कृषि वैज्ञानिकों ने तैयार की सोयाबीन (Soybean variety 2023) की नई किस्में। जलवायु परिवर्तन से लड़ने में सक्षम, मिलेगी अच्छी पैदावार, इनके बारे में जानिए
Soybean variety 2023 ; जलवायु परिवर्तन का असर खेती पर पढ़ने लगा है। बेमौसम बारिश एवं ओलावृष्टि से फसल चक्र अनियमित होने लगा है। इसके कारण पैदावार घट रही है। कृषि वैज्ञानिक इसका हल निकालने में लगे हुए हैं। कृषि वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के प्रभाव क देखते हुए ऐसी फसलों को विकसित कर रहे हैं जो जलवायु परिवर्तन से लड़ सके। आने वाले खरीफ सीजन को लेकर कृषि वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की ऐसी ही नई किस्में (Soybean variety 2023) तैयार की है जो जलवायु परिवर्तन के दौरान भी अच्छा उत्पादन देगी। सोयाबीन की यह किस्में मध्य प्रदेश के साथ-साथ अन्य राज्यों के लिए भी अनुशंसित है आइए इनके बारे में जानते हैं।
खेती के लिए जलवायु परिवर्तन होना बड़ी चुनौती है (Soybean variety 2023)
धार कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉक्टर जीएस गाठिया ने बताया कि हर साल मानसून का ट्रेंड चेंज होता जा रहा है। एक तो मौसम (Soybean variety 2023) का काल आगे पीछे हो रहा है। साथ ही यह बात भी सामने आ रही कि मानसून के दौरान पहले कभी चार-पांच दिन की ही ड्राय स्पेल हुआ करती थी। उन्होंने कहा कि ड्राय स्पेल से तात्पर्य है कि मानसून सत्र के दौरान 4 से 5 दिन तक पानी नहीं बरसता था।
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मानसून का ट्रेंड बदला, सोयाबीन की फसल पर विपरीत असर
सोयाबीन (Soybean variety 2023) किसानों की आर्थिक स्थिति बदलने वाली फसल है। यह फसल किसान की समृद्धि जुड़ी हुई है। खेती किसानी में भी अनुकूलन का यह नियम प्रासंगिक है और इसी क्रम में कृषि अनुसंधान केंद्र से लेकर कृषि विश्वविद्यालय द्वारा सोयाबीन की नई वैरायटी लाई गई है। सोयाबीन की यह वैरायटी 15 से 20 दिन तक पानी की कमी होने पर भी पनप जाती है और ऐसे विपरीत मौसम से लड़ सकती है।
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर गाठिया बताते हैं कि मानसून की शुरुआत होते ही चार-पांच दिन की खेंच से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था किंतु अब मानसून का ट्रेंड बदला है। जलवायु परिवर्तन की स्थिति बन रही है। सूखे के दिन 15 से 20 दिन तक के हो गए हैं। यानी ड्राय सेल की अवधि 15 से 20 दिन तक पहुंच गई है। ऐसे में मानसून में लंबा ड्राय स्पेल हो जाने के कारण सोयाबीन की फसल (Soybean variety 2023) पर विपरीत असर पड़ता है।
कई बार तो सोयाबीन (Soybean variety 2023) के पौधे सूख जाते हैं और दोबारा बोवनी की स्थिति बन जाती है। मानसून के दौरान कई दिनों तक धूप निकलती रहती है। इस तरह का एहसास होता है मानो भीषण गर्मी का दौर चल रहा हो। यह अपने आप में चिंता का विषय है। वहीं जब फसल पकने वाली होती है तो वर्षा का दौर चलता रहता है। जबकि मानसून की बिदाई मान ली जाती है। इसलिए किसानों को अभी से इस दिशा में भी ध्यान देने की आवश्यकता है।
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सोयाबीन की यह 7 किस्में जलवायु परिवर्तन में भी देगी अधिक पैदावार
