केंचुए की खाद से किसान बना लखपति

Agriculture success story : केंचुए की खाद बेचकर 12वीं पास किसान 1 लाख महीने कमाता है…

Agriculture success story : खेती किसानी के साथ कृषि से जुड़े अन्य व्यवसाय करके किसान अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं, इसकी बानगी हमें कई बार देखने को मिलती है। वर्तमान में जिस प्रकार से आधुनिकता के कारण खेती किसानी में रासायनिक दवाइयों का इस्तेमाल बढ़ा है वैसे ही कई प्रकार की बीमारियां घर करने लगी है। इन सब के बीच किसानों के बीच अब जैविक खेती के प्रति रुचि बढ़ गई है। किसान अब अधिक से अधिक जैविक खेती की तरफ ध्यान देने लगे हैं।

जैविक खेती से जुड़ा व्यवसाय करके कुछ किसान अच्छी कमाई भी कर रहे हैं। राजस्थान के एक किसान ने ऐसा ही कर दिखाया। यह किसान सालाना लाखों रुपए की जैविक खाद बेचकर प्रतिमाह 1 लख रुपए से अधिक की आमदनी कर रहा है। उक्त किसान की सक्सेस स्टोरी Agriculture success story के साथ लिए जैविक खाद के बारे में सब कुछ जानते हैं एवं कैसे इसका व्यवसाय कर सकते हैं यह भी समझते हैं…

सफल किसान की पूरी कहानी

Agriculture success story राजस्थान के श्रीगंगानगर से लगे ग्रामीण क्षेत्र के रहने वाले किसान कमलेश लावा को कुछ साल पहले तक इस इलाके में कोई नहीं जानता था। अब उन्हें आस-पास के लोग केंचुए वाला किसान कहते हैं। कम पढ़े लिखे होने के बाद भी 4 साल में कमलेश मालामाल हो गए हैं और इसकी शुरुआत हुई 2019 में हुई थी। 12वीं पास किसान की किस्मत एक कछुए ने बदल दी। इस केंचुए से बनी खाद से किसान लखपति बना। हर साल वह 12 लाख रुपए कमा रहा है। यह खाद आइसीनिया फोटिडा किस्म के केंचुए से तैयार की जा रही है।

किसान के सफलता की यह स्टोरी Agriculture success story 2019 में शुरू हुई थी। कमलेश 2003 से 2019 तक एक ही सीड कंपनी में बहुत ही कम सैलरी पर काम करता था। इस दौरान किसी ने राय दी कि केंचुए की खेती से कमाई कर सकते हैं। इस पर कमलेश एक क्विंटल केंचुए लाया और वर्मी कम्पोस्ट बनाना शुरू किया। हालांकि, क्वांटिटी कम होने की वजह से मुनाफा कम हुआ। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ यह बढ़ता ही चला गया।

कमलेश ने बताया- वे हर डेढ़ महीने के गैप पर केंचुआ का उपयोग कर 400 क्विंटल खाद तैयार कर लेते हैं। पूरे साल में इस तरह के 8 लॉट तैयार होते हैं। यानी पूरे साल में 3200 क्विंटल की खाद तैयार करते हैं। Agriculture success story

एक क्विंटल खाद की बाजार कीमत करीब 500 रुपए है। इस तरह से पूरे साल में इस खाद से 16 लाख रुपए की आय होती है। पूरे साल में मेंटेनेंस का खर्चा करीब 4 लाख रुपए आता है। बाकी 12 लाख रुपए सालाना कमाई है और इस हिसाब से हर महीने की इनकम 1 लाख रुपए है। कमलेश ने बताया कि सीड कंपनी में एक साल की जो कमाई थी वह अब यहां से एक महीने में कमा रहा हूं। यहां से काम शुरू करने के बाद इनकम 5 गुना बढ़ गई है। वहीं, प्लांट पर 4 लोगों को रोजगार भी दे रखा है। Agriculture success story

खेत मालिक ने की पार्टनरशिप, 25 लाख का इन्वेस्टमेंट किया

Agriculture success story कमलेश आइसीनिया फोटिडा प्रजाति के केंचुए जयपुर से लेकर आया। 25 लाख के 84 क्विंटल केंचुए खरीदे। इसके बाद गांव में ही 5 बीघा जमीन किराए पर ली। यहां आधा बीघा में वर्मी कम्पोस्ट बनाना शुरू किया। पहले ही साल में 10 लाख रुपए की कमाई हुई।

कमलेश की कमाई और आइडिया को देख खेत मालिक ने भी पार्टनरशिप कर ली। हालांकि, वर्मी कम्पोस्ट का पूरा काम कमलेश देखता है। इसके अलावा साढ़े चार बीघा खेत पर गेहूं और ग्वार की खेती से भी करीब दो लाख कमाई कर रहा है।

15 दिन में तैयार हो जाती है खाद

Agriculture success story – कमलेश ने बताया की वह करीब 10 से 12 ट्राली यानी 600 क्विंटल गोबर हर डेढ़ माह के अंतराल पर खरीदता है। इस गोबर में मीथेन गैस होती है। गैस को खत्म करने के लिए इसे कई बार उलटा पलटा जाता है। इससे गोबर की मीथेन गैस खत्म होती है और तापमान भी कम हो जाता है। जब गोबर का तापमान पूरी तरह काम हो जाता है तो इसे खेत में बने बैड में लगाया जाता है।

