जानिए सोयाबीन की कौन सी वैरायटी किस राज्य में अधिक उत्पादन देती है..

कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अलग-अलग राज्यों के लिए कौन-कौन से Soyabean Ki Kheti सोयाबीन की किस्में अनुशंसित की गई है यहां जानें..

Soyabean Ki Kheti | खरीफ सीजन के दौरान प्रमुख नगदी फसल के रूप में सोयाबीन को बोया जाता है। सोयाबीन की खेती मध्य प्रदेश में सर्वाधिक होती है, इसके अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना में भी सोयाबीन की खेती की जाती है। अलग-अलग राज्यों में सोयाबीन की अलग-अलग किस्मों को बोया जाता है, ताकि अच्छा उत्पादन मिल सके। कृषि वैज्ञानिक अलग-अलग राज्यों के लिए सोयाबीन की अलग-अलग किस्मों को अनुशंसित करते हैं।

सोशल मीडिया के इस दौर में यह जानना जरूरी हो जाता है कि कौन से राज्य के लिए कौन सी सोयाबीन की किस्म बेहतर रहेगी, क्योंकि किसानों की आड़ में छुपे बीज माफिया अपना बीज अधिक दाम पर देने के चक्कर में किसानों को अलग राज्यों की Soyabean Ki Kheti सोयाबीन की किस्में थमा देते हैं।

दूसरे राज्य के लिए अनुशंसित सोयाबीन की किस्मों को बोने के कारण किसानों को इसका सर्वाधिक उत्पादन नहीं मिल पाता, जिससे उन्हें नुकसान उठाना पड़ता है। चौपाल समाचार आपके लिए अलग-अलग राज्यों में कौन-कौन सी सोयाबीन की किस्में Soyabean Ki Kheti बोई जाती है, इसकी पूरी जानकारी लेकर आया है, पढ़िए यह पूरी जानकारी..

एमपी के लिए अनुसंशित सोयाबीन की किस्में – Soybean varieties for MP

Soyabean Ki Kheti खरीफ सीजन के दौरान मध्य प्रदेश में सोयाबीन की सबसे अधिक खेती होती है। प्रदेश में जल्दी पकने वाली सोयाबीन की किस्म अधिक बोई जाती है। एमपी में इन किस्मों को बोने के लिए अनुशंसित किया गया है :–

सोयाबीन जे एस 20-34 :– जे एस 95-60 किस्म के आंतरिक कोई विकल्प नहीं था किंतु वर्षों के गहन अनुसंधान के पश्चात जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय (JNKVV) मध्य प्रदेश द्वारा भारत में दूसरी अति शीघ्र पकने वाली उन्नत सोयाबीन किस्म जे. एस. 20-34 जारी की है, जो कि देश में मध्यक्षेत्र मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र हेतु अनुशंसित है।

सोयाबीन जेएस 20-98 :–जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश द्वारा पुरानी सोयाबीन किस्मों Soyabean Ki Kheti के श्रेष्ठ विकल्प के रूप में किसानों की आवश्यकता एवं समस्याओं को ध्यान में रखते हुए निरंतर गहन रिसर्च के पश्चात सोयाबीन की नवीनतम किस्म जेएस 20-98 जारी की है। सोयाबीन की यह किस्म बोनी हेतु मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, मराठवाड़ा एवं विदर्भ क्षेत्र हेतु अनुशंसित की गई है।

सोयाबीन आर.वी.एस.-18 (प्रज्ञा) :– राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में वर्ष 2017 में जारी इस किस्म का गजट नोटिफिकेशन क्रमांक एस.ओ. 2458 (E) दिनांक 29.08.2017 है। इस न्यूनतम सोयाबीन किस्म ने अपने पहले ही उत्पादन वर्ष में अपने चमत्कारी गुणों के कारण दर्शकों का दिल जीत लिया है। यह नवीनतम सोयाबीन की किस्म देश के मध्य क्षेत्र मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, बुंदेलखंड, मराठवाड़ा, विदर्भ आदि क्षेत्रों के लिए अनुसूची की गई है।

सोयाबीन आर.वी.एस-24 :– राजमाता सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय द्वारा हाल ही में वर्ष 2017 में जारी इस किस्म Soyabean Ki Kheti का गजट नोटिफिकेशन क्रमांक एस.ओ,. 1007 दिनांक 30 3 2017 है। सोयाबीन की यह एक उन्नत किस्म है। यह देश के मध्य क्षेत्र के लिए अनुशंसित की गई है।

