गेहूं की फसल में एक सिंचाई, दो सिंचाई, तीन सिंचाई एवं पूर्ण सिंचित का पानी होने पर कब-कब पानी देना चाहिए जानें

गेहूं की फसल में सिंचाई Irrigation in wheat किस प्रकार करना चाहिए आईए जानते हैं..

Irrigation in wheat | अधिकांश किसान गेहूं सहित अन्य फसलों की परंपरागत खेती करते हैं, जिसके कारण पैदावार में आशाजनक बढ़ोतरी नहीं हो पाती है। जबकि गेहूं की खेती उचित तरीके से करने पर निश्चित तौर पर पैदावार में बढ़ोतरी होती है। वर्तमान में रबी फसलों की बुवाई का काम चल रहा है बुवाई के पश्चात रबी फसलों में सिंचाई Irrigation in wheat करना आवश्यक रहता है सिंचाई के दौरान किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए एवं सिंचाई के क्या तरीके हैं आईए जानते हैं..

खेती का सही तरीका अपनाने से होगी पैदावार में वृद्धि

Irrigation in wheat : मध्य प्रदेश में गेहूं के रकबे में लगातार वृद्धि हो रही है, लेकिन उत्पादकता में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पा रही है। इसका प्रमुख कारण यह भी है कि किसान साथी गेहूं उत्पादन में बुवाई से लेकर सिंचाई एवं अन्य छोटी-छोटी सावधानियां नहीं रख पाते हैं। किसान उन्नत कृषि क्रियाओं पर भी ध्यान न देकर रूढ़िवादी विधि अपना कर ही खेती कर रहे है। जबकि उन्नतशील तकनीकियों को अपनाने से पैदावार में बढ़ोतरी होगी। गेहूं बुवाई के बाद सिंचाई Irrigation in wheat किस प्रकार से करना चाहिए, यह सबसे अधिक महत्वपूर्ण है।

गेहूं की फसल में सिंचाई के उचित तरीके 

Irrigation in wheat : सूखे खेत में गेहूं की बुवाई उपरान्त तुरन्त सिंचाई की सिफारिश की जाती है। इसके बाद पानी के उपलब्धता व प्रजाति की आवश्यकता के अनुसार सिंचाई करें।

एक सिंचाई उपलब्ध होने पर 35-40 दिन की फसल में सिचाई करें।

दो सिचाई उपलब्ध हो तो पहली 35-40 दिन बाद व दूसरी 70-80 दिन बाद करें।

तीन सिंचाई होने पर पहली 20-21 दिन बाद दूसरी 50-55 दिन बाद तथा तीसरी 80-85 दिन बाद करें।

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पूर्ण सिंचित होने पर 20-22 दिन के अन्तराल पर सिंचाई दें। इसके साथ Irrigation in wheat यह भी आवश्यक है कि मिट्टी बलुई अथवा कंकरीली हो, तो कम गहरी तथा जल्दी जल्दी सिंचाई की आवश्यकता होती है, यानि उपरोक्त कम को बदलना पड़ सकता है।

फसल में सुनहरा रंग हो जाय तथा दाने भर जायें तो सिंचाई बंद कर दें। इसके बाद सिंचाई करने से दाने की चमक तथा गुणवत्ता पर असर पड़ सकता है एवं पोटिया आने की सम्भावना रहती है।

बुवाई के तुरन्त बाद गेहूं की प्रजाति के अनुसार उर्वरक एवं सिंचाई का खाका बना लें कि कब व कितने दिन बाद प्रयोग करना है। हालांकि फसल की स्थिति के अनुसार इसे आगे पीछे किया जा सकता है।

यह है खाद एवं उर्वरक की सही मात्रा

वर्षा आधारित प्रजातियों में पूरी उर्वरकों की मात्रा को बुवाई के समय डाल दें। कम पानी वाली प्रजातियों में 50 प्रतिशत नत्रजन तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्रा बूवाई के समय तथा आधी बची नत्रजन की मात्रा प्रथम सिंचाई पर सिंचाई पूर्व अथवा सिंचाई Irrigation in wheat के बाद पर्याप्त नमी होने पर डालें।