किस प्रकार तैयार होती है केंचुए से जैविक खाद

केंचुआ खाद बनाने के लिए सर्वप्रथम बैड तैयार करता है। इन बैड में पहले से ही लाखों केंचुए छोड़े होते हैं। इस गोबर को इन बैड्स में 15 दिन तक छोड़ा जाता है। बीच-बीच में किसान इसकी देखभाल करता है और 15 दिन की अवधि में केंचुए इसे खाकर खाद तैयार कर देते हैं। केंचुओं के गोबर खाने के बाद उनका मल ही खाद के रूप में सामने आता है। इस खाद में जिप्सम, पोटाश, कॉपर सहित कई उर्वरक तत्व मिले रहते हैं। ऐसे में किसानों के लिए यह खाद काफी उपयोगी साबित होती है। Agriculture success story

बहुत डिमांड है जैविक खाद की

Agriculture success story कमलेश के खेत के बाहर किसने की लाइन लगती है। किसान का ये आइडिया आस-पास के किसानों को काफी पसंद आ रहा है। श्रीगंगानगर के किसान इस खाद को पसंद कर रहे हैं। यही कारण है कि कमलेश के खेत के बाहर हर समय किसानों की लाइन दिख जाती है।

कई बार तो किसानों को इस वर्मी कम्पोस्ट के लिए एडवांस ऑर्डर भी देना पड़ता है। किसानों ने बताया कि हर 15 दिनों में कमलेश के प्लांट में आते हैं और ट्रॉली भरकर ले जाते हैं। उन्होंने बताया कि इससे फसल की पैदावार भी अच्छी हो रही है और बीमारियां भी कम लग रही है।

कैसे तैयार करते हैं जैविक खाद

केंचुआ : इसके लिए सबसे जरूरी केंचुआ है। जो गोबर या मिट्‌टी में ही जैविक पदार्थों को खाकर अपने मल से वर्मी कम्पोस्ट निकाला है। इनकी भी दो प्रजातियां हैं।

डेट्रीटीव्होरस : ये प्रजाति जमीन के ऊपरी सतह पर पाई जाती है। लाल रंग के होते हैं।

जीओफेगस : ये प्रजाति जमीन के अंदर पाई जाती है। इस तरह के केंचुए रंगहीन होते हैं।

वर्मीबैड : खाद को तैयार करने के लिए वर्मीबैड तैयार करना होता है। यह ईट और चूने का बना होता है। बाजार में अब प्लास्टिक के कट्टों से बने भी वर्मी बैड मिलने लगे हैं। इनकी लम्बाई और चौड़ाई का क्षेत्रफल 100 स्क्वायर फीट और ऊंचाई 3 से 4 फीट होती है। Agriculture success story

जैविक पदार्थ : जैविक पदार्थ के लिए सूखा हुआ कार्बनिक पदार्थ, सूखी हरी घास, खेत से निकला कचरा और गोबर का इस्तेमाल करते हैं। इन्हें वर्मी बैड में भरने से पहले इसमें से कचरा, कांच और पॉलिथीन को निकाल दिया जाता है।

पानी : केंचुआ खाद तैयार करने में पानी की भी जरूरत होती है। जब वर्मी कम्पोस्ट तैयार होता है तो पानी जैविक पदार्थों की नमी को बनाए रखता है।

वातावरण : जहां ये खाद तैयार की जाती है वहां खासतौर पर वातावरण का काफी ध्यान रखा जाता है। वर्मी बैड को को धूप से बचाकर छायादार जगह पर रखना होता है, क्योंकि तेज धूप से केंचुआ मर जाते हैं। Agriculture success story

आइसीनिया फोटिडा किस्म के केंचुए के बारे में जानिए

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  • आइसीनिया फोटिडा प्रजाति के केंचुए की लार में प्राकृतिक तौर पर क्षमता होती है कि यह बेहतर खाद तैयार कर सकता है।
  • आइसीनिया फोटिडा किस्म का केंचुआ गोबर खाकर खाद तैयार करता है।
  • 5200 प्रजातियां हैं केंचुए की लेकिन इस प्रजाति की तैयार की वर्मी कंपोस्ट 16 गुणा ज्यादा रिजल्ट देती है।
  • अन्य केंचुआ मिट्टी या घास खाकर खाद तैयार तो करते हैं लेकिन गोबर में मर जाते हैं। ऐसे में गोबर से खाद तैयार करने के लिए यह प्रजाति बेहतरीन है। इसका रिप्रोडक्शन भी तेजी से होता है।
  • इसे खाद कीड़ा, रेड चर्म, ब्रांडिंग कीड़ा, पैनफिश कीड़ा, ट्राउट कीड़ा, टाइगर कीड़ा, लाल विग्लर कीड़ा के नाम से भी जाना जाता है।
  • अभी भारत, युगांडा और म्यांमार में इसका उपयोग सबसे ज्यादा होता है। कई देशों में मछली पकड़ने के लिए भी इसका उपयोग होता है।
  • पूरे विश्व लगभग 3000 प्रजातियां हैं। इनमें से 509 प्रजातियां भारत में मिलती हैं। Agriculture success story 
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