10 मार्च से 10 अप्रैल तक करें मूंग व उड़द की बुवाई, अच्छी पैदावार देने वाली रोग प्रतिरोधी टॉप किस्मों के बारे में जानें..

ग्रीष्मकालीन मूंग और उड़द की टॉप किस्मों और खेती (Moong Urad Farming) के बारे में आइए जानते हैं..

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Moong Urad Farming | ग्रीष्मकाल में मूंग और उड़द की खेती खरीफ एवं रबी सीजन के साथ अब तीसरी फसल के रूप में स्थापित होती जा रही है।

जायद के दौरान मूंग और उड़द की खेती से किसान अच्छा लाभ अर्जित कर रहे हैं। रबी सीजन की फसल कटते ही मूंग और उड़द की बुवाई का शुरू हो जाती है।

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक 63 से 70 दिन की अवस्था में पकने वाली मूंग और उड़द की बुवाई के लिए 10 मार्च से 10 अप्रैल तक का समय उपयुक्त रहता है।

मूंग एवं उड़द की खेती (Moong Urad Farming) करने के पहले क्या-क्या तैयारी करने से पैदावार अच्छी होगी एवं उच्च उपज देने वाली मूंग और उड़द की रोग प्रतिरोधी किस्में कौन-कौन सी है, आईए जानते हैं..

मूंग और उड़द की खेती के लिए खेत की तैयारी

Moong Urad Farming | कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक मूंग व उड़द की खेती उत्तर भारत की बलुई दोमट मृदा से लेकर मध्य भारत की लाल एवं काली मृदा में भलीभांति की जा सकती है। इनकी खेती के लिए अच्छे जल निकास वाली बलुई दोमट मृदा उपयुक्त मानी जाती है।

कृषि विशेषज्ञ बताते हैं कि मूंग और उड़द की बुआई से पहले खेत में उचित नमी होनी अति आवश्यक है। बारीक, भुरभुरा व चूर्णित खेत मूंग व उड़द की खेती के लिये अच्छा माना जाता है।

खेत को 2-3 बार जुताई / हैरोइंग पर्याप्त होती है। प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगायें। इससे मृदा की नमी संरक्षित रहती है। वायुमंडलीय तापमान, मृदा की नमी व फसल प्रणाली पर निर्भर करता है। : Moong Urad Farming

मूंग और उड़द की बुआई का उपयुक्त समय

मूंग की बुआई का उपयुक्त समय 10 मार्च से 10 अप्रैल तक है। उड़द की बुआई का उपयुक्त समय 15 फरवरी से 15 मार्च तक है। सरसों, गेहूं, आलू की कटाई के उपरान्त 70 से 80 दिनों में पकने वाली प्रजातियों की बुआई की जा सकती है। : Moong Urad Farming

किसी कारणवश खेत समय पर तैयार न हो, तो वहां पर मूंग एवं उड़द की 60-65 दिनों में पकने वाली प्रजातियों की बुआई 15 अप्रैल के बाद कर सकते हैं।

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मूंग व उड़द की उच्च पैदावार देने वाली टॉप किस्में 

Moong Urad Farming | अच्छी पैदावार तथा उत्तम गुणवत्तायुक्त उत्पादन लेने के लिए अच्छी प्रजाति का चयन अत्यन्त महत्वपूर्ण है इसलिए जल के साधन, फसलचक्र व बाजार की मांग की स्थिति को ध्यान में रखकर उपयुक्त प्रजातियों का चयन करें।

मूंग की उन्नत प्रजातियां : जैसे- पूसा 1431, पूसा 9531, पूसा रतना, पूसा 672, पूसा विशाल, के. पी. एम 409-4 (हीरा), वसुधा (आई.पी.एम.312-20), सूर्या (आई.पी.एम. 512–1), कनिका (आई.पी.एम.302 – 2),

वर्षा (आई. पी.एम. 2 के 14-9), विराट (आई.पी. एम. 205-7), शिखा (आई.पी. एम. 410 -3), आई.पी.एम. 02-14, आई. पी. एम. 02 – 3, सम्राट, मेहा, अरुण (केएम 2328), आर. एम. जी. – 62 आदि प्रमुख हैं। : Moong Urad Farming

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उड़द की उन्नत प्रजातियां जैसे- पीडीयू 1 (बसंत बहार), के. यू. जी. 479, मुलुंद्र उड़द 2 (के.पी.यू. 405), कोटा

उड़द 4 (के.पी. यू. 12-1735), कोटा उड़द 3 (के. पी. यू. 524-65), केयूजी 479, कोटा उड़द 4 (के.पी.यू. 12-1735 ), इंदिरा उड़द प्रथम, हरियाणा उड़द- 1 (यू.एच. उड़द-04-06), शेखर 1, उत्तरा, आजाद उड़द 1, शेखर 2,

