रबी फसलों की कटाई के बाद ग्रीष्मकालीन मूंग से मालामाल होंगे किसान, मूंग की इन 10 टॉप किस्मों का करें चयन…

अगर आप भी रबी फसलों की कटाई के बाद ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती करते है, तो किन किस्मों (Mung Varieties) से मिलेगी भरपूर पैदावार। आइए जानते है..

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Mung Varieties | भारत में मूंग एक बहुप्रचलित एवं लोकप्रिय दालों में से एक है। मूंग गर्मी और खरीफ दोनों मौसम की कम समय में पकने वाली एक मुख्य दलहनी फसल है। इस समय रबी फसलों की कटाई शुरू हो चुकी है।

नवसवंत् से पहले सभी खेतों में रबी की फसल काटी जा चुकी होगी। रबी की फसल की कटाई के बाद कई किसान भाई खेत में ग्रीष्मकालीन मूंग की फसल (Mung Varieties) उगाकर कमाई कर सकते हैं।

रबी की फसल के तुरंत बाद खेत में दलहनी फसल मूंग की बुवाई करने से मिट्टी की उर्वरा क्षमता में वृद्धि होती है। इसकी जड़ों में स्थित ग्रंथियों में वातावरण से नाइट्रोजन को मृदा में स्थापित करने वाले सूक्ष्म जीवाणु पाए जाते हैं।

इस नाइट्रोजन का प्रयोग मूंग के बाद बोई जाने वाली फसल द्वारा किया जाता है। बता दे की, ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती से किसान भाई इसकी एक एकड़ जमीन से 30 हजार रुपए तक की कमाई कर सकते हैं। आइए जानते है किसानों को किन किस्मों (Mung Varieties) का चयन करना चाहिए…

Mung Varieties | मूंग की 10 टॉप किस्मों की जानकारी…

1. आई.पी.एम.205-7 (विराट)- यह किस्म 52 से 55 दिन में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 12 से 14 क्विंटल उपज देती है. गर्मी के मौसम में सबसे उपयुक्त किस्म में से एक है, साथ ही पीला मोजेक रोग रोधी हैं.

2. हम-16 किस्म – यह बुआई के बाद 55 से 58 दिन में कटकर घर आ जाती है, गर्मी के मौसम में कम समय में पकने वाली किस्म है, साथ ही इसमें पीला मोजेक होने का भी खतरा नहीं होता है, इसकी उपज 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिल जाती है। : Mung Varieties

3. आई.पी.एम.99-125 (मेहा.) – गर्मी के मौसम में यह किस्म प्रति हेक्टेयर 15 क्विंटल तक का उत्पादन देती है, यह 60 से 62 दिन में आने वाली फसल है।

4. पी.डी.एम.11 – मूंग की यह वैरायटी गर्मी के दिनों में 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक की उपज दे देती है, और यह 60 से 65 दिन की फसल होती है अगर फरवरी के महीने में इसकी बुवाई हो जाए तो यह अप्रैल के आखिरी सप्ताह तक बाजार में बेची जा सकती है।

5. टी.जे.एम-3 मूंग की वैरायटी – ये किस्म 61-70 दिन की फसल होती है इसका उत्पादन 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का मिलता है, यह वैरायटी पीला मोजेक और पाउडरी मिल्ड्यू प्रतिरोधी होती है। : Mung Varieties

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6. आई.पी.एम.512-1 (सूर्या) मूंग किस्म – 60 दिन में फसल पककर तैयार हो जाती है 12 कुंतल तक का उत्पादन देती है।

7. आई.पी.एम.02-03 – मूंग किस्म 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है गर्मी के मौसम में यह 68 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।

8. पी.डी.एम.139 (सम्राट) – मूंग की किस्म 60 से 65 दिन में तैयार हो जाती है और प्रति हेक्टेयर 12 क्विंटल तक की उपज दे देती है यह भी पीला मोजेक रोधी होती है। : Mung Varieties

