-600 ली. पानी में घोल बनाकर सुबह अथवा सायंकाल के समय छिड़काव करें।
चितकबरा फली भेदक कीट की सूड़ी कलिकाओं, फूलों एवं फलियों में छेद कर देती है। प्रकोपित फलियां और फूल आपस में जुड़े दिखाई देते हैं तथा अंदर बीजों को सूंड़ी खा जाती है। सूंड़ी अपनी विष्ठा से छेद को बंद कर देती है। पॉड बोरर या फली भेदक कीट प्रकोप के कारण फूल एवं नयी फलियां गिर जाती हैं, पुरानी फलियों पर सूंड़ी के छेद करने के स्थान पर भूरा धब्बा दिखाई पड़ता है।
तम्बाकू इल्ली : यह बहुभक्षी कीट है इसकी सूड़ी शुरूआत में क्लोरोफिल को खुरचकर खाती है फिर पूरे खेत में फैलकर पर्णीय भाग को खाती है। Mung Farming advise
पर्णभक्षी एवं फलीभेदक कीटों का प्रबंधन के लिए 2-3 वर्ष के अंतराल पर गर्मी में गहरी जुताई करें जिससे शंखी अवस्था ऊपर आकर नष्ट हो जाये। समय पर बोवनी करें तथा कम अवधि वाली किस्में लगायें। सूंडियों एवं वयस्क कीटों को हाथ से इकट्ठा कर नष्ट करें।
Mung Farming advise फेरोमोन प्रपंच 5 प्रति हेक्टेयर की दर से टी आकार के पक्षी आश्रम स्थल (वर्ड पर्चर) 50 प्रति हेक्टेयर की दर से लगायें।वयस्क पतंगों को आकर्षित करने के लिए प्रकाश प्रपंच लगायें। ट्राइकोडर्मा चिलोनिस अण्डा परजीवी 1.5 लाख प्रति हेक्टेयर की दर से 7 दिनों के अन्तराल पर चार सप्ताह फसल पर छोड़ें।
परभक्षी कीटों जैसे क्राइसोपा, स्टिगबग, मकड़ी, चीटियों का संरक्षण करें। छोटी अवस्था की सूंडियों के नियंत्रण हेतु एन.पी.व्ही. 250 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 0.1 प्रतिशत टी पाल तथा 0.5 प्रतिशत जैगरी (गुड़ का चूर्ण) के साथ छिड़काव करें। रासायनिक कीटनाशक प्रोफेनोफॉस 50 ई.सी. 1000 मि.ली./हे. या क्विनालफॉस 25 ई.सी. 1000 मि.ली./हे. या इंडाक्साकार्ब 500 मि.ली./हे. आदि का छिड़काव करें।
मूंग की फसल के रस चूसक कीट
माहू : शिशु एवं वयस्क माहू नये Mung Farming advise पौधों, पत्तियों, तनों एवं फलियों पर समूह में इकट्ठा होकर रस चूसते हैं। इससे नई पत्तियां सिकुड़ जाती हैं यह अपने शरीर से मधुस्त्राव छोड़ते हैं जिससे काली फफूंदी लग जाती है।
जैसिड : शिशु एवं वयस्क कीट पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं लीफलेट्स किनारों पर पीलापन लिये हुए कपनुमा हो जाती है। अधिक आक्रमण होने पर लीफलेट्स लाल भूरी होकर नीचे गिर जाती है।
फली रसचूसक मत्कुण : शिशु एवं वयस्क दोनों विकसित हो रहे बीजों से फलियों की दीवारों से रस चूसते हैं जहां पर पीला निशान बन जाता है, बीज सिकुड़ जाते हैं। जिससे उनका अंकुरण की क्षमता कम हो जाती है। Mung Farming advise
थ्रिप्स : थ्रिप्स ऊपरी पत्तियों, फूलों तथा फलियों को खाती है जिससे पौधे छोटे रह जाते हैं, फलियों का बनना कम होकर उनका विकास रूक जाता है। यह लीफकर्ल रोग के वाहक का कार्य करता है।
सफेद मक्खी : फसल पर शुरूआत अवस्था में इसका प्रकोप होता है, सर्वप्रथम शिशु लीफलेट्स से रस चूसते हैं। शिशु एवं वयस्क पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं। Mung Farming advise शिशु एवं वयस्क पत्तियों की निचली सतह से रस चूसते हैं। और मधुस्त्राव छोड़ते हैं जिस पर काली फफूंदी लग जाती है।