शेखर 3, पंत उड़द 31, पंत उड़द 40, आई.पी. यू. 02-43, डब्ल्यू. बी. यू. 108, डब्ल्यू. बी. यू. 109 ( सुलता), माश 1008, माश 479, माश 391 व सुजाता प्रमुख हैं। : Moong Urad Farming

बीज दर का निर्धारण 

ग्रीष्मकालीन मूंग उड़द की खेती के दौरान मुख्यत बीज दर का निर्धारण, बीज के आकार, नमी की स्थिति, बुआई का समय, पौधों की पैदावार तथा उत्पादन तकनीक पर निर्भर होता है।

ग्रीष्मकालीन मूंग व उड़द की बुआई के लिये 20-25 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर पर्याप्त होता है। ग्रीष्मकालीन मूंग एवं उड़द की फसल में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30 सें.मी. होनी चाहिए। बीज की बुआई कूंड़ों में या सीडड्रील से पंक्तियों में की जानी चाहिए तथा बीजों को 4-5 सें.मी. गहराई में बोना चाहिए। : Moong Urad Farming

मूंग उड़द की खेती में उर्वरक प्रबंधन

उर्वरकों का प्रयोग मृदा परीक्षण की संस्तुतियों के आधार पर किया जाना चाहिए। मूंग की फसल के लिये 10-15 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 45-50 कि.ग्रा. फॉस्फोरस, 50 कि.ग्रा. पोटाश एवं 20-25 कि.ग्रा. सल्फर / हैक्टर के दर से बुआई के समय कूंड़ों में देना चाहिए। कुछ क्षेत्रों में जस्ता या जिंक की कमी की अवस्था में 20 कि.ग्रा./हैक्टर के दर से प्रयोग करना चाहिए। : Moong Urad Farming

उड़द की फसल के लिये नाइट्रोजन, फॉस्फोरस एवं गंधक क्रमशः 15, 45 एवं 20 कि.ग्रा. प्रति हैक्टर की दर से बुआई के समय कूंड़ों में देना चाहिए। नवीनतम प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ है कि 2 प्रतिशत यूरिया के घोल का पर्णीय छिड़काव यदि फली बनने की अवस्था में किया जाये, तो उपज में निश्चित रूप से वृद्धि होती है।

उड़द की खेती में खरपतवार प्रबंधन

बुआई के प्रारंभिक 4-5 सप्ताह तक खरपतवार की समस्या अधिक रहती है। पहली सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करने से खरपतवार नष्ट होने के साथ-साथ मृदा में वायु का संचार भी होता है, जो मूल ग्रन्थियों में क्रियाशील जीवाणुओं द्वारा वायुमंडलीय नाइट्रोजन एकत्रित करने में सहायक होता है। : Moong Urad Farming

खरपतवारों के रासायनिक नियंत्रण हेतु 2.5-3.0 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोलकर बुआई के 2 से 3 दिनों के अन्दर अंकुरण से पूर्व छिड़काव करने से 4 से 6 सप्ताह तक खरपतवार नहीं निकलते हैं।

चौड़ी पत्ती तथा घास वाले खरपतवार को रासायनिक विधि से नष्ट करने के लिये एलाक्लोर की 4 लीटर या फ्लूक्लोरालिन (45 ई.सी.) नामक रसायन की 2.22 लीटर मात्रा को 800 लीटर पानी में मिलाकर बुआई के तुरन्त बाद या अंकुरण से पहले छिड़काव कर देना चाहिए। अतः बुआई के 15-20 दिनों के अन्दर कसोले से निराई-गुड़ाई कर खरपतवारों को नष्ट कर देना चाहिए। : Moong Urad Farming

मूंग उड़द की खेती में रोग प्रबंधन

मृदा एवं बीजजनित कई कवक एवं जीवाणुजनित रोग होते हैं। ये मृदा अंकुरण होते समय तथा अंकुरण होने के बाद बीजों को काफी क्षति पहुंचाते हैं।

बीजों के अच्छे अंकुरण तथा स्वस्थ पौधों की पर्याप्त संख्या हेतु बीजों को कवकनाशी से बीज उपचार के लिये प्रति कि.ग्रा. बीज को 2.5 ग्राम थीरम तथा 1 ग्राम कार्बेन्डाजीम से उपचार करने के बाद राइजोबियम कल्चर का प्रयोग करें। : Moong Urad Farming

बुआई के समय बीज डालने से पहले सल्फर धूल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए। इसी प्रकार फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया (पीएसबी) से बीज का शोधन करना भी लाभदायक होता है।

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