सोयाबीन आर. वी. एस. एम. 11-35 :– आई.सी.ए.आर. की इसी कमेटी द्वारा सोयाबीन अनुसंधान केंद्र मुरैना से विकसित नवीन सोयाबीन किस्म में 11 – 35 को जो कि दो विभिन्न पैतृक किस्म जे.एस. 335 एवं पी.के. 1042 के संकरण से तैयार की गई है, को अधिक पैदावार, पीला मोजेक वायरस एवं चारकोल राॅट एवं जड़ सड़न के प्रति प्रतिरोधकता के आधार पर एक नई सोयाबीन किस्म के रूप में मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, गुजरात, एवं बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए अनुशंसा के रूप में चिन्हित किया गया है।

सोयाबीन JS-9305 किस्म :– सोयाबीन JS-9305 किस्म की खेती Soyabean Ki Kheti मध्य क्षेत्र (महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात और उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड क्षेत्र) में होती है। इस किस्म की खेती में पानी की आवश्यकता नहीं होती है, लेकिन आवश्यकता के अनुसार 1 या 2 सिंचाई की आवश्यकता होती है। इस किस्म के पौधे का अर्द्ध दृढ़, बैंगनी फूल, भाले के आकार की पत्तियां, चार बीज वाली फली, चमकदार तना और फली, न टूटने वाली, काली हिलम। इसकी फसल पकने की 90-95 दिनों की है एवं अधिकतम उपज 25 से 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। यह किस्म प्रमुख रोगों और कीटों के प्रतिरोधी है।

सोयाबीन JS-2172 किस्म :– सोयाबीन की जेएस 21-72 वैरायटी को 2022 में पहचान की गई। यह वैरायटी सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर (मप्र) के जबलपुर सेंटर जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा निर्मित की गई है। 33 बार ट्रायल के बाद जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों बदलते मौसम, बढ़ते तापमान और पानी की कमी को ध्यान में रखकर सोयाबीन की नई किस्म को तैयार किया है।

विश्वविद्यालय के विज्ञानियों ने सोयाबीन की नई प्रजाति जेएस 21-72 विकसित की है। यह किस्म राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड- मालवा एवं महाराष्ट्र का विदर्भ एवं मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए अनुसंशित की गई है।

सोयाबीन की इस किस्म Soyabean Ki Kheti को लेकर कृषि वैज्ञानिक डॉ. संजय गुप्ता का कहना है की, सोयाबीन की जेएस 21-72 वैरायटी में उच्च रोगप्रतिरोधी क्षमता है। यह बाकी किस्मों से कही अधिक रोगप्रतिरोधक है। इस वैरायटी की सबसे बड़ी खासियत यह है की इसमें चारकोल सड़न (चारकोल रॉट), ऐन्थ्रेक्नोज व फली झुलसा, राइजेकटोनिया एरियल ब्लाइट जैसे सभी रोगों से लड़ने में औसत दर्जे से लेकर उच्च क्षमता पाई गई है। सोयाबीन की जेएस 21- 72 किस्म की औसत उपज 28 क्विंटल/हेक्टेयर देखी गई है।

सोयाबीन जेएस 21-72 के दाना काफी बड़ा है एवं इसका पौधा भी काफी बड़ा पाया गया है। वही माइक्रोबायलॉजी ट्रायल में इस वैरायटी के सुपर नॉड्यूलेटिंग मिले है। Soyabean Ki Kheti इसके नॉड्यूल्स काफी बड़े बड़े है एवं इनमें काफी मात्रा में लेग्युहेमोग्लोबिन होता है। इस वैरायटी के पौधे का  प्राचीन पैटर्न व हर नोड पर फूल देख सकते है, जो काफी अच्छा है। मध्य क्षेत्र के किसान साथी इसकी खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है।

इसके अलावा सोयाबीन जेएस 9560 सोयाबीन जवाहर जेएस 20-69, सोयाबीन एमएसीएस 1407 किस्म, सोयाबीन आरवीएस 2018 किस्म एवं नवीनतम किस्म में एनआरसी 150, एनआरसी 152, जेएस 2303, ,2309,,2218,,,ब्लैक बोल्ड किस्मों को मध्य प्रदेश के लिए अनुशंसित किया गया है।

