किसान गेहूं उत्पादन के अलग-अलग तरीके अपनाते हैं आईए जानते हैं सभी तरीकों Wheat sowing methods में से कौनसे अच्छे है..
Wheat sowing methods : रबी सीजन की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई का दौर शुरू हो चुका है। मध्य प्रदेश में गेहूं के रकबे में लगातार वृद्धि हो रही है तथा बढ़कर 7.15 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच चुका है, लेकिन उत्पादकता में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है। इसका मुख्य कारण पुरानी प्रजातियां जो न केवल रतुआ बीमारी की गिरफ्त में आ चुकी हैं बल्कि अपनी शुद्धता भी खो चुकी है, उन्हीं की बुवाई काफी क्षेत्र में की जा रही है। इसके साथ ही गेहूं उत्पादन में बुवाई के समय किसान साथी छोटी-छोटी सावधानियां नहीं रख पाते हैं।
किसान उन्नत कृषि क्रियाओं पर भी ध्यान न देकर रूढ़िवादी विधि अपना कर ही खेती कर रहे है। अतः प्रदेश की गेहूँ की उत्पादकता बढ़ाने के उपायों के रूप में पुरानी प्रजातियों का नई प्रजातियों से बदलाव तथा उन्नतशील तकनीकियों को अपनाने से पैदावार में बढ़ोतरी होगी तथा गेहूं बुवाई के दौरान पैदावार बढ़ाने के कौन-कौन से तरीके अपनाए जान सकते हैं। क्या सुखे में बोवनी करने की बजाय पानी फेर कर बोवनी करना उचित रहता है आइए Wheat sowing methods सब कुछ इस खबर में जानते हैं :–
खेत की तैयारी करने का सही तरीका
Wheat sowing methods खरीफ की फसल कटते ही खेत की गहरी जुताई अवश्य करें तथा फसल अवशेषों को जलायें नहीं बल्कि रोटावेटार आदि से मिट्टी में मिला दें ताकि बुवाई से पूर्व ये सड़ सके तथा गेहूँ की फसल की पोषक तत्वों की पूर्ति कर सकें इसके बाद एक या दो बार तवे वाले हैरो से जुताई करके पाटा चलायें व खेत को एक सार करके बुवाई के लिये तैयार करें।
आखिरी जुताई के समय गोबर की सड़ी खाद या कम्पोस्ट खाद 10 से 15 टन/हे, की दर से डालें ताकि जमीन में कार्बन तत्व की कमी न होने पाये दीमक या किसी अन्य सूक्ष्म पोषक तत्व की कमी पिछले वर्ष गई हो तो उसका उपाय भी अंतिम जुताई के समय ही करें। Wheat sowing methods
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बीज एवं बीज की बुवाई
संसाधनों के हिसाब से तथा आवश्यकता के अनुरूप प्रजातियाँ जो मध्य प्रदेश के लिए अनुशंसित हैं, उन्हें प्रजातियां की बुवाई करें। हमेशा बीज अच्छे स्त्रोत से ही खरीदें। प्रथम बार में थोड़ी मात्रा में बीज खरीद कर अपना बीज बनायें तथा अगले वर्षों के लिए उसे सुरक्षित रखें। तांकि बार-बार महँगा बीज खरीदने से बचा जा सके। Wheat sowing methods
बीज दर के लिए हमेशा याद रखें कि बड़ा दाना वाला बीज की दर अधिक रखी जाती है तथा छोटे दाने के लिए कम। इसलिये 1000 दाने गिनें इसका वजन करें, जितने ग्राम वजन होगा उतने ही किलोग्राम बीज एक एकड़ क्षेत्र के लिये पर्याप्त होगा। देर से बुवाई करने पर बीज दर 20-25 प्रतिशत तक बढ़ा दें। बुवाई हमेशा लाइन में तथा लाइन से लाइन की दूरी 22.5 सेमी. पर करें।
देर से बोई गई फसल की लाइन की दूरी 20 सेमी पर करें बुवाई के समय ध्यान रखें कि खेत में खाद व बीज मिलाकर न बोयें तथा खाद नीचे व बीज ऊपर हो। Wheat sowing methods
गेहूं की बुआई सुखे में करना चाहिए या पानी फेर कर
