किसानों द्वारा उपयोग में ली जा रही जैविक कीटनाशकों Organic kitnashak का प्रमाणीकरण वैज्ञानिकों द्वारा किया जा रहा है।
Organic kitnashak : रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग से धरती की उर्वरा शक्ति कम होती जा रही है, वहीं दूसरी ओर प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। यही कारण है कि अधिक से अधिक किसान अब जैविक खेती की ओर अग्रसर हो रहे हैं। किसानों के साथ-साथ कृषि वैज्ञानिक भी अब जैविक खेती पर अधिक से अधिक ओर जोर दे रहे हैं।
कृषि वैज्ञानिक अब जैविक खेती के दौरान उपयोग में आने वाले जैविक कीटनाशकों का प्रमाणीकरण कर रहे हैं। भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर के वैज्ञानिकों के द्वारा अब जैविक कीटनाशकों का प्रमाणीकरण किया जा रहा है। किसानों को अब रबी एवं खरीफ सीजन के दौरान प्रमाणित जैविक कीटनाशक Organic kitnashak उपलब्ध होंगे।
Organic kitnashak – यह है उद्देश्य
- इंदौर के सोयाबीन अनुसंधान संस्थान में किसानों द्वारा उपयोग की जा रही तकनीक का प्रमाणीकरण हो रहा है।
- जीवामृत घोल प्राकृतिक तरीके से तैयार होता है।
- रासायनिक के बजाय प्राकृतिक पद्धति से तैयार उर्वरक एवं कीटनाशकों से फसलों की सुरक्षा होगी।
- बीजामृत सोयाबीन में फफूंद की समस्या से निजात दिलाएगा।
- तीन से पांच वर्षों में इन Organic kitnashak तकनीकों का प्रमाणीकरण हो सकेगा।
रासायनिक कीटनाशकों से हो रहा दीर्घकालिक नुकसान
गेहूं, चना, सरसों व सोयाबीन के उत्पादन में अधिकांश किसान अभी तक रासायनिक उर्वरक का ही इस्तेमाल कर रहे हैं। रासायनिक उर्वरक का उपयोग कर तैयार की जा रही फसलों के कारण जहां मृदा के पोषक तत्व खत्म होने से उन्हें नुकसान पहुंच रहा है, वहीं हानिकारक पेस्टीसाइड का मनुष्यों के स्वास्थ्य पर दीर्घकालिक नुकसान भी दिखाई दे रहा है।
यही वजह है कि अब इंदौर स्थित भारतीय सोयाबीन अनुसंधान संस्थान द्वारा महाराष्ट्र, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के कुछ इलाकों में उपयोग की जा रही Organic kitnashak बीजामृत, जीवामृत, अब ब्रह्मास्त्र प्राकृतिक पद्धति से की जा रही खेती के तरीकों का प्रमाणीकरण करने की कवायद की जा रही है। इससे भविष्य में ज्यादा से ज्यादा किसान खेती में इनका उपयोग कर सकेंगे।
प्रमाणीकरण बीजामृत तैयार करने की विधि
सोयाबीन अनुसंधान संस्थान इंदौर ने प्राकृतिक पद्धतियों के कृषि में उपयोग के प्रमाणीकरण के प्रोजेक्ट को जून माह में शुरू किया है। तीन से पांच वर्षों में इन तकनीकों का प्रमाणीकरण हो सकेगा। सोयाबीन की फसल में फफूंद लगना बड़ी समस्या है। बोवनी से पहले बीज को ‘बीजामृत’ में डालकर बोने से यह समस्या नहीं हो सकेगी। बीजामृत तैयार करने के लिए गिर नस्ल की देशी गाय के 5 किलो गोबर को कपड़े में बांधेंगे और एक ड्रम में 25 लीटर पानी डालकर गोबर बांधे हुए कपड़े को 12 घंटे के लिए छोड़ देंगे।Organic kitnashak
इसके बाद कपड़े से बांधे गोबर को निचोड़ कर निकालेंगे। अब बचे पानी में पांच लीटर गोमूत्र और 50 मिलीलीटर चूना का पानी डालेंगे। उसमें पीपल या बरगद के पेड़ नीचे की एक मुट्ठी मिट्टी जिसमें रसायन न हो, उसे मिलाकर 24 घंटे के लिए छोड़ दें। इस तरह Organic kitnashak बीजामृत घोल तैयार हो जाएगा। सोयाबीन के बीज की बोवनी करने से पहले उसे बीजामृत में डुबोकर बाहर निकालें व बोअनी यंत्र से खेत में बोएं।