महाराष्ट्र के लिए सोयाबीन की अनुशंसित उन्नत किस्में – Soybean Varieties for Maharashtra

Soyabean Ki Kheti भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर) द्वारा महाराष्ट्र राज्य के विदर्भ और मराठवाड़ा क्षेत्र के लिए IISR द्वारा अनुशंसित किस्में नीचे दी गई हैं।

किस्में – अहिल्या 1 (एनआरसी 2), जेएस 335, जेएस 93-05, जेएस 80-21, एमएसीएस 58, परभणी सोना (एमएयूएस 47), प्रतिष्ठा (एमएयूएस 61-2), शक्ति (एमएयूएस 81), एमएसीएस 13, मोनेटा , प्रसाद (MAUS 32) PK 472, शक्ति (MAUS 81), TAMS-38 और फुले कल्याणी (DS-228)

उत्तर प्रदेश के लिए सोयाबीन की अनुशंसित उन्नत किस्में – Soybean Varieties for Uttar Pradesh

उत्तर प्रदेश राज्य के लिए IISR द्वारा अनुशंसित किस्में Soyabean Ki Kheti नीचे दी गई हैं। किस्में – पूसा 16, पंत सोयाबीन 1092, पंत सोयाबीन 1042, पंत सोयाबीन 1024, पंत सोयाबीन 564, पीके 472, पीके 472, पीके 416, प्रतिष्ठा (एमएयूएस 61-2), जेएस 93-05, अहिल्या 4 (एनआरसी 37), जेएस 335, एसएल 525, पीएस 1241, पीके 262 और पीके 327।

राजस्थान के लिए सोयाबीन की अनुशंसित किस्में – Soybean Varieties for Rajasthan

राजस्थान राज्य के जिलों के अनुसार IISR द्वारा अनुशंसित किस्में Soyabean Ki Khetiबांसवाड़ा, कोटा, बूंदी, बारां, चित्तौड़गढ़, डूंगरपुर, झालावाड़, उदयपुर के लिए – प्रताप सोया (RAUS 5), PK 472, JS 93-05, इंदिरा सोया 9, JS 335, अहिल्या 2 (NRC 12), अहिल्या 3 (NRC) 7) अहिल्या 4 (एनआरसी 37), परभणी सोना (एमएयूएस 47), जेएस 93-05, प्रतिष्ठा (एमएयूएस 61-2) और शक्ति (एमएयूएस 81) है।

सोयाबीन के बेहतर उत्पादन के लिए जरुरी उपाय

मध्य प्रदेश में सोयाबीन का उत्पादन Soyabean Ki Kheti बड़े पैमाने पर होता है सोयाबीन के बेहतर उत्पादन के लिए जरुरी उपाय आपको बता रहें हैं. देश के कुल सोयाबीन उत्पादन में म.प्र. का योगदान 55 प्रतिशत है. सोयाबीन का औसत उत्पादन 10-12 क्विंटल /हेक्टेयर है. यदि सोयाबीन उत्पादन के निर्धारित मापदंडों का प्रयोग किया जाए तो यह और उत्पादन बढ़ाया जा सकता है.अच्छे उत्पादन के लिए भूमि का चुनाव, अच्छी किस्मों और बीजों का चयन, बुवाई का समय और बीजोपचार ऐसे कार्य हैं, जिनसे बेहतर उत्पादन लिया जा सकता है।

खेत की तैयारी, किस्में एवं जरुरी उपाय

सोयाबीन फसल Soyabean Ki Kheti के लिए हल्की से गहरी काली उदासीन पीएच मान मिट्टी वाली जमीन सोयाबीन के लिए उचित मानी गई है. कृषि विशेषज्ञ के अनुसार तीन साल में एक बार गहरी जुताई करनी चाहिए और गर्मी में एक सामान्य जुताई करनी चाहिए. खेत में जल निकास की उचित व्यवस्था करनी चाहिए. स्वाईलर से जुताई करना इसलिए अच्छा रहता है, क्योंकि यह 12 से 18 इंच तक गहरी जुताई करता है।

Soyabean Ki Kheti यहां इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि जो किसान जिस प्रजाति का बीज स्वयं बनाने के इच्छुक हैं उन्हें बीज विश्वसनीय स्रोत से लेना चाहिए. प्लाट का चयन अन्य सावधानियां भी रखनी चाहिए. परिपक्व और शुद्ध बीजों का चुनाव करना चाहिए।

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