Wheat sowing methods गेहूं की बुवाई पानी फेर कर करना उचित रहता है या सुखे में करना। इसको लेकर किसानों के बीच हमेशा डाउट रहता है। कृषि विशेषज्ञ इसके विषय में बताते हैं कि दोनों ही पद्धति के दौरान बुवाई करने से एक समान पैदावार मिलती है। हालांकि कुछ छोटी-छोटी सावधानियां रखना जरूरी है।
जैसे गेहूं की बुवाई यदि सुखे में करते हैं तो दो बार हंकाई के बाद रोटावेटर करें ताकि खेत पूरी तरह समतल हो जाए। सूखे में बोवनी करने के दौरान गेहूं ज्यादा गहराई में ना डालें क्योंकि इससे गेहूं रंपाने की समस्या हो सकती है।
ऐसे खेत जहां गड्ढे हो या खेत ऊंचा नीचा हो ऐसे खेत में सुखे में बुवाई करने से बचना चाहिए। ऐसे खेतों में रेल कर/पानी फेर कर ही गेहूं की बुवाई करें। जिन खेतों में नमी अधिक रहती है अर्थात गलतियां खेतों में भी सुखे की बुवाई करने से बचना चाहिए। जहां पर सिंचाई की सुविधा पर्याप्त नहीं है वहां पर सुखे में बोनी करना चाहिए। Wheat sowing methods
पानी फेर कर बुवाई करने के दौरान इस बात का ध्यान रखें की बीज दर थोड़ी अधिक रखें। गेहूं रेल कर पानी फेर कर बोने का सबसे बड़ा फायदा यह रहता है कि इसमें कल्लों का फूटाव अधिक होता है एवं अंत में यदि हवा चलती है तो जड़े गहरी होने के कारण आड़ा पढ़ने की समस्या बहुत कम रहती है।
पानी फेर कर गेहूं की बुवाई करने से खरपतवार की समस्या नष्ट हो जाती है। कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि गेहूं बुवाई के दोनों ही तरीके अच्छे हैं किसान अपने खेत पानी के अनुसार किसी भी तरीके को अपना सकता है और अधिक पैदावार ले सकता है। Wheat sowing methods
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खाद एवं उर्वरक
वर्षा आधारित प्रजातियों में पूरी उर्वरकों की मात्रा को बुवाई के समय डाल दें। कम पानी वाली प्रजातियों में 50 प्रतिशत नत्रजन तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा बूवाई के समय तथा आधी बची नत्रजन की मात्रा प्रथम सिंचाई पर सिंचाई पूर्व अथवा सिंचाई के बाद पर्याप्त नमी होने पर डालें।
पूर्ण सिंचित प्रजातियों में 1/3 नत्रजन तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्राएं बुवाई के समय तथा नत्रजन की शेष 2/3 मात्रा प्रथम व द्वितीय सिंचाई के बाद पर्याप्त नमी होने पर प्रयोग करें। सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति लक्षणों के अनुसार विशेषज्ञ सलाह से खड़ी फसल में पूर्ण छिड़काव से करें। Wheat sowing methods
गेहूं की खेती के लिए सिंचाई के उचित तरीके
Wheat sowing methods सिंचाई मध्य क्षेत्र में सूखे खेत में बुवाई उपरान्त तुरन्त सिंचाई की सिफारिश की जाती है। इसके बाद पानी के उपलब्धता व प्रजाति की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें एक सिंचाई उपलब्ध होने पर 35-40 दिन की फसल में सिचाई करें, दो सिचाई उपलब्ध हो तो पहली 35-40 दिन बाद व दूसरी 70-80 दिन बाद करें।
तीन सिंचाई होने पर पहली 20-21 दिन बाद दूसरी 50-55 दिन बाद तथा तीसरी 80-85 दिन बाद करें पूर्ण सिंचित होने पर 20-22 दिन के अन्तराल पर सिंचाई दें। इसके साथ यह भी आवश्यक है कि मिट्टी बलुई अथवा कंकरीली हो, तो कम गहरी तथा जल्दी जल्दी सिंचाई की आवश्यकता होती है, यानि उपरोक्त कम को बदलना पड़ सकता है।
फसल में सुनहरा रंग हो जाय तथा दाने भर जायें तो सिंचाई बंद कर दें। इसके बाद सिंचाई करने से दाने की चमक तथा गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है एवं पोटिया आने की सम्भावना रहती है। Wheat sowing methods