9. आई.पी.एम.2-14 वैरायटी – 62 से 65 दिन में तैयार हो जाती है इसकी विशेषता है कि इसमें पीला मोजेक रोग नहीं लगता है और इसकी उपज 12 क्विंटल तक होती है।

10. आई.पी.एम.410-3 (शिखा) – मूंग की यह किस्म में पीला मोजेक के साथ पाउडरी मिल्ड्यू रोग रोधी भी होती है जिसकी वजह से इसका उत्पादन भी अच्छा होता है यह 65 से 70 दिन में आने वाली फसल है।

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Mung Varieties | ग्रीष्मकालीन मूंग की खेती की जानकारी

जहाँ सिंचाई की पूर्ण सुविधा हो वहाँ पर वर्ष में तीसरी फसल के रूप में जायद मूंग की खेती की जा सकती है। इसकी खेती किसान को अतिरिक्त आय देने के साथ भूमि की उर्वराशक्ति बनाये रखने में सहायक है।

किस्में : गंगा – 8 (गंगोत्री), पी.डी.एम. 139, आई.पी.एम. 02-03 (2009), आई.पी.एम. 02-14 (2010), के. 851 (1982), पी. डी. एम.-11 (1987), पूसा विशाल (2001), समर मूंग लुधियाना (एस.एम.एल.)-668 (2003)।

बीज उपचार : मूंग में इमिडाक्लोप्रिड 5 ग्राम/किलो बीज दर के हिसाब से बीजोपचार करके बुवाई करें। : Mung Varieties

खेत की तैयारी : रबी की कटाई के तुरन्त बाद भूमि की आवश्यकतानुसार एक बार जुताई कर खेत को तैयार करें। अंतिम तैयारी के समय ध्यान रखें कि भूमि समतल हो जाए तथा जल निकास अच्छा हो।

भूमि उपचार : बुवाई से पहले प्रति किलो बीज को तीन ग्राम थायराम एवं बाविस्टीन से उपचारित करें।

राइजोबियम कल्चर से उपचार : दलहनी फसलों के बीजों को राईजोबियम से उपचारित करने से अधिक पैदावार होती है। आवश्यकतानुसार गरम पानी में 250 ग्राम गुड़ मिलाकर घोल बनाएँ तथा ठंडा होने पर 600 ग्राम जीवाणु संवर्ध मिला दें। इस मिश्रण की एक हेक्टेयर में बोये जाने वाले बीजों पर भली-भाँति परत चढ़ा दें व छाया में सुखाकर बुवाई करें। : Mung Varieties

उर्वरक : जायद मूंग हेतु 20 किलो नत्रजन व 40 किलो फॉस्फोरस प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। उर्वरक की पूरी मात्रा बुवाई के समय ऊर कर दे दें।

बीज एवं बुवाई : जायद मूंग की अधिकतम पैदावार के लिए इसकी बुवाई 15 फरवरी से 15 मार्च तक का समय उपयुक्त रहता है। बुवाई हेतु 15-20 किलो बीज की प्रति हेक्टेयर आवश्यकता होती है। कतार से कतार की दूरी 25 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखें।

सिंचाई : फूल आने से पूर्व तथा फलियों में दाना बनते समय सिंचाई अत्यन्त आवश्यक है। तापमान एवं भूमि में नमी के अनुसार अतिरिक्त सिंचाई दें। : Mung Varieties

निराई-गुड़ाई : आवश्यकतानुसार खरपतवार निकालते रहें। 30 दिन की फसल होने तक निराई-गुड़ाई कर दें। बुवाई के पूर्व खरपतवारनाशी फ्लूक्लोरोलीन 0.75 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से मिट्टी में मिलाने के बाद बुवाई करने से खरपतवार पर प्रभावी नियंत्रण रहता है जिससे अधिक पैदावार मिलती है।

फसल कटाई : फलियों के झड़कर गिरने से होने वाली हानि को रोकने के लिये फसल पकने के बाद किन्तु दाने झडऩे से पहले कटाई कर लें। इसके बाद एक सप्ताह तक सुखा कर गहाई करके दाना निकाल लें। : Mung Varieties

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