सरसों की खेती (Mustard Cultivation) से अधिक उपज के लिए इस समय क्या करना होगा आइए कृषि वैज्ञानिकों से जानते हैं..
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Mustard Cultivation | सरसों रबी में उगाई जाने वाली फसलों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। सरसों वर्गीय फसलों के तहत तोरिया, राया, तारामीरा, भूरी व पीली सरसों आती हैं।
प्रमुख रूप से हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में सरसों की खेती होती है। सरसों की खेती में पानी की आवश्यकता कम होती है यही कारण है कि किसान इसे होकर काम पानी में अच्छा लाभ कमा लेते हैं।
वैज्ञानिक तरीके से उन्नत सरसों उगाकर किसान कम खर्च में अधिक लाभ कमा रहे हैं। अन्य फसलों की तरह सरसों की फसल में भी समय-समय पर देखरेख अति आवश्यक है। : Mustard Cultivation
किसान सरसों की बिमारी की समय रहते अच्छी तरह पहचान कर उनका आसानी से रोकथाम कर सकते हैं। सरसों की फसल में समय रहते रोगों की पहचान कैसे करें एवं इसकी रोकथाम के लिए क्या करना होगा आइए कृषि वैज्ञानिकों से जानते हैं..
कृषि वैज्ञानिकों ने जारी की सलाह
Mustard Cultivation | सरसों की फसल में रोगों की पहचान एवं रोकथाम के लिए चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कृषि महाविद्यालय में तिलहन विभाग के वैज्ञानिक डॉ. राम अवतार व उनकी टीम ने किसानों के लिए सलाह जारी की है। उन्होंने यह सलाह इस समय फसल पर आने वाली बिमारियों को ध्यान में रखते हुए दी है।
वैज्ञानिकों ने विश्वविद्यालय के अनुसंधान क्षेत्र का दौरा करने के उपरांत यह सलाह जारी की है। वैज्ञानिकों के अनुसार अगेती व पछेती सरसों की फसल में कई प्रकार की बिमारियों का प्रकोप हो सकता है, जिनकी किसान समय से पहचान कर रोकथाम कर फसल से अधिक पैदावार हासिल कर सकते हैं। : Mustard Cultivation
किसान फसल की बिमारियों की रोकथाम के लिए किए जाने वाले छिड़काव सदैव सायंकाल को 3 बजे के बाद करें। तिलहन विभाग के सहायक वैज्ञानिक डॉ. राकेश पूनियां (पादप रोग विशेषज्ञ) के अनुसार सरसों की फसल में कई बिमारियों का प्रकोप होने का खतरा रहता है।
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यह हैं सरसों की मुख्य बीमारी और उनके लक्षण
अल्टरनेरिया ब्लाइट : सरसों की फसल की यह मुख्य बिमारी है। इस बिमारी में पौधे के पत्तों व फलियों पर गोल व भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। कुछ दिन बाद इन धब्बों का रंग काला हो जाता है और पत्ते पर गोल छल्ले दिखाए देने लगते हैं। : Mustard Cultivation
फुलिया या डाउनी मिल्डू : इस बिमारी में पत्तियों की निचली सतह पर भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं और धब्बों का ऊपरी भाग पीला पड़ जाता है व इन धब्बों पर चूर्ण सा बन जाता हैं।
सफेद रतुआ: सरसों की इस बिमारी में पत्तियों पर सफेद और क्रीम रंग के छोटे धब्बे से प्रकट होते हैं। इससे तने व फूल वेढंग आकार के हो जाते हैं जिसे स्टैग हैड कहते हैं। यह बिमारी ज्यादा पछेती फसल में अधिक होती है। : Mustard Cultivation
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तनागलन : तनागलन रोग में तनों पर लम्बे आकार के भूरे जल शक्ति धब्बे बनते हैं जिन पर बाद में सफेद फफूंद की तरह बन जाती है। ये लक्षण पत्तियों व टहनियों पर भी नजर आ सकते हैं तथा फूल आने या फलियां बनने पर इस रोग का अधिक आक्रमण दिखाई देता है जिससे तने टूट जाते हैं और तनों के भीतर काले रंग के पिण्ड बनते हैं।
ऐसे करें बिमारियों की रोकथाम
Mustard Cultivation | सहायक वैज्ञानिक डॉ. राकेश पूनियां (पादप रोग विशेषज्ञ) के अनुसार सरसों की अल्टरनेरिया ब्लाइट, फुलिया और सफेद रतुआ बिमारी के लक्षण नजर आते ही 600 ग्राम मँकोजेब (डाइथेन या इंडोफिल एम 45 ) को 250 से 300 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ की दर से 15 दिन के अंतर पर 3 से 4 बार छिड शेव करें।
इसी प्रकार तना गलन रोग के लिए 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम (बाविस्टिन) प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से बीज उपचार करें। जिन क्षेत्रों में तना गलन रोग का प्रकोप हर साल होता है वहां बिजाई के 45 से 50 दिन तथा 65 से 70 दिन के बाद कार्बेन्डाजिम का 0.1 प्रतिशत की दर से दोबार छिड़काव करें। : Mustard Cultivation
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