धार कृषि विज्ञान केंद्र के विज्ञानी डाक्टर गाठिया ने बताया कि सोयाबीन (Soybean variety 2023) राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र द्वारा एनआरसी 150, एनआरसी 141, एनआरसी 148, एनआरसी 157 वैरायटी की खोज की गई है जबकि कृषि विश्वविद्यालय ग्वालियर द्वारा आरवीएस- 18, 24 और 25 की वैरायटी बाजार में लाई गई है। उन्होंने कहा कि सोयाबीन की वैरायटी में सबसे मुख्य रूप से जलवायु परिवर्तन से लड़ने की क्षमता है।
यदि मानसून सत्र के दौरान 15 से 20 दिन तक वर्षा नहीं होती है तो यह फसल (Soybean variety 2023) संघर्ष करने की स्थिति में रहती है जबकि परंपरागत सोयाबीन की वैरायटी इस तरह की लड़ाई लड़ने में अक्षम है। इन वैरायटी में तना मक्खी व सफेद मक्खी से लेकर गडल बीटल आदि कीट से लड़ने की बेहतर क्षमता है।
प्रति हेक्टेयर पैदावार बढ़ेगी
लगभग 2 महीने के आस पास मानसून का आगमन हो जाएगा और उस समय बोवनी (Soybean variety 2023) की स्थिति बन जाएगी। इसलिए अब जबकि किसानों के पास में 2 महीने से भी कम समय बाकी है तो उसे नई वैरायटियों के लिए संपर्क करना चाहिए।
वर्तमान में किसान 4 से 5 क्विंटल प्रति बीघा सोयाबीन का उत्पादन (Soybean variety 2023) प्राप्त कर रहा है। जबकि यदि नई वैरायटी का उपयोग करता है तो 6 से 7 क्विंटल तक प्रति बीघा उत्पादन प्राप्त कर सकता है। इस तरह से यह एक महत्वपूर्ण कदम अभी से उठाना होगा। किसानों के लिए यह अगली फसल सत्र की तैयारी का है। जिसमें अब बहुत ही कम समय बचा है।
एनआरसी 150 किस्म के बारे में जानिए
इंदौर के सोयाबीन अनुसंधान केंद्र में सोयाबीन की किस्म (Soybean variety 2023) एनआरसी 150 विकसित की गई है। सोयाबीन की इस किस्म की विशेषता यह है कि यह मात्र 91 दिन में परिपक्व होती है। यह सोया गंध के लिए जिम्मेदार लाइपोक्सीजिनेज-2 एंजाइम से मुक्त है। यह रोग प्रतिरोधी भी है।
सोयाबीन अनुसंधान केंद्र की कार्यवाह निदेशक डा. नीता खांडेकर ने बताया कि देश के तीन कृषि जलवायु क्षेत्रों में खेती के लिए उपयुक्त किस्म (Soybean variety 2023) वीएलएस 99 (उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र के लिए), एनआरसी 149 (उत्तरी मैदानी क्षेत्र के लिए) और मध्य क्षेत्र के लिए 4 किस्में एनआरसी 152, एनआरसी 150, जेएस 21-72 एवं हिम्सो-1689 किस्मों को विकसित किया गया है।
सोयाबीन की किस्म एनआरसी 149 के बारे में जानिए
सोयाबीन किस्म (Soybean variety 2023) एनआरसी 149 में उत्तरी मैदानी क्षेत्र के प्रमुख पीला मोेक रोग, राइोक्टोनिया एरियल ब्लाइट के साथ-साथ गर्डल बीटल और पर्णभक्षी कीटों के लिए प्रतिरोधी हैं।
एनआरसी 152 सोयाबीन किस्म के बारे में जानिए
एनआरसी 152 नामक किस्म (Soybean variety 2023) अतिशीघ्र पकने वाली (90 दिनों से कम), खाद्य गुणों के लिए उपयुक्त तथा अपौष्टिक क्लुनिट् ट्रिप्सिंग इनहिबिटर और लाइपोक्सीजेनेस एसिड-2 जैसे अवांछनीय लक्षणों से मुक्त है।
सोयाबीन किस्म जेएस 2172 के बारे में जानिए
मध्य प्रदेश के जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से संबद्ध जबलपुर केंद्र से विकसित सोयाबीन की एक अन्य किस्म (Soybean variety 2023) जेएस 21-72 पीला मोक वायरस, चारकोल रोट, बैक्टीरियल पस्ट्यूल और लीफ स्पाट रोग के लिए प्रतिरोधी होने के साथ 98 दिन में पककर उत्पादन देने में सक्षम है।
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