‘जीवामृत’ प्राकृतिक तरीके से फसल को देगा पोषक तत्व
Organic kitnashak जीवामृत तैयार करने के लिए एक डिब्बे में 200 लीटर पानी लेना है। उसमें 10 किलो गोबर और उसमें पांच से दस लीटर गिर गाय का गोमूत्र डालें। उसमें दो किलो गुड़, 2 किलो बेसन, एक मुट्ठी मिट्टी डालकर उसे लकड़ी की सहायता से पूरे घोल को हिलाएं। इसे 48 घंटे के लिए ढक कर छोड़ दें। 12 घंटे के अंतराल के बाद इस घोल को पुन: हिलाएं। अब यह घोल फसल पर छिड़काव के लिए तैयार है। सोयाबीन की फसल में यह पोषक तत्व के रूप में काम करेगा। 1 लीटर पानी में 10 मिलीलीटर यह घोल मिलाकर छिड़कने से फसल में पोषक तत्वों की कमी पूर्ण हो जाएगी।
कम पानी में ‘घनजीवामृत’ का करें उपयोग
जिन इलाकों में पानी की कमी है, वहां Organic kitnashak जीवामृत के बजाय घन जीवामृत का उपयोग किया सकता है। एक हेक्टेयर खेत के लिए घनजीवामृत को इस तरह तैयार किया जा सकता है। देशी गाय का 500 किलो गोबर लेकर उसे छायादार जगह पर फैला दें। इसमें 20 लीटर जीवामृत का तैयार घोल छिड़क कर मिलाएं। उसके ढेर को इकट्ठा कर 48 घंटे के लिए छोड़ दें। उसे जूट के बोरे से ढक दें। जब यह सूख जाए तो इसका खेत में खाद के रूप में उपयोग करें।
कीड़ों को नियंत्रित करेगा आग्नेयास्त्र व ब्रह्मास्त्र
फसलों में कीड़े लगने की समस्या के निराकरण के लिए Organic kitnashak आग्नेयास्त्र व ब्रह्मास्त्र का उपयोग किया जा सकता है। आग्नेयास्त्र को तैयार करने के लिए पांच किलो नीम की पत्ती, एक किलो तंबाकू की पत्ती, आधा किलो तीखी हरी मिर्च, आधा किलो लहसुन को मिलाकर चटनी की तरह पेस्ट बनाएं। उसे 25 से 30 लीटर देशी गोमूत्र में डालें और उसे मटके में गर्म आंच पर झाग आने तक उबालें। अब तैयार घोल को 24 घंटे के लिए छोड़ दें। छानकर घोल निकाल लें, यह स्प्रे के लिए तैयार है।
एक हेक्टेयर खेत में 12 से 16 लीटर इस घोल को 400 से 500 लीटर पानी में मिलाकर का उपयोग किया जा सकता है। यह घोल पल्ली बेधक, रस चूसने वाले कीड़े और इल्ली को नियंत्रित करता है। इसी तरह ब्रह्मास्त्र के घोल को तैयार करने के लिए 2-2 किलो की मात्रा में नीम की पत्ती, करंज, मकवई, धतूरा, सीताफल, बेलपत्र, अरंडी की पत्तियों मिलाकर चटनी की तरह पेस्ट बनाएं और उसे 20 लीटर गोमूत्र में मिला दें।
धीमी आंच पर मटके में रखकर एक घंटे तक उबालें और झाग आने तक ढक कर रखें। 48 घंटे तक ठंडा होने के लिए छोड़े व इसे सुबह व शाम को हिलाएं। इसे छानकर रस को निकाल लें। इस तरह यह घोल भी तैयार है। Organic kitnashak
प्रमाणीकरण के बाद अधिक किसानों तक पहुंचेगी यह पद्धति
सोयाबीन अनुसंधान संस्थान, इंदौर के कृषि वैज्ञानिक डा. राघवेन्द्र नरगुंद के मुताबिक महाराष्ट्र, कर्नाटक व आंध्र प्रदेश के किसान रबी व खरीफ की फसलों में प्राकृतिक खेती के तरीकों को इस्तेमाल वर्षों से करते आ रहे हैं। वे रासायनिक उर्वरक के स्थान पर गोमूत्र, गोबर व अन्य प्राकृतिक चीजों से घोल तैयार करते हैं। किसानों के अनुभव से प्राकृतिक कृषि की तकनीकों का हम अगले तीन से पांच साल में वैज्ञानिक तरीके से प्रमाणीकरण करेंगे। इससे भविष्य में ज्यादा से ज्यादा किसान इन प्राकृतिक पद्धतियों का कृषि कार्य में उपयोग कर सकेंगे। Organic kitnashak
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