खरपतवार नियंत्रण
यदि पहले से ही बिना खरपतवार का खेत हो तो गेहूँ में खरपतवारों की समस्या नहीं होती है। यदि कम मात्रा में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार गेहूँ के अन्दर उगे हुए हो तो उनसे पैदावार पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि कभी कभी पैदावार बढ़ भी जाती है। लेकिन जंगली जई, गुल्ली डण्डा आदि हो तो इन्हें खेत से निकालना अथवा खत्म करना आवश्यक हो जाता है। Wheat sowing methods
यदि हाथ से खींचकर, खुरपी द्वारा या हो आदि चलाकर खत्म कर दिया जाय तो उत्तम रहता है। यदि यह सम्भव न हो तो रसायनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। गेहूँ की फसल को पहले 35 दिन तक खरपतवार विहीन रखना अति आवश्यकक है, यही समय अधिक क्रांतिक होता है बुवाई के तुरन्त बाद पेंडीमिथालिन की 1.0 ली. सक्रिय तत्त्व है मात्रा का छिड़काव करने से दोनों तरह के खरपतवार खत्म होते हैं।
यदि आवश्यक हो तो 4 हफ्ते की फसल पर चौडी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये 2.4-ड़ी 0.75 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व या मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल 4 ग्राम /हे. सक्रिय तत्व का छिड़काव करें। यदि संकरी पत्ती वाले खरपतवार हैं तो क्लोडिनेफॉप प्रोपरजिल 60 ग्राम सक्रिय तत्व या सल्फोसल्फ्यूरॉन 25 ग्राम सक्रिय तत्व है. का छिड़काव करें। Wheat sowing methods
यदि दोनों प्रकार के खरपतवार हो तो रैडीमिक्स खरपतवारनाशक जैसे वेस्टा या एटलान्टिस 400 ग्राम हेक्टेयर की दर से 400 500 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें। Wheat sowing methods
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फसल सुरक्षा
यदि बीज उचित स्थान / संस्था से खरीदा गया है तो गेहूं की फसल में प्राय: कीट व व्याधि का प्रकोप नहीं होता है। इस समय पुरानी अधिकतर गेहूं की प्रजातियां बीमारियों विशेषकर तना एवं पत्तियों के रतुआ के प्रति प्रतिरोधक क्षमता खो चुकी है तथा ब्लाइट (पत्तियों) का प्रकोप भी देखा जा रहा है।
यदि पत्तियों या तने का रतुआ (रस्ट) का प्रकोप हो तो तुरन्त 10 दिन के अंतराल पर 0.1 प्रतिशत का प्रोपिकोनाजोल (टिल्ट 25 ईसी) का छिड़काव कम से कम दो बार करें यह दवा ब्लाइट के लिये भी प्रभावी है। कीट पर अन्य व्याधि का प्रकोप हो तो तुरन्त विशेषज्ञ सलाह से उपचार करें। Wheat sowing methods
ध्यान देने योग्य बातें
गेहूं की पैदावार हेतु जितनी सावधानी बुवाई से पूर्व बरतने की आवश्यकता होती है, उससे कहीं अधिक आवश्यकता बुवाई के बाद होती है, इसमें जरा सी लापरवाही काफी हानि पहुंचा सकती है। यदि किसान ने अपने खेत की अच्छी तैयारी करके उन्नतशील प्रजाति की बुवाई की है।
तथा बुवाई के समय वैज्ञानिक सलाह से खाद एवं उर्वरकों का इस्तेमाल किया है तो इसमें कोई शक नहीं कि अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। बुवाई के तुरन्त बाद गेहूं की प्रजाति के अनुसार उर्वरक एवं सिंचाई का खाका बना लें कि कब व कितने दिन बाद प्रयोग करना है। हालांकि फसल की स्थिति के अनुसार इसे आगे पीछे किया जा सकता है। Wheat sowing methods
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