सफेद मक्खी यलो मोजक वायरस का प्रमुख वाहक और फसल क्षति का प्रमुख कारक है। इसके द्वारा मूंग की फसल में 70 प्रतिशत तक क्षति आंकी गई है। फली का आकार छोटा, दाने सिकुड़कर छोटे रह जाते हैं।
रसचूसक कीटों का प्रबंधन
रस चूसक कीटों विशेषत: Mung Farming advise सफेद मक्खी के प्रति प्रतिरोधी किस्म लगायें। थायोमेथोक्सम 70 डब्ल्यूएस 3 ग्राम / कि.ग्रा. बीज या इमिडाक्लोप्रिड 705-7 ग्राम / कि.ग्रा. बीज की दर से बोजोपचार कर बोनी करें। गर्मी में गहरी जुताई करें।
संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें। नत्रजन का अत्याधिक उपयोग न करें। खेतों एवं मेड़ों को खरपतवारों से मुक्त रखें।सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु पीले चिपचिपे प्रपंच लगायें।
Mung Farming advise रासायनिक तरीके से नियंत्रित करने के लिए मिथाइल डेमेटॉन 20 ई.सी. 500 मि.ली. या डाईमेथोएट 30 ई.सी. 500 मि.ली. प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। थायोमेथाक्सम 25 डब्ल्यूजी 100 ग्राम या एसीटामिप्रिड 20 एस.पी. 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर का सफेद मक्खी के नियंत्रण हेतु छिड़काव करें।
मूंग की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग एवं उनका प्रबंधन
एन्थ्रेक्नोज लक्षण : फफूंदी पादप वृद्धि की किसी भी अवस्था में ऊपरी भागों पर संक्रमण कर सकता है। पत्तियों एवं फलियों पर गोलाकार, काले धब्बे बीच में गहरे एवं किनारों पर नारंगी दिखाई देते हैं। अधिक संक्रमण की अवस्था में प्रभावित भाग एवं सीडलिंग सूख जाती है। Mung Farming advise
नियंत्रण : कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम / कि.ग्रा. बीज दर से बीजोपचार करें। मेन्काजेब 2 ग्राम या कार्बेन्डाजिम 0.5 ग्राम/ली. पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
बेक्टीरियल लीफब्लाइट लक्षण : पत्तियों के ऊपर अनेक भूरे, सूखे एवं उभरे हुये धब्बे दिखाई देते हैं। अधिक प्रकोप की स्थिति में अनेक धब्बे आपस में मिल जाते हैं एवं पीली पड़कर समय से पूर्व गिर जाती है। यह बेक्टीरिया बीज जनित होता है। तना एवं फलियां भी सवंमित होती है। Mung Farming advise
नियंत्रण : रोग मुक्त बीज का प्रयोग करें। फसल अवशेषों को नष्ट करें। बोनी से पूर्व बीज को 500 पी.पी.एम. स्ट्रेप्टोसाइक्लिन के घोल में 30 मिनट तक रखें। स्ट्रेप्टोसाइक्लिन को 3 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड के साथ प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर 12 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें।
सरकोस्पोरा लीफस्पॉट लक्षण : यह मूंग का महत्वपूर्ण रोग है जो कई रूप में फसल Mung Farming advise को अत्यधिक नुकसान पहुंचाता है।पत्तियों पर अनेकों छोटे आकार के भूरे एवं किनारों पर लाल भूरे धब्बे दिखाई देते हैं इसी प्रकार के धब्बे शाखाओं एवं फलियों पर दिखाई पड़ते हैं। यदि मौसम प्रतिकूल होता है तो फूल आने एवं फली बनते समय गंभीर पर्णदारा युक्त पत्तियां नीचे गिर जाती है।
