खरीफ सीजन में सोयाबीन की अच्छी पैदावार के लिए सोयाबीन की बुवाई Soybeans Sowing कैसे करें, आईए जानते हैं..
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Soybeans Sowing | देश में मानसून ने दस्तक दे दी है, मानसून इस वर्ष का समय से पहले आ चुका है। इसी के साथ किसान अब खरीफ फसलों की बुवाई की तैयारी में लग गया है। मध्य प्रदेश में मानसून की एंट्री 15 से 20 जून के मध्य हो सकती है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र एवं राजस्थान में सोयाबीन की खेती सबसे अधिक खेती होती है।
सोयाबीन की फसल से अच्छी पैदावार के लिए सोयाबीन के उन्नत बीज के अलावा सही तरीके से सोयाबीन की बुवाई करना भी बहुत महत्वपूर्ण है। उचित तरीके से सोयाबीन की बुवाई करने पर सोयाबीन की पैदावार में बढ़ोतरी होती है। सोयाबीन की बुवाई Soybeans Sowing किस ढंग से की जाए, ताकि फसल से अच्छा उत्पादन मिले आईए जानते हैं..
कब करें सोयाबीन की बुवाई – Soybeans Sowing
आगामी खरीफ मौसम की फसल बोवाई का समय नजदीक आ रहा है। खरीफ मौसम में सोयाबीन फसल की बोवाई मुख्य रूप से किसानों के द्वारा की जाती है। कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा किसानों को इस सम्बन्ध में उचित सलाह दी गई है। किसानों को सलाह दी गई है कि वर्षा के आगमन पश्चात सोयाबीन की बोवनी के लिये मध्य जून से जुलाई के प्रथम सप्ताह का उपयुक्त समय है। नियमित मानसून के पश्चात लगभग चार इंच वर्षा होने के बाद किसान अपने खेतों में बोवाई करें। मानसून पूर्व वर्षा के आधार पर Soybeans Sowing बोवनी करने से सूखे का लम्बा अंतराल रहने पर फसल को नुकसान हो सकता है।
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बुवाई के पहले बीज को परख लें
कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि किसानों के पास स्वयं का सोयाबीन बीज उपलब्ध है तो उसका अंकुरण करके परीक्षण कर लें। कम से कम 70 प्रतिशत अंकुरण क्षमता वाला बीज ही Soybeans Sowing बोवाई के लिये रखें। यदि किसान बाहर कहीं और से उन्नत बीज लाते हैं तो विश्वसनीय/विश्वासपात्र संस्था/संस्थान से बीज खरीदें। साथ ही पक्का बिल अवश्य लें एवं स्वयं भी घर पर अंकुरण परीक्षण कर लें।
कम से कम दो वैरायटियों का चयन करें
कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि किसान अपनी जोत के अनुसार कम से कम दो-तीन किस्मों की बोवाई करें। वहीं अपने जिले एवं प्रदेश के लिए अनुशंसित सोयाबीन की किस्मों की बुवाई Soybeans Sowing ही करें। जैसे महाराष्ट्र के लिए अनुसंचित किस्में केडीएस की वैरायटियां है। केडीएस की वैरायटी को मध्य प्रदेश में बोने पर अच्छा उत्पादन होने की संभावना बहुत कम है।
मध्य प्रदेश के लिए जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय से विकसित सोयाबीन की किस्म की बुवाई करें। मध्य प्रदेश के लिए एनआरसी 150, एनआरसी 152, एनआरसी 181, एनआरसी-138, एनआरसी-127, 142, जेएस 95-60, जेएस 93-05, जेएस 20-34, नवीन किस्में जैसे- आरवीएसएस-2011-35, जेएस 20-29 एवं आरवीएस-2001-04, जेएस 2172 जेएस 2303 जेएस 2309 आदि किस्में प्रमुख है।
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बुवाई के पहले बीज उपचार जरूर करें
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सोयाबीन के बीज की Soybeans Sowing बोवाई से पूर्व बीजोपचार जरूर करें। बीजोपचार हमेशा एफआईआर क्रम में करना चाहिये। इस हेतु जैविक फफूंदनाशक ट्रोईकोडर्मा वीरडी 5 ग्राम/किग्रा बीज, अथवा फफूंदनाशक थाइरम+कार्बोक्सिम आदि के मान से उपचारित करें।
गत वर्ष जहां पर पीला मोजेक की समस्या रही, वहां पीला मोजेक बीमारी की रोकथाम हेतु अनुशंसित कीटनाशक थायोमिथाक्सम 30 एफएस या इमिडाक्लोप्रिड 48 एफएस से अवश्य उपचारित करें। इसके बाद जैव उर्वरक का अनिवार्य रूप से उपयोग करें।
बीज दर का जरूर ध्यान रखें
कृषि विशेषज्ञों ने बताया कि अनुशंसित बीज 75-80 किग्रा/हेक्टेयर की दर से उन्नत प्रजातियों की Soybeans Sowing बोवाई करें। एक हेक्टेयर में लगभग 4.50 लाख पौध संख्या होनी चाहिये। कतार से कतार की दूरी कम से कम 14-18 इंच के आसपास रखें। गत वर्ष अधिक वर्षा होने के कारण सोयाबीन की फसल प्रभावित हुई थी। इस स्थिति को ध्यान में रखते हुए यदि संभव हो तो रेज्डबेड विधि से फसल की बोवाई करें। इस विधि से फसल बोवाई करने से कम वर्षा एवं अधिक वर्षा दोनों स्थिति में फसल को नुकसान नहीं होता है।
उर्वरक की यह मात्रा रखें
कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक किसान नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटाश एवं सल्फर की मात्रा क्रमश: 25:60:40:20 किग्रा/हेक्टेयर के मान से उपयोग करें। इसके लिये निम्नानुसार उर्वरक का उपयोग कर सकते हैं- एनपीके (12:32:16) 200 किग्रा+25 किग्रा जिंक सल्फेट/हेक्टेयर और डीएपी 133 किग्रा एवं म्युरेट ऑफ पोटाश 66 किग्रा+25 किग्रा जिंक सल्फेट/हेक्टेयर उपयोग करना चाहिये। Soybeans Sowing
बुवाई के दौरान यह भी ध्यान रखें
फसल Soybeans Sowing बोवाई यदि सीड कम फर्टिलाइजर सीड ड्रील से करते हैं तो बहुत अच्छा है, जिससे उर्वरक एवं बीज अलग-अलग रहता है और उर्वरक बीज के नीचे गिरता है तो लगभग 80 प्रतिशत उपयोग हो जाता है। डबल पेटी वाली मशीन न हो तो अन्तिम जुताई के समय अनुशंसित उर्वरक का उपयोग किया जाना चाहिये। अधिक जानकारी के लिये अपने क्षेत्र के वरिष्ठ कृषि विकास अधिकारी के कार्यालय या सम्बन्धित क्षेत्रीय कृषि विस्तार अधिकारी से किसान सम्पर्क कर सकते हैं।
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