पूर्ण सिंचित प्रजातियों में 1/3 नत्रजन तथा स्फुर व पोटाश की पूरी मात्राएं बुवाई के समय तथा नत्रजन की शेष 2/3 मात्रा प्रथम व द्वितीय सिंचाई के बाद पर्याप्त नमी होने पर प्रयोग करें। सूक्ष्म पोषक तत्वों की पूर्ति लक्षणों के अनुसार विशेषज्ञ सलाह से खड़ी फसल में पूर्ण छिड़काव से करें।

खरपतवार एवं रोग / रोग कीट नियंत्रण के लिए यह करें 

Irrigation in wheat : यदि पहले से ही बिना खरपतवार का खेत हो तो गेहूँ में खरपतवारों की समस्या नहीं होती है। यदि कम मात्रा में चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार गेहूँ के अन्दर उगे हुए हो तो उनसे पैदावार पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है बल्कि कभी कभी पैदावार बढ़ भी जाती है। लेकिन जंगली जई, गुल्ली डण्डा आदि हो तो इन्हें खेत से निकालना अथवा खत्म करना आवश्यक हो जाता है।

यदि हाथ से खींचकर, खुरपी द्वारा या हो आदि चलाकर खत्म कर दिया जाय तो उत्तम रहता है। यदि यह सम्भव न हो तो रसायनों का इस्तेमाल किया जा सकता है। गेहूँ की फसल को पहले 35 दिन तक खरपतवार विहीन Irrigation in wheat रखना अति आवश्यकक है, यही समय अधिक क्रांतिक होता है बुवाई के तुरन्त बाद पेंडीमिथालिन की 1.0 ली. सक्रिय तत्त्व है मात्रा का छिड़काव करने से दोनों तरह के खरपतवार खत्म होते हैं।

यदि आवश्यक हो तो 4 हफ्ते की फसल पर चौडी पत्ती वाले खरपतवारों के लिये 2.4-ड़ी 0.75 कि.ग्रा. सक्रिय तत्व या मेटसल्फ्यूरॉन मिथाइल 4 ग्राम /हे. सक्रिय तत्व का छिड़काव करें। यदि संकरी पत्ती वाले खरपतवार हैं तो क्लोडिनेफॉप प्रोपरजिल 60 ग्राम सक्रिय तत्व या सल्फोसल्फ्यूरॉन 25 ग्राम सक्रिय तत्व है. का छिड़काव करें।

यदि दोनों प्रकार के खरपतवार Irrigation in wheat हो तो रैडीमिक्स खरपतवारनाशक जैसे वेस्टा या एटलान्टिस 400 ग्राम हेक्टेयर की दर से 400 – 500 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।

यदि बीज उचित स्थान / संस्था से खरीदा गया है तो गेहूं की फसल में प्राय: कीट व व्याधि का प्रकोप नहीं होता है। इस समय पुरानी अधिकतर गेहूं की प्रजातियां बीमारियों विशेषकर तना एवं पत्तियों के रतुआ के प्रति प्रतिरोधक क्षमता खो चुकी है तथा ब्लाइट (पत्तियों) का प्रकोप भी देखा जा रहा है।

Irrigation in wheat : यदि पत्तियों या तने का रतुआ (रस्ट) का प्रकोप हो तो तुरन्त 10 दिन के अंतराल पर 0.1 प्रतिशत का प्रोपिकोनाजोल (टिल्ट 25 ईसी) का छिड़काव कम से कम दो बार करें यह दवा ब्लाइट के लिये भी प्रभावी है। कीट पर अन्य व्याधि का प्रकोप हो तो तुरन्त विशेषज्ञ सलाह से उपचार करें।

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