नियंत्रण : इसके नियंत्रण के लिए रोग प्रतिरोधी किस्में लगायें। ऊंची बढ़ने वाली धान्य फसलों के साथ अन्तरवर्तीय फसल लगायें। खेतों को साफ सुथरा रखें। रोग मुक्त बीज का प्रयोग करें। पौधे से पौधे एवं कतार से तार की दूरी अधिक
रखें, मल्चिंग करें। Mung Farming advise फसल पर कार्बेन्डाजिम 0.5 ग्राम / लीटर या मेन्काजेब 2 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करें।
लीफक्रिन्कल रोग लक्षण : सर्वप्रथम रोग के लक्षण नयी पत्तियों पर क्लोरोसिस के रूप में दिखाई देते हैं। पत्तियां सिकुड़कर नीचे की ओर मुड़ जाती हैं। प्रभावित फसल की वृद्धि रूक जाती है तथा मृत्यु हो जाती है। यह रोग मुख्य रूप से बीज या रोग ग्रस्त पत्तियों के द्वारा फैलता है।
नियंत्रण : प्रभावित फसल के भागों के लगभग 45 दिनों तक अलग कर नष्ट कर दें। समय पर बोनी करें। रोग वाहक कीट थ्रिप्स के नियंत्रण के लिये एसीफेट 1 मि.ली./ली. या डाईमेथोएट 2 मि.ली./ली. का छिड़काव करें। Mung Farming advise
पीला मोजक रोग लक्षण : शुरूआत में नयी पत्तियों के ऊपर हल्के बिखरे हुये पीले दिखाई पड़ते हैं, धीरे धीरे धब्बे बड़े होकर पत्तियां पीली हो जाती हैं। रोगग्रस्त पौधे छोटे रह जाते हैं, देरी से परिपक्व होते हैं एवं उनमें बहुत कम फूल एवं फली बनती हैं। यह रोग सफेद मक्खी द्वारा फैलता है।
नियंत्रण : रोग प्रतिरोधी किस्में लगायें । बीज को इमिडाक्लोप्रिड 70 डब्ल्यूएस 3 ग्राम/कि.ग्रा. या थायोमेथाक्सम 70 डब्ल्यूएस 3 ग्राम / कि.ग्रा. बीज की दर से रोग वाहक कीट के नियंत्रण हेतु बीजोपचार करें। रोगग्रस्त पौधों को समय-समय पर खेत से निकाल कर नष्ट करें ।
Mung Farming advise दैहिक कीटनाशी डाईमेथोएट 750 मि.ली./ हे. या थायोमेथाक्सम 25 डब्ल्यूएस 100 ग्राम / हे. का छिड़काव करें।
पावडरी मिल्डयू लक्षण : यह दलहनी फसलों का प्रमुख रोग है। पत्तियों एवं पौधे के अन्य भागों पर सफेद पावडरनुमा चकत्ते दिखाई पड़ते हैं जो बाद में धीरे धीरे आकार में बड़े होकर पत्तियों की निचली सतह पर गोलाकार रूप से लेते हैं।संक्रमण अधिक होने पर पत्तियों की दोनों सतहें पूर्ण रूप से सफेद पावडरी वृद्धि से ढंक जाती है। प्रकोपित भाग सिकुड़कर नष्ट हो जाते हैं।
नियंत्रण : कर्बेन्डाजिम 1 ग्राम / लि. या ट्राईडेमोर्फ 1 मि.ली./ली. का छिड़काव करें। Mung Farming advise
जड़ सड़न एवं पली झुलसा लक्षण : रोगजनक के द्वारा बीज सड़न, जड़ सड़न, पदगलन सीडलिंग झुलसा, तना केंकर पत्ती झुलसा आदि होते हैं। यह रोग मुख्यतः फली अवस्था में होता है। सवंमित पत्तियां पीले पड़ जाती हैं तथा उन पर भूरे अनियमित धब्बे दिखाई पड़ते हैं। तने के मुख्य भाग एवं जड़ काले रंग की हो जाती है तथा छाल आसानी से निकल जाती है। पौधा धीरे-धीरे सूखने लगता है। Mung Farming advise
नियंत्रण : फली अवस्था में नमी की कमी न होने दें। ट्राइकोडर्मा विरिडी 4 ग्राम / कि.ग्रा. या ग्राम/कि.ग्रा. स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स 10 कार्बेन्डाजिम 2 ग्राम / किग्रा. बीज कर दर से बीजोपचार करें। कार्बेन्डाजिम 1 ग्राम / ली. या स्यूडोमोनास फ्लोरसेन्स/ट्राइकोडर्मा विरडी 2.5 कि.ग्रा. हे. 50 कि.ग्रा. गोबर खाद के साथ जगह पर ड्रेन्चिंग करें ।
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